मच्छी भवन लखनऊ का अभेद्य किला और 1857 गदर का गवाह Naeem Ahmad, June 17, 2022March 3, 2023 लक्ष्मण टीले के करीब ही एक ऊँचे टीले पर शेख अब्दुर्रहीम ने एक किला बनवाया। शेखों का यह किला आस-पास मौजूद अन्य इमारतों की अपेक्षा कहीं अधिक मजबूत था। शेख अब्दुर्रहीम साहब का शेखों में बड़ा दबदबा था। गुजिश्ता लखनऊ से प्राप्त जानकारी के अनुसार लखना नाम के अहीर ने यह किला बनाया था, उसी के नाम से इस शहर का नाम लखनऊ हो गया। किला इतना मजबूत और सुरक्षित था कि कहा जाने लगा जिसका मच्छी भवन उसका लखनऊ। मच्छी भवन लखनऊ हिस्ट्री वक्त के थपेड़ों ने मच्छी भवन का नामों-निशान मिटा दिया। आज उसी के भग्नावशेषों पर मेडिकल कॉलेज के विशाल भवन निर्मित हैं। यह किला चारों तरफ से ऊँची एवं मजबूत चहारदीवारी से घिरा था। सम्पूर्ण किले में बने महलों पर तमाम भव्य मत्स्य आकृतियां थीं। जिससे इसका नाम ‘मच्छी भवन’ हो गया। यह किला अगर अपनी मजबूती में बेमिसाल था तो खूबसूरती में भी कम न था। उसकी यही खूबी सैय्यद मीर मुहम्मद अमीन” उर्फ सआदत खां बुरहानुलमुल्क’ के दिमाग में घर कर गयी। इस किले को हासिल करना आसान काम न था। वह जानते थे कि यदि सीधे इस पर आक्रमण किया गया तो विजय हासिल हो सकती है, पर खून-खराबा बड़ा जबरदस्त होगा। लिहाजा उन्होंने एक चाल चली। सआदत खाँ ने शाहदरा में शेखों को एक दावत पर आमन्त्रित किया। दावत बड़ी शानदार रही। शेख सुरों ओर सुन्दरियों में डूब गये। सआदत खाँ ने मौका ताड़ा और मच्छी भवन पर धावा बोल दिया, अधिकांश शेख शाहदरा में मस्त थे। खबर लगी तो सिर पीट कर रह गये। कर भी क्या सकते थे ? अब टक्कर लेना मौत को न्यौता देना था। मुख्य ताकत (मच्छी-भवन) जा ही चुका था। मच्छी भवन लखनऊ सन् 1739 में सआदत खाँ को किसी ने जहर दे दिया। बेचारे ईश्वर को प्यारे हो गये। सआदत खाँ के बाद नवाब सफदरजंग ने सूबेदार का पद सम्भाल। शेखों से ज्यादा बिगाड़ लेना ठीक न समझा समझदारी की। कई सौ एकड़ जमीन उन्होंने शेखों को रहने के लिये दे दी। 1857 के गदर में मच्छी भवन तहस-नहस हो गया। 28 जून, 1857 को हेनरी लारेंस ने जब यह खबर पायी कि नवाब गंज में एकत्र विद्रोही फौजें चिनहट आ धमकी हैं तो उसने तुरन्त अपनी सेनाओं को मड़ियाँव छावनी और बेलीगारद छोड़कर मच्छी-भवन पर आने का आदेश दिया। हेनरी लारेंस और ब्रिगेडियर इंग्लिस ने सोचा कि विद्रोहियों को वहीं समाप्त कर देना चाहिए। 30 जून, 1857 को हेनरी महोदय अपनी फौज लेकर रवाना हो गये। जैसे ही फौजें चिनहट के करीब इस्माइल गंज पहुँची आम के बाग में दोनों ओर छिपी विद्रोही सेना ने भीषण आक्रमण करके अंग्रेजों को वापस भागने पर मजबूर कर दिया। इधर विद्रोही सेना भी भगोड़ों का पीछा करती शहर में प्रवेश कर गयी और बेलीगारद को चारों तरफ से घेर लिया। बुरे फंसे थे कमांडर कर्नल पामर जो कि थोड़ी सेना के साथ मच्छी भवन में थे। हेनरी लारेंस ने पामर को झंडियों के माध्यम से इशारा किया कि वह रात में ही मच्छी भवन छोड़ दें। रात 2 बजे मच्छी भवन की अंग्रेजी फौजें सुरक्षित बेलीगारद पहुँच गयीं। लेफ्टीनेंट टामस ने मच्छी भवन उड़ा दिया। इसी के साथ ही शेखों के इस अजेय गढ़ की कहानी खत्म हो गयी। इसी मच्छी भवन ने आजादी के दीवानों को फाँसी के फन्दे पर लटकते हुए देखा था। मड़ियाँव छावनी की 48 नं० की रेजीमेन्ट के पकड़े गये अनेकानेक विद्रोही सिपाहियों को खुले-आम लटका कर सजाये मौत दी गयी थीं। लाश दिन भर रस्सी के फन्दे से लटकी रहती। गिद्धों और चीलों के झुण्ड इन्हें नोंच-नोंच कर खाते। शाम को फिर दूसरा कैदी लटकाया जाता। इस प्रकार यह भवन क्रांतिकारियों के बलिदान का भी गवाह था। जो आज काल के गाल में समा चुका है। लखनऊ के नवाब वंशावली—- [post_grid id=”9505″] लखनऊ में घूमने लायक जगह:— [post_grid id=’9530′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized उत्तर प्रदेश पर्यटनलखनऊ पर्यटन