मगहर का मेला कब लगता है – कबीर समाधि मगहर Naeem Ahmad, August 11, 2022March 18, 2023 संत कबीरदास के बारे मे जनश्रुति है कि वे अपनी भक्ति पर अटूट विश्वास के फलस्वरूप काशी छोड़ कर मगहर चले गये थे और कहा था- जो कबिरा काशी मरे, रामहि कवन निहोर।” यह वहीं मगहर है। कबीरदास की अंतिम साधना-स्थली भी यही है। यहां संत कबीर दास का आश्रम है, मंदिर है, समाधि है, जो कबीर पंथियो के लिए तीर्थ है। कबीर हिन्दू-मुसलमान दोनो से पृथक एक साधक संत थे, अत हिंदू मुसलमान दोनों की उन पर समान श्रद्धा थी। इसी कारण नवरात्र के अवसर पर यहां एक ओर मेला लगता है तो दूसरी तरफ उर्स। इस मेले को भावात्मक एकता और साम्प्रदायिक सदभावना का केन्द्र कहा जा सकता है। इस स्थान को पर्यटन का केन्द्र बनाया जा सकता है। इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की आवश्यकता है। Contents1 मगहर का महत्व2 मगहर का मेला – खिचड़ी मेला मगहर3 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— मगहर का महत्व मगहर उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में एक गांव है। संत कबीरदास जी अपना अंतिम समय निकट देख काशी से मगहर पहुंच गए थे। संत कबीरदास जी अंधविश्वासों का खंडन अपने जीवन भर करते रहे थे। काशी मुक्तिदायिनी है, इस अंधविश्वास को जड़ से खत्म करने के लिए वह अपने प्राण काशी में त्यागना नहीं चाहते थे। बल्कि कबीरदास ने एक ऐसी जगह चूनी जो धर्म के अनुसार विपरीत फलदायिनी मानी जाती थी। मगहर का मेला उस समय लोक प्रसिद्ध था कि मगहर में मरने वाला अगले जन्म में गधा होता है। इसका खंडन करने के लिए कबीर अपने अंतिम समय में मगहर पहुंचे। कबीर ने उन लोगों को ईश्वर का घोर कहा जो काशी छोड़ने से डरते हैं:– वै क्यूं कासी तजै मुरारी, तेरी सैवा तो हमें बनवारी। जोगी जती तपी संन्यासी, मठ देवल बसि परसैं कासी।। तीन बेर जे नित प्रति न्हावैं, काया भीतरि खबरि न पांवै। देवल देवल फेर देहि, नांम निरंजन कबहुं न लेंहि।। चरन विरद कासी कौ न दैहूं, कहै कबीर भले नरक जैहूं।। अंतिम पंक्ति में कबीर अपनी आन भी प्रकट कर देते हैं कि मैं काशी को अपना चरण विरद नहीं दे सकता चाहे भले ही नरक मिले। कबीर ने नरक जाने का सीधा मार्ग मगहर में मरना समझा। भक्त लोगों ने उनको समझाया भी बहुत होगा। कबीर काशी और मगहर में अंतर ही नहीं मानते थे। वो कहते थे :– “लोगों तुम मति के मोरा” मगहर मरै सो गदहा होय, भल परतीति राम सौ खोय। मगहर मरै, मरन नाहि पावे, अनते मरै सौ राम लजावै।। का कासी का मगहर ऊसर, ह्रदय राम बस मोरा। जो कासी तन तजइ कबीरा, रामहि कवन निहोरा।। मगहर का मेला – खिचड़ी मेला मगहर कबीरदास की मृत्यु के पश्चात हिन्दू चाहते थे कि कबीर का शव जलाया जाए और मुसलामान उसे दफनाने के लिए कटिबध्द थे। पर सारे विवाद के आश्चर्यजनक समाधान में शव के स्थान पर उन्हें कुछ फूल मिले। आधे आधे फूल बांटकर एक हिस्से से हिन्दुओं ने जहां कबीर की तप स्थली थी आधी ज़मीन पर गुरु की समाधि बना दी और मुसलमानों ने अपने हिस्से के बाकी आधे फूलों से मक़बरा तथा आश्रम को समाधि स्थल बना दिया गया। कबीर की मजार और समाधि मात्र सौ फिट की दूरी पर अगल-बगल में स्थित हैं। समाधि के भवन की दीवारों पर कबीर के पद उकेरे गए हैं। इस समाधि के पास एक मंदिर भी है जिसे कबीर के हिन्दू शिष्यों ने सन् 1520 ईस्वी में बनवाया था। मजार का निर्माण समय सन् 1518 ईस्वी का बताया जाता है। मगहर में हर साल तीन बड़े मेला का आयोजन किया जाता है जिनमें 12-16 जनवरी तक मगहर महोत्सव और कबीर मेला, माघ शुक्ल एकादशी को तीन दिवसीय कबीर निर्वाण दिवस समारोह और कबीर जयंती समारोह के अंतर्गत चलाए जाने वाले अनेक कार्यक्रम शामिल हैं। मगहर महोत्सव और कबीर मेला में संगोष्ठी, परिचर्चाएं तथा चित्र एवं पुस्तक प्रदर्शनी के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं । कबीर जयंती समारोह में अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से संत कबीर के संदेशों का प्रचार-प्रसार किया जाता है। इसके अलावा मगहर का मेला मनोरंजन के लिए भी प्रसिद्ध है, मगहर के मेले में मनोरंजन के लिए छोटे बड़े झूले, मौत का कुआं, सर्कस, भूत बंगला, हंसी के फुवारे, निशानेबाजी, और भी अनेक प्रकार के मनोरंजन देखने को मिलते हैं। इस मेले को खिचड़ी मेला भी कहा जाता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— मीरान शाह बाबा दरगाह - 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