मंजी साहिब गुरूद्वारा आलमगीर लुधियाना – Manji sahib history in hindi
Alvi
गुरूद्वारा मंजी साहिब लुधियाना के आलमगीर में स्थापित है। यह स्थान लुधियाना रेलवे स्टेशन से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्री गुरू गोविंद सिंह जी उच्चपीर बनकर जंगलों के रास्ते होते हुए सन् 1761 में इस स्थान पर आये थे। श्री गुरू गोबिंद सिंह जी के साथ तीन सिंह भाई दया सिंह, भाई मान सिंह, भाई धर्म सिंह और दो मुसलमान भाई नबी खां, भाई गनी खां के साथ यहां आये थे।
दो सिंह गुरू जी को पलंग पर लेकर आ रहे थे। दो मुस्लिम सिख आगे चल रहे थे, तथा भाई मानसिंह चवंर की सेवा कर रहे थे। गुरू गोबिंद सिंह जी यहां पलंग पर सवार होकर आये और इस स्थान पर रूके। गुरू जी ने सिंहों से जल की करने को कहा। एक गरीब माई जिसे कोढ़ की बीमारी थी दिखाई दी, गुरू के सिंहों ने उनसे जल के बारे में पूछा, गरीब माई ने बताया थोड़ी दूर एक कुआँ है, लेकिन वहाँ पर कोई नहीं जाता, क्योंकि उस कुएँ में एक खतरनाक अजगर सांप रहता है।
गुरूद्वारा मंजी साहिब आलमगीर लुधियाना के सुंदर दृश्य
गुरूद्वारा मंजी साहिब का इतिहास
गुरु के सिंहों ने वापस आकर यह बात श्री गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज को बतायी। गुरू गोबिंद सिंह जी ने एक तीर निकालकर कुएँ में फेंका वह तीर जाकर उस अजकर को लगा, और वह अजगर वहीं मर गया। जिससे उस कुएँ का पानी खराब हो गया। सिंहों ने यह बात गुरू जी को बताई कि कुएँ का सारा पानी अजगर के मरने से खराब हो गया है, और वह पीने योग्य नहीं रहा।
श्री गुरू गोबिंद सिंह जी ने एक तीर और निकाला और उसे उस जगह धरती पर मारा जहां आज पावन सरोवर बना। जिससे धरती से पानी का फव्वारा निकल पड़ा और आज वह बावन सरोवर के रूप में जाना जाता है। जिसे तीरसर साहिब कहते है।
गुरू गोबिंद सिंह जी और उनके सिंहों ने उस जल से अपनी प्यास बुझायी और स्नान किया। गरीब माई ने यह कौतुक देखा तो उस माई ने अपने कोढ़ को दूर करने की प्रार्थना गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज से की। गुरू जी ने कहा माई इस जल में स्नान करो। कोढ़ के साथ साथ जन्म जन्मांतर के सभी कष्ट दूर हो जायेंगे। माई ने उस पवित्र जल मै स्नान किया और वह बिल्कुल ठीक हो गयीं।
नगर मैं यह बात जंगल मै आग की तरह फैल गई। नगर के लोगों को जब पता चला तो सब इकट्ठा होकर गुरू जी से कुछ दीन वहां रूककर जनता के कष्टों का निवारण करने और गुरू की धधसेवा करने की विनती करने लगे। गुरू गोबिंद सिंह जी ने 3 दिन यहां डेरा किया, चलते समय भाई नधैया सिंह जी ने गुरू जी को एक घोड़ा भेंट किया। जिस पर सवार होकर गुरू गोबिंद सिंह जी आगे की ओर निकल गये। आज उसी पावन स्थान पर गुरूद्वारा मंजी साहिब बना हुआ है। और उसके पावन सरोवर में मै आज भी भक्त उसी मान्यता के साथ स्नान करते है। और अपने रोगों और कष्टों का निवारण करते है।
गुरूद्वारा मंजी साहिब का क्षेत्रफल लगभग 20 एकड़ का है। कार पार्किंग, अस्पताल, गेस्ट हाउस, लगभग 3000 संगत की क्षमता वाला लंगर हाल, पुस्तक घर, प्रसाद घर, जूता घर, गठरी घर, भी स्थापित है। गुरूद्वारे का दरबार साहिब 100 फुट लम्बा, 150 फुट चौड़ा तथा 15 फुट ऊचां है। पीछे की तरफ तीन फुट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर पालकी साहिब में श्री गुरू ग्रंथ साहिब विराजमान है। पालकी साहिब के ऊपर छतरी आदि नहीं है। दरबार साहिब के सामने 100 फुट ऊचां निशान साहिब स्तम्भ है।
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