भैरव जी मंदिर रामपुरा जालौन उत्तर प्रदेश Naeem Ahmad, September 1, 2022February 22, 2024 उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में भैरव जी मंदिर रामपुरा से 3 कि०मी० दूर दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थित है यह मन्दिर मन्दिर के अवशेषों के साथ इसके आस-पास अन्य भी अवशेष हैं जो यहाँ पर पुराने भवनों के होने का संकेत देते हैं। इसी भैरव जी मन्दिर के उत्तर पूर्व की ओर एक विशाल समाधि भी बनी है जो कि गूदड़ बाबा की समाधि के नाम से जानी जाती है। इस स्थान के पूर्व दक्षिण में पहूँज नदी बहती है।भैरव जी मंदिर रामपुरा जालौनरामपुरा राज्य के कुल देवता है भैरव जी उनके राज्य चिन्ह में भी भैरव जी सुशोभित है। राजपूत काल में अर्थात् पृथ्वीराज चौहान के समय यहाँ पर एक किला था और किले के मध्य में भैरव जी की मूर्ति प्रतिष्ठित थी जिसके अर्चन पूजन आदि की सम्पूर्ण व्यवस्था तत्कालीन किले द्वारा ही सम्पन्न होती थी। इस स्थान पर नारायणी चिड़िया एव उल्लू दोनों की ही ध्वनि श्रव्य हैं। नारायणी चिड़िया की ध्वनि जहाँ सकारात्मक मानी जाती है वहीं उलूक ध्वनि विध्वंशकारी समझी जाती है। दोनों प्रकार की सकारात्मक एवं विध्वंशकारी ध्वनियों का संयोग इस बात को दर्शाता है कि इस सकल विश्व में ईश्वर साक्षाक्तार ही केवल सकारात्मक है शेष सब कुछ विनाश को प्राप्त होने वाला है।जालौन का इतिहास समाजिक वह आर्थिक स्थितिपहिले इस स्थान पर कई मूर्तियाँ थी परन्तु श्रीपाल गड़रिया ने वे सभी मूर्तियाँ एक कुयें में इस कारण फेंक दी क्योंकि उसकी मनोकामना अनुसार उसे इच्छित सम्पत्ति की प्राप्ति नहीं हुई। पहिले इस स्थान पर बालू पत्थर की लगभग 2 फुट ऊँची भैरव जी की मूर्ति प्रतिष्ठित थी जब वह कुएं में फेंक दी गयी तब श्रृद्धालुओं द्वारा काले पत्थर की एक अन्य मूर्ति बनवाकर यहाँ प्रतिष्ठित की गई जो कि आज भी श्रद्धा का केंद्र है।भैरव जी मंदिर रामपुरागूदड़ बाबा समाधिगूदड़ बाबा एक दसनामी महात्मा थे। वे प्राणायाम के सिद्धयोगी थे तथा आकाश मार्ग से चलकर ही अपना रास्ता तय करते थे। यह भी सुना जाता है कि वे इस भैरव जी मन्दिर से अदृष्य होते थे तथा रामपुरा में प्रगट होते थे। यहाँ पर गूदड़ बाबा की जीवित समाधि है। जिन लोगों में पंच तत्वों को अपने अन्दर विलीन करने की शक्ति होती है वे ही जीवित समाधि लेने में सक्षम होते हैं। गूदड़ बाबा का कुत्तों के साथ विशेष सम्पर्क था।करण खेड़ा मंदिर जालौन – करण खेड़ा का इतिहास व दर्शनीय स्थलयहाँ पर यह भी मान्यता प्रचलित है कि भैरव जी का ही अवतार गूदड़ बाबा थे क्योंकि भैरव का वाहन भी कुत्ता है और गूदड़ बाबा का भी कुतों के साथ विशेष सम्पर्क रहता था। यह स्थान सिद्ध व चमत्कारी है। प्रत्यक्षदर्शी प्रागु केवट के अनुसार पहुँज नदी के किनारे पर उस स्वयं, सिर हाथों व पैरों की पंजो सहित अंगुलिया देखी है। शेष शरीर अदृष्य रहा है। उसके अनुसार यह महाराज मनसापुरी का शरीर था जो कि दिव्य अलौकिक शक्तियों से सम्पूरित था।भैरव जी मंदिर का वास्तुशिल्पभैरव जी की मूर्ति के चारों ओर एक मठिया नुमा मन्दिर है जिसे अभी 30-40 वर्षों के अन्तराल में निर्मित किया गया है। यह वर्गकार है एवं पश्चिमा भिमुख है। इससे पूर्व यहाँ पर एक मठिया थी जो कि लगभग 300 वर्ष प्राचीन रही होगी। वर्तमान मठिया की प्रत्येक भुजा 20 फुट लम्बी है। इसकी तीनों दीवारों पर खिड़कियाँ है। इस मठिया की दीवार 3 फुट चौड़ी है। इसके ऊपर त्रिशूल्राकृति लिये हुए गुम्बदाकार अंकित है। मन्दिर के वर्ग के ऊपर चारों कोनों पर एक-एक छोटी मठिया बनी हुई है।द्वारकाधीश मंदिर जालौन उत्तर प्रदेशइस भैरव जी की मठिया के पूर्व की ओर गूदड़ बाबा की समाधि हैं । यह समाधि 25फुट लम्बी व 15 फुट चौड़ी तथा 15 फुट ऊँची हैं। यह समाधि आगे से त्रिभुजा कार एवं पीछे से लम्बाई लेते हुये अण्डाकार हैं।कलंदर शाह दरगाह कोंच जालौन उत्तर प्रदेशयहाँ की भैरव जी की मूर्ति काले पत्थर की बनी हैं जो कि एक फुट 6 इंच ऊँची व 9इंच चौड़ी है। इसके दोनों ओर स्वान अंकित हैं। इस मूर्ति के वक्ष पर सर्पकार जनेऊ हैं। हाथ में दण्ड सुशोभित हैं। कटि प्रदेश पर करधनी सहित कोषिन धारण किये हैं। कानों में चक्रकुण्डल व सिर पर जटामणि सहित जटामुकुट धारण किये हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—– [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटन