भाप-इंजन का विकास अनेक व्यक्तियों के सम्मिलित-परिश्रम का परिणाम है। परन्तु भाप इंजन के आविष्कार का श्रेय इंग्लैंड के जेम्स वाट को है। भाप इंजन के आविष्कार के आविष्कार की शुरूआत करीब 2000 वर्ष पूर्व मिस्र के प्राचीन नगर अलेक्जेंड्रिया से हुई थी। वहां के एक व्यक्ति हेरो ने सबसे पहले भाप से चालित टरबाइन बनाई। उसके भाप यंत्र से एक मंदिर के द्वार अपने आप खुलते आर बंद होते थे। उसके बाद भाप से चलने वाले यत्रों के बारे मे इटली के महान चित्रकार वैज्ञानिक, संगीतज्ञ ओर गणितज्ञ लियोनार्दो दा विंची ने कई संभावनाए व्यक्त की। भाप-शक्ति से चलने वाली नाव ओर बंदूक आदि का सचित्र उल्लेख उसने अपनी नोट-बुक में किया है। लियोनार्दो का जन्म 1452 में ओर मृत्यु 1519 में हुई।
भाप इंजन का आविष्कार कैसे हुआ
सत्रहवीं शताब्दी में भाप की शक्ति और उसके उयोग के विषय में काफी प्रगति हुई। इटली के ही एक अन्य आविष्कारक जियोवन्नी बतिस्ता डेला पाता ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि भाप से दबाव डालकर पानी को किस तरह ऊपर उठाया जा सकता है। 1615 में फ्रांस के एक इंजीनियर सालोमन द कांसे ने एक भाप के फव्वारे का आविष्कार किया था। रोम के एक अन्य व्यक्ति ब्रांका ने अपनी पुस्तक में भाप से चलने वाले अनेक यंत्रों का वर्णन किया है, जिसमे भाप-इंजन का भी जिक्र है।
फ्रांस के एक आविष्कारक डेनिस पेपिन ने भाप की शक्ति के प्रयोग से प्रेशर कुकर का आविष्कार सन् 1672 में किया था।
डेवनशायर (शिल्सटन) के एक इंजीनियर ने 1694-1710 के मध्य भाप से चालित एक इंजन बनाया। उसे अपने विभिन्न यंत्रों के लिए सात पटट दिए गए। उसने अपन भाष-इंजन के मॉडल का लंदन की रॉयल सोसाइटी के सदस्यो के सामने प्रदर्शन भी किया। यह यंत्र पानी को ऊपर चढ़ाने के लिए प्रयोग में लाया जाता था।

इसके बाद डेवनशायर के ही एक अन्य व्यक्ति थामस न्यूकामेन का भी भाप-इंजन के प्रयोग में नाम आता है। न्यूकामेन और सेवरी लगभग एक ही समय में भाप के यंत्रों के विकास पर प्रयोग कर रहे थे। न्यूकामेन ने 1712 में अपना पहला भाप से चालित वायु दाव इंजन बनाया।
1765 में ब्रिटेन के एक इंजीनियर जेम्स वाट ने भाप इंजन बनाया। उसके भाप इंजन में एक सिलिण्डर था, जिसमे पिस्टन लगा हुआ था। इंजन चलाने के लिए भाप सिलिंडर में ऊपर की तरफ से भेजी जाती थी तथा भीतरी वायु को हवा निकालने वाले वाल्व द्वारा बाहर निकाला जाता था। कडेन्सर की लम्ब रूप मे स्थित नली तथा इसके बॉक्स को ठंडे पानी से भरकर पम्प को ऊपर की और खींचा जाता था। इससे पानी को नली से बाहर निकालकर बॉक्स में निर्वात (vaccum) पैदा किया जाता था। इस तरह सिलिंडर की भाप शीघ्र निर्वात में पहुंच जाती थी और ठंडी नली में संघनित (Condensed) हो जाती थी। पिस्टन जिसके ऊपर निर्वात और नीचे की और भाप होती थी, सिलिंडर में ऊपर उठ जाता था और र सिलिंडर से लगी छड़ का भार ऊपर की ओर उठ जाता था।
इस प्रकार जेम्स वाट ने वायुदाब इंजन बनाने में सफलता प्राप्त की। 1776 में जेम्स वाट ने भाप इंजन के दो बडे मॉडल तैयार किए। दोनो ही इंजन बहुत सफल रहे। एक इंजन ब्लूमफील्ड कालियरी के लिए तथा दूसरा लोहे का निर्माण करने वाली धमन भट्टी में हवा देने के काम के लिए न्यू बिली मे स्थित फैक्टरी के लिए था। जेम्स वाट के साथ-साथ ही एक अन्य व्यक्ति बोल्टन (इंग्लैंड) भी भाप इंजन के निर्माण में लगे हुए थे। बाद में जेम्स वाट और बोल्टन ने इस कार्य में आपस में साझेदारी कर ली।
आगे चलकर बोल्टन और जेम्स वाट के पम्प-इंजनो में काफी
सुधार किया गया। कुछ समय बाद ऐसे भाप इंजन बनने लगे जो पहिया घुमाने में सक्षम थे। इन्हें घूणन भाप इंजन कहा जाता था।
जेम्स वाट ने अपने पम्प-इजन में पहिया घुमाने की तरकीब
खोज ली। साथ ही वह भाप को इंजन में बरबाद होने से बचाने के उपाय भी खोजता रहा। भाप के अधिक दबाव फैलने और बरबाद हाने से बचाने के लिए इंजनों में एक से अधिक सिलिंडरों की व्यवस्था बडी ही उपयोगी सिद्ध हुई। जेम्स वाट ने 1775 में दोहरा कार्य करने वाला भाप इंजन बनाया और उसके पटट के लिए उसका रेखाचित्र बनाकर अधिकारियों के समक्ष पेश किया।
1782 में जेम्स वाट ने इंजन शक्ति को मापन का आधार अश्व शक्ति (Horse power) को बनाया। जेम्स वाट ने एक प्रयोग से यह मालूम किया कि घोड़ा एक मिनट में 33000 पौंड भार एक फूट ऊंचाई तक चढ़ा सकता है। इसी के आधार पर उसने अपने इंजनों की शक्ति को आंका जो उस समय 10, 15 तथा 20 अश्व शक्ति या हॉर्स पावर के रूप मे व्यक्त की गयी। आज सारे संसार मे हॉर्स पावर को इंजनों की शक्ति की इकाई के रूप में प्रयोग किया जाता है। आगे चलकर जेम्स वाट के नाम पर बिजली की शक्ति नापने की इकाई का नाम ‘वाट’ पडा। 746 वाट एक हॉर्स पॉवर के बराबर होता है।
सन् 1820 में इंग्लैंड के जॉर्ज स्टीफेन्सन ने बहुत ही सफल भाप इंजन का निर्माण किया। यद्यपि इसका भार काफी था, लेकिन अब तक के बने इंजनों में यह सबसे अच्छा था। इस इंजन की सहायता से वह लोगो को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले गया। सन् 1825 में सवारी ओर बोझा ले जाने वाली प्रथम रेलगाडी बनी जो भाप इंजन से चलती थी।
उन्नीसवीं शताब्दी में सडक पर और पानी में चलने वाले वाहनों में भाप इंजन का प्रयोग बडी संख्या में हुआ ओर भाप इंजन में काफी सुधार और प्रगति हुई। सड़क परिवहन और जल-परिवहन के लिए वाहन बनाने वाले आविष्कारकों ने भाप इंजन का रूप ही बदल दिया। भाप इंजनों का प्रयोग जहाजो, सडक कूटने वाले भार वाहनो, रेल आदि मे किया जाने लगा। पेट्रोलियम की खोज के बाद भाप इंजन के स्थान पर पैट्रोल और डीजल से चलने वाले इंजनों का प्रयोग अधिक मात्रा में होने लगा।
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