You are currently viewing भातखंडे संगीत विद्यालय का इतिहास
भातखंडे संगीत विद्यालय

भातखंडे संगीत विद्यालय का इतिहास

भारतीय संगीत हमारे देश की आध्यात्मिक विचारधारा की
कलात्मक साधना का नाम है, जो परमान्द तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए है परन्तु उत्तर मध्यकाल के विलासी वातावरण में संगीत कला को भोग-विलास की सामग्री बना कर कोठों पर पहुंचा दिया गया था और इस तरह उसे देह व्यवसाय के साथ जोड़ा जा चुका था। इसके मर्यादाहीन हो जाने के बाद सभ्य समाज गायन-वादन और नृत्य से कतराने लगा था। वहां केवल लोक संगीत, और लोक नृत्य ही रह गया था जिसकी अनवरत प्रतिष्ठा थी। आधुनिक काल में जब हर ओर जन-जागरण की लहर थी और सामाजिक मूल्यों को फिर से जगाए जाने की बात उठी तो संगीत के पुनरुद्धार का भी आन्दोलन हुआ।लखनऊ का भातखंडे संगीत महाविद्यालय (पुराना नाम-मैरिस म्यूजिक कालेज) इसी आन्दोलन की देन है।

भातखंडे संगीत विद्यालय का इतिहास

10 अगस्त सन्‌ 1860 को बालकेश्वर महाराष्ट्र में जन्में भारतीय संगीत मनीषी पं. विष्णुनारायण भातखंडे जी ने इस नगर में वैज्ञानिक शिक्षण पद्धति से संगीत की शिक्षा देने के लिए यहां एक संगीत विद्यालय की स्थापना करने की योजना बनायी। इसके लिये उन्होंने पहले देश भर में संगीत प्रेमियों की सहमति प्राप्त की। उनका लक्ष्य ही संगीत को राजदरबारों, सामन्तों, वेश्याओं के कोठों और मुजरे की महफिलों से निकाल कर स्वच्छ पर्यावरण में लाना था। उन्होंने 1916 में बड़ौदा के विशाल संगीत सम्मेलन में विचार विमर्श किया और फिर उसी आशय से 8 जुलाई सन्‌ 1926 को कैसरबाग चाइना बाज़ार के निकट की तोप वाली कोठी में एक अखिल भारतीय संगीत महाविद्यालय स्थापित किया गया। पं. विष्णु नारायण भातखंडे ने भारत भर में भ्रमण कर के संगीत सूत्र खोजे और फिर “हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक मालिका” स्वरलिपि सहित प्रकाशित की। संस्कृत भाषा में भी आपकी दो पुस्तकें ‘लक्ष्य संगीत” तथा “अभिनव राग मंजरी’ प्रसिद्ध हैं।

भातखंडे जी की पवित्र प्रेरणा के इस पुण्य प्रतिष्ठान के लिये
रूपरेखा सन्‌ 1924-25 में लखनऊ में ही आंयोजित होने वाली
अखिल भारतीय संगीत परिषद्‌ के वार्षिक अधिवेशनों में तैयार की गई थी। महाविद्यालय निर्माण में सबसे आगे राय उमानाथ बली ताल्‍लुकेदार दरियाबाद अवध और तत्कालीन शिक्षा मन्त्री राय राजेश्वर बली साहब थे। इनके साथ राजा बरखण्डी, राजा नवाब अली (अकबरपुर, जिला सीतापुर वाले), नवाब साहब रामपुर , रायबहादुर चन्द्रबली और श्री अतुल प्रसाद सेन जी थे। राजा नवाब अली हारमोनियम बजाने में इतने पारंगत थे कि उनको अपने इस हुनर के लिए आज तक याद किया जाता है। उसी तोप वाली कोठी में इस भातखंडे संगीत विद्यालय का विधिवत उद्घाटन 16 मार्च 1926 की यूनाइटेड प्राविन्सेज आगरा एवं अवध के गवर्नर सर विलियम मेरिस द्वारा किया गया था और उसी समय इस संगीत विद्यालय का नाम “मैरिस कालेज आफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक” रखा गया। प्रारम्भ में ये सभी संगीत प्रेमी स्वयं तानपूरा, हारमोनियम, सितार, तबला आदि वाद्य लेकर फर्श बिछाकर बैठते थे, गाते-बजाते थे क्‍योंकि सीखने वाले लड़के लड़कियां आसानी से आने को तैयार नहीं थे। इसी दौर में कैसरबाग चौराहे के उस पार नज़ीराबाद के नुक्कड़ पर फल और सब्जी की बाज़ार “मैरिस मार्केट” का निर्माण हुआ था। 20 मार्च सन्‌ 1926 को इसे राज्य सरकार ने अपना संरक्षण दिया था।

भातखंडे संगीत विद्यालय
भातखंडे संगीत विद्यालय

कर्मठ संगीत उपासकों के निरंतर प्रयास से कुछ छात्रों ने विद्यालय में प्रवेश लिया और जब सीखने वालों की संख्या बढ़ी, तो कौंसिल अगस्त 1928 में विद्यालय को पुराने चैम्बर्स व कैनिंग कालेज के भवन में ले आया गया जिसका भवन 1878 में अवध के परम्परागत स्थापत्य में बनवाया गया था। भातखंडे जी की प्रेरणा से ही ग्वालियर का माधव संगीत विद्यालय और बड़ौदा का म्यूजिक कालेज कायम हुआ। मैरिस म्यूजिक कालेज के पहले प्रधानाचार्य श्री माधव राव केशव जोशी जी बने। जब वो सितम्बर 1928 को सेवानिवृत्त हुए तो भातखंडे जी के प्रमुख शिष्य श्री कृष्ण नारायण रतनजंकर जी प्राचार्य हुए जिनकी निष्ठापूर्ण आजीवन सेवाएं सदा भातखंडे विद्यालय के साथ याद की जायेंगी।

भातखंडे संगीत महाविद्यालय का एक गौरव यह भी है कि यहाँ बड़े से बड़े संगीत विदों ने गायन-वादन और नृत्य की शिक्षा दी है, तो बड़े नामी कलाकार यहाँ के स्नातक रहे हैं। श्री गोविन्द नारायण नातू, लखनऊ के उस्ताद छोटे मुन्ने खाँ खयालिए तथा उस्ताद अहमद खाँ धुरपदिए यहां गायन की शिक्षा देते थे। इसी तरह उस्ताद आबिद हुसैन खाँ खलीफा तबला वादन और डॉ. सखावत हुसैन खाँ सरोद वादन सिखाते थे। इनके अलावा रहीमुद्दीन खाँ. डागर, अहमद जान थिरकवा, बेगम अख्तर, वी जी जोग, उस्ताद यूसुफ अली खाँ (सितार) जैसे सुविख्यात गुणवन्त शिक्षक रहे हैं। सन्‌ 1936 में यहां कथक नृत्य की विधिवत शिक्षा दी जाने लगी। इसका उत्तरदायित्व उस समय श्री रामलाल कथिक ने संभाला था। फिर मैरिस संगीत महाविद्यालय की स्थापना सन्‌ 1939 में हुई।

सन्‌ 1960 में जब स्वनामधन्य भातखंडे जी की जन्मशती मनायी गयी तो उनकी श्रद्धांजलि में इसका नया नामकरण कर दिया
गया- “भातखंडे हिन्दुस्तानी संगीत महाविद्यालय” तदुपरान्त मार्च
1966 से इसे उ.प्र. सरकार के तत्वावधान में कर दिया गया।
राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद तथा राज्यपाल कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी जी नवम्बर 1952 में इस संगीत संस्थान की रजतं जयन्ती में भाग लेने के लिए यहां पधारे थे।

भातखंडे संगीत महाविद्यालय में नामवर स्नातकों में डॉ. सुमति मुटाटकर, श्री के:जी. शिण्डे, फिल्म उद्योग के प्रसिद्ध गायक पहाड़ी सान्याल, संगीतकार रोशन, सज्जाद हुसैन गायक तलत महमूद, मुजद्दि नियाजी, दिलराज कौर, पं. रघुनाथ सेठ, डॉ सुशीला मिश्र, अनूप जलोटा और सपना अवस्थी का नाम लेना ही होगा। बहुत कम लोग जानते हैं कि भारतीय रजत पट की प्रथम महिला संगीतकार सरस्वती देवी (असली नाम खुर्शीद हुरमुज पारसी) ने इसी विद्यालय में संगीत सीखा था उनकी प्रसिद्ध फिल्मों के नाम हैं – जीवन नैया, अछूत कन्या, कंगन, झूला, नया संसार आदि।

आज लखनऊ का यह सुप्रसिद्ध संगीत संस्थान भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय (डीम्ड युनिवार्सिटी) की प्रतिष्ठा पा चुका है जिसकी उपकुलपति प्रसिद्ध कथक नृत्यागंना डॉ. पूर्णिमा पाण्डे जी भी रही है। संगीत (संगीत, वादन, नृत्य) के सन्दर्भ में यहां लखनऊ के वरिष्ठ गायकों में पं. गणेश प्रसाद मिश्र, पं. सुरेन्द्र शंकर अवस्थी, श्री कृष्ण कुमार कपूर, पं. धर्मनाथ मिश्र, उस्ताद गुलशन भारती, प्रो. कमला श्रीवास्तव, मालिनी अवस्थी, हिरण्यमयी तिवारी और विशेषकर श्रीमती सुनीता झिंगरन का नाम लिया जाएगा। इसी प्रकार तबले के लिए अहमद जान थिरकुआ, खलीफा आफाक हुसैन, मुन्ने खाँ साहब, पं. शीतल प्रसाद मिश्र, श्री सुधीर वर्मा, पं. गिरधर प्रसाद मिश्र, उस्ताद इल्मास हुसैन, पं. रविनाथ मिश्र, पं रत्नेश मिश्र लखनऊ की शान बने। पखावज वादन के लिए लखनऊ को पं० राज खुशी राम और पं० राम पाठक पर गर्व रहेगा। सितार में तजम्मुल खाँ और सिब्ते हसन मशहूर हुए तो सारंगी में श्री मुहम्मद खाँ, श्री कृष्ण कुमार मिश्र, भोला मिश्र, एम.डी. नागर और विनोद मिश्र जी का नाम है। सरोद के लिए नरेन्द्रनाथ धर को भुलाया नहीं जा सकता तो वायोलिन में जी.एन. गोस्वामी के बाद अशोक गोस्वामी और शुमाशा मिश्रा ने काम किया। मणिपुरी नृत्य में वनमाली सिन्हा और भरत नाट्यम में पद्मा सुब्रह्मण्यम तथा लक्ष्मी श्रीवास्तव ने प्रसिद्धि पायी।

नगर के संगीतकारों में श्री एच. वसन्त, और विनोद चटर्जी, श्री केवल कुमार, उत्तम चटर्जी, रविनागर, कैलाश श्रीवास्तव और हेम सिंह अग्रणी हैं। लखनऊ के लोकप्रिय भजन गायकों में अग्निहोत्री बन्धु, किशोर चतुर्वेदी, स्वाति रिज़वी, अंजना बनर्जी, मुक्ता चटर्जी, अमृता नन्दी हैं तो गजल गायिकी में इकबाल अहमद सिद्दीकी, युगान्तर सिंदूर, इलियास खां, विवेक प्रकाश, जमील अहमद, कमाल खां और कुलतार सिंह है। अवधी लोकगीत के खेमे में सर्वश्री केवल कुमार, शकुन्तला श्रीवास्तव, अन्नपूर्णा देवी, आभा रानी वर्मा, रीना टन्डन, गौरीनन्दी, पदना गिडवानी, विमल पंत, प्रेमलता, अनिल त्रिपाठी और मिथिलेश कुमार प्रसिद्ध हैं।

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-

लखनऊ के क्रांतिकारी
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में लखनऊ के क्रांतिकारी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। इन लखनऊ के क्रांतिकारी पर क्या-क्या न ढाये Read more
लखनऊ में 1857 की क्रांति में जो आग भड़की उसकी पृष्ठभूमि अंग्रेजों ने स्वयं ही तैयार की थी। मेजर बर्ड Read more
बेगम शम्सुन्निसा
बेगम शम्सुन्निसा लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगम थी। सास की नवाबी में मिल्कियत और मालिकाने की खशबू थी तो बहू Read more
बहू बेगम
नवाब बेगम की बहू अर्थात नवाब शुजाउद्दौला की पटरानी का नाम उमत-उल-जहरा था। दिल्‍ली के वज़ीर खानदान की यह लड़की सन्‌ 1745 Read more
नवाब बेगम
अवध के दर्जन भर नवाबों में से दूसरे नवाब अबुल मंसूर खाँ उर्फ़नवाब सफदरजंग ही ऐसे थे जिन्होंने सिर्फ़ एक Read more
बेगम अख्तर
बेगम अख्तर याद आती हैं तो याद आता है एक जमाना। ये नवम्बर, सन्‌ 1974 की बात है जब भारतीय Read more
उमराव जान को किसी कस्बे में एक औरत मिलती है जिसकी दो बातें सुनकर ही उमराव कह देती है, “आप Read more
गोमती नदी लखनऊ
गोमती लखनऊ नगर के बीच से गुजरने वाली नदी ही नहीं लखनवी तहजीब की एक सांस्कृतिक धारा भी है। इस Read more
लखनऊ की चाट कचौरी
लखनऊ अपने आतिथ्य, समृद्ध संस्कृति और प्रसिद्ध मुगलई भोजन के लिए जाना जाता है। कम ही लोग जानते हैं कि Read more
क्राइस्ट चर्च लखनऊ
नवाबों के शहर लखनऊ को उत्तर प्रदेश में सबसे धर्मनिरपेक्ष भावनाओं, संस्कृति और विरासत वाला शहर कहा जा सकता है। धर्मनिरपेक्ष Read more
लखनऊ के प्रसिद्ध मंदिर
एक लखनऊ वासी के शब्दों में लखनऊ शहर आश्चर्यजनक रूप से वर्षों से यहां बिताए जाने के बावजूद विस्मित करता रहता Read more
मूसा बाग लखनऊ
लखनऊ एक शानदार ऐतिहासिक शहर है जो अद्भुत स्मारकों, उद्यानों और पार्कों का प्रतिनिधित्व करता है। ऐतिहासिक स्मारक ज्यादातर अवध Read more
लखनऊ यूनिवर्सिटी
बड़ा लम्बा सफर तय किया है कैनिंग कालेज ने लखनऊ यूनिवर्सिटी के रूप में तब्दील होने तक। हाथ में एक Read more
राज्य संग्रहालय लखनऊ
लखनऊ के राज्य संग्रहालय का इतिहास लगभग सवा सौ साल पुराना है। कर्नल एबट जो कि सन्‌ 1862 में लखनऊ के Read more
चारबाग रेलवे स्टेशन
चारबाग स्टेशन की इमारत मुस्कुराती हुई लखनऊ तशरीफ लाने वालों का स्वागत करती है। स्टेशन पर कदम रखते ही कहीं न Read more
लखनऊ की मस्जिदें
लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी है, और भारत का एक ऐतिहासिक महानगर है। लखनऊ को नवाबों का शहर कहा Read more
पतंगबाजी या कनकौवे बाजी, पतंग उर्फ 'कनकइया' बड़ी पतंग उर्फ 'कमकउवा, बड़े ही अजीबो-गरीब नाम हैं यह भी। वैसे तो Read more
लखनऊ की तवायफें
नवाबी वक्‍त में लखनऊ ने नृत्य और संगीत में काफी उन्नति की। नृत्य और संगीत की बात हो और तवायफ का Read more
कबूतर बाजी
लखनऊ की नजाकत-नफासत ने अगर संसार में शोहरत पायी है तो यहाँ के लोगों के शौक भी कम मशहूर नहीं Read more
मुर्गा की लड़ाई
कभी लखनऊ की मुर्गा की लड़ाई दूर-दूर तक मशहूर थी। लखनऊ के किसी भी भाग में जब मुर्गा लड़ाई होने वाली Read more
अदब और तहजीब
लखनऊ सारे संसार के सामने अदब और तहजीब तथा आपसी भाई-चारे की एक मिसाल पेश की है। लखनऊ में बीतचीत Read more
लखनवी चिकन कुर्ता
लखनऊ का चिकन उद्योग बड़ा मशहूर रहा है। लखनवी कुर्तीयों पर चिकन का काम नवाबीन वक्‍त में खूब फला-फूला। नवाब आसफुद्दौला Read more
लखनऊ का पहनावा
लखनऊ नवाबों, रईसों तथा शौकीनों का शहर रहा है, सो पहनावे के मामले में आखिर क्‍यों पीछे रहता। पुराने समय Read more
लखनवी पान
लखनवी पान:-- पान हमारे मुल्क का पुराना शौक रहा है। जब यहाँ हिन्दू राजाओं का शासन था तब भी इसका बड़ा Read more
दिलकुशा कोठी
दिलकुशा कोठी, जिसे "इंग्लिश हाउस" या "विलायती कोठी" के नाम से भी जाना जाता है, लखनऊ में गोमती नदी के तट Read more
लखनऊ की बिरयानी
लखनऊ का व्यंजन अपने अनोखे स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर अपने कोरमा, बिरयानी, नहरी-कुलचा, जर्दा, शीरमल, और वारकी Read more
रहीम के नहारी कुलचे:--- लखनऊ शहर का एक समृद्ध इतिहास है, यहां तक ​​​​कि जब भोजन की बात आती है, तो लखनऊ Read more
टुंडे कबाब
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले दो चीजों की तरफ ध्यान जाता है। लखनऊ की बोलचाल Read more
गोमती रिवर फ्रंट
लखनऊ शहर कभी गोमती नदी के तट पर बसा हुआ था। लेकिन आज यह गोमती नदी लखनऊ शहर के बढ़ते विस्तार Read more
अंबेडकर पार्क लखनऊ
नवाबों का शहर लखनऊ समृद्ध ऐतिहासिक अतीत और शानदार स्मारकों का पर्याय है, उन कई पार्कों और उद्यानों को नहीं भूलना Read more
वाटर पार्क इन लखनऊ
लखनऊ शहर जिसे "बागों और नवाबों का शहर" (बगीचों और नवाबों का शहर) के रूप में जाना जाता है, देश Read more
काकोरी शहीद स्मारक
उत्तर प्रदेश राज्य में लखनऊ से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा नगर काकोरी अपने दशहरी आम, जरदोजी Read more
नैमिषारण्य तीर्थ
लखनऊ शहर में मुगल और नवाबी प्रभुत्व का इतिहास रहा है जो मुख्यतः मुस्लिम था। यह ध्यान रखना दिलचस्प है Read more
कतर्नियाघाट सेंचुरी
प्रकृति के रहस्यों ने हमेशा मानव जाति को चकित किया है जो लगातार दुनिया के छिपे रहस्यों को उजागर करने Read more
नवाबगंज पक्षी विहार
लखनऊ में सर्दियों की शुरुआत के साथ, शहर से बाहर जाने और मौसमी बदलाव का जश्न मनाने की आवश्यकता महसूस होने Read more
बिठूर दर्शनीय स्थल
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व वाले शहर बिठूर की यात्रा के बिना आपकी लखनऊ की यात्रा पूरी नहीं होगी। बिठूर एक सुरम्य Read more
लखनऊ चिड़ियाघर
एक भ्रमण सांसारिक जीवन और भाग दौड़ वाली जिंदगी से कुछ समय के लिए आवश्यक विश्राम के रूप में कार्य Read more
जनेश्वर मिश्र पार्क
लखनऊ में हमेशा कुछ खूबसूरत सार्वजनिक पार्क रहे हैं। जिन्होंने नागरिकों को उनके बचपन और कॉलेज के दिनों से लेकर उस Read more
लाल बारादरी
इस निहायत खूबसूरत लाल बारादरी का निर्माण सआदत अली खांने करवाया था। इसका असली नाम करत्न-उल सुल्तान अर्थात- नवाबों का Read more
सफेद बारादरी
लखनऊ वासियों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है यदि वे कहते हैं कि कैसरबाग में किसी स्थान पर Read more

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

Leave a Reply