“डैब्बी”, पत्नी को सम्बोधित करते हुए बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा, “कभी-कभी सोचता हूं परमात्मा ने ये दिन हमारे लिए यदि दुगुने लम्बे बनाए होते, तभी मैं वास्तव में कुछ काम की चीज़ दे जा सकता।”— वास्तव में कुछ काम की चीज़ दे जा सकता ? बेंजामिन फ्रैंकलिन की दुनिया को कितनी ही देने हैं, और सभी एक से एक बढ़कर–राष्ट्रीय जीवन में भी, अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में भी, विज्ञान में, आविष्कारों में, शिक्षा में, साहित्य में, प्रकाशन-व्यवस्था में, सामाजिक सेवा में, तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में। कुछ कल्पना कर सकना मुश्किल हैं कि, यदि दिन सचमुच दुगुने या तिगुने बड़े होते तो, वह और क्या-कुछ कर जाता ?। इसी महान वैज्ञानिक का उल्लेख हम अपने इस लेख में करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे :—
बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा? बेंजामिन फ्रैंकलिन कौन थे? बेंजामिन फ्रैंकलिन किसके वैज्ञानिक थे? बेंजामिन फ्रैंकलिन के विचार क्या थे? बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कितनी शिक्षा प्राप्त की थी? बेंजामिन फ्रैंकलिन ने बिजलु का आविष्कार कब किया, बिजली का आविष्कार किस देश में हुई हुआ था? बिजली का आविष्कार कब और किसने किया
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बेंजामिन फ्रैंकलिन का जीवन परिचय
बेंजामिन फ्रैंकलिन का जन्ममेसेचुसेट्स कॉलोनी के बोस्टन शहर में 17 जनवरी, 1706 को हुआ था। 15 भाई-बहिन उससे पहले पैदा हो चुके थे, और कुल मिलाकर परिवार में 17 बच्चे थे। बाप का पेशा था मोमबत्तियां बनाना। काम तो बड़ा महत्त्वपूर्ण था, किन्तु उसी पर गुजर कर सकना कोई आसान नहीं था।
बेंजामिन फ्रैंकलिन ने अपनी पढ़ाई-लिखाई खुद शुरू कर दी, और आठ वर्ष का होते ही स्कूल में दाखिल हो गया। किन्तु स्कूल की यह पढ़ाई भी उसकी दो साल बाद बन्द कर दी गई। उन दिनों शिक्षा मुफ्त नहीं हुआ करती थी। बाप के पास इतना पैसा था नहीं, सो बेंजामिन को भी स्कूल से उठाकर दूकान में डाल दिया गया कि वह भी मोमबत्तियां बनाया करे। किन्तु बेंजामिन को चैन नहीं था। वह हमेशा बोस्टन बन्दर॒गाह की ओर देखता रहता और कहता कि मैं समुद्र जाऊंगा। बाप को यह सुनकर डर लगने लगा और उसने जेम्स से कहा कि बेंजामिन को छापाखाने का काम सिखाया जाए। जेम्स बेंजामिन से कुछ बड़ा था और वह एक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित किया करता था— दि न्यू इंग्लैंड कूरैण्ट। यहां आकर अलबत्ता, 12 साल के बालक को कुछ शान्ति मिली और वह टाइप सेट करना, और प्रेस की मशीनों को चालू करना सीख गया।
फ्रेकलिन को शिक्षा ग्रहण करने का शौक था। जो कुछ हाथ में आया आद्योपान्त पढ डाला, यहा तक कि कोई किताब खरीदने के लिए एक-दो वक्त रोटी भी छोडनी पडे तो कोई बात नही। और इसी तरह करते-करते वह गणित, बीजगणित ज्यामिति,नौचालन, व्याकरण तथा तर्क-सिद्धान्त मे प्रवेश पा गया। यही नहीं, उसने लेखन कला पर भी अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया। मरने पर जब उसकी आत्मकथा छपी,अमेरिका के साहित्य मे उसका स्थान उसी क्षण से स्थायी बन गया।

बेंजामिन के मन में समा गया कि उसके लेख दि न्यू इग्लैड क्रेण्ट’ मे भी छपने चाहिए, किन्तु भाई को विश्वास नही आया कि बेंजामिन फ्रैंकलिन सचमुच एक लेखक भी बन सकता है। बेंजामिन ने नाम बदल लिया और मिसेज साइलैन्स डॉगवुड के नाम से लेख भेजने शुरू कर दिए। आखिर जब जेम्स को पता लग गया इन लेखों का लेखक कौन था, उसे अपने पर काबू न रह सका और बेंजामिन के लिए भी जीना उसने दुश्वार कर दिया। फ्रेंकलिन ने भी निश्चय कर लिया कि अब वक्त अपने पैरो पर खडा होने का आ गया है। वह 18 का हो चुका था। घर छोड वह फिलाडेल्फिया चला गया।
फिलाडेल्फिया मे पहुंचते ही लोगो को पता लग गया कि वह प्रिंटिंग मे किस कदर माहिर है, सभी ने उसे नौकरी पेश की। किन्तु उसका अपना ख्याल अपना स्वतंत्र छापाखाना चालू करने का था। कॉलोनियों में तब छापेखाने की मशीनरी बनाने का कोई प्रबन्ध नही था। खैर, पेनसिल्वेनिया की कॉलौनी के गवर्नर सर विलियम कीथ ने उसे आंशिक सहायता का वचन दिया और वह प्रिंटिंग प्रेस चुनने के लिए इंग्लेंड के लिए जहाज पर सवार हो गया।
किन्तु वायदे की वह रकम पहुंची नही, कुछ बात हो गई थी; सो बेंजामिन डेढ साल इंग्लैंड मे ही किसी न किसी काम में लगा रहा कि रकम इकट्ठी हो सके। उधर फिलाडेल्फिया में जब उसकी कोई खबर देर तक न पहुची तो प्रेयसी डेबोरा रीड ने एक और सख्स से शादी कर ली। किन्तु कुछ वर्ष पश्चात जब उसका प्रथम पति लापता हो गया बेंजामिन और डेबोरा विधिवत पति-पत्नी बन गए। उनके तीन बच्चे हुए।
फिलाडेल्फिया लौटकर उसने ‘पेनसिल्वेनिया गजेट’ की स्थापना की। इसके अतिरिक्त एक वार्षिक प्रकाशन पुअर रिचर्डस आल्मेनेक’ भी उसके यहां से प्रकाशित होता था, जिसमे सूर्योदय, सूर्यास्त, चान्द्रतिथियों, मौसम की खबरों और धार्मिक छुट्टियों वगैरह का पूरा-पूरा ब्यौरा हुआ करता था। “आल्मेनेक’ का अर्थ होता है– जन्नी। यही नही, जन्नी में कुछ ‘नीति के दोहे वगैरह भी दर्ज होते थे– ईमानदारी, कार्यकुशलता, मितव्ययिता, देशभक्ति आदि पर छोटे-छोटे वाक्य, जिनमे कुछ तो आज’ भी सजीव है।
परमेश्वर उन्ही की सहायता करता है जो खुद परिश्रमी होते है।
जल्दी सोना और जल्दी ही जग उठना– स्वास्थ्य, सपद्, और बुद्धिमत्ता की कुंजी यही है। जो कुछ आज कर सकते हो कल पर कभी मत छोडो। 42 बरस की उम्र तक पहुचते-पहुचते बेंजामिन फ्रैंकलिन काफी पैसा कमा चुका था। अब उसे काम-धंधे मे जुते रहने की ज़रूरत नहीं थी, मुक्त होकर वह अब समाज-सेवा मे और वैज्ञानिक अनुसंधान मे लग सकता था। छपाई वगैरह के काम मे लगे रहने पर भी उसकी प्रवृत्ति इधर सक्रिय हो चुकी थी।
21 साल की आयु मे उसने फिलाडेल्फिया के मिस्त्रियों और व्यापारियों मे वाद-विवाद संस्था जैसी एक संस्था स्थापित भी कर दी थी। किन्तु इस मण्डल की गतिविधि फिलाडेल्फिया तक ही सीमित नही रही, फैलता-फैलता आखिर वह ‘अमरीकन फिलो-सॉफिकल सोसाइटी ‘ मे परिणत हो गया। उपनिवेशो के सभी प्रबुद्ध विद्वान इस सोसाइटी के सदस्य थे। इन्होने ही ‘कमेटी आफ सीक्रेट कारस्पाण्डेन्स’ नामक कुछ समितियां स्थापित की थी, जिनके द्वारा ही कभी स्वतन्त्रता के घोषणापत्र तथा अमरीका की क्रांति की आधारशिला पडी थी। अमरीकन फिलोसॉफिकल सोसाइटी का वह कार्यालय आज भी फिलाडेल्फिया मे स्थित है।
1753 में बेंजामिन फ्रैंकलिन को कॉलोनियो का पोस्टमास्टर जनरल नियुक्त कर दिया गया। फ्रैंकलिन मे योग्यता भी थी, शक्ति भी थी। नये ओहदे को संभालते ही उसने कॉलोनियो मे डाक के आवागमन को सुधारना शुरू कर दिया। यही नही इससे डाकखाने को अब कुछ कमाई भी होने लगी। 1847 मे जब अमरीका में पहली-पहली टिकटें चली, तो उन पर बेंजामिन फ्रैंकलिन का ही चित्र अंकित था। डाक के महकमे मे उसकी सेवाओ के प्रति राष्ट्र की यह एक श्रद्धांजलि थी।
25 साल की उम्र मे बेंजामिन फ्रैंकलिन ने अमरीका की पहली चलती-फिरती लाइब्रेरी प्रवर्तित की। उसे अपने बचपन के दिन याद थे जब एक किताब खरीदने के लिए उसे कई बार उपवास तक करना पडता था। फिलाडेल्फिया मे आग बुझाने के लिए एक महकमा भी उसने खोल दिया, और अग्नि पीडितों को और मुश्किले पेश न आए इसलिए अमरीका की पहली आग-बीमा कम्पनी भी उसने चालू कर दी। पेनसिल्वेनिया एकेडमी की स्थापना में भी उसका हाथ था, और यही एकेडमी आगे चलकर पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय बन गई। कॉलोनियो मे फिलाडेल्फिया की जो कुछ समृद्धि व प्रतिष्ठा थी वह बहुत कुछ बेंजामिन फ्रैंकलिन की महिमा एवं प्रभाव के कारण ही थी। और वह विज्ञान मे भी एक महान विभूति माना जाता है।
बेंजामिन फ्रैंकलिन के आविष्कार
बेंजामिन फ्रैंकलिन का विज्ञान कार्य उसके 38वें वर्ष से शुरू होता है। इससे पहले उसकी कीर्ति व्यापार और समाज-सेवा के क्षेत्रों मे स्थिर हो चुकी थी। विज्ञान मे उसका सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य “इलेक्ट्रोस्टैटिक्स– स्थिति की अवस्था में विद्युत की प्रवत्ति के क्षेत्र मे है।
आज सभी जानते हैं कि किस प्रकार उसने विद्युत से प्रभावित तुफान पंतग उडाई थी और सिद्ध कर दिखाया था कि यह कृत्रिम विद्युत और आकाश की प्राकृतिक बिजली दोनों एक ही वस्तु हैं। अमेरीका में यह कथा एक सर्वाधिक लोकप्रिय कथा है किन्तु अन्य उपाख्यानों की भांति यह कथा झूठ नही सच है। बेंजामिन ने इसे उन दिनों साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित किया था और दुनिया-भर के वैज्ञानिकों ने तभी खुद इस परीक्षण की आवृत्ति अपने-अपने यहां की भी थी।
फ्रेकलिन का इलेक्ट्रोस्टेटिक्स सम्बन्धी नियम एक बहुत ही सरल सिद्धान्त है जो आज तक वैसा ही अपने मूल, अपरिवर्तित रूप में विज्ञान-जगत् को ग्राह्म चला आता है। उसका कहना था कि– सभी प्रदनों के निर्माण में दो तत्त्व काम में आते हैं– पृथ्वी तत्व तथा विद्युत तत्व । शुन्य’ सामान्य अवस्था में हर वस्तु में विद्युत एक अन्तर्-द्रववतअभिव्याप्त रहती है–किन्तु वस्तुओं में इस विद्युत-तत्व में घटती-बढ़ती आ सकती है। विद्युत अंश में यह कमी-बेशी आते ही वस्तु में एक प्रकार का आवेश आ जाता है, एक प्रकार की विद्युत्मयता सी आ जाती है। विद्युत्मयता बढ़ने का अर्थ होता है कि वस्तु का आवेश अब शून्य नहीं रहा, योगात्मक हो गया है, और विद्युत्मयता घट जाने का अर्थ होता है–आवेश में ऋणात्मकता।
आजकल की परिभाषा में शायद हम यह कहना अधिक पसन्द करें कि हर वस्तु प्रोटॉन्स तथा इलेक्ट्रॉन्स के व्यामिश्रण का परिणाम होती है: आवेश-शून्य वस्तु में ये इलेक्ट्रान और प्रोटॉन समान सख्या मे होते है। किन्तु मूल दृष्टि दोनो सिद्धान्तों की एक ही है।
बेंजामीन फ्रैंकलिन ने इस सिद्धान्त के समर्थन मे कुछ परीक्षण आविष्कृत किए। शीशे की एक छड को जब हम रेशम के रूमाल पर रगडते है तो छड मे पाजिटिव चार्ज भर जाता है और रेशम मे नेगेटिव। कितने ही वैज्ञानिको का विचार था कि रगड से बिजली पैदा हो जाती है। फ्रैकलिन की स्थापना यह थी, और यही युक्तियुक्त स्थापना भी थी कि विद्युत की उत्पत्ति नहीं होती–वैद्युत द्रव” केवल रेशम से निकलकर शीशे मे चला गया है। वैद्युत द्रव के संचार के सम्बन्ध में फ्रैंकलिन ने जो परीक्षण किए, मूल सिद्धान्त की पुष्टि मे उनसे कुछ नाटकीयता सी भी आ जाती थी। उसने दो स्टूल लिए और दो आदमियों को उन पर अलग-अलग बिठा दिया, जमीन पर शीशा बिछा दिया, एक मे घनात्मक बिजली भर दी गई और दूसरे मे ऋणात्मक, आर्थात एक मे विद्युत का यह आवेश जितना ही अधिक था, दूसरे मे उतना ही कम था। जब दोनो ने हाथ मिलाया, दोनो का ही आवेश जाता रहा और परिणामत दोनो ने महसूस किया, जैसे उन्हें अकस्मात कोई धक्का लग गया हो। इस प्रकार विद्युत संचरण द्वारा एक की कसर दूसरे ने पूरी कर दी। अब, यदि कोई आवेश रहित व्यक्ति भी इनमे किसी को छू देता, धक्का उसे लगता ही– क्योकि शुन्यवस्था जहां घनावस्था से कुछ कम आवेशमय होती है, वहां वह ऋणावस्था से उसी कदर कुछ ज्यादा आवेशमय भी तो हुआ करती है।
बेंजामिन फ्रैंकलिन के विद्युत सम्बन्धी अध्ययनों का स्वाभाविक विकास था। बिजली की छड’ (बिजली को निष्किय कर देने वाला तार) का आविष्कार। उसने देखा कि यदि किसी नोकदार चीज़ को एक आवेश-युक्त वस्तु के निकट ले जाए तो वह आवेश इस नोक के जरिये दूसरी ओर पहुंच जाता है। उसे यह भी मालूम था कि बादलों मे विद्युत भरी होती है। अब उसने सुझाया कि लोहे के एक निहायत नुकीले तार को मकान के शिखर पर टिका दे और एक ओर तार के जरिये इस छड का सम्बन्ध जमीन से कर दिया जाए, तो इस तरह बादल की बिजली धीरे-धीरे (एकदम झटके से नहीं) आवेश शून्य होती जाएगी और मकान मे कोई दुर्घटना अब नही घटित हो सकेगी। परीक्षणो द्वारा फ्रैंकलिन इस नतीजे पर पहुचा कि बादलों की यह बिजली नेगेटिव भी हो सकती है, पाजिटिव भी, अर्थात बिजली जहा आसमान से जमीन पर गिर सकती है, वहा वह उठकर ज़मीन से बादलों को विचलित भी कर सकती है। आधुनिक अनुसन्धान इस का समर्थन करता है।
बेंजामिन फ्रैंकलिन ने ‘लीडन जार’ का सूक्ष्म अध्ययन किया। उन दिनों विद्युत संचय के लिए हर कही इसी का इस्तेमाल हुआ करता था। लीडन जार शीशे की एक बोतल ही होती है। बाहर किसी धातु की पतली-सी पतरी मढ़ी होती है और अन्दर पानी भरा होता है। लीडन जार में होता क्या-कुछ है। इसका सूक्ष्म विश्लेषण जब फ्रैंकलिन ने कर दिखाया तो विज्ञान जगत सचमुच चकित रह गया। उसने जार के पानी को फेंक दिया ओर उसकी जगह ताजा पानी उसमे डाल दिया, किन्तु जार मे अब भी आवेश था। अर्थात वैद्युतावेश धातु में था, पानी मे नही। अब तक वैज्ञानिक उल्टा ही माने बैठे थे। इन परीक्षणों के आधार पर उसने एक ‘पैरेलल प्लेट कैपेसिटर का आविष्कार भी किया। जिसका प्रयोग हम आज अपने टेलीविजन और रेडियो-सेटो मे करते है।
विद्युत के सम्बन्ध मे जो कुछ प्रेक्षण तथा प्रयोग फ्रैंकलिन ने सिद्ध किए, वे उसकी पाण्डित्यपूर्ण पुस्तक अमेरीका के फिलाडेल्फिया शहर मे विद्युत-पूरक प्रेक्षण एवं प्रयोग” मे संगृहीत है। इस महान ग्रन्थ का विश्व भर में प्रकाशन हुआ और जर्मन, फ्रेंच तथा
इटेलियन मे अनुवाद भी हुआ। विश्व के मुर्धघन्य वैज्ञानिकों ने इसकी तुलना न्यूटन के प्रिंसीपिया के साथ की। डाक्टर फ्रैंकलिन के ये अन्वीक्षण तथा परीक्षण विद्युत के प्रिंसीपिया अथवा मूल सिद्धान्त हैं। इनमें भी एक ऐसी व्यवस्था अनुसूत्रित है जो कि अन्त संगति में उतनी ही सरल एवं आधारभूत भी है। एक पत्र मे उसकी इस प्रकार आलोचना भी हुई थी। फ्रैंकलिन को हर किस्म के वैज्ञानिक सम्मान मिले। उसे लन्दन की रॉयल सोसाइटी का तथा पेरिस की रॉयल एकेडमी ऑफ लाइसेज का सदस्य चुना गया। आज हम कहते है विद्युत, प्रकृत्या, इलेक्ट्रॉनो की एक धारा के अतिरिक्त कुछ नही है, और फ्रैंकलिन कहा करता था कि विद्युत एक द्रव है (वाहिनी है)। दोनो दृष्टियों मे मूल भेद है कितना ?।
विज्ञान में ये अनुसन्धान भी होते रहे, प्रकाशन भी होते रहे, और लोक सेवा के लिए समय भी निकल ही आता। वे अमरीकी क्रांति के दिन थे और कॉन्टिनेंटल कांग्रेस ने टामस जेफरसन, जॉन एडम्स और बेंजामिन फ्रैकलिन की एक समिति नियुक्त कर दी कि वे स्वतन्त्रता का घोषणापत्र तैयार कर दें। बेंजामिन फ्रैंकलिन अमरीका के सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन का एक माना हुआ दिग्गज, फ्रैंकलिन विद्युत के विषय मे अपने मूत्र सिद्धान्त का प्रतिपादन करने के कारण विज्ञान के दिग्गजों में भी उतना ही अग्रणी है, उतना ही महान है।