बृहस्पति ग्रह के कितने उपग्रह है जीवन संभव रंग वायुमंडल की जानकारी Naeem Ahmad, March 5, 2022March 12, 2022 बृहस्पति ग्रहों में सबसे बड़ा और अनोखा ग्रह है। यह पृथ्वी से 1300 गुना बड़ा है। अपने लाल बृहदाकार धब्बे के कारण ‘बृहस्पति ग्रह आदिकाल से ही खगोलविदों के आवरण का मुख्य केन्द्र रहा है। आदिकाल से ज्ञात इस ग्रह के बारे मे हमें बराबर ऐसी जानकारियां मिलती ही रही हैं, जिनसे आज भी इस ग्रह के बारे में हमारी जिज्ञासा कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ी ही है। 3 दिसम्बर, सन् 1973 को अमेरिकी यान ‘पायनियर-10’ इससे मात्र 1,20,000 किलोमीटर दूर से गुजरा और उससे मिली सूचनाओं के अनुसार यह इतना आकर्षक लगा कि अगले अमेरिकी यान ‘पायनियर-11′ के मार्ग में परिवर्तन करके उसे भी बृहस्पति की ओर भेजा गया। 3 दिसम्बर, सन् 1981 को पायनियर 11 बृहस्पति से मात्र 41,000 किलोमीटर दूर से गुजरा और उसने जो चित्र पृथ्वी पर भेजे, उससे न केवल’पायनियर-10’ के ही आंकडों की पुष्टि हुई, बल्कि इस ग्रह पर बल्कि जीवन के किसी न किसी रूप में उपस्थित होने की संभावना भी खुलकर सामने आई। बृहस्पति ग्रह की खोज इन यानो से मिली नवीन जानकारियों को जानने से पहले आइए, हम बृहस्पति ग्रह से थोड़ा-सा परिचय कर लें। सौर-परिवार के पांचवें किन्तु सबसे विशाल ग्रह बृहस्पति की सूर्य से औसत दूरी पृथ्वी से सूर्य की अपेक्षा 5.2 गुना अधिक है। व्यास में यह पृथ्वी से 11.2 गुना बड़ा है और अपने उदर में ऐसी 1300 पृथ्वीयों को आसानी से रख सकता है। इसका आयतन शेप आठ ग्रहों के आयतनों के योग से भी डेढ़ गुना अधिक है और बृहस्पति ग्रह के कितने उपग्रह है तो हम बता दे इसके तेरह ज्ञात उपग्रहों में अनेक चंद्रमा से बडे हैं। यद्यपि कई तो बुध ग्रह से भी बड़े हैं। किन्तु इतनी बातों में बडा होने के साथ-साथ वह अनेक बातों मे बहुत छोटा भी है। आयतन मे इतना बडा होने के बावजूद इसके कुल पदार्थ की मात्रा पृथ्वी से केवल 218 गुना अधिक है और इसका गुरुत्व-जनित त्वरण केवल 22.5 मीटर प्रति सेकंड है। इतने बड़े आकार के बावजूद वह मात्र 10 घंटे में ही अपनी धुरी पर एक बार घूम जाता है और 12 वर्षो में सूर्य की एक परिक्रमा कर लेता है। इसके परिभ्रमण तल पर पृथ्वी के ध्रुवों जैसी भयंकर शीत नहीं होती। दिन-रात के अत्यंत जल्दी होने कारण इसके दिन और रात के तापमान में ज्यादा अंतर नहीं होता और तीव्र घूर्णन वेग के ही कारण वह विषुव॒त रेखा पर अत्यधिक फूल गया है। इसके धुवीय और विषुवत रेखीय व्यासों में 8000 किलोमीटर का अंतर है। आयतन के अत्यधिक होने पर भी ग्रह पर पदार्थ की मात्रा कम होने से लगता है कि निश्चिंत ही यह ग्रह अत्यंत हल्के पदार्थ का बना है। यह निश्चित रूप से हाइड्रोजन का एक बहुत बडा गोला है, जिसके ऊपर कुछ हजार किलोमीटर ऊंचाई पर हाइड्रोजन, हीलियम, जलवाष्प, मीथेन और अमोनिया का वायुमंडल है। वैज्ञानिकों का विचार है कि बृहस्पति ग्रह के केन्द्र में भी कोई ठोस ‘कोर’ नहीं है, या है भी तो अत्यंत कम व्यास की ही है। अत्यधिक दबाव का कारण ग्रह के बीच की एक मोटी तह भी हो सकती है। बृहस्पति ग्रह यद्यपि बृहस्पति के वायुमंडल की बाहरी सतह का तापमान -130° सेंटीग्रेड से अधिक नहीं है। लेकिन ज्यों-ज्यों हम ग्रह के केन्द्र की ओर चलते हैं, तापक्रम बढ़ता ही जाता है। एक वैज्ञानिक के अनुसार ग्रह के केन्द्र का ताप सूर्य की सतह के ताप से भी कई गुना अधिक हो सकता है। इस प्रकार निश्चित रूप से इस ग्रह के एक बड़े भाग का ताप जीवन के लिए उपयुक्त है और यदि अन्य सुविधाए हो, तो वहा जीवन का अस्तित्व हो सकता है। बृहस्पति ग्रह की प्रकृति ग्रह और तारे की सीमा रेखा के आस-पास है, अतः वैज्ञानिक कभी-कभी इसे ग्रह मानने से भी इंकार कर देते हैं। यह अनेक बातों मे तारों से मिलता-जुलता है। सूर्य से यह न केवल बनावट में समान हैं वरन् उसी की तरह यह भी रेडियोधर्मी पिंड है और जितनी ऊर्जा सूर्य से प्राप्त करता है उससे दो से तीन गुना अधिक स्वयं ब्रह्मांड में विसर्जित करता है। आज भी इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है कि इसमें इतनी ऊर्जा आती कहां से है? सूर्य से केवल वह इसी बात मे अत्यधिक भिन्न है कि वह अपनी धुरी पर सूर्य की अपेक्षा बहुत जल्दी घूम जाताहै। यदि यह मान लिया जाए कि सूर्य का व्यास बृहस्पति का दस गुना है, तो सूर्य को अपनी धुरी पर घूमने में केवल 100 घंटे का हीं समय लगना चाहिए लेकिन सूर्य लगभग महीने भर का समय लेता है। बृहस्पति केन्द्र में इतने अधिक ताप एव दबाव के कारण ही इसके भविष्य के बारे मे वैज्ञानिक बहुत निराश हैं। यदि किसी भी प्रकार से केन्द्र मे ताप और दाब थोड़ा और भी बढ़ता है, तो निश्चित ही बृहस्पति से भी नाभिकीय सगलन होने लगेगा,क्योकि ईंधन के रूप मे हाइड्रोजन ग्रह पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है ही। तब बृहस्पति ग्रह न रहकर एक तारा बन जाएगा और पृथ्वी को दो सूर्य मिल जाएंगे। बृहस्पति ग्रह का द्रव्यमान थोड़ा और अधिक होता, तो यह ग्रह कब का जलने लगा होता। अवश्य ही उल्कापातों से बृहस्पति का द्रव्यमान भी दिन-प्रतिदिन बढ ही रहा होगा। यदि इस संभावना से इंकार भी कर दें, और यह मान लें कि बहस्पति क्रमश: सिकुड रहा है, तो भी केन्द्र में दाब बढने से भविष्य में ऐसा कभी भी हो सकता है। पृथ्वी की ही तरह बृहस्पति के भी चारों ओर इलेक्ट्रॉनों और प्रोटॉनो की विक्किरण पटिटयां हैं, जो अपेक्षाकृत दस लाख गुना अधिक शक्तिशाली हैं। इन पट्ट्यों को भेद कर यानों को ग्रह के पास जाने में बहुत खतरा रहता है। इस ग्रह का चुम्बकीय क्षेत्र घूर्णन अक्ष पर 15° का कोण बनाता है और सतह पर उसकी शक्ति 4 गौस (चुम्बकीय बल की इकाई) है। इसके एक उपग्रह इओ पर भी वायुमंडल होने के संकेत मिलते है। बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्द्ध मे स्थित विशाल ‘लाल-धब्बा’ वास्तव में एक भयंकर, हरीकेन (चक्रवात) है, जो वर्षो से इस ग्रह के वायुमंडल मे चक्कर काट रहा है। बीच में यह धब्बा पूर्णतः अदृश्य भी हो गया था। आधुनिक विचारों के अनुसार इस चक्रवात के लिए आवश्यक ऊर्जा ग्रह के केन्द्रीय गर्भ भागो से ही आती है। इसके पहले विश्वास किया जाता था कि यह धब्बा शायद जमी हुई गैसो का कोई बादल है। घूर्णन अत्यंत तीव्र होने से इस ग्रह के वायुमंडल में बड़ी हलचल रहती है। चमकीली और गाढी दिखने वाली विपुवत रेखा के समानान्तर फैली हुई पट्टियां वास्तव मे ऊपर उठती और नीचे जाती हुई वायुमंडल की तहें हैं। बृहस्पति के आसपास उससे अधिक धूल है, जितना पूर्वानुमान था। तारों से इतनी समानता होने के कारण ही शायद प्रसिद्ध सोवियत खगोलविंद् डा. ई. एम. डोबीस्वेस्की ने इसे सौर-मंडल का केन्द्र मान कर सौर-परिवार के उद्गम का एक नया सिद्धांत दिया है। ‘नेचर’ पत्रिका के 5 जुलाई, सन् 1974 के अंक में प्रकाशित इस सिद्धांत के अनुसार सौर परिवार का उद्गम भी बृहस्पति से ही हुआ है, न कि सूर्य से। इस प्रकार उन्होंने अनेक निरीक्षित तथ्यों की व्याख्या भी की। उनके अनुसार आदिकाल में बृहस्पति एक बडा पिंड था, जिसकी सूर्य परिक्रमा कर रहा था। बृहस्पति से कभी किसी कारण कुछ पदार्थ सूर्य की ओर चला, जो बीच में ही ठंडा हो गया। अन्ततः वह पदार्थ दो भागो में बंट गया। एक भाग तो प्राय: भारी तत्व जैसे लोहा, आक्सीजन आदि का था, जिससे वे ग्रह-उपग्रह बने, जो दृढ़ चट्टानों से बने हैं के पृथ्वी, चन्द्रमा, मंगल, बुध आदि। दूसरा भाग हल्के विशेषकर हाइड्रोजन और का था, जिसने अलग ग्रह बनाए अर्थात् शनि, यूरेनस, नेपच्यून, प्लूटो आदि। कालान्तर में द्रव्यमान कम हो जाने पर बृहस्पति भी सूर्य की ही परिक्रमा करने लगा और तारा न रहकर ग्रह हो गया। बुहस्पति के पहले के चार ग्रहों और बाद के चार ग्रहों की बनावट में अंतर इस सिद्धांत की सत्यता का सबसे बड़ा प्रमाण है। यदि इसका सिद्धांत सही है, तो निश्चय ही अन्तरिक्ष में पृथ्वी जैसे अनेक ग्रह होंगे और उन पर भी जीवन होगा। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व की महत्वपूर्ण खोजें प्रमुख खोजें