बुध ग्रह का रहस्य, जीवन, वायुमंडल, उपाय,खोज की जानकारी हिंदी में Naeem Ahmad, March 6, 2022March 12, 2022 बुध ग्रह के बारे में मनुष्य को अब तक बहुत कम जानकारी है। मेरीनर-10 ही बुध ग्रह की ओर जाने वाला प्रथम अंतरिक्ष यान था। अंतरिक्ष यानों ने बुध ग्रह का अनुसंधान नहीं किया है। चूंकि यह ग्रह काफी छोटा है, इसलिए अन्य भौतिक साधनों के जरिए भी इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नही हो पाई है। बुध ग्रह सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। बुध ग्रह का व्यास केवल 4,880 किलोमीटर है। एक अन्य अडचन यह है कि यह सूर्य के बहुत करीब है। इसकी कक्षा की औसत दूरी पृथ्वी की कक्षा की औसत दूरी की एक तिहाई जितनी ही है। इसलिए इसे सुबह सूर्योदय से तुरंत पहले अथवा शाम को सूर्यास्त के पश्चात थोड़ी देर के लिए ही देखा जा सकता है। बुध ग्रह की खोज और रहस्य दोनो बार पृथ्वी से देखने पर यह पृथ्वी के क्षितिज पर मौजूद हजारों मील गहरे वायुमंडलों के बीच से दिखाई देता है। फलतः जिस तरह वायुमंडल की मोटाई के कारण सूर्य तथा चंद्रमा उदय तथा अस्त के समय अपने सही रूप में नहीं दिखाई देते, उसी प्रकार सुबह तथा शाम को बुध भी अपने मूल रूप मे नही देखा जा सकता। उपर्युक्त कारणो से अब तक बुध का ज्यादातर अध्ययन केवल दिन में ही किया गया है। दिन में अध्ययन करने के लिए यह आवश्यक होता है कि बुध की उस दिन की स्थिति ठीक-ठीक ज्ञात हो तथा दूरबीन को सूर्य से अलग उस स्थल-विशेष पर केंद्रित किया जा सके। दिन मे अध्ययन करने पर बुध के किनारे टेढ़े मेढे न दिखकर साफ दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि उस समय प्रकाश-किरणों को वायुमंडल की कम मोटी परतों से गुजरना पड़ता है। बुध ग्रह जैसे दिन में चंद्रमा का प्रकाश रात की अपेक्षा काफी कम तथा पीलापन लिए हुए दिखाई पड़ता है, वैसे ही बुध ग्रह का प्रकाश क्षीण तथा पीलापन लिए हुए होता है। यही कारण है कि बुध के धरातल के बारे में अभी तक बहुत कम ज्ञात है। बुध ग्रह की सतह पर कभी-कभी नजर आने वाले काले धब्बों के अलावा अभी तक कोई और बात नही दिखी है। सन् 1964 मे प्रथम बार रेडियो दूरबीन द्वारा बुध से राडार-संपर्क स्थापित किया गया। इस प्रयोग से ज्ञात हुआ कि बुध द्वारा सूर्य की रोशनी का परावर्तन बहुत कम होता है। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि चंद्रमा की ही तरह बुध भी काली चट्टानों से बना है। अपनी काली चट्टानों के कारण ही चंद्रमा भी सूर्य की किरणों का सफल परावर्तक नही है। किसी ग्रह के साथ यदि उपग्रह हों, तो उनके आकार, दूरी तथा गति आदि से उस ग्रह का वजन ज्ञात किया जा सकता है। परंतु बुध का कोई उपग्रह नही है। इस कारण बुध ग्रह का वजन ज्ञात करने के लिए एक क्षृद्र ग्रह ईरोस की सहायता ली गईं। इससे ज्ञात हुआ कि बुध ग्रह का भार पृथ्वी के भार का अठारहवां हिस्सा है। इस प्रकार बुध ग्रह का घनत्व पानी के घनत्व से छः गुना अधिक ठहरता है, जो कि सौर मंडल के अन्य किसी भी ग्रह के घनत्व से अधिक है-पृथ्वी के घनत्व से भी अधिक। इसलिए सोचा जा रहा है कि बुध की चट्टानों में लोहे की मात्रा आधे से भी अधिक होगी! इतनी भारी चट्टाने कैसी होंगी? बुध सूर्य के चारों ओर 88 दिन में एक बार घूमता है। सन् 1965 तक वैज्ञानिकों का विश्वास था कि बुध अपनी धुरी पर भी 88 दिन में ही एक बार घूमता है। इसका अर्थ यह निकलता है कि उसका एक हिस्सा हमेशा सूर्य की ओर रहता है और इसके फलस्वरूप उसके एक हिस्से में हमेशा दिन तथा दूसरे हिस्से में हमेशा रात रहती परन्तु सन् 1965 में किए गए प्रयोगों से यह कल्पना गलत सिद्ध हो गई। उस वर्ष अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि बुध अपनी धुरी पर 58 दिन में एक बार घूमता है यानी जब तक वह सूर्य की दो परिक्रमाएं करता है, तब तक अपनी धुरी पर तीन बार घूम चुका होता है। इस प्रकार इसका एक दिन पृथ्वी के 176 दिनों के बराबर ठहरता है। सूर्य के समीप होने के कारण बुध पर दिन का तापमान 625° फारेनहाइट तक पहुंच जाता है तथा रात को गिरकर परम शून्य (-273° फा.) के निकट आ जाता है। इतने अधिक उच्चतम तथा न्यूनतम ताप को झेलने वाली चट्टानों की संरचना कैसी होगी? यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही है। सूर्य तथा पृथ्वी के बीच मे होने के कारण बुध भी शुक्र की तरह कलाएं दिखाता है तथा इसी कारण पृथ्वी से इसे सूर्य के बीच से गुजरता हुआ देखा जा सकता है। ऐसे समय बुध सूर्य के गोले के बीच में एक छोटे काले धब्बे के रूप में दिखाई पड़ता है। परंतु यह धब्बा सूर्य पर सदा दिखने वाले काले धब्बे से अलग होता है। यह धीरे-धीरे एक किनारे से दूसरे किनारे की ओर चलता है। सूर्य तथा पृथ्वी के बीच से गुजरते समय इस ग्रह के किनारे सूर्य की पृष्ठ भूमि में साफ दिखाई पडते हैं। इससे यह अर्थ निकाला गया है कि बुध ग्रह पर वायुमंडल का अभाव है। अगर उस पर वायुमंडल होता, तो उसके किनारे धूमिल दिखते। यह निर्विवाद तथ्य है कि अंतरिक्षयानों तथा कृत्रिम उपग्रहों के उद्गम के पूर्व मनुष्य ग्रहो-उपग्रहो के बारे में, जो कुछ ज्ञान प्राप्त कर सका था, उससे अधिक जनकारी पिछले वर्षो में उसे इन नये साधनों ने दिला दी है। इस दृष्टि से मेरीनर-10 की यात्राएं अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। मेरीनर-10 यान 5 फरवरी, सन् 1974 को शुक्र के पास था। वहा से बुध की ओर उन्मुख होकर वह 29 मार्च, सन् 1974 को बुध के पास पहुचा तथा 1,000 किलोमीटर की ऊंचाई से उसने बुध ग्रह के चित्र पृथ्वी को भेजे। वैज्ञानिकों को विश्वास है कि मेरीनर की दूरबीने बुध धरातल पर मौजूद डेढ मील आकार की वस्तुओं को अलग-अलग देख सकेगी। मेरीनर 10 पर लगे अन्य उपकरण हैं चुम्बकत्व तथा प्लाज्मा को मापने वाले यंत्र। एक अवरक्त रेडियोमीटर वहां के विभिन्न तापक्रम नापेगा तथा दो पराबैंगनी किरण-यत्र वहां के वायुमंडल पर नजर रखेगे। रडार का उपयोग ग्रह का वजन, गुरुत्व, आंतरिक संरचना व घनत्व ज्ञात करने के लिए किया जाएगा। मनुष्य ‘शायद कभी भी बुध पर पैर नहीं रख सकेगा। इसके दो कारण हैं -इस पर की प्रचंड गर्मी पडती है, तथा यह सूर्य के बहुत नजदीक है। इस कारण अंतरिक्ष यान के प्रेषण में जरा भी चूक होने पर यान तथा अंतरिक्ष यात्री सूर्य पर गिरकर भस्म हो जाएंगे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व की महत्वपूर्ण खोजें प्रमुख खोजें