बीबीयापुर कोठी ऐतिहासिकलखनऊ की कोठियां में प्रसिद्ध स्थान रखती है। नवाब आसफुद्दौला जब फैजाबाद छोड़कर लखनऊ तशरीफ लाये तो इस शहर के दामन में उन्होंने इमारतें और बाग भर दीए।नवाब आसफुद्दौला ने शहर से दूर दरिया के किनारे बीबीपुर कोठी बनवाई। सुनसान जगह पर बना यह महल अपनी बेमिसाल सुन्दरता के कारण बड़ा मशहूर रहा।
लखनऊ की ऐतिहासिक बीबीयापुर कोठी
जब भी अवध के नवाबों का मन शिकार की ओर खिंचता तो वह इसी कोठी में आकर रुकते। नवाब साहब के अंग्रेज सबसे अच्छे दोस्त थे। अंग्रेजों की मदद से ही नवाब साहब ने रोहेलखण्ड पर अधिकार किया था। एक बार जब वह पारिवारिक षड्यन्त्रों के जाल में फंसने लगे तो उन्होने अंग्रेजों को पुकारा। इनकी गुहार अंग्रेज मित्रों के कानों पर पहुँची और नवाब साहब इस मुसीबत से निजात पा गये।
नवाब साहब के जनरलक्लाउड मार्टिन बड़े दिल अजीज थे। मार्टिन साहब ने जब इस कोठी को देखा तो बड़ा पसन्द किया। बीबीयापुर कोठी के महत्व को समझते हुए मार्टिन साहब ने इसे ओर अधिक सुविधाजनक बनाने हेतु इसमें तमाम सुधार करवाये। नवाब आसफुद्दौला की मृत्योपरान्तनवाब वजीर अली खां ने गद्दी हथिया ली बाद में अंग्रेजों और नवाब वजीर अली के मन्त्री ‘तफज्जुल हुसैन’ ने एक षड़यन्त्र रचकर उन्हें गद्दी से हटवा दिया। नवाब वज़ीर अली को लखनऊ से बनारस भेज दिया गया।
बीबीयापुर कोठीअंग्रेजों को इतने पर भी चैन न मिला। नवाब वजीर अली खां पर गर्वनर जनरल के एजेन्ट मिस्टर चेरी’ की हत्या का आरोप लगाकर फोर्ट विलियम जेल भेज दिया गया। इसके बाद गर्वनर जनरल ने बीबीपुर कोठी में एक विशाल दरबार आयोजित किया ओर भरे दरबार में आसफुद्दौला के सौतेले भाई सआदत अली खाँ को नवाब घोषित कर दिया।
इस प्रकार सन् 1797 ई० तक तो फिरंगी गुपचुप रूप से अवध के राजकाज में दखलंदाजी करते थे। मगर सन् 1798 में वह खुलकर सामने आ गये।नवाब सआदत अली खां ने अवध की गद्दी हासिल कर लेने की खुशी में अंग्रेजों को आधी रियासत ही सौंप दी। कोठी बीबीयापुर आज धीरे-धीरे अपनी पहचान खोती जा रही है।
लखनऊ के नवाबों की वंशावली:—-

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