बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी
Alvi
बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का इतिहास गौंडों और बुंदेलों की शौर्यपूर्ण गाथा साक्षी रहा है। बिजावर में एक किला देखने को मिलता है। जिसे बिजावर का किला या जटाशंकर का किला भी कहते है। किले के समीप स्थित प्राचीन जटाशंकर मंदिर के कारण जटाशंकर का किला नाम पड़ गया है। खूबसूरत बिजावर का तालाब और उसके किनारे बना यह ऐतिहासिक किला पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है।
बिजावर का किला – बिजावर का इतिहास
बिजावर का किला का निर्माण यहाँ के शासकों ने कराया था। इस नगर और दुर्ग का संस्थापक विजय सिंह नामक गौंड सरदार ने कराया था। यह गढ़ा मण्डला के राजा का नौकर था। इस समय इस इलाके में गौंड लोगो का ही राज्य था। बाद में यह क्षेत्र छत्रसाल के अधिकार में आ गया था।
विक्रमी संवत् 1826 में गुमान सिंह ने यह क्षेत्र अपने चाचा बीर सिंह जी देव को दे दिया था। इस समय गुमान सिंह बाँदा और अजय गढ़ के राजा थे। विक्रमी संवत् 1850 में बाँदा के प्रथम नवाब अलीबहादुर से चरखारी में बुन्देलो से एक यद्ध हुआ। इस युद्ध में बीर सिंह देव मारे गये।
बिजावर का किला
विक्रमी संवत् 1859 में हिम्मत बहादुर ने इनके पुत्र केसरी सिंह का पक्ष लिया और विक्रमी संवत् 1859 में अलीबहादुर ने उन्हे बिजावर का शासक मान लिया। जब अंग्रेजी सत्ता स्थापित हुई उस समय चरखारी तथा छतरपुर राज्य के बीच सीमा विवाद उठ खडा हुआ, इसमें कंसरी सिंह को काफी नुकसान उठाना पडा। केसरी सिंह की मृत्यु के पश्चात रतन सिंह विजावर का उत्तराधिकारी बना।
विक्रमी संवत् 1868 में इनहोने बिजावर राज्य का पृथक सिक्का चलवाया। इसकी मृत्यु 1890 में हुई इसके कोई पुत्र नहीं था। इसकी विध्यवाँ रानी ने खेत सिंह के पुत्र लक्ष्मण सिंह को गोद लिया, इसके पश्चात इसका पुत्र भानू प्रताप यहाँ का राजा हुआ। 1857 की क्रान्ति में इसने अंग्रेजों की मदद की थी, इसलिये इन्हे एक कीमती पगडी और गोद लेने का अधिकार मिला और महराजा की उपाधि दी गयी। भानू प्रताप के कोई पुत्र नही था, इन्होने ओरछा महराज के पुत्र को विक्रमी संवत् 1955 में गोद लिया। भानू प्रताप की मृत्यु के पश्चात वह शासक बना।
बिजावर का किला और उसके समीप के निम्नलिखित दर्शनीय स्थल है–
1. बिजावर का दुर्ग
2. बिजावर के आवासीय महल
3. बिजावर के सरोवर (तालाब)
4. जटाशंकर
5. भीमकुण्ड