कुतुब सड़क पर हौज़ खास के मोड़ के कुछ आगे एक लम्बा चौकोर स्तम्भ सा दिखाई पड़ता है। इसी स्तम्भ से मिला हुआ एक भवन है। यही बिजय मंडल है। बिजय मंडल मोहम्मद तुगलक़ का महल है। अपने पिता फीरोज़ की मृत्यु के पश्चात् 1325 ई० में मोहम्मद गद्दी पर बैठा। उसे तुगलकाबाद नगर पसंद नहीं था इस कारण वह प्राचीन दिल्ली लौट आना चाहता था परदिल्ली नगर बहुत बढ़ गया था।
सिरी नगर अलाउद्दीन ने बनवाया था। सिरी और महरौली के मध्य बड़े बड़े भवन, वाटिकाएँ तथा दुकानें थीं। पर इनकी रक्षा के लिये दीवारें नहीं थीं। उस समय मुग़लों के आक्रमण का बड़ा भय था। इस कारण सिरी और महरौली के मध्य मोहम्मद ने अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया।इसलिये उसने सिरी से लालकोट तक एक बड़ी दीवार बनाई ओर तीनों नगरों ( सिरी, महरौली, लाल कोट ) को मिलाकर एक कर दिया। इस नगर का नाम मोहम्मद ने जहॉपनाह रखा। जहाँ- पनाह का अर्थ संसार के आश्रय का स्थान है इस नगर के मध्य में उसने अपना महल और मस्जिद बनवाया। यदि हम खिड़की गांव जाँये तो हमें नगर की दीवार का कुछ भाग देखने को मित्र जावेगा। यहीं पर हमें उस बड़े सरोवर के चिन्ह भी मिलेंगे जिसे मोहम्मदशाह ने जहांपनाह और तुगलकाबाद के मध्य बनवाया था अब यह सरोवर नहीं है पर यहां की भूमि बड़ी उपजाऊ थी।
बिजय मंडल किला महरौली
बिजय मंडल भवन के समीप क॒तुब सड़क़ पर खोदाई हुई है जिससे मोहम्मद के स्नानगृह के चिन्ह मिले हैं। बिजय मंडल के स्तम्भ पर चढ़ कर चारों ओर के दृश्य का निरीक्षण भली प्रकार हो सकता है। कहते हैं कि मोहम्मद इसी स्तम्भ की छत पर चढ़ कर अपनी सेना का निरीक्षण किया करता था। स्तम्भ से जुड़े हुये भवन में एक बड़ा चबूतरा है। इस चबूतरे में स्तम्भों के चिन्ह हैं। मोहम्मद के समय में यह दीवान-खास था। यहीं बादशाह अपने मंत्रियों से सलाह करता था और दरबार करता था चबूतरा एक ओर सपाट ढालू चला गया है। इसी मार्ग होकर राजा का हाथी उसे लेकर आता जाता था। चबूतरे के पीछे राजा के कमरों के चिन्ह हैं। इन कमरों में दो में तहखानें हैं। यही राजा के खजाने थे क्योंकि जब यह खोदे गये थे तो दक्षिणी भारत के स्वर्ण मुद्रा इनमें प्राप्त हुये थे। इन कमरों के दूसरी ओर समतल स्थान है जिसमें लगातार सूराख बने हैं। यह लकड़ी के स्तम्भों के चिन्ह हैं अलाउद्दीन ने सिरी में एक हज़ार स्तम्भों का कमरा बनवाया था वैसे हो मोहम्मद ने भी यहां पर हज़ार स्तम्भों का दिवाने आम बनवाया था। बिजय मंडल किला के समीप एक गांव है ओर गांव के समीप एक मस्जिद है। यही मसजिद मोहम्मद के समय में जामा मस्जिद थी। राजा इसमें नमाज़ पढ़ने जाता था। इस मस्जिद पर बेग़मपुर गांव के निवासियों का अधिकार था पर अब गांव वाले वहां से हटा दिये गये हैं।
मोहम्मद को बहुतेरे लोगों ने पागल कहा है क्योंकि उसने दिल्ली बदल कर दौलताबाद को राजधानी बनाया था और फिर दौलताबाद को बदल कर दिल्ली राजधानी बनाया। इब्ने बनूता अरबी यात्री मोहम्मद के समय में दिल्ली का काजी कुछ समय तक रहा। वह लिखता है कि राजा का द्वार दो प्रकार के लोगों से कभी खाली नहीं रहता था। एक तो निर्धन लोग होते थे जो शाह के खुश होने पर अपार धन पाते थे ओर दूसरे वह जो बादशाह के क्रोध के शिकारी होते थे और फांसी पर लटका दिये जाते थे।