बिजनौर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर, जिला, और जिला मुख्यालय है। यह खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर गंगा नदी के तट पर बसा है। बिजनौर शहर हर प्रमुख धर्म के लोगों के लिए उत्तर प्रदेश में एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में कार्य करता है। 18 वीं शताब्दी के बाद से यह धार्मिक विविधता विकसित हो रही थी, क्योंकि बिजनौर का इतिहास बताता है कि यह शहर मुगलों, नवाबों और अंततः अंग्रेजों समेत कई शासकों के शासनकाल में रहा था। हिंदू धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म सभी धर्मों के लोग यहां रहते है। जिसके कारण बिजनौर के पर्यटन स्थलों मे धार्मिक स्थलों की कोई कमी नही है। इनमें से अधिकतर धार्मिक स्थल अपने क्लासिक आर्किटेक्चर और धार्मिक महत्व के कारण पर्यटकों को खूब आकर्षित करते है। ज्यादातर पर्यटक आमतौर पर बिजनौर के लोगों द्वारा धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता और गर्म आतिथ्य से प्रभावित होते हैं।
बिजनौर पर्यटन स्थल – बिजनौर के टॉप 10 दर्शनीय स्थल
बिजनौर के पर्यटन स्थलों के सुंदर दृश्यविदुर कुटी आश्रम
बिजनौर शहर से लगभग 11 किमी की दूरी पर दारानगर गंज मे स्थित विदुर कुटी आश्रम बिजनौर के पर्यटन स्थलों मे एक धार्मिक महत्व वाला स्थान है। विदुर कुटी का प्राचीन महत्व महाभारत काल से है। विदुर कुटी को महात्मा विदुर ने बसाया था। महाभारत युद्ध में भाग लेने के बजाए उन्होंने गंगा किनारे गंज क्षेत्र में अपना आश्रम बनाया था। युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण भी विदुर कुटी पर आए थे। उन्होंने दुर्योधन के 56 भोगों को त्यागकर महात्मा विदुर के आश्रम में बथुए का साग खाया था। अपने इसी महत्व के कारण यह स्थान भक्तों और पर्यटकों का पसंदीदा है। यहां हर साल एक मेला भी आयोजित किया जाता है। जिसमे हजारो की संख्या भक्त भाग लेते है।
दरगाह ए ओलिया नज्फे हिन्द जौगीरम्पुरी
बिजनौर शहर से लगभग 43 किमी की दूरी, और नजीबाबाद से 11 किमी की दूरी पर रायपुर सादात रोड जौगीरम्पुरी मे स्थित दरगाह ए ओलिया नज्फे हिन्द, बिजनौर के दर्शनीय स्थलों मे एक प्रमुख दरगाह है।
इस दरगाह के बारें मे कहा जाता है कि आज से सैकड़ो साल पहले सैयद राजू औरंगजेब के जुल्म सितम से बचने के जोगिराम्पुरी इलाके के घने जंगलो में आकर मौला अली की इबादत करने लगे। इसी इबादत के बदौलत सैयद राजू ने हजरात मौला अली के आने का पैगाम लोगों तक पहुंचाया। उसी पैगाम के आगाज के मदेनाजर हर साल लाखों जायरीन अपनी- अपनी मुराद लिए मौला अली के दरबार में पहुंचते हैं।
चार सौ साल पुरानी इस दरगाह की खासियत यह है की सैयद राजू औरंगजेब के जमाने में छिपते-छिपाते बिजनौर के जोगिराम्पुरी क्षेत्र में आकर खुदा की इबादत करते थे। वहीं जंगलो में एक बुढ़ा बाबा ब्रह्मण घास काट रहा था। इसी दौरान घोड़ो की टपो की आवाज ब्रह्मण को सुनाई दी चूंकी बाबा नेत्रहीन थे तो यह सारी दास्तां बाबा ने राजू से बताई उसी ही रात को राजू को सपना आया की हजरत अली इन जंगलो में आए थे। यहां सैय्यद राजू की कब्र के अलावा घोडों के टापों के निशाना भी है, जिनके बारे मे कहा जाता है की यह हजरत अली के घोडे के टापो के चिन्ह है तभी से इस गांव में कुदरती पानी का चस्मा फुट जो आज लाखों लोगो की सेहद के फायदेमंद साबित हो रहा है। इस चश्मे का पानी एक तालाब मे एकत्र होता है।
यहा आने वाले यात्री मानते है की यहां के पानी के नहाने से बीमारियां दूर होती है। साथ ही यहां आये सभी जायरीन इस चमत्कारी पानी को अपने साथ घर ले जाते है। दरगाह-ए-आलिया नज्फे हिन्द जोगीपुरा में हार साल मजलिसों में लाखों आते हैं और अपनी -अपनी दुआ मांगते हैं।
नजीब उद दौला का किला या सुलताना डाकू का किला
नवाब नाजीब-उद-दौला, जिसे नजीब खान भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध रोहिल्ला मुस्लिम योद्धा था और मुगल साम्राज्य और दुर्रानी साम्राज्य दोनों के सैनिक थे। नवाब नजीब-उद-दौला 18 वीं शताब्दी में रोहिला आदिवासी प्रमुख रोहिलखंड थे, जिन्होंने 1740 के दशक में भारत के बिजनौर जिले में नजीबाबाद शहर की स्थापना की, और उन्होंने रोहिला जनजातियों से स्वतंत्र नजीबाबाद राज्य, वर्तमान शहर स्थापित किया। सफरजंग सम्राज्य मे उन्हें नवाब की उपाधि मिली थी। उन्होंने यहां एख किले का निर्माण कराया। बाद मे सन् 1920 के लगभग इस किले पर उस समय के मशहूर डाकू सुलताना ने कब्जा कर लिया था। आज यह किला नवाब की अपेक्षा सुलताना डाकू के नाम से ज्यादा जाना जाता है। इस किले को पत्थरगढ़ का किला भी कहा जाता है। यह इमारत पुरातत्व विभाग की संरक्षित इमारत है। हांलांकि की किला आज क्षतिग्रस्त हालत मे है। फिर भी यह पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है।
गंगा बैराज
बिजनौर शहर से लगभग 10 किमी कि दूरी पर गंगा बैराज गंगा नदी पर बनी जल सिंचाई परियोजना है। यहां से गंगा के जल को नहरो द्वारा डिवाईड करके कृषि सिंचाई के उयोग मे लाया जाता है। यहां पर गंगा नदी के किनारे पक्का घाट भी बना है जहां गंगा जी के भक्त गंगा स्नान करते है। यह स्थान अंतिम संस्कार के रूप में भी उयोग किया जाता है। यहां से गंगा जी के सुंदर नजारे दिखाई पडते है।
राजा का ताजपुर गिरजाघर
बिजनौर शहर से लगभग 44 किलोमीटर दूर राजा का ताजपुर बिजनौर जिले मे स्थित एक नगर पंचायत है। राजा का ताजपुर अपने ऐतिहासिक और खूबसूरत चर्च के लिए जाना जाता है। राजा का ताजपुर मे स्थित सेक्रेड हार्ट चर्च ऐतिहासिक चर्च है। इसका निर्माण राजा फ्रांसिस जेवियर रिख ने 1913 में कराया था। वह राजा का ताजपुर के प्रतिष्ठित परिवार से संबंध रखते थे। उन्होंने और उनके भाई नोरवर्ट रिख ने कैथोलिक धर्म स्वीकार कर लिया था। चर्च के निर्माण में नोरवर्ट रिख का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। राजा फ्रांसिस जेवियर रिख का निधन 1942 में बेंगलूर में हुआ। उनके शव को वहीं के कब्रिस्तान में दफनाया गया था। बिजनौर के पर्यटन स्थलों मे यह चर्च काफी प्रसिद्ध है। और पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है।
बिजनौर के पर्यटन स्थलों के सुंदर दृश्यश्री हनुमान धाम किरपुर
बिजनौर शहर से लगभग 19 किमी कि दूरी पर किरतपुर मे स्थित श्री हनुमान धाम एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है। यह मंदिर यहां स्थित भगवान महाबली हनुमान की 90 फिट ऊंची मूर्ति के लिए काफी प्रसिद्ध है। जिसे देखने के लिए भक्तों व पर्यटक दूर दूर से यहां आते है। भगवान के विषेश अवसरों पर यहां विशेष आयोजन भी आयोजित किए जाते है।
इंदिरा पार्क
इंदिरा पार्क, बिजनौर अपने प्रियजनों के साथ एक महान समय बिताने के लिए एक आदर्श गंतव्य है। बिजनौर मे घूमने लायक जगहों मे यह एक लोकप्रिय स्थल है। बिजनौर मे आवास विकास कलोनी के सामने बैराज रोड पर स्थित यह सुंदर पार्क अपने हरे भरे परिवेश के कारण स्थानीय और पर्यटकों की पसंदीदा जगह है। स्थानीय लोगों के लिए यह सुबह और शाम सैर करने का एक मुख्य स्थल है। पार्क बड़ों के साथ साथ बच्चों के लिए भी मंनोरंजन का विशेष साधन है। पार्क मे लगे अनेक तरह के झुले बच्चों को खूब आकर्षित करते है। व्यस्थ और तनाव भरे सप्ताह के बाद परिवार के साथ एक मनोरंजक पिकनिक मनाने का एक अच्छा स्थान है। पार्क मे एक रेस्टोरेंट भी है जहां चाय नास्ते की उत्तम व्यवस्था है।
शुगर मील इंडस्ट्री
जिला बिजनौर चिनी उत्पादन में भारत का प्रमुख क्षेत्र है। यहां बडी संख्या मे चिनी मिले है। जिनमें बिजनौर शुगर मील, धामपुर शुगर मील, स्योहारा शुगर मील, अफजलगढ़ शुगर मील, बिलाई शुगर मील, बूंदकी शुगर मील, चांदपुर शुगर मील आदि है। इसके अलावा अनेक छोटे छोटे क्रेशर चिनी उद्योग भी है। नवंबर से मार्च तक यह मिल चलते है। यदि आप चिनी बनने की प्रक्रिया को देखना चाहते है तो मील प्रशासन से अनुमति लेकर इनमें से किसी भी मिल का भ्रमण कर सकते है। इसके अलावा इस समय गन्ने के खेतो मे गन्ने के स्वाद का भी आनंद ले सकते है।
आम के बागान
बिजनौर जिला चिनी उत्पादन के साथ साथ आम उत्पादन मे भी काफी आग्रणी है। बिजनौर जिले का सहसपुर आम के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां बडी संख्या मे आम के बाग है। यदि आप पेडों पर आम को लगे देखना या अनेक किस्म के आमों का स्वाद लेना चाहते है तो आप फसल के मौसम में इन बागो की सैर कर सकते है।
हेंडीक्राफ्ट
बिजनौर से लगभग 30 किमी की दूरी पर बिजनौर जिले मे स्थित नगीना नगर हेंडीक्राफ्ट नगरी के रूप मे जाना जाता है। नगीना बिजनौर जिले की एक तहसील भी है। यहां बडी संख्या मे वुड हेंडीक्राफ्ट उद्योग है। जहां लकडी के अनेक प्रकार के छोटे छोटे आइट बनाए जाते है। यदि आप इन आइटमों को बनते देखना या खरीदारी करना चाहते है तो आप नगीना का दौरा कर सकते है।
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आगरा भारत के शेरशाह सूरी मार्ग पर उत्तर दक्षिण की तरफ यमुना किनारे वृज भूमि में बसा हुआ एक पुरातन
गुरुद्वारा बड़ी संगत गुरु तेगबहादुर जी को समर्पित है। जो बनारस रेलवे स्टेशन से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीचीबाग में
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कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई
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लखनऊ का कैसरबाग अपनी तमाम खूबियों और बेमिसाल खूबसूरती के लिए बड़ा मशहूर रहा है। अब न तो वह खूबियां रहीं
लक्ष्मण टीले के करीब ही एक ऊँचे टीले पर शेख अब्दुर्रहीम ने एक किला बनवाया। शेखों का यह किला आस-पास
गोल दरवाजे और अकबरी दरवाजे के लगभग मध्य में फिरंगी महल की मशहूर इमारतें थीं। इनका इतिहास तकरीबन चार सौ
सतखंडा पैलेस हुसैनाबाद घंटाघर लखनऊ के दाहिने तरफ बनी इस बद किस्मत इमारत का निर्माण नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1842
सतखंडा पैलेस और हुसैनाबाद घंटाघर के बीच एक बारादरी मौजूद है। जब नवाब मुहम्मद अली शाह का इंतकाल हुआ तब इसका
अवध के नवाबों द्वारा निर्मित सभी भव्य स्मारकों में, लखनऊ में छतर मंजिल सुंदर नवाबी-युग की वास्तुकला का एक प्रमुख
मुबारिक मंजिल और शाह मंजिल के नाम से मशहूर इमारतों के बीच 'मोती महल' का निर्माण नवाब सआदत अली खां ने
खुर्शीद मंजिल:- किसी शहर के ऐतिहासिक स्मारक उसके पिछले शासकों और उनके पसंदीदा स्थापत्य पैटर्न के बारे में बहुत कुछ
बीबीयापुर कोठी ऐतिहासिक लखनऊ की कोठियां में प्रसिद्ध स्थान रखती है। नवाब आसफुद्दौला जब फैजाबाद छोड़कर लखनऊ तशरीफ लाये तो इस