उत्तर प्रदेश केजालौन जिले में कोंच नगर के मुहल्ला भगत सिंह नगर में यह बारह खंभा भवन स्थित हैं तथा इसके बगल में एक राम तलइया स्थित हैं और राम तलइया के बगल में मुहाल आराजी लाइन में आठ खंभा स्थित हैं। बारभ खंभा एक ऐतिहासिक इमारत है।
बारह खंभा का इतिहास
दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान सिरसागढ़़ में मलखान को पराजित करने के पश्चात घायल होकर अपने सैनिकों के साथ कोंच आये। जहां उनके विश्वाम हेतु रातों रात बारह खंभा तथा तालाब का निर्माण किया गया। तालाब और बारादरी का निर्माण उनके सामन्त चामुण्डराय के द्वारा कराया गया था, तथा उस ताल का नाम चामुण्डराय चौड़िया के नाम पड़ा। वैरागढ़ में जहां पृथ्वीराज चौहान और आल्हा ऊदल के बीच युद्ध हुआ वहां पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं ने कोंच व उसके आस पास के स्थान को अपनी छावनी बनाया। उस समय 26 एकड़ जमीन पर चौड़िया ताल का निर्माण हुआ।
पृथ्वीराज चौहान जो कि युद्ध में घायल हो गया था उसका उपचार चंद्रकुआं के पास भटट जी की हवेली में हुआ था। चन्द्र कुआं के पास ही भूतेश्वर, नृसिंह जी आदि के मंदिर हैं। इनका निर्माण भी चौहान काल में हुआ था। यह भी विचारणीय विषय है कि कोंच गढ़ी का अस्तित्व उस समय होता तो पृथ्वी राज चौहान उपचार हेतु भट्ट जी की हवेली में न लाये गये होते। उस गढ़ी में ही ले जाये गये होते। बारह खंभा के निर्माण के विषय में यह लोकोप्ति हैं कि उसे एक ही रात मे जिन्नातों द्वारा तैयार किया गया है और सुबह मुर्गे की बाँग होते ही जिन्नात भाग गये तब इस का नाम बारह खंभा रखा गया।
बारह खंभा कोंचयह बारह खंभा चन्देल कालीन भी कहा जाता हैं। इसी भाँति मुहल्ला आराजी लाइन में स्थित आठ खम्भा भी बारह खम्भे की तरह बना हुआ हैं अन्तर केवल इतना हैं कि यह बारादरी आठ खम्भा के ऊपर स्थित हैं। दोनों की डिजाइन में तथा इन दौनों के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री में कोई अन्तर नहीं हैं और न ही उनके शिल्प में कोई अन्तर हैं। वर्तमान में यह आठ खम्भा बारादरी को चारों ओर से घेर लिया गया हैं और मठिया का स्वरुप प्रदान कर दिया गया हैं। यह मठिया पूर्वाभिमुख हैं। दरवाजे के अन्दर प्रवेश करने पर आठ खम्भा स्पष्ट दिखलायी पढ़ते हैं।
बारह खंभा का वास्तु शिल्प
बारह खंभा की वास्तु शिल्प देखने से ज्ञात होता हैं कि यह एक ऊंची पीठिका का पर स्थित हैं। बारह खंभा को एक वर्गाकार ढांचे पर अर्द्ध गोलाकार शिखर बना है। यह बारादरी का ढांचा देखने से यह स्पष्ट है कि इसमें जिन सामग्रियों का प्रयोग किया गया है। वह पहले अन्य भवनों में प्रयुक्त हो चुकी है। अलंकृत, बेतरतीब, बेडोल शिला खण्डों तथा कंकण चूने से इसका निर्माण किया गया। इसकी दक्षिणी भुजा के अंतिम छोर पर अन्तिम दो स्तम्भ के ऊपर एक शिला रखी है। जिसपर कुछ अस्पष्ट लिखा है इस बारादरी के दक्षिण में एक कच्चातालाब है। जो चौड़िया ताल के नाम से विख्यात है। इसके प्रत्येक खंभा की ऊँचाई 8 फुट है और उसके ऊपर गोलडाट का गुम्बद बना हुआ है जिसे लम्बी चौड़ी डाट द्वारा बनाया गया है।
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