बाबा बकाला साहिब का इतिहास – गुरुद्वारा नौवीं पातशाही की जानकारी
Alvi
बाबा बकाला साहिब अमृतसर जिले का प्रमुख स्थान है। छठें पातशाह श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी का विवाह इसी नगर में भाई हरिचन्द्र की सुपुत्री बीबी नानकी जी के साथ हुआ था। गुरु तेगबहादुर साहिब जी गुरु गद्दी पर विराजमान होने से पहले काफी समय अपने ननिहाल नगर बकाले माता नानकी जी तथा अपनी धर्मपत्नी माता गुजरी जी के साथ यहां रहें। आप ने यह समय प्रभु भक्ति तथा नाम सुमिरन में लगाया। आज बाबा बकाला साहिब में एक विशाल गुरुद्वारा बना हुआ है जो गुरुद्वारा नौवीं पातशाही के नाम से जाना जाता है। जहां हजारों की संख्या में श्रृद्धालु आते है।
बाबा बकाला साहिब का इतिहास
आठवें गुरु हरिकृष्ण साहिब जी के अंतिम अमृत वचन “बाबा बकाले” गुरु तेग बहादुर जी के गुरुगद्दी पर विराजमान होने का स्पष्ट संकेत करते थे। परंतु बहुत सारे पाखंडी लोग इन शब्दों का लाभ लेने के लिए नकली गुरु बनकर बकाले नगर में अपनी अपनी दुकानें सजाकर बैठ गये। गुरु तेग बहादुर जी उस समय एकांतवास में प्रभु भक्ति में मग्न रहे। परंतु आप सिख संगतें, गुरु घर के श्रृद्धालु इन पाखंडी गुरुओ से बहुत परेशान तथा दुखी थे।
बाबा बकाला साहिब गुरुद्वारा नौवीं पातशाही
आखिर एक दिन गुरु घर के प्रीतवान श्रृद्धालु गुरु सिक्ख भाई मक्खन शाह ने गुरु तेगबहादुर जी महाराज की पहचान एवं खोज की। तथा उनको नौवें गुरु के रुप में “गुरु लाधो रे” का नारा देकर सिख संगतों के रूबरू करवाया तथा सबकी दुविधा को दूर किया एंव पाखंडी गुरूओं का पर्दाफाश किया। बाबा बकाला साहिब की मान्यता इसलिए और भी बढ़ जाती है क्योंकि यही वह स्थान है जहाँ गुरु तेगबहादुर जी नौवें गुरु के रूप में गुरूगददी पर विराजमान हुए थे। तथा इस ऐतिहासिक नगरी में ही माता गंगा जी ने अंतिम सांस ली थी।
गुरुद्वारा बाबा बकाला साहिब की आलीशान इमारत के दर्शन दूर से होते है। इस धार्मिक स्थान का प्रबंध शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के पास है।
इस पवित्र स्थान पर गुरु नानक देव जी का, गुरु तेग बहादुर जी एवं गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश उत्सव तथा गुरूगददी दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा यहां गुरु तेगबहादुर जी महाराज का शहीदी दिवस भी बड़ी श्रद्धा एवं प्यार के साथ बड़े स्तर पर मनाया जाता है।
गुरुद्वारा भौरा साहिब, गुरुद्वारा शीश महल, गुरुद्वारा मंजी साहिब आदि ऐतिहासिक स्थान भी बाबा बकाला साहिब के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करते है। सिख संगत में इस स्थान का बहुत बड़ा महत्व है। बड़ी संख्या मे भक्त यहां आते है। अनुमानित वर्ष भर में यहां लगभग 10 से 15 लाख श्रृद्धालु प्रतिवर्ष यहां दर्शन के लिए आते है।