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बांसी का मेला

बांसी का मेला कब लगता है – बांसी मेले का इतिहास

बांसी एक नदी का नाम है जिस के तट पर क्वार माह की पूर्णिमा को मेला लगता है। इस मेले मे भी दूर-दूर से श्रद्धालु आकर स्नान, भजन, पूजन, कीर्तन में सम्मिलित होते है।देवरिया जनपद का यह भी बडा प्रसिद्ध मेला है। इसमे ग्राम्य जीवन की झाकी देखने योग्य होती है। गांव की महिलाएं झुंड के झुंड टोलियां बनाकर यहां मंगल-गीत गाती हुई आती है।

बांसी का मेला का महत्व

इस नदी के महत्व को ‘सौ काशी और एक बांसी’ की लोकोक्ति से समझा जा सकता है। त्रेता युगीन पौराणिक महत्व की यह नदी संबंधित क्षेत्र के लोगों के लिए जीवनदायिनी है। ऐसी मान्यता है कि मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बांसी नदी के तट पर विश्राम किया था। माघ माह में स्नान के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में लाखों लोग डुबकी लगाते हैं। मान्यता के अनुसार माता सीता संग विवाह के बाद भगवान राम बारात के साथ जनकपुर से वापस अयोध्या लौट रहे थे, तब इस नदी के किनारे पर उन्होंने अपनी बारात के साथ विश्राम किया था। सभी के साथ आचमन और स्नान भी किया था।

बांसी का मेला
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बांसी का मेला और भव्यता

क्वार माह की पूर्णिमा को लगने वाले बांसी के मेले की भव्यता और विशालता अद्भुत है। एक बांसी नदी के तट पर दूर दूर तक मेला भरा होता है। पडरौना से आठ किलोमीटर दूर बांसी घाट विशुनपुरा ब्लाक के सिंगापट्टी ग्राम पंचायत में पड़ता है। इसी घाट पर इस भव्य मेले का आयोजन होता है। श्रृद्धालु सुबह प्रातः काल उठकर नदी में स्नान करते, बच्चों के मुंडन आदि संस्कार भी होते हैं। यह आठ दिन तक चलता है, मुख्य दिन क्वार पूर्णिमा के दिन इसमें अधिक भीड़ रहती है। मेले में विभिन्न प्रकार के मनोरंजन छोटे बड़े झूले, मौत का कुआं, हंसी के फुहारे, सर्कस, तथा विभिन्न प्रकार की खरीदारी की दुकानें, खैर खिलौने, चाट पकौड़ी, शिल्पकला की वस्तुएं, सिंगार की वस्तुएं, कृषि उपयोगी दरांती फावड़े आदि की जमकर खरीदारी होती है।यातायात, सन्देशवाहन, अन्य सुविधाएं सामान्य रूप से उपलब्ध रहती हैं। शिल्पोद्योग की कलात्मक वस्तुए बांसी मेले मे बिकने के लिए आती हैं।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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