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बलिया दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य

बलिया का इतिहास – बलिया के टॉप 10 दर्शनीय स्थल

बलिया शहर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक खूबसूरत शहर और जिला है। और यह बलिया जिले का मुख्यालय भी है। बलिया जिले के उत्तर में घाघरा नदी और दक्षिण में छोटी सरगु और गंगा नदी है। Ballia आजमगढ़ मंडल का एक हिस्सा है। Ballia ने हिंदी साहित्य में बहुत योगदान दिया है क्योंकि हजारी प्रसाद द्विवेदी, अमरकांत, परशुराम चतुर्वेदी जैसे प्रमुख विद्वान इसी जिले से हैं। बलिया दो पवित्र नदियों के बीच स्थित एक शानदार जिला है। गंगा और सरयू (घाघरा)। Ballia एक पवित्र शहर है। प्राचीन समय में भृगु मुनि सहित कई संतों ने यहां निवास किया था। भृगु आश्रम, आश्रम में स्थित भृगु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह जिला उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में स्थित है और बिहार राज्य के साथ सीमा साझा करता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने महत्वपूर्ण योगदान के कारण बलिया को बागी बलिया के नाम से भी जाना जाता है।

भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे का जन्म बलिया में हुआ था। इसके अलावा भारत छोड़ो आंदोलन ’के जाने-माने नायक, चित्तू पांडे का जन्म भी बलिया में हुआ था। भारत छोडो आंदोलन” के राष्ट्रीय नायक और स्वतंत्रता सेनानी पं तारकेश्वर पांडे, राम पूजन सिंह और हरि राम भी बलिया के थे। भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय चंद्र शेखर बलिया जिले के मूल निवासी थे। स्वर्गीय राम नगीना सिंह फर्स्ट M.P.from बलिया 1952 थे। स्वर्गीय गौरी शंकर राय Ballia के कर्नाई गाँव के मूल निवासी थे, वे यूपी विधानसभा, विधान परिषद और संसद सदस्य भी थे। उन्होंने 1957 से 1962 तक विधानसभा में बलिया विधानसभा क्षेत्र का भी प्रतिनिधित्व किया और 1967 से 1976 तक एमएलसी और गाज़ीपुर संसदीय क्षेत्र से 1977 से सांसद रहते हुए इसके विघटन तक। उन्होंने 1978 के सत्र में संयुक्त राष्ट्र महासभा को तत्कालीन विदेश मंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ संबोधित किया। दोनों ने UNO के इतिहास में पहली बार Gen.Assembly को HINDI में संबोधित किया।

बलिया दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य
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बलिया नाम क्यों पड़ा?


इस शहर का नाम बलिया क्यों पड़ा? यह भी एक अच्छा प्रश्न है जिसका उत्तर जानना भी जरूरी है। पहली बात तो यह है कि इस जगह का नाम Ballia क्यों पड़ा यह एक विवादित विषय है। जिसका स्पष्ट और प्रमाणिक आधार अभी तक नहीं पता चला है। फिर भी यहां के स्थानीय लोगों में कई किवदंतियां प्रचलित हैं कि इस स्थान का नाम कैसे पड़ा। एक यह है कि यह नाम ऋषि वाल्मीकि या बाल्मीकि ऋषि से लिया गया है, जो एक प्रसिद्ध कवि थे और हिंदू पवित्र ग्रंथ रामायण के लेखक भी थे। और दूसरी मान्यता के अनुसार इस स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करती है। Ballia दो नदियों के बीच स्थित है और जिसके परिणामस्वरूप प्रकृति में बहुत रेतीली है, स्थानीय रूप से रेत को “बालू” के रूप में जाना जाता है। तीसरी यह है कि यहां प्राचीन समय में राजा बलि का शासन था जिसके नाम पर इसका नाम पड़ा। कहते है कि बलिया का प्राचीन नाम या इस स्थान को ‘बालियान’ के नाम से जाना जाता था जो बाद में बदलकर बलिया हो गया। यह जिला उत्तर प्रदेश के कई जिलो से अपनी सीमाएं साझा करता है। पश्चिम में Ballia आजमगढ़, उत्तर में देवरिया, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व में बिहार और दक्षिण-पश्चिम में गाजीपुर से घिरा है। शहर की पूर्वी सीमा गंगा नदी और घाघरा के जंक्शन पर स्थित है। बलिया से वाराणसी सिर्फ 141 किलोमीटर दूर है। भोजपुरी या बलियावी, हिंदी भाषा की एक बोली, यहां की प्राथमिक स्थानीय भाषा है।

बलिया का इतिहास (Ballia history in hindi)



बलिया का इतिहास यह साबित करता है कि यह शहर बहुत प्राचीन है। कई जाने-माने ऋषियों और साधुओं ने कहा कि Ballia में उनके आश्रम हैं। ऋषि वाल्मीकि, ऋषि भृगु, ऋषि दुर्वासा ऋषि परशुराम और ऋषि जमदग्नि सभी इस शहर में रहे थे। प्राचीन काल में यह जिला कोसल साम्राज्य का हिस्सा था। शहर की सुंदरता ने हमेशा मुस्लिमों और बुद्धवादियों जैसे कई धर्मों के संतों को आकर्षित किया था। कुछ समय के लिए यह क्षेत्र बौद्ध प्रभाव मे भी रहा। कोसल के पतन के बाद, इस क्षेत्र पर कई राजवंशों जैसे मौर्य, नंदा और मल्ल का शासन था। एक प्रशासनिक इकाई के रूप में बागी बलिया का इतिहास वर्ष 1879 से शुरू होता है। अवध के नवाब, आसफ-उद-दौला ने 1775 में ईस्ट इंडिया कंपनी को बनारस (वाराणसी) प्रांत की स्वतंत्रता का औपचारिक अधिकार दिया था। 1794 तक , यह क्षेत्र उनके अधिकार में रहा, जब राजा महीप नारायण सिंह ने अपना नियंत्रण गवर्नर जनरल को सौंप दिया। 1818 के दौरान, दोआबा का परगना, जो बिहार का एक हिस्सा था, गाजीपुर के राजस्व उप-विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया, जो बाद में बनारस (वाराणसी) से अलग हो गया और एक स्वतंत्र जिला बन गया। उस समय इसमें पूरा बलिया शामिल था। इसके बाद भी और कई बदलाव हुए, लेकिन सवाल यह है कि बलिया जिला कब बना? या बलिया जिले का गठन कब हुआ। 1 नवम्बर 1879 को गाजीपुर से अलग करके बलिया का एक जिला के रूप में गठन हुआ। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान के लिए शहर को बागी बलिया (बागी बलिया) भी कहा जाता है। वैसे तो पुरा भारत 1947 को आजाद हुआ था। परंतु बलिया कब आजाद हुआ था? यह प्रश्न कभी कभी कही पढ़ने या सुनने को मिल जाता है। वास्तव में, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, इस क्षेत्र ने 14 दिनों की छोटी अवधि के लिए स्वतंत्रता हासिल की और नेता चित्तू पांडे के कुशल मार्गदर्शन में एक अलग स्वतंत्र प्रशासन का गठन किया। Ballia में शहीद स्मारक 1942 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शहीदों के सम्मान में बनाया गया था।

बलिया के प्रमुख आकर्षण बलिया और आस-पास के जिलों के लोगों का मानना ​​है कि प्रसिद्ध संत वाल्मीकि में से एक, रामायण लिखने वाले व्यक्ति छोटी अवधि के लिए बलिया में रहते थे, इसलिए उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया था। हालाँकि, धर्मस्थल अब मौजूद नहीं है। वाल्मीकि के कम मंदिर के अलावा, बलिया में भारी तादाद में मंदिर और आश्रम हैं। यह Ballia में कई ऋषियों और किंवदंतियों के अस्तित्व के कारण था। बलिया के कुछ अन्य स्थानों को अवश्य देखना चाहिए। बलिया जिला आकर्षक स्थल, बलिया ऐतिहासिक स्थल, बलिया पर्यटन स्थल, बलिया दर्शनीय स्थल


बोटैनिकल गार्डन (Botanical Garden)

बोटैनिकल गार्डन बलिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। इस उद्यान का रखरखाव शहर की नगरपालिका द्वारा किया जाता है। बगीचे में जड़ी-बूटियों, पेड़ों, फूलों और कई सजावटी पौधों का विविध संग्रह है। बगीचे में फूल और पौधे आगंतुकों को शांति, ताजी हवा और शांत अनुभव देते हैं।




दादरी मेला (Dadri Fair)


दादरी बलिया से लगभग तीन किलोमीटर है। दादरी या जिसे दादरी मेले के रूप में भी जाना जाता है, दादरी में हिंदू कैलेंडर के आधार पर अक्टूबर या नवंबर के महीनों में यहां बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। दादरी मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है। दादरी पशु मेला कार्तिक पूर्णिमा के दिन शुरू होता है और ऋषि श्रीगु के शिष्य दादर मुनि के सम्मान में आयोजित किया जाता है। इस मेले में दुनिया भर के व्यापारी और किसान अपने लिए गुणवत्तापूर्ण मवेशी खरीदने के लिए आते हैं।

बलिया दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य
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भृंगु मंदिर (Bhring Temple)

भृगु मंदिर बलिया में सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है और यह संत भृंगु को समर्पित है। प्रसिद्ध त्योहार दादरी मेला ऋषि भृगु के सम्मान में आयोजित किया जाता है। मंदिर दादरी में स्थित है और दादरी उत्सव की शुरुआत के लिए यह मंदिर मुख्य स्थल है। कई श्रद्धालु इस मंदिर में अपनी पूजा करने के लिए आते हैं। यह मंदिर बलिया के लोगों के लिए शुभ माना जाता है।





बलिया बालेश्वर मंदिर (Baleshwar Temple Ballia)


बालेश्वर मंदिर एक और प्रसिद्ध मंदिर है और पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है। मुख्य गलियारे में बड़े-बड़े घाट मंदिर के प्रमुख आकर्षण हैं।





सुरहा ताल (Surha Taal)


सुरहा ताल एक झील है जिसे 1991 के बाद से पक्षी अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया था। यहां आपको सर्दियों के महीनों में साइबेरिया से अक्टूबर से फरवरी तक विभिन्न प्रजातियों के पक्षी देखने को मिलते हैं।





शहीद स्मारक (Saheed Statue)


बलिया में शाहिद स्मारक उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों की याद में बनाया गया था जिन्होंने बलिया को एक स्वतंत्र शहर बनाने के लिए अपनी जान गंवा दी थी। इन स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष के कारण, 1942 में बलिया चौदह दिनों के लिए एक स्वतंत्र शहर बन गया।




श्री चैन राम बाबा मंदिर (Shri Chenram Baba Temple)


श्री चैन राम बाबा मंदिर बलिया जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सहतवर नगर पंचायत में स्थित है। दरअसल यह मंदिर एक समाधि स्थल है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ संत या महात्मा अपनी इच्छाओं से (जैसे मृत्यु उपरांत समाधि) पर समाधि लेने के लिए कई तरीके अपनाते हैं जैसे जल समाधि, वायु समाधि या भू समाधि आदि … श्री चैन बाबा मंदिर भी एक ऐसे ही महान संत का समाधि स्थल है, जो कभी इस स्थान पर रहते थे और यही पर उनकी मृत्यु हुईं थी। उनकी इच्छा के अनुसार उनकी दह संस्कार इसी स्थल पर किया गया था। उनकी अंत्येष्टि के बाद, लोगों ने इस समाधि स्थल की पूजा शुरू कर दी और वहीं एक मंदिर बना दिया। समय बीतने के साथ यह पवित्रता, सौंदर्य और लोगों के विश्वास के कारण उनका प्रसिद्ध मंदिर बन गया, वर्तमान समय में यहां एक दिन में हजारों लोग मंदिर में आते हैं। एक और समाधिस्थ संत का आशीर्वाद प्राप्त करते है। और यह बलिया जिला आकर्षक स्थलों मे भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है।





श्री खपड़िया बाबा मंदिर (Shri Khapariya Baba Temple)


श्री खपड़िया बाबा मंदिर (Ballia) डिस्ट्रिक्ट की बैरिया (Bairia) तहसील के चरज्पुर (Charajpura) गांव में स्थित है। Ballia district headquarters से खपड़िया बाबा आश्रम की दूरी लगभग 37 किलोमीटर है। बलिया के दर्शनीय स्थलों मे यह स्थान खासा प्रसिद्ध है। यह आश्रम स्वामी खपड़िया बाबा और स्वामी हरिहरानंद जी महाराज का तपोभूमि है। यह Ballia जिले में गंगा और यमुना नदी के बीच द्वाबा क्षेत्र को भक्तिमय करता है ।यह आश्रम पूर्वांचल क्षेत्र में बहुत ही प्रसिद्ध है। कहते है कि खपड़िया बाबा एक प्रसिद्ध संत थे, जो भिक्षा के लिए एक ‘खप्पर’ लेकर बहुत तेजी से चलते थे और जो भी उन्हें कुछ खिलाना चाहता है, वह उनका पीछा करता और उसके खप्पर में भिक्षा डालता था। उन्हें भीक्षा मे जो भी मिलता था वह उसका भोजन था। उन्होंने कभी भी भिक्षा की प्रतीक्षा नहीं की। वह बहुत प्रसिद्ध योग ऋषि थे। उनकी मृत्यु के बाद यहां उनकी समाधि भक्तों द्वारा बनाई गई। जो अब एक मंदिर का रूप ले चुकी है। यही बाबा का आश्रम भी है जहां हवन, यज्ञ, सामूहिक विवाह आदि समाजिक और धार्मिक कार्य समय समय पर आयोजित किये जाते है। बाबा की जयंती पर यहां एक बडे मेले का भी आयोजन किया जाता हैं। आश्रम मे स्थित खपड़िया बाबा के समाधि स्थल या मंदिर मे भक्तों का अटूट विश्वास है। बडी संख्या में भक्तगण यहां खपड़िया बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते है।





जंगली बाबा मंदिर (Jangli Baba Temple)

Ballia city से जंगली बाबा मंदिर दूरी लगभग 47 किमी है। यह स्थान, जाम नामक गांव में स्थित है जो उत्तर प्रदेश के Ballia जिले के रसड़ा तहसील / मंडल का एक गाँव है। इसी गाँव में बाबा का जन्म हुआ था। वो हमेशा जंगल में रहे इसलिए लोग उनको जांगली जंगली बोलते हैं।






मंगला भवानी मंदिर (Mangla Bhawani Temple)

मंगला भवानी मंदिर उत्तर प्रदेश के Ballia जिले में सोहांव विकास खंड के नसीरपुर ग्राम में नेशनल हाइवे-19 के पास स्थित है। जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर बक्सर और गाजीपुर की सीमा पर गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित मां मंगला भवानी का प्राचीन मंदिर सदियाें से श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र रहा है। नवरात्र में मां दर्शन-पूजन के लिए यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।




कामेश्वर धाम कारो (Kameshwar daam karo)



कामेश्वर धाम उत्तर प्रदेश के Ballia जिले के कारों ग्राम में स्थित है। इस धाम के बारे में मान्यता है कि यह शिव पुराण और वाल्मीकि रामायण में वर्णित वही जगह है जहा भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जला कर भस्म कर दिया था। जिला मुख्यालय से कामेश्वर धाम की दूरी लगभग 22 किलोमीटर है।







कैसे पहुंचे (How to reach ballia)



वायु मार्ग द्वारा:-

वाराणसी हवाई अड्डा, जिला बलिया से निकटतम हवाई अड्डा है। इसे बाबतपुर हवाई अड्डे या लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डे के रूप में भी जाना जाता है।

रेल मार्ग द्वारा:-

Ballia भारतीय रेलवे का एक स्टेशन है। प्रतिदिन लगभग 35 ट्रेनें आती हैं जिनमें दो राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनें शामिल हैं। बेल्थारा रोड और रसड़ा दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।


सड़क मार्ग द्वारा:-


यह वाराणसी, गोरखपुर, पटना और उत्तर प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।





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लक्ष्मण टीले के करीब ही एक ऊँचे टीले पर शेख अब्दुर्रहीम ने एक किला बनवाया। शेखों का यह किला आस-पास
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सतखंडा पैलेस हुसैनाबाद घंटाघर लखनऊ के दाहिने तरफ बनी इस बद किस्मत इमारत का निर्माण नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1842
सतखंडा पैलेस और हुसैनाबाद घंटाघर के बीच एक बारादरी मौजूद है। जब नवाब मुहम्मद अली शाह का इंतकाल हुआ तब इसका
अवध के नवाबों द्वारा निर्मित सभी भव्य स्मारकों में, लखनऊ में छतर मंजिल सुंदर नवाबी-युग की वास्तुकला का एक प्रमुख
मुबारिक मंजिल और शाह मंजिल के नाम से मशहूर इमारतों के बीच 'मोती महल' का निर्माण नवाब सआदत अली खां ने
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बीबीयापुर कोठी ऐतिहासिक लखनऊ की कोठियां में प्रसिद्ध स्थान रखती है। नवाब आसफुद्दौला जब फैजाबाद छोड़कर लखनऊ तशरीफ लाये तो इस
नवाबों के शहर के मध्य में ख़ामोशी से खडी ब्रिटिश रेजीडेंसी लखनऊ में एक लोकप्रिय ऐतिहासिक स्थल है। यहां शांत
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लखनऊ शहर के निरालानगर में राम कृष्ण मठ, श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। लखनऊ में
चंद्रिका देवी मंदिर-- लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है और यह शहर अपनी धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के
1857 में भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के बाद लखनऊ का दौरा करने वाले द न्यूयॉर्क टाइम्स के एक रिपोर्टर श्री
इस बात की प्रबल संभावना है कि जिसने एक बार भी लखनऊ की यात्रा नहीं की है, उसने शहर के
उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ही मनोरम और प्रदेश में दूसरा सबसे अधिक मांग वाला पर्यटन स्थल, गोमती नदी
लखनऊ वासियों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है यदि वे कहते हैं कि कैसरबाग में किसी स्थान पर
इस निहायत खूबसूरत लाल बारादरी का निर्माण सआदत अली खांने करवाया था। इसका असली नाम करत्न-उल सुल्तान अर्थात- नवाबों का
लखनऊ में हमेशा कुछ खूबसूरत सार्वजनिक पार्क रहे हैं। जिन्होंने नागरिकों को उनके बचपन और कॉलेज के दिनों से लेकर उस
एक भ्रमण सांसारिक जीवन और भाग दौड़ वाली जिंदगी से कुछ समय के लिए आवश्यक विश्राम के रूप में कार्य
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व वाले शहर बिठूर की यात्रा के बिना आपकी लखनऊ की यात्रा पूरी नहीं होगी। बिठूर एक सुरम्य

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

This Post Has 3 Comments

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