बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया

बरूआ सागर का किला

बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुरझांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर स्थित हैं। झांसी से बरूआसागर की दूरी 19 किलोमीटर है। बरूआ सागर रेलवे स्टेशन से बरूआ सागर का किला दो मील दूर है।

बरूआसागर का इतिहास

बरूआ सागर एक ऐतिहासिक स्थल है। इस स्थल पर सन्‌ 1744 में पेशवा की सेनाओं का युद्ध बुन्देला सैनिकों से हुआ था। इस युद्ध में ज्योति बाहु की मृत्यु हो गयी थी। ये महाराजा माधव जी सिन्धियाँ के बड़े भाई थे। इस स्थान का नाम बरूआ सागर है जो एक विशाल सरोवर के नाम पर रखा गया है। यहाँ निम्नलिखित दर्शनीय स्थल है।

बरूआ सागर झील

यहाँ का बरूआ सागर झील या बरूआसागर ताल सुप्रसिद्ध है। बरूआसागर झील का निर्माण आज से लगभग 270 वर्ष पूर्व हुआ था। इस सरोवर का निर्माण राजा उदित सिंह ने कराया था। तथा इस सरोवर का सम्बन्ध बेतवा नदी से है। इसमे जलाशय तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। राजा उदित सिंह ने इस सरोवर का निर्माण बहुत ही अच्छी तरह कराया था। इसी नहर से थोडा दूर हटकर अनेक थार्मिक स्थल उपलब्ध होते है।

घुघुआ मठ

ये चन्देल कालीन पुराने मन्दिर है। इनकी संख्या दो है। और इन मन्दिरों के समीप चार कमरे बने हुये है। जिनमें अलग-अलग दरवाजे है। इनमें से तीन मन्दिरों में गणेश की प्रतिमाए है। और चौथे मन्दिर में दुर्गा की प्रतिमा है। यही से तीन मील दूर पश्चिम की ओर एक थार्मिक स्थल है। जिसे जराह की मठ के नाम से जाना जाता हैं।

जराह की मठ

जराह की मठ में मुख्य रूप से शिव मन्दिर है। जहाँ पर शिव और पार्वती की मूर्ति स्थापित है। इसके पूर्वी दिशा की ओर एक ऊँचा स्तम्भ है। और एक इमारत है। जिसका छज्जा उत्तर दक्षिण की ओर है इसकी छत बहुत ही सुन्दर है। तथा यह अष्टकोणिक हैं। इसका निर्माण गुप्तककाल के बाद हुआ था। दुर्गा मन्दिर के समीप एक अभिलेख भी इस युग का मिला है।

बरूआ सागर का किला
बरूआ सागर का किला

ऐतिहासिक साक्ष्य इस बात के उपलब्ध होते है कि गुप्त सम्राज्य के पश्चात यहाँ गुर्जर प्रतिहारों का राज्य रहा। उसी वंश के शासको ने जराह मठ का निर्माण कराया जिसे लोग बरूआ सागर मठ के नाम से जानते है। इस मठ का मुख्य मन्दिर खजुराहो जैसा प्रतीत होता है। तथा इसकी मूर्तियाँ भी उसी कोटि की है। तथा स्तम्भों में अनेक देवी देवताओं की मूर्तियाँ बनी हुई है इस मन्दिर का मुख्य आकर्षण मुख्य द्वार है। इस द्वार पर अनेक मूर्तियाँ बनी हुई हैं तथा मन्दिर का कलश और शिखर कमल की आकृति के है।

बरूआ सागर का किला

इस कले के बारें में कहा जाता है कि यह महारानी लक्ष्‍मी बाई का ‘समर पैलेस’ हुआ करता था। झांसी की गर्मी की परेशानी से बचने के लिए रानी लक्ष्‍मीबाई कुछ समय यहां पर हरियाली के बीच गुजारती थीं। बुंदेला राजा उदित सिंह द्वारा बनवाए गए इस किले में पांच खंड हैं। इन खंडों में छोटे-बड़े कई कमरे बने हैं। यहां के लोगों का मानना है कि इस किले में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई केवल गर्मियों के दिनों में रहने आया करती थीं।

यहां के लोगों में प्रसिद्ध एक दंतकथा के अनुसार कहते है कि किले में तीन सुखे कुएं मौजूद हैं। इन कुओं से जुड़ी दंतकथा यह है। कि जब महारानी लक्ष्‍मीबाई को किसी अपराधी को सजा देनी होती थी। तो वह उसे सजा के तौर पर इस किले में भेज दिया करती थी और अपराधी को भूखा प्‍यासा कुएं के अंदर छोड़ दिया जाता था। यहां पर लोग इसे मौत का कुआं पुकारते हैं। किन्तु अब यह दुर्ग नष्ट हो गया है। अब इसके भग्नावशेष ही शेष है। इसलिए दुर्ग के सन्दर्भ में वे साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते जिनसे विशेष जानकारी मिल सके।

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