बरार पूर्वी मध्यमहाराष्ट्र राज्य का एक प्रमुख क्षेत्र है, बरार का प्राचीन नाम विदर्भ था। बरार कपास के उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र है। बरार दक्खिन की सल्तनतों में एक प्रमुख सल्तनत थी। अपने इस लेख में हम इसी बरार सल्तनत को इतिहास जानेंगे।
बरार का ऐतिहासिक महत्त्व
106 से 130 ई० तक यहां सातवाहन राजा गौतमीपुत्र
शातकर्णी का राज्य था। खानदेश के नासिर खान ने 1443 से पूर्व बरार पर आक्रमण किया था, परंतु उसे बहमनी शासक के दौलताबाद के सूबेदार मलिक-उल-तुज्जर खलाफ हसन ने हरा दिया। बरार में कभी अहमद शाही वंश का शासन भी हुआ करता था। महमूद गावाँ ने 1467 ई० में मालवा पर आक्रमण करके बरार को अपने अधीन कर लिया था। इमदाद-उल-मुल्क ने यहां बहमनी वंश के पतन पर इमदाद शाही वंश की स्थापना की।
बरार का इतिहास1466-67 ईस्वी में मालवा के साथ सुल्तान महमूद खिलजी के हुए समझौते के अनुसार बरार बहममियों को दे दिया गया। 1474 में इसे अहमदनगर राज्य में मिला लिया गया। अहमदनगर की रानी चाँद बीबी और अकबर के सेनानायकों मुराद एवं अब्दुर्रहीम के मध्य हुए समझौते के अनुसार बरार 1595 में मुगलों को दे दिया गया। अगस्त, 1600 में अकबर ने हैदराबाद, बीजापुर, गोलकुंडा और खानदेश की सम्मिलित सेना को हराकर बरार पर संपूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
औरंगजेब जब शिवाजी की गतिविधियों पर काबू न पा सका,
तो 1669 ई० के आस-पास उसने शिवाजी को बरार में जागीर दे दी और उसके पुत्र संभाजी को पाँच हजारी मनसबदार बना दिया। शिवाजी के पुत्र राजाराम ने बरार से चौथ और सरदेशमुखी वसूल किए। 1707 में राजाराम की पत्नी ताराबाई ने अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका के रूप में बरार पर आक्रमण किया। मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम ने बरार को 1732 ई० में जीता।
1740 से 1744 तक यहाँ पेशवा ने अर्कोट के नवाब दोस्त अली के दामाद चंदा साहिब को कैद करके रखा था। 1803 में एक पठान सरदार आमीर खान ने 40000 घुड़सवारों और 20000 पिंडारियों के साथ बरार पर आक्रमण कर दिया। तब लार्ड मिंटो ने यहां के राजा की सहायता करके उसे हराकर भगा दिया। जनरल लेक ने जसवंत राव होलकर की सेना को 1805 के आस-पास फर्रुखाबाद के पास हराया। 1818 के अंत तक पिंडारियों को भी नष्ट कर दिया गया। आमीर खां को टोंक का राज्य दे दिया गया। 1853 में अंग्रेजों ने बरार को अपने साम्राज्य में मिला लिया। भारत की आजादी तक बरार अंग्रेजो के अधीन रहा।
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