बरहजदेवरिया का एक प्रमुख स्थान है जो पवित्र सरयू जी के तट पर स्थित है। यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। जो बरहज का मेला कहलाता है। जिसमे लगभग एक लाख तक दर्शनार्थी एकत्र हो जाते है। कहते है कि अनन्त महाप्रभु ने बरहज में ही तपस्या की थी। बरहज का मेला कार्तिक पूर्णिमा के अतिरिक्त अनन्त चतुर्दशीतथा प्रत्येक अवामस्या को भी यहां मेला लगता है। अनन्त चतुर्दशी पर बरहज का मेला तीन दिन तक चलता है और तीनो दिन भजन-पूजन का वातावरण रहता है। लोग सरयू जी मे स्नान कर मंदिर मे भगवान को जल चढ़ाते हैं, व्रत रहते है।
बरहज का मेला और उसका महत्व
सरयू तट पर स्थित बरहज आरंभ से ही एक धार्मिक एव आध्यात्मिक केन्द्र रहा है। बरहज एक पूर्व मध्यकालीन नगर है जहां के नीलकंठ मन्दिर मे शिव का लिंग नन्दी तथा नवगृह पूजक की
मूर्तियां एव समीप के गेट पर बने मन्दिर मे एक विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित है। इस नगर को अनन्त महाप्रभु की साधना स्थली माना जाता है। जिन्हे ओंकार सिद्धी प्राप्त थी। ऐसी भी मान्यता है कि बरहज के चार अक्षर (ब+र+ह+ज) क्रमश बद्रीनाथ, रामेश्वरम, हरिद्वार और जगन्नाथपुरी का कुछ कुछ बोध कराते है।

इस मेले मे जाने के लिए सभी साधन सुलभ है।आवासीय सुविधाए भी उपलब्ध है। देनिक उपयोग की सभी वस्तुएं, कला और शिल्प की वस्तुएं यहा बिकने के लिए आती है। इसके अलावा मनोरंजन के लिए छोटे बड़े झूले सर्कस भूत बंगला हंसी के फुहारे मौत का कुआं, टॉय झूले आदि भी होते हैं। इसे से आय में दृद्धि हो जाती है। मेलो-ठेलो से यह भी एक बडा लाभ है कि छोटे व्यापारियों रिक्शे वालों, तांगा वालों, गांव के शिल्पियों को आर्थिक लाभ हो जाता है। इसके अलावा मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है। विशेष झांकियां लगाईं जाती है।