बरमूडा ट्रायंगल कहा पर है, बरमूडा ट्रायंगल क्या है, बरमूडा की खोज कब हुई थी, बरमूडा त्रिभुज कौन से महासागर में स्थित है, बरमूडा त्रिकोण का रहस्य क्या है, क्या वास्तव में अटलांटिक महासागर के त्रिकोणात्मक जैसे क्षेत्र में कोई रहस्य छिपा हुआ है या सिर्फ बरमूडा ट्रायंगल मानवीय कल्पना की उडान भर है? इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए आज तक काफी साहित्य लिखा जा चुका है। अमेरिकी और सोवियत वैज्ञानिक इस रहस्यमय जल क्षेत्र मे होने वाली दुर्घटनाओं की जांच पड़ताल कर चुके है। अभी भी लोग इस निष्कर्ष पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है कि बरमूडा ट्राएंगल में कोई अपार्थिव शक्ति अपना प्रभाव नहीं छोड़ रही है। मिथकों और दंतकथाओं से घिरा हुआ त्रिकोण आज भी विश्व भर के समुद्रों का सबसे बड़ा रहस्य बना हुआ है।
बरमूडा ट्रायंगल का रहस्य
विश्व भर के समुद्रों का सबसे महान और अनसुलझा रहस्य है बरमूडा त्रिकोण अथवा बरमूडा ट्राएंगल (Barmuda triangle)। पश्चिमी अटलांटिक महासागरके इस त्रिकोणात्मक जल क्षेत्र द्वारा नष्ट किए गए अथवा गायब हुए जहाज़ों विमानों तथा मार गए व्यक्तियों की संख्या सैकड़ों में जा पहुंची है लेकिन अभी तक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नही मिला है कि इस बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य पर से पर्दा उठा सके।
इस कुख्यात त्रिकोण के एक सिरे परफ्लोरिडा (Florida) दूसरे सिरे पर बरमूडा (Barmuda) तथा तीसरे पर प्यट्रो रिका (Puetro rica) है। प्रारम्भ में इस क्षेत में गायब हुए जहाज़ों को मात्र एक संयोग समझा गया। फिर इन दुर्घटनाओं की संख्या इतनी बढ़ गई कि इस रहस्य की जांच पड़ताल करनी जरूरी हो गई कि आखिर बरमूडा ट्रायंगल के शिकार अपने पीछे ऐसी कोई निशानी क्यों नही छोड़ जाते जिससे उनके साथ घटी दुर्घटना के कारणों पर प्रकाश पड सके।
मानव की कल्पना जहां तक उडान भर सकती है वहा तक जा-जा कर इस ट्राएंगल के विचित्र व्यवहार के बारे में सिद्धांत गढ़े जा चुके है। कुछ का कहना है कि यह क्षेत्र इतने अधिक गुरुत्वाकर्षण तथा चुम्बकीय विस्थापन (deveation) से युक्त है कि यहां पहुंचते ही रेडियो खराब हो जाते हैं तथा दिशासूचक गलत संकेत देने लगता है। कुछ अन्य का कहना है कि अटलांटिक महासागर में डूब चुकी रहस्यमय अटलांटिस सभ्यता (जिसके बारे में हम अपने पिछले लेख में लिखा चुके हैं) की मशीन आज भी कही काम कर रहीं हैं और उनका ही असर इस तिकोने जल-क्षेत्र पर पड़ता है। तीसरी दिलचस्प व्याख्या यह है कि यह त्रिकोण बाह्य अंतरिक्ष से आने वाले यात्रियों की शिकारगाह बन चुका है।
सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह है कि बरमूडा ट्रायंगल की घटनाओं की शुरुआत अधिक पुरानी नहीं है। कोई प्राचीन किंवदंती न होकर बरमूडा ट्राएंगल पहली बार सन् 1964 में आरगोसी (Argosy) नामक पत्रिका के लिए विनसेंट एच गडिडस (Vincent H Geddis) के लिखे गए लेख से प्रकाश में आया। बाद में कई अन्य लेख प्रकाशित हुए, जो गडिडस के लेख का ही पुनर्लेखन सा प्रतीत हाते थे। रहस्यमय विषयों के प्रख्यात लेखक इवान टी सेण्डरसन (Ivan T sendrsan) ने गडिडस के इस तथ्य को सही ठहराया कि बरमूडा त्रिकोण विश्व भर में फैले हुए उन घातक और रहस्यमय क्षेत्रों में से एक है, जहां विध्वंसकारी दुर्घटनाएं घटती रहती है। उन्होंने इन क्षेत्रों का वाइल वाइटसिज (Vile vortices) का नाम दिया।
बरमूडा ट्रायंगलसन् 1973 में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका ने भी बरमूडा ट्राएंगल को अपने संकलित ज्ञान में शामिल कर लिया। जॉन वेलस स्पेसर (John Wallace Spencer ) की इसी विषय पर पुस्तक ‘लिम्बा ऑफ दा लॉस्ट’ हाथों हाथ बिक गई। सन् 1974 मे चार्ल्स बलिट्ज (Charles Berhtz) की पुस्तक ‘दा बरमूडा ट्राएंगल और भी अधिक बिकी। सन् 1975 में लारेस डी कुस्शे
(Lowrance D kusche) ने बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को हल कर देने का दावा करने वाली पुस्तक लिखी ‘द बरमूडा ट्राएंगल मिस्ट्री-साल्व्ड’।
कुस्श ने इस पुस्तक के माध्यम से जो सबसे अधिक मूलभूत प्रश्न उठाया वह यह था कि क्या वास्तव में बरमूडा ट्रायंगल में कोई रहस्य भी है? सन् 1800 से इस जल-क्षेत्र मे जहाज़ों और विमानों के खो जाने की रिपार्टो का विस्तृत विश्लेषण करके कुस्श इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कई मामलों में वे यान या तो गायब ही नही हुए थे या उनका गायब होना व्याख्या तथा तर्को की सीमा के भीतर ही था। कुस्श ने अन्य सागर क्षेत्रों में हुई दुर्घटनाओं की संख्या और प्रकृति से तुलता करके भी अपनी बात सिद्ध की।
बरमूडा ट्रायंगल की सबसे विख्यात दुर्घटना थी पांच तारपीडो बॉम्बर यानों की दुर्घटना जिन्हें अनुभवी चालक और उनके सहायक चला रहे थे। 5 सितम्बर सन् 1945 को इस त्रिकोण में ये यान बड़े रहस्यमय तरीकों से लापता हो गए। इनकी उडान का नेतृत्व करने वाले चालक ने फोट लाडरडल (fort Lauderdale) के नियन्त्रण कक्ष से सम्पर्क करके इतना संदेश दिया था “हम नही जानते कि पश्चिम किस दिशा में है। सब कुछ गलत हो गया है, हमें कोई भी दिशा ठीक से ज्ञात नही है। यहां तक सागर भी जैसा लगना चाहिए वैसा नही लग रहा है।” 4,:25 अपराह्न नियन्त्रण कक्ष में अंतिम अधूरी आवाज सुनाई दी ”हम इस समय अपने अड्डे से 225 मील उत्तरपूर्व मे होना चाहिए। ऐसा लगता है कि हम….. इसके बाद शांति छा गई।
इन पांच बॉम्बर यानों का पता लगाने के लिए तुरंत 13 व्यक्तियों से युक्त मरिनर फ्लाइंग बोट भेजी गई। यह बोट भी कुछ देर के बाद उसी तरह गायब हो गई। न तारपीडो बॉम्बरो का पता चला ओर न ही मेरिनर का। कुस्श ने इस दुर्घटना का भी विश्लेषण किया। कुस्श का ख्याल था कि मरिनर व बॉम्बर गायब अवश्य हुए लेकिन 400 पृष्ठ लम्बी जल सेना की इस दुर्घटना संबंधी रिपोर्ट पढ़ने से साफ हो जाता है कि यह कहानी जैसी बताई जाती है वैसी है नहीं। बॉम्बरो के पायलट अनुभवी नहीं थे, फ्लाइट लीडर लेफ्टिनेंट चार्ल्स टेलर (Lt. Charles Tyler) के अलावा अन्य चार चालक अभी छात्र ही थे। स्वयं चार्ल्स टेलर के लिए वह इलाका नया था। इसके अलावा ऊपर बताया गया रेडियो संपर्क भी वास्तव में स्थापित न हुआ था। चार्ल्स टेलर का सही संदेश यह था कि “उसके दिशासूचक में कुछ गड़बड़ी हो गई है तथा दिशा ज्ञान न हो पाने के कारण वह भटक गया है”। इस प्रकार 8 बजे रात्रि तक दिशा तलाश करते करते बॉम्बरो का ईंधन खत्म हो गया तथा वे खराब मौसम के कारण रात के अंधेरे में दुर्घटनाग्रस्त हो गये। मिश्र फ्लाइंग बोट यान 7:27 बजे शाम के अंधेरे में उड़ा। 20 मिनट बाद पानी के एक जहाज गेनास मिल्स (Gainas mills) के डेक पर खड़े दर्शकों ने आकाश में एक विस्फोट होते देखा। मरिनर यानों का इस तरह ध्वस्त हो जाना कोई नई बात नहीं थी। विमान चालक इन विमानों को फ्लाइंग गैस टैंकर कहते थे।
बरमूडा ट्रायंगल के पानी की जांच करने के लिए अमेरिकी और रूसी वैज्ञानिकों ने मिला जुला प्रयास किया। रूसी वैज्ञानिकों ने पाया कि इस त्रिकोण जल क्षेत्र में कुछ भंवर अवश्य बनती है। लेकिन कोई रहस्मयी शक्ति काम नहीं करती। 25° से 40° उत्तरी अक्षांश और 55° से 80° पश्चिमी देशांतर रेखाओं के बीच स्थित 3900000 वर्ग किमी क्षेत्र फल वाले इस रहस्यमय त्रिकोण के साथ और की महत्वपूर्ण दुर्घटनाएं जुड़ी हुई है। कुस्श ने इन सभी दुर्घटनाओं के तथाकथित रहस्य का उत्तर देने की कोशिश की है। लेकिन अभी भी बरमूडा त्रिकोण के बारे में विचित्र विचित्र धारणाओं के बनने की प्रक्रिया जारी है।
अमेरिका कास्ट गार्ड ने इस बारे में कहा कि कभी कभी प्रकृति की कुछ घटनाएं तथा मनुष्य की काल्पनिक शक्ति की बार विज्ञान कथानको के लिए अच्छी खासी सामग्री प्रस्तुत कर देती है। क्या वास्तव में बरमूडा ट्रायंगल का रहस्य कुस्श की पुस्तक से सुलझ गया है? तब प्रश्न उठता है कि आखिर इतनी सारी दुर्घटनाएं एक ही निश्चित क्षेत्र में क्यों हुई? जब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता तब इस रहस्य का पूर्ण निराकरण संभव नहीं है।
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