बम अनेक प्रकार के होते है, जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों, परिस्थितियों और शक्ति के अनुसार अनेक वर्गो में बांटे जा सकते हैं। बमों का निर्माण सैकडो वर्षो से होता आ रहा है। अतः किस प्रकार के बम का आविष्कार कब हुआ यह कहना कठिन है। बम का अर्थ है विस्फोटक पदार्थों और विस्फोटक प्रेरकों के मिश्रण से बनी वस्तु। शायद बम निर्माण की शुरुआत तो उसी समय से हो गयी थी, जब मनुष्य ने सबसे पहले विस्फोटक पदार्थ अथवा बारूद की खोज की।
संभवतः बारूद की खोज आज से हजारों वर्ष पूर्वचीन में हुई थी। प्राचीन काल मे चीनी लोग बारूद से तरह-तरह की आतिशबाजी बनाते थे। तेरहवीं शताब्दी के मध्य काल तक यूरोप के देश बारूद सेपरिचित नही थे। एक अंग्रेज रोजर बेकन ने सन् 1245 में सबसे पहले अपनी पुस्तक ‘दि सीक्रेट वर्क्स ऑफ आर्ट एड नेचर’ मे बारूद का उल्लेख किया था। अतः प्रमाणों के अनुसार रोजर बेकन को ही बारूद का आविष्कारक माना जाता है।
बम की खोज किसने की कब और कैसे हुई
सामान्य बारूद 75 प्रतिशत पोटीशयम नाइट्रेट 15 प्रतिशत चारकोल और 10 प्रतिशत सल्फर के मिश्रण से तैयार होता है और अपनी मात्रा से लगभग 3000 गुना धुआं और गैस छोडता है। बंदूक, पिस्तोल, तोप, राइफल, माइस, मिसाइल राकेट, बम आदि सभी युद्ध-उपकरण बारूद के आविष्कार के बाद ही बन पाए। यदि बारूद का आविष्कार न हुआ होता तो उपर्युक्त युद्ध शस्त्रों का भी निर्माण न हुआ होता।
बारूद के बाद गन-काटन (बारूदी रूई) का आविष्कार एक जर्मन कैमिस्ट किश्चियन शॉनबीन ने 1845 में किया। 1846 में तूरीन इस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलोजी में केमिस्ट्री के प्रोफेसर एम्केनियो सोब्रेरो ने एक बहुत शक्तिशाली विस्फोटक पदार्थ नाइट्रो ग्लिसरीन की खोज की। नाइट्रो-ग्लिसरीन जलने पर अपनी मात्रा से 2000 गुना गैस छोडता है। नाडट्रो-ग्लिसरीन साद्र सफ्युरिक एसिड ओर साद्र (Concentrated) नाईट्रिफ एसिड पर धीरे-धीरे ग्लिसरीन की बूंद टपकाने से बनता है। यह विस्फोटक इतना ज्यादा खतरनाक था कि लाने-ले जाने या उपयोग करने में थोडी-सी असावधानी या झटके में ही फट जाता था।

सन् 1886 में स्वीडन क एक कैमिस्ट अल्फ्रेड नोबेल ने सिद्ध करके दिखाया कि यदि नाइट्रो-ग्लिसरीन का किसलगुर (Kreselguhr) नामक एक प्रकार की चिकनी मिट्टी में मिलाकर रखा जाए तो इस विस्फोटक पदार्थ को सुरक्षित रूप से इस्तमाल किया जा सकता है। नोबेल ने उमके बाद डाइनामाइट का आविष्कार किया। इसका उपयोग शांतिपूर्ण कार्यों जैसे-पहाड, चट्टान, कोयला तोडने आदि में किया जाता था, परंतु इसे जान माल की हानि के लिए भी प्रयुक्त किया गया। आजकल डाइनामाइट में अमोनियम नाइट्रेट और काष्ठ-लुगदी के साथ सोडियम नाइट्रेट भी मिलाया जाता है। इन्ही नोबेल के नाम से नोबेल पुरस्कार है।
इसके बाद अन्य कई प्रकार के विस्फोटकों का अन्वेषण हुआ। अधिकांश विस्फोटक अस्त्र-शस्त्र गुप्त रूप से बनाए जाते थे। अतः कई शस्त्र उपकरणों के आविष्कारकों का ठीक-ठीक पता नहीं चल सका। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत सेअस्त-शस्त्र गुप्त रूप से बनाए गए, जिनका पता बाद मे ही चल पाया। अश्रु गैस बम, हैंड ग्रेनेड तथा साधारण बम, नेपाम बम आदि अनेक खतरनाक बमों का निर्माण इन्ही युद्धों के दौरान हुआ।
इसके बाद यूरेनियम, प्लूटानियम आदि तत्त्वो की खोज हूई। परमाणु विखंडन की प्रक्रिया की खोज ने सन् 1945 मे परमाणु बम के निर्माण का जन्म दिया। इसके पश्चात नाभिकीय संगलन की खोज के आधार पर हाइड्रोजन बम का निर्माण शुरू हुआ। अब तो वैज्ञानिकों ने न्यूट्रान बम का भी आविष्कार कर लिया है। ये तीनो बम महा विनाशकारी सिद्ध हुए हैं।
1939 में द्वितीयविश्व युद्ध के दौरान कुछ जर्मन और फ्रांसीसी भौतिकशास्त्री इग्लैंड पहुच गए और उन्होने नाभिकीय विखंडन का उपयोग किसी बम में किए जाने के विषय में परीक्षण करने शुरू किए। गणना द्वारा उन्होंने पता लगाया कि अगर आधा किलो यूरेनियम-235 में मौजूद सभी परमाणुओ को किसी युक्त द्वारा विखंडित किया जा सके तो लगभग 2 करोड पौंड टी एन टी (Trinitrotoluene) की तुल्य क्षमता वाला भीषण धमाका हो सकता है। बस, इग्लैंड सरकार ने जार्ज थॉमसन के नेतृत्व में परमाणु बम बनाने के लिए एक दल गठित कर दिया। परंतु यूरेनियम-235 और यूरेनियम-238 एक ही तत्त्व के दो आइसाटोपो (समस्थानिक) को अलग करने की जटिल प्रक्रिया ने समस्या पैदा कर दी।
परंतु अमरीका के वैज्ञानिकएनरिको फर्मी ने इस समस्या को सुलझा लिया और 16 जुलाई 1945 को अमरीका ने अपने पहले परमाणु बम का विस्फोट करके परीक्षण किया। उसके बाद 6 अगस्त 1945 को अमेरीकी बम वर्षक विमानों ने जापान के हिरोशिमा नगर पर यूरेनियम-235 से बना और तीन दिन बाद दूसरे नगर नागासाकी पर प्लूटोनियम से बना परमाणु बम गिराया। इन बमों से सदियो से बसे ये दोनो नगर और उनके निवासी क्षणभर में नष्ट हो गए। इन बमों के विस्फोट के बाद ही संसार को पहली बार यह पता चला कि गुप्त रूप से इस क्षेत्र मे कितनी जबरदस्त तैयारी हो रही थी।
उसके बाद अमरीका के वैज्ञानिको ने हाइड्रोजन बम का निर्माण किया ओर सन् 1952 में उसका परीक्षण किया। आजकल युद्ध में कई प्रकार के बमों का इस्तेमाल किया जाता हैं। उदाहरण के लिए 1. विध्वंसक बम, 2. विखण्डक बम, 3. अग्नि बम, 4. रासायनिक बम, 5. जीवाणु बम, 6. विकिरण बम, 7. नाभिकीय चार्जयुक्त बम, 8. न्यूट्रोन बम आदि। विध्वंसक बमों का इस्तेमाल इमारतों, पुलो ,कारखानों आदि को नष्ट करने के लिए किया जाता है। इन बमों का वजन 50 किलो से 10 हजार किलोग्राम तक हो सकता है। इसका ऊपरी खोल पतला होता है। इसमे साधारण किस्म का विस्फोटक भरा होता है, जिसका वजन कूल भार का लगभग आधा होता है।
विखण्डक बम (फ्रेग्मेटेशन बम) का खोल विध्वंसक बम से कुछ अधिक मोटा होता हे। यह बम जब वायुयान से गिराया जाता है, तो यह जमीन से कुछ पहले ही धमाके के साथ फट जाता है और इसके छितरे हुए टुकडो से लोग घायल हो जाते है या मर जाते हैं। इसका कुल वजन 2 किलो से 50 किलोग्राम तक होता है। अक्सर इन्हे बडे क्षेत्रों में गिराया जाता है। अग्नि बमों (इसेन्डियरी बम) को घनी आबादी वाले स्थानों कारखानों बडी इमारतों आदि पर गिराया जाता है। इससे आग तुरत ही चारा और फैल जाती है। इन बमों का खोल भी पतला हाता है। आग भडकाने के लिए इसमें थमाइट इलेक्ट्रॉन फास्फोरस और नेपाम जैसे अग्निज्वालक रासायनिक पदार्थ इस्तमाल में लाए जाते हैं। आग लगाने वाला पदार्थ एक खास तरह के प्रज्वालक पलीते के साथ भरा होता है।
रासायनिक बम एक प्रकार का बडा बैलून जैसा होता है। इसकी दीवार पतली होती हैं। इसके खोल में विषैले पदार्थ भरे होते हैं। इसके अलावा इसमे पलीते के साथ थोडा विस्फोटक पदार्थ भी रखा होता है। यह जमीन पर ओर जमीन से ऊपर भी फटता है। इसके फटने के साथ विषैली गैस और पदार्थ जमीन और आस-पास की वायु में मिलकर वातावरण को जहरीला बना देते है।जिससे लोग मर जात है।
जीवाणु बम के अंदर अनेक कक्ष होते है। हर कक्ष में भिन्न-भिन्न प्रकार के रोग फलाने वाल विषाणु और जीवाणु भरे होते हैं। इस प्रकार के बमों का वजन 75 किलो के लगभग होता है। इसमें एक फ्यूज का प्रबंध होता है। बस गिराने पर जमीन से कुछ ऊपर ही पयूजजल उठता है और बम का विस्फोट हो जाता है। विस्फोट के साथ ही आसपास के वातावरण में विषाणु फैल कर उस क्षेत्र के लोगो को रोगग्रस्त कर देते हैं।
विकिरण बम लगभग रासायनिक बम की तरह ही होता है। इसका खोल पतला होता है। इस बम में रेडियोधर्मी पदार्थ तरल या ठोस रूप से भरे होते हैं। इसमें विस्फोटक पदार्थ थोड़ी मात्रा में भरा होता है। जो बम के गिराने पर धमाके के साथ रेडियोधर्मी सदूषको को वायु में मिला देता है। इस प्रकार उस क्षेत्र के लोग रेडियोधर्मी विकिरण जन्य रोगों से पीड़ित हो जाते है।
नाभिकीय बम सबसे अधिक संहारक होते हैं। परमाणु और हाइड्रोजन बम इसी श्रेणी में आते हैं। इन बमों में नाभिकीय चार्ज भरा होता है परमाणु बम के प्रमुख भाग निम्न हैं:–
- नाभिकीय (Nuclear) चार्ज।
- नाभिकीय इंधन जो एक पूर्व निश्चित क्षण पर विखंडित होता है।
- एक ऐसी युक्ति जो वस्तुओं का विस्फोटी न्यूक्लीय रूपांतरण करती है।
- विशेष धातु अथवा नाभिकीय इंधन का बना हुआ एक मोटा खोल
आधुनिक परमाणु बमों में यूरेनियम आइसोटोप्स (Isotope) यूरेनियम-233 और प्लटोनियम-239 नाभिकीय चार्ज की भांति प्रयोग किया जाता है। यूरेनियम-235 का उपयोग भी होता है। परौतु यह बहुत मंहगा पडता है। अगर एक किलोग्राम यूरेनियम के सभी नाभिको का विस्फाटी रूपांतरण होता है तो इससे लगभग 20000 टन टी एन टी के विस्फोटन के बराबर ऊर्जा (Energy) उत्पन्न होती है। टी एन टी का पूरा नाम हे- टाइनाइट्रोटाल्यून (Trinitrotoluene)। यह विस्फोटन का एक पैमाना है। 7000 मीटर प्रति सेकण्ड के विस्फोटन प्रेरक का एक टी एन टी के बराबर आका जाता है। टी एन टी की एक बम में आ जाने वाली इतनी बडी मात्रा को ढोने के लिए कइ हजार डिब्बों वाली एक मालगाडी की जरूरत होगी।



न्यूट्रॉन बम की एक विशेषता यह है कि यह मनुष्य, जीव-जतुओं आदि का तो नाश करता है, परंतु इमारतों, भवनों, कल-कारखानों को नष्ट नही करता, ताकि उस क्षेत्र पर यदि कब्जा हो जाए तो इनका उपयोग किया जा सके। इस बम के तीन प्रभाव क्षेत्र होते हैं- मध्य वाले क्षेत्र में तुरंत मृत्यु हो जाती है, दूसरे क्षेत्र मे कुछ घंटो या दिनों में मृत्यु होती है ओर तीसरे प्रभावित क्षेत्र मे आने वाले
वर्षो में तरह-तरह की बीमारियां फैलती रहती हैं ओर मनुष्य जीव-जंतु धीरे-धीरे मरते रहते हैं या शीघ्र ही अपंग, बूढ़े और कमजोर हो जाते हैं। इसके विस्फोट से करोडो न्यूट्रॉनों की बौछार होती है, जो अलग-अलग क्षेत्रो में अलग-अलग प्रभाव दिखाते हैं। इससे विस्फोट तरंगे ओर ताप तरंगे बहुत कम निकलती हैं, इस कारण तोड-फोड बहुत ही कम होती है। एक किलो टन न्यूट्रॉन बम का असर लगभग दो किलोमीटर क्षेत्र पर होता है। अधिक शक्तिशाली न्यूट्रॉन बम इससे भी ज्यादा क्षेत्र को प्रभावित करत हैं।
क्लस्टर और फासफोरस बम
क्लस्टर बम बडी संख्या में तबाही मचाने वाला आधुनिक बम है। इसका असर काफी बड़ दायरे में हाता है। यह अमेरीका द्वारा बनाया गया। क्लस्टर बम के सोल में छोटे-छाटे अनेक बम तरतीब
से भरे होते है। हवाई-जहाज से गिराने पर क्लस्टर बम का खोल वायु के दबाव से खुल जाता है ओर घूमने की गति से ये छोटे-छोटे बम एक बडे क्षेत्र मे छितरा जाते हैं और टकराकर फट पड़ते हैं। इनसे बादल की तरह उठने वाले धुंए से मीलों तक समस्त जीवित-प्राणियों की जीवनलीला समाप्त हो जाती है। क्लस्टर बम के खोल के अंदर 650 तक छोटे बम रखे जाते हैं।
फासफोरस बम की चपेट में आए लोग जीवित जल जाते हैं। यदि शरीर के किसी हिस्से के जख्म पर से चिपका हुआ फासफोरस हटाने की कोशिश की जाए तो यह वायु के सम्पर्क में आकर फिर से आग पकड़ लेता है। फासफोरस बम के घातक प्रहार से घायल-व्यक्ति का जीवन बडा पीडादायक होता है। फासफोरस बम फटने के साथ ही आग पकड़ लेता है ओर जब तक यह वायु के सम्पर्क में रहता है जलता ही रहता है।