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बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ धाम – बद्रीनाथ मंदिर चार धाम यात्रा का एक प्रमुख धाम – बद्रीनाथ धाम की कहानी

उत्तराखण्ड के चमोली जिले मे स्थित व आकाश की बुलंदियो को छूते नर और नारायण पर्वत की गोद मे बसे आदितीर्थ बद्रीनाथ धाम न सिर्फ श्रद्धा व आस्था का अटूट केन्द्र है। बल्कि अद्धितीय प्राकृतिक सौंदर्य से भी पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह हिन्दुओ के चार प्रमुख धामो में से एक है। भगवान नारायण के वास के रूप मे जाना जाने वाला बद्रीनाथ धाम अादि शंकराचार्य की कर्मस्थली रहा है। चारो और पहाडियो से घिरा बद्रीनाथ मंदिर अलंकृत है। नारायण पर्वत के निकट बसा होने के कारण यहा प्राय: भारी हिमशिखाए खिसकती रहती है। परंतु आज तक मंदिर को कोई हानि नही हुई है यह तो कुछ भी नही 2013 मे आयी भारी बाढ आपदा जिसमे बद्रीनाथ शहर तिनके की तरहा बह गया था परंतु इस पवित्र मंदिर का बाल भी बांका नही कर सकी।

बद्रीनाथ का इतिहास

चारों धाम यात्रा मे बद्रीनाथ धाम को सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यहां स्थित भव्य बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण 9 वी शताब्दी मे शंकराचार्य द्धारा कराया गया था। यह भव्य मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर बना हुआ है। कहा जाता है कि यहां बदरी ( बेर) के घने वन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम बदरी वन पडा था। बाद मे शंकराचार्य जी के समय से इस स्थल का नाम बद्रीनाथ पड गया। यह भी माना जाता है कि यहां व्यास मुनि का आश्रम था। पुराणो में बद्रीनाथ को भारत का सबसे प्राचीन क्षेत्र बताया गया है कहते है कि इसकी स्थापना सतयुग मे हुई थी।

बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ मंदिर – बद्रीनाथ धाम की कहानी

बद्रीनाथ धाम को लेकर कई दंत व धार्मिक कथाएं प्रचलित है। एक धार्मिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि नर और नारायण नामक दो ऋषि जिन्हे भगवान विष्णु का चौथा अवतार भी कहा जाता था। उन दोनो ने बदरीकाश्रम मे आध्यात्मिक शांति पाने के घोर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से इंद्र का सिंहासन डोलने लगा। तब इंद्र ने उन दोनो ऋषियो की तपस्या भंग करने करने के लिए इंद्र लोक की कुछ अप्सराएं भेजी। इससे नारायण ऋषि को बहुत क्रोध आया उन्होने इंद्र को शाप देना चाहा परंतु नर ऋषि ने उनको शांत कर दिया। तब इंद्र को सीख देने के लिए नारायण ऋषि ने इंद्र द्धारा भेजी गयी गई सभी अप्सराओ से अधिक सुंदर एक अप्सरा का निर्माण किया। उस अप्सरा का नाम उन्होने उर्वसी रखा तथा उसे इंद्र के पास भेज दिया। जब इंद्र द्धारा भेजी हुई अप्सराओ ने नारायण ऋषि से विवाह करने की इच्छा प्रकट की तब नारायण ऋषि ने उन्हे वचन दिया कि वे अगले जन्म मे उन सबके साथ विवाह करेगे। इस प्रकार अगले जन्म में नारायण श्रीकृष्ण और नर अर्जुन हुए।

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दुसरी धार्मिक कथा के अनुसार एक दिन नारदजी घूमते घूमते नर और नारायण के पास जा पहुँचे। उस समय नारायण पूजा पाठ मे व्यस्त थे। तब नारदजी ने आश्चर्य से पूछा- हे प्रभु! आप तो स्वयं ईश्वर है। भला आप किसकी पूजा कर रहे है। तब नारायण ने उत्तर दिया – मैं आत्मा की पूजा कर रहा हूं। तब नारदजी ने निवेदन किया कि वे आत्मा की पूजा के स्वरूप को देखना चाहते है। श्रीनारायण ने उन्हें श्वेतद्धीप जाने को कहा। श्वेतदीप पहुंचकर नारदजी ने नारायण को दोनों निर्गुण तथा विश्वरूपो में देखा। वहां रहकर नारदजी ने नारायण से पंचरात्रि सिद्धांत सीखे फिर बदरी वन लौटकर नर व नारायण के दर्शन किये।

बद्रीनाथ की कहानी लोकथाएं

बद्रीनाथ को लेकर कई लोकथाएं भी प्रचलित है। एक लोक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु तपस्या मे लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिमपात में पूरी तरह डूबने लगे उनकी इस दशा को देखकर माता लक्ष्मी जी स्वंय भगवान विष्णु के समीप खडे होकर एक बेर बदरी वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिमपात को अपने ऊपर सहने लगी। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को धूप वर्षा और हिमपात से बचाने की कठोर तपस्या करने लगी। जब कई वर्षो बाद भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मी जी हिमपात से ढकी हुई है। तो उन्होने माता लक्ष्मी जी के तप को देखकर कहा – हे देवी! तुमने भी मेरे बराबर ही तप किया है। सो आज से इस स्थान पर मुझे तुमहारे ही साथ पूजा जायेगा। और तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप मे की है सो आज से मुझे “बदरी के नाथ” बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पडा।

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दुसरी लोक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ध्यान योग हेतु स्थान खोज रहे थे। और उन्हे नीलकंठ पर्वत के समीप और अलकनंदा के तट पर यह स्थल भा गया। पहले यह स्थान शिव भूमि के रूप मे व्यवस्थित था। तब भगवान विष्णु ने यहां बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे उनका रूदंन सुनकर माता पार्वती और भगवान शिव संवयं उस बालक के समक्ष उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हे क्या चाहिए। तो बालक ने ध्यान योग हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह रूप बदलकर भगवान विष्णु ने शिव पार्वती से वह स्थान प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थल आज बद्री विशाल के नाम से प्रसिद्ध है।

एक अनय पौराणिक मान्यता के अनुसार जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई तो उनका वेग इतना तेज था की धरती माता सहन न कर सकी तो वह 12 धाराओ में बट गई इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई। और यह स्थल भगवान विष्णु का वास बन गया।

बद्रीनाथ मंदिर का संरचना

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर आदि गुरू शंकराचार्य द्धारा चारो धामो मे से एक के रूप मे स्थापित किया किया गया था । बद्रीनाथ मंदिर की संरचना भी भव्य व अलंकृत है। यह मंदिर तीन भागो मे विभाजित है। गर्भगृह दर्शन मण्डप और सभा मण्डप। मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां है। इनमें सबसे प्रमुख है भगवान बदरी नारायण एक मीटर ऊची काले पत्थर की प्रतिमा है। यहां भगवान विष्णु ध्यानमग्न मुद्रा में सुशोभित है। जिसके दाहिने और कुबेर लक्ष्मी जी नारायण की मूर्तियां है। मंदिर की बहारी संरचना भी काफी कुछ मुगल शैली से मिलती जुलती है। मंदिर का मुख्य द्धार मेहराबनुमा है जिस तक पहुचने के लिए सिढिया बनाई गई है। और उसके दोनो साइडो मे अलंकृत खम्भो के साथ मेहराबे बनाई गई है। मुख्य द्धार का ऊपरी भाग को गुम्बदनुमा है। पूरे मंदिर को गहरे रंगो से सजाया गया है।

बद्रीनाथ धाम का महत्व

इस स्थान का धार्मिक , सांस्कृतिक तथा साहित्यिक महत्व तो है ही साथ में सैनिक महत्व भी है। हिमालय के दो बडे दर्रे माना और नीति यही आकर निकलते है। बद्रीनाथ आदिकाल से भारत तिब्बत सीमा प्रहरी रहा है। माना गांव बद्रीनाथ से केवल दो मील आगे है। यहां सेना तथा सुरक्षा बल का पहरा होता है। जबकि दर्रा यहा से लगभग 25 मील आगे है। इसके बाद तिब्बत की सीमा आ जाती है।

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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