बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग पर स्थित है। वर्तमान समय में बटियागढ़ दुर्ग जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, किन्तु उसके भग्नावशेष यहाँ आज भी मौजूद है। जो पिकनिक और इतिहास में रूची रखने वाले पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है।
बटियागढ़ का किला – बटियागढ़ किले का इतिहास
किसी जमाने में यह किला कल्चुरियों के आधीन था। कल्चुरियों के पश्चात यह फोर्ट गौंड सम्राज्य का एक अंग बन गया। समय-समय पर इस दुर्ग को जीतने के लिये तुर्कों ने अनेक प्रयत्न किये। बटियागढ के किले में, किले के एक महल में विक्रमी संवत् 1381 का एक अभिलेख उपलब्ध हुआ। यह अभिलेख यहाँ के एक महल में था। इस अभिलेख में गयासुद्दीन का नाम लिखा है। ऐसा लगता है कि गयासुद्दीन तुगलक की ओर से कोई सूबेदार यहाँ निवास करता होगा। उसी ने इस महल का निर्माण कराया होगा।
इससे यह प्रतीत होता है कि बटियागढ़ हिन्दू शासक के हाथ से निकलकर तुर्कों के हाथ में आ गया होगा। इसी स्थान मे एक और अभिलेख विक्रमी संवत् 1385 का उपलब्ध होता है। इस अभिलेख में मुहम्मद तुगलक का नाम आया है। उस समय यह किला चंदेरी सुबेदार जुलचीखाँ अधिकार में था। तथा उसका एक सेनानायक यहाँ रहता था।
बटियागढ़ का किला
उस समय बटियागढ़ का नाम बडिहाटिन था, और दिल्ली का नाम “जोगनीपुर था। बटियागढ़ में अनेक सती स्मारक उपलब्ध होते है। जिनसे यह अनुमान लगता है कि तुर्कों के पहले यह दुर्ग हिन्दू शासको के हाथ में था। तुर्कों से पराजित होने के पश्चात यहाँ की महिलाओं ने आत्मरक्षा के लिये जौहर व्रत धारण किया होगा। जिनकी स्मृति में ये स्मृति चिन्ह बने होगे।
इस दुर्ग में निम्नलिखित स्थल दर्शनीय है-
1. दुर्ग के भग्नावशेष
2. दुर्ग के आवासीय स्थल
3. दुर्ग में स्थित सती स्मारक
4. किले के प्रवेशद्वार
5. दुर्ग के धार्मिक स्थल एवं जलाशय
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