बक्सर का युद्ध कब हुआ था – बक्सर के युद्ध में किसकी जीत हुई Naeem Ahmad, April 15, 2022April 3, 2024 भारतीय इतिहास में अनेक युद्ध हुए हैं उनमें से कुछ प्रसिद्ध युद्ध हुए हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है उन्हीं में से एक युद्ध है “बक्सर का युद्ध” । बक्सर का युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेंज और मीरजाफर, शुजाऊद्दौला के मध्य हुआ था। अपने इस लेख में हम इसी महा युद्ध के बारे उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—- बक्सर का युद्ध कब हुआ था? बक्सर का युद्ध कहां हुआ था? बक्सर के युद्ध का परिणाम? बक्सर के युद्ध का महत्व? बक्सर का युद्ध किसके बीच हुआ? बक्सर के युद्ध के समय मुग़ल सम्राट कौन था? बक्सर के युद्ध के क्या कारण थे? बक्सर का राजा कौन था? बक्सर के कितने युद्ध हुए? बक्सर का युद्ध कब और किसके मध्य हुआ? बक्सर की लड़ाई किसने लड़ी?1764 बंगाल का नवाब कौन था? प्लासी की लड़ाई और बक्सर की लड़ाई के लिए जिम्मेदार कारण क्या थे? प्लासी और बक्सर के युद्ध में आप किसे निर्णायक मानते हैं और क्यों? बक्सर के युद्ध पर निबंध लिखिए? बक्सर की लड़ाई के बाद मीर कासिम को हटाकर किसे नवाब बनाया गया? बक्सर विद्रोह के क्या कारण थे इसके परिणामों को भी स्पष्ट करें? मीर कासीम ने मुर्शीदाबाद से अपनी राजधानी कहाँ स्थानांतरीत की? नवाब मीरजाफर की मजबूरियांअपने पिछले लेख ऊदवानाला का युद्ध में हम लिख चुके हैं कि मीर कासिम की पराजय हो चुकी थी और उसके स्थान पर मीरजाफर फिर से सूबेदारी के आसन पर बैठा था। इसके पहले ही ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों ने मीरजाफर के साथ सन्धि की थी, जिसमें वह अंग्रेजों के विरुद्ध कभी हिल-डुल न सकता था। सन्धि की शर्तों में यह लिखा गया था कि नवाब मीरजाफर छः हजार सवार और बाहर हजार पैदल से अधिक सेना नहीं रख सकेगा। भारतीय माल पर 24 प्रतिशत महसूल लिया जायगा और अंग्रेजों को बिना महसूल दिये हुए देश में अपने माल के बेचने का अधिकार होगा। युद्ध के खर्च में मीरजाफर अंग्रेजों को तीस लाख, अंग्रेजी स्थल सेना के लिए पन्चीस लाख और जल सेना के लिए साढ़े बाहर लाख रुपये देगा। मीर कासिम के शासन-काल में अंग्रेज व्यापरियों की जो हानि भारतीय माल पर महसूल उठा देने के कारण हुई हैं, उसे मीरजाफर अदा करेगा।बीजापुर का युद्ध जयसिंह और आदिलशाह के मध्यइस प्रकार की शर्तों को मन्जूर करने के बाद, मीरजाफर को सूबेदारी मिली थी। इसका नतीजा यह हुआ कि उसके सूबेदार होते ही अंग्रेजों की लूट शुरू हो गयी और प्रजा को बुरे दिनों के प्रकोप ने घेर लिया । मीरजाफर को अपने सम्मान और स्वाभिमान का ध्यान न था। बुढ़ापे में उसे फिर सूबेदार बनने का शोक हुआ था, जिसे अंग्रेज अधिकारियों ने स्वयं उसके हृदय में पैदा किया था। जिस विश्वासघात के द्वारा मीर कासिम उसे निकाल कर नवाब बना था, उसकी पीड़ा मीर जाफर के अन्तःकरण में अभी तक बाकी थी। इस पीड़ा का लाभ अंग्रेज अधिकारियों ने उठाया और ठोक पीटकर मीरजाफर को उन्होंने सूबेदारीके लिए तैयार कर दिया था। सूबेदार होने के बाद, मीरजाफर के सामने जो भयानक दृश्य आये, उनका अन्दाज पहले से उसे न था। सन्धि की शर्तों को मन्जूर करने के बाद भी उसने अंग्रेजों को आदमी समझा था। एक मनुष्य कहां तक निर्दय और क्रूर हो सकता है इसका अनुमान लगाने में बूढ़े मीरजाफर ने जो भयानक भूल की थी, उसके परिणाम स्वरूप, एक नवाब की हैसियत में वह अंग्रेजी अधिकारियों का गुलाम था। अंग्रेजों की लूट से प्रजा की त्राहि को सुनकर और अपने नेत्रों सेदेखकर मीरजाफर ने फिर एक बार अंग्रेजों के मनुष्यत्व का विश्वास किया और उसने कलकत्ता की अंग्रेज काउन्सिल के पास अपनी प्रार्थनाओं का एक बंडल भेजकर, कम्पनी की शोर से होने वाले अत्याचारों को दूर करने की फरयाद की, लेकिन बिना पूरा पढ़े हुए उसकी प्रार्थनाओं को जब ठुकरा दिया गया, उस समय उसे मालूम हुआ कि मैं मीर कासिम के स्थान पर सूबेदार नहीं अंग्रेजों का एक कैदी बनाया गया हूँ। मीरकासिस की अंतिम चेष्ठा अपनी पराजय के बाद भी मीर कासिम ते साहस नहीं छोड़ा। सम्राट शाह आलम ने उसे सूबेदारी का पद दिया था। वह अब भी अपने आपको अधिकारी समझता था। वह जानता था कि अंग्रेजों ने अन्याय के साथ मीरजाफर को सूबेदार बनाया है। ऐसा करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। अपनी सीमा से बाहर निकल कर मीर कासिम ने सम्राट शाह आलम से मिलने का निश्चय किया। सम्राट उन दिनों में कानपुर और इलाहाबाद के बीच फाफामऊ में था। अवध का नवाब शुजाउद्दौला सम्राट का प्रधान मन्त्री था और इस समय उसके साथ था। मीर कासिम ने सम्राट और शुजाउदौला से मिल कर अपनी सब कथा कही ओर शुजाउद्दौला ने उसे फिर से मुर्शिदाबाद का शासक बनाने का विश्वास दिलाया। दिल्ली पहुँच कर सम्राट ने अंग्रेजों के विरुद्ध बंगाल पर आक्रमण करने की तैयारी शुरू कर दी। लेकिन चढ़ाई करने के पहले अंग्रेंजों से उनके ऐसा करने का कारण पूछना और उनसे जवाब तलब करना जरूरी था, इसलिए सम्राट के मन्त्री शुजाउद्दौला ने कलकत्ता की अंग्रेज काउन्सिल के नाम एक लम्बा पत्र रवाना किया। परन्तु उसका कोई उत्तर उसे न मिला।पुरंदर का युद्ध और पुरंदर की संधि कब और किसके बीच हुईपराजित हो कर मीर कासिम जब अपना प्रान्त छोड़ कर बाहर चला गया था, उस समय अंग्रेजों ने पटना से आगे बढ़कर ओर सोन नदी को पार कर बक्सर में अपनी सेना के साथ मुकाम किया था और उसके बाद वे बक्सर से लौट कर पटना की सीमा में आ गये थे। इसी मौके पर मीर कासिम को लेकर प्रधान मन्त्री शुजाउद्दौला अपनी सेना के साथ रवाना हुआ और उसने पटना को जाकर घेर लिया। सम्राट शाह आलम की तरफ से होने वाले इस आक्रमण का पता अंग्रेजों को पहले से न था। शुजाउद्दौला अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध था। अंग्रेज अधिकारी भारतीय नवाबों की कमजोरियों को भली भाँति जानते थे। उन्होंने शुजाउद्दौला को अपने साथ मिलाने की कोशिश की।सम्राट को परिस्थितियों का भयव्यक्तिगत स्वार्थ और समाज का स्वार्थ प्राय: दो प्रतिकूल स्वार्थ होते हैं। व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण, भारत के राजा और नवाब देश की बरबादी और विदेशियों की विजय के कारण बन गये थे। विदेशियों, ने इस कमजोरी का इस देश में हमेशा लाभ उठाया। प्रधान मन्त्री शुजाउद्दौला को अंग्रेजों की तरफ से तरह-तरह के प्रलोभन दिये गये। नतीजा यह हुआ कि वह बदल गया और अंग्रेजों के साथ सहानुभूति प्रकट करने लगा। अंग्रेजों का पक्ष लेकर उसने सम्राट को उसकी राजनीतिक परिस्थितियां समझायीं और उसने उसको समझाया कि अगर अंग्रेज इस देश के विरोधी राजाओं से मिल जायेगे तो एक भयंकर संकट पैदा हो जायगा।सम्राट की समझ में यह बात आ गयी और उसने अंग्रेजों पर आक्रमण करने का उस समय विचार छोड़ दिया।राणा सांगा और बाबर का युद्ध – खानवा का युद्धअंग्रेजों ने अपनी साजिशों का जाल इसके आगे भी विस्तृत कर लिया था। शुजाउद्दौला की सेना के एक अधिकारी राजा कल्याण सिंह की तरह कितने ही फौजी अफसरों को अंग्रेजों ने अपनी तरफ मोड़ लिया था। फूट ओर प्रलोभन के कारण इसी देश के लोग देश और समाज की बरबादी का ख्याल न करते थे। शुजाउद्दौला की चढ़ाई के समय अंग्रेज अधिकारियों के सामने जो भय उत्पन्न हुआ था, वह बहुत कुछ कम हो गया। इन दिनों में बरसात भी शुरू हो गई थी, इसलिए शुजाउद्दौला अपनी सेना के साथ पटना छोड़ कर बक्सर चला आया और बरसात के दिनों के कारण वह कुछ समय के लिए वहा रुक गया।रोहतास के किले पर अधिकारमुर्शिदाबाद का फिर से अधिकार प्राप्त करने के बाद मीरजाफर ने महाराजा नन्द कुमार को अपना दीवान बनाया। नन्द कुमार समझदार और दूरदर्शी था। वह अंग्रेजों की चालों को खूब समझता था। उसके परामर्श से मीरजाफर ने सम्राट शाह आलम से अपनी सूबेदारी का परवाना प्राप्त करने की कोशिश की, अंग्रेज अधिकारी मीरजाफर और सम्राट का मेल नहीं चाहते थे। वे जानते थे कि नन्द कुमार ही मीर जाफर का सहायक है। इसलिए उन्होंने उसे मुर्शिदाबाद की दीवानी से अलग करा दिया। मीर जाफर ऐसा नहीं चाहता था। लेकिन उसेस्वीकार करना पड़ा।पटना में जो अंग्रेजों की सेना थी, इन दिनों में मेजर मनरो उसका सेनापति होकर वहां पहुँचा। अभी तक शुजाउद्दौला के साथ अंग्रेजों की सन्धि नहीं हुई थी। दोनों ओर से एक संगिध अवस्था चल रही थी । मेजर मनरो ने रोहतास का किला ले लेने का इरादा किया। राजा साहुमल उस किले का अधिकारी था। अनेक प्रलोभन देकर अंग्रेजोंने साहुमल को मिला लिया और बिना किसी युद्ध के उस किले पर उन्होंने अधिकार कर लिया।शुजाउद्दौला पर अविश्वासआरम्भ में मीर कासिम ने शुजाउद्दौला पर विश्वास किया था। लेकिन बाद में जब उसने शुजाउद्दौला के रंग ढंग में परिवर्तन देखा तो उसका दिल हट गया और वह अपनी कोशिश में निराश हो गया। अभी तक वह शुजाउद्दौला के साथ ही था, लेकिन उसकी आशायें ठंडी हो रही थीं। इसका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि दोनों की ओर से होने वाले व्यवहारों में बहुत अंतर पड़ गया।बक्सर का युद्ध से पहले शुजाउद्दौला की हारअंग्रेजों को अपनी कूटनीति में पुरी सफलता मिली। सम्राट स्वयं एक निर्बल ह्रदय का आदमी था। वह अब अंग्रेजों के साथ युद्ध नहीं करना चाहता था। शुजाउद्दौला और मीर कासिम के बीच भी अविश्वास पैदा हो गया था इस दशा में शुजाउद्दौला की शक्ति निर्बल हो गयी थी। यह देखकर जो अंग्रेज अधिकारी शुजाउद्दौला की खुशामद में थे, वे उसकी उपेक्षा करने लगे। अभी कुछ दिन पहले जो अंग्रेंज शुजाउद्दौला को अपना मित्र बनाने की कोशिश में थे। वे अब शुजाउद्दौला के चाहने पर भी उसका मित्र बनने के लिए तैयार न थे। दोनों ओर से परिस्थितियां बिगड़ी और संघर्ष गम्भीर होता गया। 15 सितम्बर सन् 1764 ईसवी को दोनों ओर की सेनायें युद्ध के लिए रवाना हुई और बक्सर के मैदान में लड़ाई आरम्म हो गयी।तिरला का युद्ध (1728) तिरला की लड़ाईसम्राट आलम शाह को अंग्रेजों ने मिला लिया था। मीर कासिम का शुजाउद्दौला पर अब विश्वास नहीं रहा था। शुजाउद्दौला की सेना के कितने ही हिन्दू, मुस्लिम अफसर अंग्रेजों के साथ मिल गये थे। इस दशा में शुजाउद्दौला को पराजित कर लेना ही अंग्रेजों ने अपने लिए अच्छा समझा। 15 सितम्बर को शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों के साथ भयानक युद्ध किया और दोनों ओर के बहुत से आदमी मारे गये। लेकिन जिन परिस्थियों में शुजाउद्दौला को अंग्रेजों से युद्ध करना पड़ा उनमें वह कितनी देर ठहर सकता था। बारह घण्टे के लगातार युद्ध में उसके छ: हजार से अधिक सैनिक मारे गये और अन्त में उसे युद्ध-क्षेत्र से पीछे हट जाना पड़ा। बक्सर का युद्ध चुनारगढ़ में अंग्रेजों की हारशुजाउद्दौला की पराजय के बाद, मीर कासिम बक्सर से भागकर इलाहाबाद चला गया और कुछ दिनों के बाद वह॒ बरेली पहुँच गया । अनेक वर्ष उसने निर्वासित अवस्था में काटे और जिन्दगी की मुसीबतों को उसने सहन किया, लेकिन स्वाभिमान छोड़कर उसने विदेशियों की गुलामी मन्जूर नहीं की। सन् 1777 ईसवी में दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गयी। सम्राट शाह आलम ने शुजाउद्दौला का सम्बन्ध छोड़कर अंग्रेजों का सहारा लिया। सम्राट और अंग्रेजों की सेनाओं ने गंगा-पार करके शुजाउद्दौला का पता लगाया और उसके साथ सुलह करने की कोशिश की। शुजाउद्दौला अब भी अंग्रेजों के साथ युद्ध करने की तैयारी में था, इसी बीच में अंग्रेजी सेना ते चुनार के किले को अघिकार में लेना चाहा और वहां पहुँच कर उसने उस किले को घेर लिया।1971 भारत पाकिस्तान युद्ध – 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के कारण और परिणाममोहम्मद बशीर खाँ चुनार के दुर्ग का किलेदार था। अंग्रेज सेनापति ने उसको एक परवाना दिया, जिसमें सम्राट के हस्ताक्षर थे। किले की सेवा उस परवाने को मानने के लिए तैयार न थी। किलेदार ने सेना का विरोध किया लेकिन सेना इसके लिए तैयार न हुईं। किले की फौज लड़ाई के लिए तैयार हो गयी और वह किले के बाहर निकल आयी। उसी समय अंग्रेजों की तोपों ने गोलों की वर्षा आरम्म कर दी। अपनी रक्षा करते हुए किले की सेना ने कई दिनों तक अंग्रेजी सेना को रोके रखा। एक दिन रात को अंग्रेजी सेना ने धोखा देकर किले में प्रवेश करने की कोशिश की। किले की सेना ने बड़ी तत्परता के साथ सजग होकर अंग्रेज़ी सेना पर भयंकर गोलियों की वर्षा की। उस समय शत्रु सेना के बहुत से सैनिक मारे गये और जो बचे वे भीतर प्रवेश करने का इरादा छोड़कर बाहर लौट आये। उसके बाद भी किले की सेना अंग्रेजी सेना पर गोलियों की मार करती रही। अंग्रेंजी सेना को हार मानकर पीछे हटना पड़ा और किले पर अधिकार करने का इरादा छोड़कर वह इलाहाबाद की तरफ चली गयी।बक्सर युद्ध के बाद शुजाउद्दौला का आक्रमणबक्सर की पराजय के बाद, शुजाउद्दौला के ह्रदय में अंग्रेजों के विरुद्ध आग जल रही थी। वह किसी प्रकार उनसे बदला लेना चाहता था। वह इन दिनों में बरेली पहुँच गया था। वहां से लौटकर उसने कड़ा नामक स्थान पर एकाएक अंग्रेजी सेना पर हमला किया। इस समय उसकी सहायता में एक मराठा सेना भी थी। कई दिनों तक दोनों ओर से लड़ाइयाँ हुई और अन्त में अंग्रेजों ने उसके साथ सन्धि कर ली।बक्सर युद्ध के बाद मीरजाफर का अन्तसूबेदारी की अभिलाषा अब मीरजाफर की समाप्त हो चुकी थी। मीर कासिम को मिटाकर वह स्वयं मिट चुका था। अब तक के जीवन में अपमान के जो दृश्य उसने कभी न देखे थे, उन्हें भी अब॒ वह देख चुका था। वह अब न केवल सूबेदारी से बेजार था, बल्कि वह अपने जीवन से ऊब चुका था। अंग्रेजों के अत्याचारों के कारण उसकी अब बाकी जिन्दगी शिकायतों और प्रार्थनाओं में ही बीत रही थी। लेकिन उनका कोई परिणाम न निकलता था। सन् 1765 ईसवी के फरवरी महीने में एक दिन मुर्शिदाबाद के महल में उसकी मृत्यु हो गयी। उस समय उसकी अवस्था 65 वर्ष की थी।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=”7736″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख युद्ध भारत की प्रमुख लड़ाईयांहिस्ट्री