“यूरिया का निर्माण मैं प्रयोगशाला में ही, और बगेर किसी इन्सान व कुत्ते की मदद के, बगैर गुर्दे के, कर सकता हूं।’ समीक्षात्मक रसायन में एक महान प्रगति के सम्बन्ध में यह चमत्कारी घोषणा फ्रेडरिक वोहलर (Friedrich Wöhler) ने कर दी। यह पहला मौका था जब इन्सान ने एक ऐसे यौगिक की रचना खुद अपनी प्रयोगशाला में कर दिखाई थी जो पहले जीवित प्राणियों के शरीर में ही संभव समझी जाती थी। 1828 में फ्रेडरिक वोहलर ने जब कृत्रिम यूरिया तैयार कर दिखाया तो उसने विज्ञान की एक नई शाखा का ही प्रवर्तन कर दिखाया था जिसे हम आज ऑर्गेनिक कैसिस्ट्री’ या कार्बन रसायन कहते हैं।
आर्गेनिक शब्द की व्युत्पत्ति ऑगेंनिज़्म’ से होती है। आर्गेनिज्म, अर्थात कोई सजीव वस्तु। समझा यह जाता था कि चर्बियों, शर्कराओं, विटामिनों, हार्मोनों, तथा पशुओं-पौधों में विद्यमान अन्यान्य व्यामिश्र यौगिकों के निर्माण में एक प्रकार की ‘जीवित
शक्ति’ ही सक्रिय हुआ करती है। महान अंग्रेज रसायन-शास्त्री विलियम हेनरीके शब्द थे, “यह संभव नहीं कि इन प्रक्रियाओं में हम कभी भी प्रकृति की अनुकृति प्रस्तुत कर सकेंगे।” और वोहलर की सफलता से केवल एक वर्ष पूर्व ही तो यह वक्तव्य हेनरी ने दिया था।
आज आर्गेनिक कैमिस्ट्री का अर्थ हो गया है–कार्बन कैमिस्ट्री। अनेक ऑगेनिक यौगिकों का निर्माण मूल कार्बन तत्त्वों की सहायता से रासायनिक प्रयोगशालाओं एवं उद्योग शालाओं में विश्व-जीवन के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए किया जा चुका हैं। उदाहरण के तौर पर इसी यूरिया में फॉर्मेल्डिहाइड मिलाकर एक अदत मसाला ही तैयार किया जा चुका है जिसकी बनी तश्तरियां, प्लेटें, कप मुश्किल से ही टूटने में आते हैं।
फ्रेडरिक वोहलर का जीवन परिचय
फ्रेडरिक वोहलर का जन्मजर्मनी में फ्रैंकफोर्त-अम्मेन के निकट एक गांव में सन् 1800 के जुलाई मास में हुआ था। बालक की आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा खुद पिता ने अपने हाथ में ले ली। वह स्वयं शिक्षित था और बडी ही स्वतन्त्र वृत्ति का एक व्यक्ति था। पिता के प्रभावशील व्यक्तित्व की छाया में ही पुत्र की अभिरुचि खनिजों में तथा रसायन में उत्पन्न हुई। सौभाग्य से घर पर ही एक अच्छा पुस्तकालय भी था और एक निजी रासायनिक प्रयोगशाला भी थी। बालक वोहलर यहां वोल्टाइक पाइलें बनाता रहता और तरह-तरह के रासायनिक परीक्षण करता रहता, कुछ भीषण परीक्षण भी, जिनमे जान चली जाने का खतरा भी होता।

20 वर्ष की आयु में जब फ्रेडरिक वोहलर मारबुर्ग विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ, उसका जीवन-ध्येय एक डाक्टर बनना था। कुछ होनहार ही समझिए कि उसने अपने अध्ययन के लिए शुरू से ही पेशाब को चुन लिया, यह कि शरीर मे संचित गंद किस प्रकार एक उपयोगी द्रव्य बन जाता है। और, साथ ही साथ, वह रसायन का अध्ययन भी करता रहा जिसके लिए उसका अपना आवास स्वभावत एक छोटी-सी प्रयोगशाला बन गया। किन्तु होस्टल के अधिकारियो ने इसे अपनी अवहेलना समझा। एक सख्त झाड पडी, और हमारे इस नवयुवक ने भी निश्चय कर लिया कि अब कही और चला जाए।
फ्रेडरिक वोहलर की खोजें
चिकित्सा-सम्बन्धी अपनी इस शिक्षा का दीक्षान्त उसने सलग्न अस्पताल में हाउस-सर्जन या फिजिशयन बनने की बजाय स्टाकहोम के प्रसिद्ध रसायन शास्त्री बेर्जेलियस की छत्रछाया में कुछ अनुसन्धान करके ही किया। स्टाकहोम मे रहते हुए फ्रेडरिक वोहलर ने नाइट्रोजन, कार्बन, सिल्वर और ऑक्सीजन के एक नये यौगिक सिल्वर साइनेट के निर्माण में सफलता प्राप्त की। इस खोज को प्रकाशित किया गया। एक और अन्य जर्मन रसायन शास्त्री युस्तस लीबिश ने उसे पढ़कर रसायन मे एक और ही प्रेरणा पाई। उन दिनो वह पेरिस की एक प्रयोगशाला मे विस्फोटकों के सम्बन्ध में अनुसन्धान कर रहा था। उसने भी एक नया यौगिक प्राय वोहलर के ही इस यौगिक-सा, अपने यहां तैयार कर लिया था। अवयवों के तत्त्व वही, अनुपात भी वही, किन्तु फिर भी कही कुछ अन्तर रह गया लगता था। दो द्रव्य जिनकी रासायनिक रचना भी वही थी किन्तु प्रतिक्रियाएं भिन्न थी।
यह एक बडी ही महत्त्वपूर्ण खोज थी। तब तक रासायनिक लोग किसी भी समास को गणित के सूत्र मे अर्पित करके अपनी इतिकर्तव्यता समाप्त समझ लेते थे किन्तु अब स्पष्ट था कि यह सूत्रार्पण ही पर्याप्त नही है। वोहलर ने समस्या पर बेर्जेलियस के साथ मिलकर इसका विमर्श किया, और एक नई परिभाषा उसके परिणाम स्वरूप सामने आई, आइसोमर। वे योगिक जिन के कणों मे अवयव-तत्त्वों के अणु एक ही अनुपात मे, किन्तु भिन्न व्यवस्था क्रम में आते हैं रसायन शास्त्र में आइसोमर (समावयवी) कहलाते हैं। और इस एक आनुषगिक सम्मिलन के फलस्वरूप एक रासायनिक विश्लेषण-सूत्र के प्रंसग से दो युवा वैज्ञानिकों में (लीबिश 21 का था, और वोहरलर 23 का) आजीवन मैत्री हो गई। अब से वे हर काम में परस्पर सहयोगी ही होते। लीबिश तो पहले से ही ग्नीस्सेन विश्वविद्यालय मे रसायन का प्रोफेसर था। स्वीडन से वापसी पर वोहलर को भी बर्लिन के एक ट्रेंड स्कूल मे कुछ अध्यापन कार्य मिल गया।
अब भी साइनेटस के सम्बन्ध में फ्रेडरिक वोहलर के परीक्षण खत्म नही हुए थे। उसने पोटेशियम साइनेट बना भी लिया, और तभी पोटेशियम साइनेट का अमोनियम सल्फेट के साथ परीक्षण करते हुए उसके जीवन का वह महान अन्वेषण जैसे अवतरित हो आया। मिश्रण में से सूचिका-जैसे अमोनियम साइनेट के स्फटिक निकले अर्थात यूरिया, जिसका निर्माण किसी भी प्रयोगशाला में पहले कभी नही हो सका था। और इन स्फटिकों ने मनुष्य जाति के सम्मुख जैसे एक बिलकुल ही नई दुनिया खोलकर रख दी। वोहलर यदि आर्गेनिक कैमिस्ट्री अथवा कार्बन रसायन का जनक न भी होता तो भी उसके एक मान्य रसायन शास्त्री होने में उससे जरा भी अन्तर नही आता। 1827 में वह पहला व्यक्ति था जिसने एल्यूमीनियम को पृथक कर दिखाया था। और वोहलर के ही एक शिष्य ओबेर्लिन के प्रोफेसर फ्रेंक ज्यूएट ने अपने शिष्य चार्ल्स मार्टिन हॉल को अभिप्रेरित किया था कि एल्यूमीनियम तैयार करने का कुछ और सस्ता उपाय भी निकलना चाहिए। आजकल हॉल का ही वह सस्ता तरीका हम इस्तेमाल में लाते हैं। वोहलर ने बेरीलियम’ तथा “ईट्रियम’ का आविष्कार भी किया, और बैनेडियम को भी प्राय पृथक कर ही लिया था।
वोहलर के ऋण का मूल्याकन हमारे लिए कर सकना कठिन है। यूरिया, वह द्रव्य जो उसने अपनी परीक्षणशाला में तैयार करके दिखा दिया था, आज गोद वगैरह मे, और खेती-बारी मे कृत्रिम द्रव्यों के निर्माण में और साज-सिंगार की चीजों मे, दवाइयों में और मिश्रणों मे, प्लास्टिकों और टैक्स्टाइलों में, कहा नही इस्तेमाल होता ? किन्तु यूरिया तो केवल उपलक्षण मात्र है। हजारों यौगिक वस्तुओ का निर्माण ऑर्गेनिक द्रव्यों की कृत्रिम संभावना पर अवलम्बित है। इस द्रव्यों के विषय में पहले समझा यही जाता था कि कोई जीवित प्राणी ही इनका जनक हो सकता है, और तभी फ्रेडरिक वोहलर ने आकर हमे राह दिखा दी। फ्रेडरिक वोहलर की मृत्यु 23 सितंबर 1882 जर्मनी के गोट्टिगन में अपनी आखरी सांस ली।