You are currently viewing फ्रांस प्रशिया युद्ध कब हुआ – फ्रैंको प्रशिया युद्ध के कारण और परिणाम
फ्रांस प्रशिया युद्ध

फ्रांस प्रशिया युद्ध कब हुआ – फ्रैंको प्रशिया युद्ध के कारण और परिणाम

प्रिंस ओट्टो वॉन बिस्मार्क (Prince Otto Van Bismarck) को इसी युद्ध ने जर्मन साम्राज्य का संस्थापक और प्रथम चांसलर बना कर इतिहास में अमर कर दिया। बिस्मार्क के जीवन की सबसे घड़ी महत्त्वाकांक्षा थी कि किसी भी तरह टुकड़ों में बंटे सभी जर्मन क्षेत्रों को प्रशिया के नेतृत्व में एक कर दिया जाये। किन्तु डेनमार्क, ऑस्ट्रिया तथा फ्रांस के रूप में तीन ऐसी शक्तियां थीं जिन्हें पराजित किये बिना बिस्मार्क का सपना पूरा नहीं हो सकता था। उसने 1864 में डेनमार्क को और 1866 में ऑस्ट्रिया को हराने के बाद 1870 में फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। इस फ्रांस प्रशिया युद्ध में प्रशिया की जीत तो हुई ही, यूरोप मे फ्रांस अलग-थलग पड़ गया और शक्ति के नये केंद्रों का उदय हुआ। अपने इस लेख में हम इसी फ्रैंकों प्रशिया युद्ध का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—

फ्रांस प्रेशिया का युद्ध कब हुआ था? फ्रांस प्रशिया के मध्य हुए युद्ध के क्या कारण थे? फ्रैंकों प्रशिया युद्ध में फ्रांस के कौन कौन से जिले प्रशिया के हाथों चले गए? फ्रैंको प्रशिया युद्ध का क्या महत्व था? फ्रैंकफर्ट की संधि किसके बीच हुई? सन् 18 सौ 70 में फ्रांस और प्रशिया के बीच युद्ध कहां हुआ था? फ्रांस प्रशिया युद्ध के क्या कारण थे? फ्रांस प्रशिया युद्ध का परिणाम?

फ्रांस प्रशिया युद्ध का कारण

जिन दिनोंफ्रांसप्रशिया युद्ध हुआ, फ्रांस की गद्दी पर नेपोलियन तृतीय (Nepolian lll) था। वह नेपोलियन प्रथम या महान नेपोलियन बोनापार्ट (Great Nepolian Bonaparte) का भतीजा था किन्तु उसमें न तो अपने चाचा जैसी युद्ध-क्षमता थी, न शासकीय प्रतिभा। वास्तव मे वह एक अयोग्य शासक था और अपनी नीतियो के कारण अलोकप्रिय भी। हां, वह महत्त्वाकांक्षी अवश्य था। महत्त्वाकांक्षी होने के कारण ही जब 1848 में राजशाही (Monarchy) समाप्त करके फ्रांस मे जन तन्त्र की घोषणा की गयी और उसे समाजवादी सरकार का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया तो उसे अपना पद बहुत छोटा महसूस हुआ। उसने जन तन्त्र को समाप्त करके फिर साम्राज्य की स्थापना कर दी और वह राष्ट्रपति से बादशाह बन गया।

दूसरी ओर बिस्मार्क के नेतृत्व मे प्रशिया एक सुसंगठित शक्ति बनता जा रहा था। बिस्मार्क का सपना था कि प्रशिया के नेतृत्व में सभी जर्मन राज्यो को आपस मे मिलाकर जर्मन साम्राज्य की स्थापना की जाये। वह अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सुनियोजित ढग से आगे बढ़ रहा था। सबसे पहले ऑस्ट्रिया की मदद से उसने डेनमार्क को 1864 में पराजित करके अपनी राह की बाधा दूर की किन्तु डेनमार्क के विरुद्ध युद्ध में प्रशिया का साथ देने वाला ऑस्ट्रिया स्वयं एक बाधा बन गया क्योंकि ऑस्ट्रिया के शासक जर्मन राज्यो के बीच अग्रणी बनना चाहते थे और उनकी यह आकांक्षा बिस्मार्क की महत्त्वाकांक्षा से टकरा गयी। परिणाम यह हुआ कि प्रशिया ने ऑस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया।

फ्रांस प्रशिया युद्ध
फ्रांस प्रशिया युद्ध

उधर फ्रांस के शासक नेपोलियन तृतीय ने समझा कि प्रशिया और ऑस्ट्रिया के युद्ध मे जब दोनों शक्तियां थक कर धन-जन हीन हो जायेंगी तब वह बीच में पड कर दोनो से मनमानी शर्ते मनवा लेगा किन्तु 3 जुलाई, 1866 को हुए सैडोवा (Sadova) के युद्ध से उसकी सभी आशाएं धूल मे मिल गयी। ऑस्ट्रिया की हार हुई और जीते हुए भाग में से बिस्मार्क ने फ्रांस को कुछ भी नहीं दिया। यही नहीं, नेपोलियन को लक्समबर्ग (Luxembourg) लेने से भी रोक दिया। नेपोलियन ने तब बिस्मार्क से प्रस्ताव किया कि यदि बिस्मार्क बवेरिया (Bavaria), पेलेटिनेट (Palatinate) तथा होस (Hosse) जिले उसे दे दे तो वह उसकी ओर हो जायेगा। बिस्मार्क ने उससे इस आशय का लिखित प्रस्ताव भेजने के लिए कहा। ऐसा उसने इसलिए किया कि नेपोलियन के इस प्रस्ताव के कारण जर्मनी की राष्ट्रीय भावनाओ को ठेस लगे और वे फ्रांस के विरुद्ध हो जाये क्योंकि वह फ्रांस के विरुद्ध राष्ट्रीय युद्ध चाहता था। जर्मनों की राष्ट्रीय भावनाओं को उभारने से जर्मन राज्यो को एक करने की उसकी भावी योजनाओं को भी मदद मिलती।

इस प्रकार फ्रांस और प्रशिया में मनमुटाव बढ गया। फ्रांस अपने पड़ोस में एक शक्तिशाली जर्मन राज्य को सुगठित होते नही देखना चाहता था तो प्रशिया को राष्ट्र-निर्माण तथा उसके एकीकरण के लिए फ्रांस से युद्ध की आवश्यकता थी। इन परिस्थितियों मे जरा सा भी बहाना युद्ध के लिए काफी था। 1868 में स्पेनवासियो ने रानी इज़ाबेला (Queen Isabella) के विरुद्ध विद्रोह करके उसे निष्कासित कर दिया और होहेनजोलर्न (Hohenzollern) वंश के लीयोपोल्ड (Leopald) को सिंहासन पर बिठाया। लीयोपोल्ड प्रशिया के राजा का संबंधी था। फ्रांस को यह भय था कि लीयोपोल्ड के स्पेन की गद॒दी पर बैठने से स्पेन पर प्रशिया का प्रभाव बढेगा और उसे दोनो ओर से खतरा हो जायेगा। फ्रांस के विरोध के कारण लीयोपोल्ड ने स्पेन का सिंहासन अस्वीकार कर दिया। नेपोलियन तृतीय ने प्रशिया के शासक विलियम को भी संदेश भेजा कि होहेनजोलर्न वंश का कोई भी राजकुमार स्पेन की गद्दी पर नही बैठेगा।

विलियम ने यह समाचार तार द्वारा अपने मंत्री बिस्मार्क के पास भिजवाया। बिस्मार्क तो युद्ध चाहता ही था। उसका विचार ठीक था कि फ्रांस की हार से प्रशिया के नेतृत्व में जर्मन साम्राज्य स्थापित हो जायेगा। युद्ध के लिए समय की उपयुक्तता को देखते हुए फ्रांसीसी राजदूत तथा राजा विलियम की भेट को इस प्रकार प्रचारित किया गया, जिससे लगे कि विलियम ने फ्रांस के राजदूत का अपमान किया हो। फ्रांसीसियों ने राजदूत के अपमान को राष्ट्रीय अपमान समझा। इधर, जर्मनी की राष्ट्रीय भावना को जगाने के लिए बिस्मार्क ने नेपोलियन के उस लिखित प्रस्ताव को प्रकट किया, जिसमें उसने जर्मनी के कुछ भाग बिस्मार्क से मागे थे। इसे देखकर जर्मन वासियों में भी फ्रांस के विरुद्ध आक्रोश भड़क उठा।

फ्रांस प्रशिया युद्ध की शुरुआत

फलत: 1870 में युद्ध आरम्भ हुआ। नेपोलियन को आशा थी कि दक्षिण जर्मनी की रियासते प्रशिया से द्वेष के कारण उसका साथ देंगी परन्तु जर्मनी के लोगो में अपने निहित स्वार्थों से बढ़कर राष्ट्र का गौरव था और वे एकजुट होकर फ्रांस के खिलाफ खडे हो गये। कई शताब्दियों के बाद एक बार फिर संपूर्ण जर्मनी अपने चिर शत्रु के विरुद्ध युद्ध के लिए चला तथा उसने उसे वर्थ (Worth) और ग्रेवलोथ नामक स्थानों पर हराया।

अन्ततः 2 सितम्बर, 1870 को सेडान (Sedan) के बड़े युद्ध में लगभग 80,000 फ्रासीसी सैनिकों ने वॉन मोल्ट (Van Moltke) के सामने शस्त्र रखकर आत्मसमर्पण कर दिया। नेपोलियन तृतीय को कैद कर लिया गया। फ्रांस मे एक बार फिर जन तन्त्र की घोषणा कर दी गयी और गैम्बेटा के अधीन अस्थायी सरकार स्थापित हुई। फ्रैंकफर्ट की सन्धि से आल्सेस (Alsace) और लॉरेन जर्मनी को मिले और जर्मनी को क्षति-पूर्ति के रूप में फ्रांस को भारी रकम देनी पड़ी।

फ्रांस प्रशिया युद्ध का परिणाम

इस युद्ध का जर्मनी, इटली तथा फ्रांस पर गहरा प्रभाव पड़ा। जर्मनी का एकीकरण हुआ। उसे आल्सेस, लॉरेन, मेज तथा स्ट्रेसबर्ग मिले। 18 जनवरी, 1871 को वारसाई (Versailles) के राजमहल में विलियम प्रथम की जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया। बिस्मार्क और सेनापति मोल्ट उसके दोनो ओर खडे थे। बर्लिन को संयुक्त जर्मनी की राजधानी बनाया गया।

इसी युद्ध से इटली का भी एकीकरण पूर्ण हुआ। अब तक रोम में फ्रांस की सेना पड़ी थी। इस युद्ध मे फ्रांस को रोम से अपनी सेना वापस बुलाने की आवश्यकता पडी। रोम को खाली देख कर विक्टर एमेनुएल ने उस पर अधिकार करके उसे अपनी राजधानी बनाया। पोप की राजनैतिक शक्ति समाप्त हो गयी। फ्रांस में तृतीय जन तन्त्र (Third Republic) की स्थापना हुई और नेपोलियन तृतीय के साम्राज्य का पतन हो गया।

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-

झेलम का युद्ध
झेलम का युद्ध भारतीय इतिहास का बड़ा ही भीषण युद्ध रहा है। झेलम की यह लडा़ई इतिहास के महान सम्राट Read more
चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध
चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध ईसा से 303 वर्ष पूर्व हुआ था। दरासल यह युद्ध सिकंदर की मृत्यु के Read more
शकों का आक्रमण भारत में प्रथम शताब्दी के आरंभ में हुआ था। शकों के भारत पर आक्रमण से भारत में Read more
हूणों का आक्रमण
देश की शक्ति निर्बल और छिन्न भिन्न होने पर ही बाहरी आक्रमण होते है। आपस की फूट और द्वेष से भारत Read more
खैबर की जंग
खैबर दर्रा नामक स्थान उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफ़ग़ानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिन्दुकुश के सफ़ेद कोह Read more
अयोध्या का युद्ध
हमनें अपने पिछले लेख चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस का युद्ध मे चंद्रगुप्त मौर्य की अनेक बातों का उल्लेख किया था। Read more
तराईन का प्रथम युद्ध
भारत के इतिहास में अनेक भीषण लड़ाईयां लड़ी गई है। ऐसी ही एक भीषण लड़ाई तरावड़ी के मैदान में लड़ी Read more
तराइन का दूसरा युद्ध
तराइन का दूसरा युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान बीच उसी तरावड़ी के मैदान में ही हुआ था। जहां तराइन Read more
मोहम्मद गौरी की मृत्यु
मोहम्मद गौरी का जन्म सन् 1149 ईसवीं को ग़ोर अफगानिस्तान में हुआ था। मोहम्मद गौरी का पूरा नाम शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी Read more
चित्तौड़ पर आक्रमण
तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के साथ, चित्तौड़ के राजा समरसिंह की भी मृत्यु हुई थी। समरसिंह के तीन Read more
मेवाड़ का युद्ध
मेवाड़ का युद्ध सन् 1440 में महाराणा कुम्भा और महमूद खिलजी तथा कुतबशाह की संयुक्त सेना के बीच हुआ था। Read more
पानीपत का प्रथम युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्ध भारत के युद्धों में बहुत प्रसिद्ध माना जाता है। उन दिनों में इब्राहीम लोदीदिल्ली का शासक Read more
बयाना का युद्ध
बयाना का युद्ध सन् 1527 ईसवीं को हुआ था, बयाना का युद्ध भारतीय इतिहास के दो महान राजाओं चित्तौड़ सम्राज्य Read more
कन्नौज का युद्ध
कन्नौज का युद्ध कब हुआ था? कन्नौज का युद्ध 1540 ईसवीं में हुआ था। कन्नौज का युद्ध किसके बीच हुआ Read more
पानीपत का द्वितीय युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्ध इसके बारे में हम अपने पिछले लेख में जान चुके है। अपने इस लेख में हम पानीपत Read more
पंडोली का युद्ध
बादशाह अकबर का चित्तौड़ पर आक्रमण पर आक्रमण सन् 1567 ईसवीं में हुआ था। चित्तौड़ पर अकबर का आक्रमण चित्तौड़ Read more
हल्दीघाटी का युद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय इतिहास का सबसे प्रसिद्ध युद्ध माना जाता है। यह हल्दीघाटी का संग्राम मेवाड़ के महाराणा और Read more
सिंहगढ़ का युद्ध
सिंहगढ़ का युद्ध 4 फरवरी सन् 1670 ईस्वी को हुआ था। यह सिंहगढ़ का संग्राम मुग़ल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य Read more
दिवेर का युद्ध
दिवेर का युद्ध भारतीय इतिहास का एक प्रमुख युद्ध है। दिवेर की लड़ाई मुग़ल साम्राज्य और मेवाड़ सम्राज्य के मध्य में Read more
करनाल का युद्ध
करनाल का युद्ध सन् 1739 में हुआ था, करनाल की लड़ाई भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। करनाल का Read more
प्लासी का युद्ध
प्लासी का युद्ध 23 जून सन् 1757 ईस्वी को हुआ था। प्लासी की यह लड़ाई अंग्रेजों सेनापति रॉबर्ट क्लाइव और Read more
पानीपत का तृतीय युद्ध
पानीपत का तृतीय युद्ध मराठा सरदार सदाशिव राव और अहमद शाह अब्दाली के मध्य हुआ था। पानीपत का तृतीय युद्ध Read more
ऊदवानाला का युद्ध
ऊदवानाला का युद्ध सन् 1763 इस्वी में हुआ था, ऊदवानाला का यह युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी यानी अंग्रेजों और नवाब Read more
बक्सर का युद्ध
भारतीय इतिहास में अनेक युद्ध हुए हैं उनमें से कुछ प्रसिद्ध युद्ध हुए हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता Read more
आंग्ल मैसूर युद्ध
भारतीय इतिहास में मैसूर राज्य का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। मैसूर का इतिहास हैदर अली और टीपू सुल्तान Read more
आंग्ल मराठा युद्ध
आंग्ल मराठा युद्ध भारतीय इतिहास में बहुत प्रसिद्ध युद्ध है। ये युद्ध मराठाओं और अंग्रेजों के मध्य लड़े गए है। Read more
1857 की क्रांति
भारत में अंग्रेजों को भगाने के लिए विद्रोह की शुरुआत बहुत पहले से हो चुकी थी। धीरे धीरे वह चिंगारी Read more
1971 भारत पाकिस्तान युद्ध
भारत 1947 में ब्रिटिश उपनिषेशवादी दासता से मुक्त हुआ किन्तु इसके पूर्वी तथा पश्चिमी सीमांत प्रदेशों में मुस्लिम बहुमत वाले क्षेत्रों Read more
सारंगपुर का युद्ध
मालवा विजय के लिये मराठों को जो सब से पहला युद्ध करना पड़ा वह सारंगपुर का युद्ध था। यह युद्ध Read more
तिरला का युद्ध
तिरला का युद्ध सन् 1728 में मराठा और मुगलों के बीच हुआ था, तिरला के युद्ध में मराठों की ओर Read more

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

Leave a Reply