फूलवालों की सैर त्यौहार कब मनाया जाता है – फूलवालों की सैर का इतिहास हिन्दी में Naeem Ahmad, August 4, 2021March 20, 2024 अगर भारत की मिली जुली गंगा-जमुना सभ्यता, हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के आपसी मेलजोल को किसी त्योहार के रूप में देखना हो तो दिल्ली के मेले “फूलवालों की सैर” का नाम बिना संकोच के लिया जा सकता है। भारत के अधिकतर पर्व धर्म से संबंधित हैं परंतु यह उन त्योहारों में से है जो पुष्प संस्कृति को दर्शाता है। इस त्यौहार को सैर-ए-गुलफरोशां के नाम से भी जाना जाता है।फूलवालों की सैर का इतिहासफूलवालों की सैर की शुरुआत आज से लगभग दौ सौ साल पहले मुगल शासक अकबर शाह के काल में हुई थी । यह वह समय था जब अंग्रेज भारत में नाजायज दखल देने लगे थे। राजकुमार मिर्जा जहांगीर ने एक दिन अंग्रेज रेजीडेंट पर गोली चला दी, सजा के तौर पर जहांगीर को इलाहाबाद कैदखाने में डाल दिया गया। कमजोर बादशाह कुछ भी न कर सके, जब मिर्जा जहांगीर छूट कर दिल्ली आए तो उनकी माता ने बड़ी धूम-धाम से मेहर-ए-वली ‘मेहरोली) में ख्वाजा बख्तियार काफी के मज़ार पर फूलों का चपरखट और चादर चढ़ाई। इस अवसर पर दिल्ली के हिंदू-मुस्लिम सभी ने भव्य उत्सव मनाया।फूलवालों की सैरफूलवालों ने जो मूसहरी बनाई, उस में फूलों का एक पंखा भी लटका दिया था। बादशाह को यह मेला बहुत पसंद आया और तभी से हर वर्ष भादों के शुरू में मेहर-ए-वली (मेहरोली) की दरगाह और योगमाया पर फूलों के पंखे चढ़ाए जाने लगे। बहादुर शाह जफर के समय में इस मेले को काफी उन्नति मिली। भादों के महीने में, जब हर तरफ जल थल नजर आता है, बादशाह और शहजादे, शहजादियां कई दिन तक मेहर-ए-वली में डेरे डालते थे।मणिपुर के त्योहार – मणिपुर के प्रमुख फेस्टिवलहिंदू-मुसलमान, अमीर-गरीब सभी दिल्ली वाले, खाते-पीते, पतंगबाजी करते, नौकाएं देखते, मुर्गे और तीतर-बटेर लड़ाते थे। राजकुमार एवं राजकुमारियां “शम्सी तालाब” के आस-पास सैर करते, झूले झूलते और पकवान खाते थे। महीने की चौदहवीं रात को मगरीब (सूरज डूबने के बाद की नमाज) के बाद फूलों का बड़ा सुंदर पंखा योगमाया मंदिर के लिए उठता था। आगे-आगे दिल्ली के फूल बेचने वाले, शहनाई-वादक, पहलवान और करतब दिखाने वाले चलते।बैसाखी का पर्व किस दिन मनाया जाता है – बैसाखी का त्योहार क्यों मनाया जाता हैआधी रात के आस-पास पंखा योगमाया के मंदिर पर हिन्दू-मुसलमान मिलकर चढ़ाते और चांदनी रात में प्रसाद लेकर वापस आते थे। अगले दिन इसी धूम-धाम से ख्वाजा की दरगाह पर पंखा चढ़ाया जाता था। बादशाह दोनों दिन पंखे के साथ जाते थे। 1857 के बाद दिल्ली बर्बाद हुई, अंग्रेजों की गुलामी का दौर आया, बहादुर शाह जफर को रंगून में आजीवन कैद कर दिया गया। मेला घटते-घटते 1942 में बिल्कुल बंद हो गया। स्वतंत्रता के बाद महान नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के इस त्योहार को दुबारा शुरू कराया।मणिपुर के त्योहार – मणिपुर के प्रमुख फेस्टिवलशाही काल में यह मेला वर्षा-ऋतु में लगता था, अब यह अक्तूबर के महीने में लगता है। इन दिनों मौसम मनभावन होता है और हर ओर हरियाली छायी होती है। इस दिन स्कूल और दफ्तर बंद रहते हैं और मेले की व्यवस्था दिल्ली सरकार की तरफ से होती है। हालांकि अब “फूलवालों की सैर” में पहले जैसा हर्षोल्लास नहीं रहा, परंतु सरकार ने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देने के इस अवसर को जीवित रख कर बड़ा कार्य किया है। हिंदू, मुसलमान और सिक्ख बड़ी संख्या में इस मेले में भाग लेते हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—–[post_grid id=”6671″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख त्यौहार त्यौहार