देश राजधानीदिल्ली में स्थित फिरोज शाह कोटला किला एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो दिल्ली के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग है, फिरोज शाह कोटला का किला दिल्ली में स्थित विश्व प्रसिद्ध फिरोज शाह कोटला स्टेडियम के समीप स्थित है, फिरोज शाह कोटला किले के नाम पर ही इस स्टेडियम का नाम रखा गया था। फिरोज शाह कोटला किला तुग़लक़ वंश के अंतिम शासक फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था, आज यह किला दिल्ली के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है, बड़ी संख्या में पर्यटक इसे देखने के लिए आते हैं।
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फिरोज शाह कोटला किला का इतिहास
फीरोज़ शाह तुग़लक वंश का अंतिम सम्राट था। इसने 1351 ई० से 1388 ई० तक राज्य किया था। तुग़लक़ वंश का प्रथम सम्राट गयाउद्दीन ने तुगलकाबाद नगर बसाया था। इस वंश के दूसरे सम्राट मोहम्मद शाह ने क़तुब के समीप एक महल बनवाया था जिसे अब विजय मंडल कहते हैं। मोहम्मद तुगलक़ ने दिल्ली छोड़ कर दोलताबाद को अपनी राजधानी बनाई थी पर बाद में नागरिकों की अप्रसन्नता के कारण दिल्ली को फिर बसाया था। मोहम्मद की मृत्यु के पश्चात् फिरोज़ शाह उसका भतीजा गद्दी पर बैठा।

फिरोज शाह चतुर राजा था और शान्ति प्रिय था उसने एक नहर खुदवाई थी। अब इस नहर का नाम पश्चिमी यमुना नहर है। यह नहर करनाल के समीप यमुना से निकाली गई है। इसकी एक शाखा दिल्ली को आती है ओर दूसरी हिसार और सिरसा को जाती है। अब की अपेक्षा तुग़लक काल में यह नहर अधिक चौड़ी थी। नहर के ऊपर फीरोज़शाह का बनवाया हुआ घाट है। दिल्ली वाली शाखा की मरम्मत शाहजहां के समय में अलीमर्दन खां ने कराई थी इसी कारण नहर का नाम अलीमर्दन नहर पड़ गया है। अहमदशाह अब्दाली के समय यह नहर नष्ट कर दी गई थी। 1820 ई० में अंग्रेजों ने इसकी पुनः मरम्मत कराई।
फीरोज़शाह को मकान बनाने की बढ़ी चाह थी इसलिये यमुना के तट पर सुन्दर ठंडी वायु सेवन के लिये उसने फीरोज़ शाह कोटला नामक महल बनवाया जिसे फिरोजाबाद के नाम से प्रसिद्ध किया । फिरोज शाह कोटला किले के प्रवेश द्वार से भीतर जाने पर जो बड़ा खुला मेदान मिला है यह उस समय राज-महल का वह भाग था जहां साधारण प्रजा एकत्रित होती थी। दाहिनी ओर प्रजा तथा राजा के प्रयोग हेतु बड़े कमरे बने हुये हैं। बड़े मैदान की बांई श्रोर एक गहरी बावली है जहां राजा ग्रीष्म ऋतु में स्नान तथा आराम करता था।
राजमहल के दूसरी ओर एक बड़ी मस्जिद है। मस्जिद के समीप एक भवन बना है जिसके ऊपर एक स्तम्भ है। इस भवन का प्रयोग राजा अपने लिये करता था। यह स्तम्भ सम्राट अशोक का स्तम्भ है। इसे अम्बाला के समीप सम्राट अशोक ने 250 वर्ष ईसा के पूर्व स्थापित कराया था। एक बार जब फीरोज़शाह शिकार खेलने गया था तो उसने इस लाट (स्तम्भ ) को देखा वह प्राचीन स्मारकों को बहुत पसंद करता था इसलिये उसने लांट को दिल्ली में स्थापित करने की इच्छा की। 42 पहियों की गाड़ी में यह स्तम्भ दिल्ली लाया गया। इसे खींचने के लिये हज़ारों मनुष्य लगाये गये थे। इस स्तम्भ की चोटी पर एक स्वर्ण-शिखा थी पर यह शिखा उस समय नष्ट कर दी गई जब अठारहवीं शताब्दी में मराठों और जाटों ने दिल्ली नगर को विध्वंस किया था। अशोक स्तम्भ पर पाली भाषा में सम्राट अशोक की घोषणाए अंकित हैं। लाट के समीप खड़े होकर यमुना नदी की ओर दृष्टि डालने पर पता चलता है कि यमुना दूर है पर तुगालक़ काल में यमुना फीरोज शाह के राज-महल यानि फिरोज शाह कोटला किले की दीवारों से टकराकर बहा करती थीं।
हौज़खास के समीप फीरोज़शाह ने अपना मक़बरा बनवाया
था। इसी के समीप फीरोज़ ने अरबी की पाठशाला स्थापित
की थी आज कल यह यूनिवर्सिटी अथवा विश्वविद्यालय है।
फिरोज़ शाह के राजमहल के चारों ओर एक बड़ा नगर बस गया था जिसका नाम फिरोजाबाद था। कला मस्जिद फीरोजशाह नगर का ही अंग है। तैमूर के आक्रमण के बाद नगर नष्ट हो गया था क्योंकि नगर की रक्षा के लिये कोई दीवार नहीं बनाई गई थी।