प्लास्टिक की खोज किसने की – प्लास्टिक कितने प्रकार की होती है तथा उपयोग Naeem Ahmad, March 9, 2022March 18, 2023 प्लास्टिक का अर्थ है- सरलता से मोड़ा जा सकने बाला। सबसे पहले प्लास्टिक की खोज अमेरिका के एक वैज्ञानिक जान बैसली होडपेट ने सन् 1865 में की। आरंभ में इस पदार्थ को सेल्यूलाइड नाम से जाना जाता था। अब भी यह नाम कहीं-कहीं प्रचलन में है। सेल्यूलाइड की खोज के बाद प्लास्टिक की अनेक किस्मों की खोज हुई और इनसे तरह-तरह के उपयोगी सामान बनने लगे। अपने हल्केपन, लचकीलेपन और हवा पानी से बेअसर प्लास्टिक पदार्थ तेजी से लोकप्रिय हो गए। आज के युग में प्लास्टिक का इतना अधिक उपयोग होने लगा है कि इस युग को प्लास्टिक युग कहा जाए तो अतिशयोक्त नहीं होगी। सच भी है, यदि आज प्लास्टिक ने होता तो अनेक आधुनिक उपकरणों का विकास ही संभव न होता। प्लास्टिक का हमारे दैनिक जीवन मे बहुत महत्व बढ़ गया है। साधारण वस्तुओं जैसे बच्चों के खिलौनों से लेकर बड़ी-बड़ी औद्योगिक वस्तुएं भी इससे बनने लगी हैं। औषधि विज्ञान में भी इसका बड़े पैमाने पर प्रयोग हो रहा है। आज प्लास्टिक शब्द का प्रयोग राल या रेजिन से बने हुए अनेक प्रकार के उन पदार्थों के लिए होता है जिन्हें गर्मी और दबाव द्वारा किसी भी आकार में ढाला जा सकता है। इन्हें तरह-तरह के रंग में रंगकर आकर्षक बनाया जा सकता है। धातु की अपेक्षा प्लास्टिक हल्की होती है और हवा पानी का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसमें जंग नहीं लगता। इसमें एक प्रकार की प्लास्टिक तो आग भी नहीं पकड़ती। कुछ प्लास्टिक की वस्तुएं कांच के समान पारदर्शी होती हैं। प्लास्टिक से बनी हुई वस्तुएं रबर की तरह लचीली, रेशम-सी मुलायम और इस्पात-सी कठोर भी हो सकती है। विभिन्न प्रकार की प्लास्टिक के विभिन्न गुण होते है। कुछ अपने विशेष गुणों के कारण बिजली के सामान में प्रयुक्त होने की सामर्थ्य रखते हैं। प्लास्टिक के प्रकार वैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा तैयार किए गये प्लास्टिक के अनेक वर्ग हैं, जिनमे कुछ महत्वपूर्ण ये हैं-फिनोलिक, अमीनो, सेल्यूलोसिक, इयेनोइट, पोलिएमाइड, पोलिएस्टर, एल्काइड और प्रोटीन आदि। फिनोलिन और अमीनो प्लास्टिक गर्म करके ढाले जाते हैं। ढाले जाने के बाद फिर उन्हें फिर पिघलाया नही जा सकता। इन्हे सांचे में सांचे में दबाकर अनेक प्रकार की वस्तुएं बनाई जा सकती हैं। पहले प्लास्टिक पार के चूरे को सांचे या ठप्पे में भर देते है। उसके बाद सांचे को गर्म करके दबा देते हैं। और एक निश्चित समय के बाद वस्तु ढलकर तैयार हो जाती है। अब तो ऐसी मशीनें बन गई हैं, जो यह सारा काम बड़ी तेजी से करती है। फिनोलिक प्लास्टिकबिजली के स्विच, प्लग, फ्यूज, होल्डर, टेलीफोन के सेट, रेडियो के ऊपर का भाग आदि फिनोलिक प्लास्टिक के बनाए जाते हैं। कागज और कपड़ा आदि रेशे वाली वस्तुओं को फिनोलिक में मिलाकर अनेक उपयोगी वस्तुएं बनती हैं। कपडें और कागज पर Plastic बिछाकर गरम करते हैं और इस प्रकार एक पतली चादर तैयार हो जाती है जो बहुधा मेजपोश के या अस्तर चढ़ाने के काम आती है। एक छिछले बर्तन में Plastic को गर्म करके तरल रूप में भर दिया जाता है और उसके ऊपर कागज को एक बेलन पर चढ़ाकर निकाल लेते हैं। इस प्रकार कागज पर Plastic की पतली तह चढ़ जाती है। चादरों से छड़ें और नालियां बना ली जाती हैं, जो विभिन्न उपयोगों में आती हैं। Plastic की इन चादरों से पेटियां, कमल पुस्तक रखने के संदूक, वायुयान और रेल के डिब्बों के भीतरी भागों में भी यही चादरें लगाईं जाती हैं। इजीनियरिंग में मशीनों में काम आने वाले पहिए, गियर, गरारियां आदि भी इसी प्लास्टिक से बनते हैं। फिनोलिक प्लास्टिक में 75 से 20 प्रतिशत लकड़ी का बुरादा मिलाकर ऐसे तख्ते तैयार किए जाते हैं, जिन्हें लकडी के तख्तों के स्थान पर काम में लाया जाता है। फिनोलिक को लकड़ी की परतें चिपकाने में भी उपयोग किया जाता है। इससे प्लाइवुड उद्योग को बहुत प्रोत्साहन मिला है। इसकी सहायता से अब प्लाईवुड का उपयोग वायुयानों में भी होने लगा है। प्लास्टिक अमीनो Plasticअमीनो प्लास्टिक में यूरिया और मेलामीन नामक किसमें बहुत महत्वपूर्ण हैं। यूरिया प्लास्टिक से बनी वस्तुएं कड़ी होती हैं और उनका रूप कभी नहीं बिगड़ता। उनमे अगणित प्रकार के रंग दिए जा सकते हैं तथा उनमें कोई स्वाद अथवा गंध नहीं होती। ‘इस कारण रेडियो की केबिनेट, बोतलों की डांटे, बर्तन, दीवार की घडियां, बटन, हैण्डिल और रसोई के बर्तन उनसे बहुत अच्छी तरह से बनते हैं मेलामीन प्लास्टिक भी यूरिया Plastic के समान ही होती है परंतु आग-पानीं आदि को वह और भी अच्छा सहन करती है। बिजली का सामान बनाने के लिए भी वह अधिक उपयोगी होती है। सेल्यूलोसिकसेल्यलोसिक प्लास्टिक आग से पिघलने वाली प्लास्टिकों की श्रेणी में आती है। गर्म करने पर वह पानी की तरह तरल हो जाती है और ठंडा होते ही फिर सख्त हो जाती है। इसी कारण गर्मी और दबाव द्वारा उसे गलाकर नई-नई वस्तुएं बनाई जा सकती हैं। सेल्यूलोस नाइट्रेट प्लास्टिक चादरों, छड़ों और नलियों के रूप मे मिलती है। यह रंगीन तथा चितकबरे रंगो में भी प्राप्त होती है। इसकी छड़ों ,चादरों कौर नलियों को काट और आपस में जोड़ा जा सकता है। फाउंटेनपेन और चश्मे के फ्रेम इससे बड़ी सुविधापुर्बक बनाए जा सकते हैं। सेल्यूलोस नाइट्रेट Plastic से फोटो की फिल्में, मोटर गाड़ियों की वार्निशें और नकली चमडा बनाया जाता है। सेल्यूलोस एसिटेटसेल्यूलोस एसिटेट भी बहूत कुछ नाइट्रेट के समान ही होता है किन्तु इसमें सबसे अच्छा गुण होता है कि यह आग से गलता नही। सेल्यूलोस एसिटैट प्लास्टिक चूरे के द्वारा विभिन्न प्रकार की वस्तुएं तो बनती ही हैं परंतु इसे छेद में से जलेबी के समान निकालकर छड़ें, नलियां, चादरें आदि तैयार कर ली जाती है। गर्मी से पिघल जाने वाले प्लास्टिकों को जलेबी के समान छेद से निकालकर छड़े और नलियां या चादरें बनाकर उन्हें अनेक बेलनों के बीच दबाकर बारीक फिल्मी प्रयार कर ली जाती हैं। इस प्रकार तैयार होने वाली फिल्में सेंटीमीटर के 4 से लेकर 8 हजारवें भाग तक पतली होती हैं। सुरक्षापूर्ण फिल्में तथा एक्सरे की फिल्में सेल्यूलोस एंसिटेट से ही बनती हैं। कारण यह है कि ये आग से नहीं जलतीं। सेल्यूलोस एसिटेट से ही एसिटेंट रेयन का सूत तैयार किया जाता है। इथेनोइडइथेनोइड श्रेणी की प्लास्टिकों में पोलिस-टेरिन, पोलिविनायल के मिश्रण, पोलिमेथाइल मेथाक्राइलेट और पोलिथाइलिन मुख्य हैं। पोलिसटेरिन इस वर्ग का सबसे सस्ता प्लास्टिक है। यह पारदर्शी और रंग-विहीन होता है। इसमें इच्छानुसार रंग दिया जा सकता है और अपारदर्शी व अल्पपारदर्शी बनाया जा सकता है। इससे अनेक प्रकार के खिलौने बनाये जा सकते हैं। बैट्रियो के खोल तथा पेनिसिलिन के लिए पिचकारियां भी इनसे बनाई जा रही हैं। पोलिविनायल क्लोराइडविनायल प्लास्टिकों में सबसे महत्वपूर्ण पोलिविनायल क्लोराइड है। तांबे के तार पर इसको चढ़ाने से यह बिजली ले जाने के उपयुक्त हो जाता है। इसके धागे भी तैयार किए जाते हैं जिनसे मोटर गाड़ियों की गदिदयों के गिलाफ-मेजपेश आदि बनते हैं। टाट पर इसकी चादरें जमाकर बिछाने योग्य फर्श तैयार किया जाता है। ये सब चीजें आकर्षक रंगो और डिजाइनों मे तैयार की जाती है। महिलाओं तथा पुरुषों की बरसातियां भी इससे तैयार की जाती है। ग्रामोफोन के रिकार्ड भी इससे बनाए जाते हैं, जो टूटते नहीं हैं। विनायल से तैयार किए गए जूते के तले, चमड़े से कहीं अधिक मजबूत व टिकाऊ होते हैं। विनायल Plastic से कपड़ों को भिगोकर चमडे जैसा तैयार कर लिया जाता है। विनायल चढ़ा कागज पैक करने के लिए बहुत उपयोगी होता है। किसी प्रकार की चिकनाई या गीलापन इसमें से होकर नहीं जा सकता। नकली दांत और आंखेंपोलिमैथाइल, मेथाक्राइलेट प्लास्टिक हल्की और पारदर्शी होती हैं। इनसे छड़ें जलियां और चादरें बनाई जा सकती हैं। चादरें पारदर्शी होती हैं। अंधेरे में चमकने वाले रंगों की मिला कर इनसे ऐसी चादरें तैयार की जाती हैं, जो रात को चमकती है। और मार्गदर्शन के लिए सड़कों पर लगाई जाती हैं। इन पारदर्शी चादरों को वायुयानों की खिड़कियों, फर्नीचर, आदि में लगाया जाता है। इस प्लास्टिक से चश्मे के शीशे, चिकित्सा के यंत्र, नकली दांत, नकली आंख और अन्य बहुत-सी वस्तुएं बनाई जाती रही हैं। पोलिएथायलीनपोलिएथायलीन प्लास्टिक हाल ही मे तैयार किया गया है और चूरे, फिल्म चादरें, छड़ अथवा नलियों के रूप में मिलता है। बिजली के उपकरण बनाने के लिए बहुत अच्छा रहता है। यह गंध और स्वाद से विहीन तथा लचीला और बहुत हलका होता है। ताजे खाद्य पदार्थों को इसकी फिल्म में पैक किया जाता है। नाइलॉन की वस्तुएंपोलिएमाइड राल के वर्ग मे ही नाइलॉन सम्मिलित है। यह धागे, चूरे, चादरों, छड़ों और नलियों के रूप में उपलब्ध होता है। एक बारीक छलनी में से पिघला हुआ नाइलॉन सेंवईं के समान निकालकर नाइलॉन का सूत तैयार किया जाता है। नाइलॉन मजबूत होता है और रासायनिक पदार्थों से इसे बहुत कम हानि पहुंचती है। एल्काइडएल्काइडों का प्रयोग अधिकतर रंगलेप बनाने में होता है। रेल के डिब्बों पर की जाने वाली वार्निश इनसे तैयार होती है, जो पानी पड़ने से खराब नहीं होती। सबसे महत्वपूर्ण प्रोटीन प्लास्टिक का नाम केसीन है, जो मक्खन निकले दूध से तैयार की जाती है। इससे बटन, बुनाई की सलाइयां, फाउंटेनपेन और अन्य फैंसी वस्तुएं बनाई जाती हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link 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