प्रेशर कुकर का आविष्कार सन 1672 में फ्रांस के डेनिस पपिन नामक युवक ने किया था। जब डेनिस पपिनइंग्लेंड आए तो उन्हें प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर-रॉबट बॉमल ने अपने यहां सहायक के रूप में रख लिया। पपिन बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। उन्होंने ओर भी कई आविष्कार किए।
प्रेशर कुकर का आविष्कार किसने किया और कब हुआ
एक दिन प्रयोग करते समय पपिन के मस्तिष्क में विचार आया कि यदि पानी पर दाव बढाया जाए तो उसका क्वथनाक (Boiling point) बढना चाहिए। उन्होने थोडा-सा पानी एक विशेष वातरुद्ध बतन में लेकर उबाला। भाप रुकने से पानी का दबाव बढता गया। पेपिन ने देखा कि ऐसे बर्तन मे पानी को 100° से ग्रेड से अधिक तापमान पर उबाला जा सकेगा। इस प्रकार पानी के सामान्य क्वथनाक से अधिक तापमान पर खाद्य पदार्थ पकाने से वे बहुत ही कम समय मेंअच्छी तरह पक जाएगें। इस प्रकार-वायु का दबाव बढ़ने के साथ ही क्वथनाक भी बढ़़ता है। इसी गुण को प्रेशर कुकर मे इस्तेमाल में लाया गया।
प्रेशर कुकर
एक ऐसे बर्तन में भाप रोकना बहुत ही खतरनाक था जिसमें भाप की कही से भी निकासी न रहे। ऐसे बर्तन के भाप की शक्ति से धमाके के साथ टुकडे-टुकडे हो सकते थे। अतः पपिन ने बर्तन मे सुरक्षा वाल्व की युक्ति का उपयोग किया, ताकि अधिक दबाव की स्थिति में भाप सुरक्षा-वाल्व से बाहर निकल सके। सुरक्षा वाल्व की जानकारी भी तब तक किसी को नही थी। पपिन ने ही इसका उपयोग पहली बार किया था। इस वाल्व की व्यवस्था से बर्तन की भाप खतरे की स्थिति पर पहुंचने से पहले ही बिना हानि पहुंचाए बाहर निकल जाती थी।
डेनिस पपिन ने अपने प्रेशर कुकर का नाम ‘डाइजस्टर’ (पचाने वाला) रखा। इसका करण यह था कि बर्तन में कड़े से कड़ा मांस या अन्य कडे़ खाद्य पदार्थ पकाने पर अल्प समय में ही मुलायम हो जाते थे। उच्च दाब पर भाप द्वारा पकने पर खाद्य पदार्थों के स्वाद ओर गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता था। इसके साथ ही समय और ईंधन भी कम लगता था।
आज तो बाजार में विविध आकार प्रकार के प्रेशर कुकर उपलब्ध हैं जिनसे थोडे ही समय में भोजन पक जाता है। ऊपर से दिखने में प्रेशर कुकर एक सामान्य बर्तन की तरह ही दिखायी देता है। इसके ढककन वाले भाग में अंदर की ओर एक रबर का गास्केट (छल्ला) लगा होता है। ढक्कन लगाने पर यह गास्केट बर्तन के किनारे पर अच्छी तरह बैठ जाता है और किनारे से भाप बाहर निकल नहीं पाती। ढककन के बीच मे एक छेद होता है, जिसमे एक भारी कीलनुमा दाब-नियंत्रक लगा रहता है। इसी में से भाप बनने पर सीटी की सी आवाज निकलती है, जिससे पता लग जाता है कि भाप बन गयी है साथ ही खाद्य पदार्थ भी पक गया है। ढक्कन के ऊपर एक ओर रबर का एक वाल्व भी लगा होता है, जो अधिक भाप बन जाने पर खुल जाता है।