जमशेदपुर निवासी प्रदीप कुमार बनर्जी भारतीय फुटबॉल में एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। उन्होंने 1962 के एशियाई खेलों में फाइनल में भारत की और से पहला गोल दागा था। और इसी के बदौलत भारत ने स्वर्ण पदक जीता था। उनकी गिनती 1955 से 1966 ग्यारह वर्षों तक देश के सर्वश्रेष्ठ विगर के रूप में होती थी। लोग उन्हें प्यार से पी.के कहकर बुलाते थे।
प्रदीप कुमार ने शुरू शुरू में जमशेदपुर स्पोर्टिंग एसोसिएशन की ओर से फुटबॉल मैचों में भाग लिया। एक बार आई.ई.एफ शील्ड टूर्नामेंट में उन्होंने मोहन बगान के विरुद्ध प्रभावशाली प्रदर्शन किया। इससे कोलकाता के ख्याति प्राप्त फुटबॉल क्लबो मोहन बगान और ईस्ट इंडिया ने पी.के से अपनी टीम में शामिल होने के प्रस्ताव रखा। किंतु इस अवसर का लाभ उठाने के स्थान पर उन्होंने आयरन क्लब को प्राथमिकता देकर सबको चकित कर दिया।
प्रदीप कुमार बनर्जी का जीवन परिचय
प्रदीप कुमार बैनर्जी का जन्म 15 अक्टूबर, 1936 में जलपाईगुड़ी पंश्चिम बंगाल में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रभात कुमार बनर्जी था। पी.के बनर्जी ने बहुत छोटी आयु से ही फुटबॉल खेलना प्रारंभ कर दिया था। पी.के बनर्जी उन भारतीय फुटबॉल खिलाड़ियो में से एक थे जो रहीम साहब के सम्पर्क में आएं। असल में हैदराबाद निवासी रहीम साहब की देखरेख में भारतीय फुटबॉल ने दुनिया में अपनी पहचान बनाई। जो पचास साठ के दशक में भारतीय टीम के प्रशिक्षक थे। प्रदीप कुमार ने भी उन्हीं के देखरेख में भारतीय टीम में स्थान बनाया।
प्रदीप कुमार बनर्जी
जब रहीम साहब को 1956 के मेलबर्न ओलंपिक से पूर्व टीम की बागडोर सौंपी गई। तब इस भारतीय टीम के प्रदीप कुमार भी सदस्य थे। भारतीय खिलाड़ियों ने उच्च स्तर के खेल का प्रदर्शन किया और टीम सेमीफाइनल तक पहुंची। किंतु बुल्गारिया के हाथों हारने के कारण भारत ने चौथे स्थान से ही संतोष किया, और टीम कांस्य पदक से वंचित रह गई।
अद्भुत गेंद नियंत्रण, दोनों पैरों से गोल करने की क्षमता और गति पकड़ने जैसी विशेषताएं पी.के में पाई जाती थी। इसी कारण वे अपने समय में कैसी भी सुदृढ़ रक्षा पंक्ति को लिए खतरनाक खिलाडी थे। 1955 में इस्टर्न रेलवे का प्रतिनिधित्व किया। यद्यपि प्रदीप कुमार बनर्जी रेलवे से संबंधित रहे किंतु सुदूर पूर्व (फारइस्ट) के एक दौरे पर उन्होंने मोहन बगान की मदद की और 12 मैचों में 26 गोल किए।
मेलबर्न ओलंपिक खेलों के बाद प्रदीप कुमार बनर्जी ने 1960 के रोम और 1964 के टोक्यो ओलंपिक खेलों में भाग लिया। 1960 के ओलंपिक खेलों में पी.के ने भारतीय टीम का नेतृत्व किया। भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। भारतीय टीम ग्रुप मैचों में हार गई। पी.के पहले कप्तान बने थे जो मोहन बगान से नहीं खेलते थे। इससे पहले भारतीय टीम का नेतृत्व मोहन बगान के खिलाडी ही करते आए थे।
इसके बाद 1964 में टोक्यो में हुए ओलंपिक में भी उन्होंने भाग लिया यह प्रदीप कुमार बनर्जी का अंतिम ओलंपिक था। इसके अलावा उन्होंने तीन अवसरों पर एशियाई खेलों में भाग लिया। 1958 में पी.के बनर्जी ने भारतीय टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाया। सेमीफाइनल में पी.के. ने दो गोल किए। चार साल बाद जर्काता के एशियाई खेलों में भारत चैम्पियन बना। चुन्नी गोस्वामी इस टीम के कप्तान थे। फाइनल में भारतीय टीम के प्रशिक्षक रहीम साहब ने जनरैल सिंह को फॉरवर्ड के रूप में खिलाया। जनरैल सिंह चोट ग्रस्त होने के कारण पूरी तरह फिट नहीं थे। इसलिए स्टॉपर की भूमिका उन्हें देना रहीम साहब ने ठीक नहीं समझा। पी.के ने जर्काता खेलों की फुटबॉल स्पर्धा में कुल चार गोल किए।
1966 के एशियाई खेलों में पी.के ने अंतिम बार भारत की ओर से खेलने का अवसर प्राप्त किया। असल में दो साल पहले ही उन्होंने प्रशिक्षण में रूचि लेना शुरू कर दिया था। 1986 में सियोल एशियाई खेलों में भाग लेने वाली भारतीय टीम के प्रशिक्षक पी.के बनर्जी थे। बाटा स्पोर्टिंग क्लब ईस्ट बंगाल, मोहन बगान रेलवे टीमों के अतिरिक्त पी.के. भारतीय प्रशिक्षक की भूमिका में भी बहुत सफल हुए। इसके बाद पी.के. ने ख्याति प्राप्त टाटा अकादमी के निदेशक का पद संभाला।
20 मार्च 2020 को प्रदीप कुमार बनर्जी की मृत्यु हो गई। 83 साल की आयु में उनका निधन कोलकाता में हो गया। पी.के भारतीय फुटबॉल इतिहास में एक मील का पत्थर थे। आज वे हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन भारतीय फुटबॉल के क्षेत्र में उनके योगदान को भारत का हर नागरिक हमेशा याद रखेगा।
पी के के खेल जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धियां
• पी.के. ने तीन बार एशियाई खेलों में भारत का नेतृत्व किया।
• 1962 में जर्काता में हुए एशियाई खेलों में वे उस भारतीय फुटबॉल टीम के सदस्य थे, जिसने स्वर्ण पदक जीता था।
• 196 में प्रदीप कुमार बनर्जी को अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया गया। यह पुरस्कार पाने वाले वे प्रथम भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी थे।
• वे रेलवे की उस टीम के सदस्य थे, जिसनें 1961-62 तथा 1966-67 में संतोष ट्रॉफी जीती थी।
• पी.के. को सन् 1990 में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया।
• पी.के. को 1990 में फीफा फेयर प्ले अवार्ड दिया गया।
• 2005 में फीफा की ओर से उन्हें इंडियाज फुटबॉलर ऑफ द ट्वैन्टीयथ सेंचुरी पुरस्कार दिया गया।
• पी.के ईस्ट बंगाल मोहन बगान तथा राष्ट्रीय टीम के कोच रहे है।
• पी.के बनर्जी फुटबॉल अकादमी मोहम्मडन स्पोर्टिंग के तकनीकी निदेशक रहे है।
• 2006 में पी.के राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के मैनेजर बने।