यूं तो प्रथम विश्व युद्ध का आरंभ सर्ब्रियनवासी राष्ट्रवादी (Serbian Nationalist) द्वाराआस्ट्रिया के राजकुमार आर्कडयूक फ्रैंज फर्डिनैंड (Archduke Franz Ferdinand) की हत्या से हुआ किंतु इसके मूल में यूरोप के देशों के बीच पिछले पचास वर्षों से लगातार चली आ रही शक्ति प्रतिद्वंदिता (Power Rivalries ) थी। मुख्य प्रतिद्विंदी थे -ऑस्ट्रिया, -,हंगरी
जर्मनीतथा रूस, फ्रांस और ब्रिटेन। ऑस्ट्रिया-हंगरी तथा जर्मनी को यूरोप की केंद्रीय शक्तियां (Central Power) और रूस, फ्रांस एवं ब्रिटेन को मित्र राष्ट्र (The Allies) कहा जाता था। युद्ध तब और भयानक हो गया जब 1915 में तुर्की एवं 1915 में बुल्गारिया केंद्रीय शक्तियों के साथ तथा इटली मित्र राष्ट्रों के साथ आ मिला। बाद में जापान और अन्त में अमेरिका (1917) भी मित्र राष्ट्रों के साथ शामिल हो गया और इस तरह प्रथम विश्व युद्ध में दो महाशक्तियां आमने सामने हो गयी। अपने इस लेख में हम इसी महाविनाशक युद्ध का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—
प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ? प्रथम विश्व युद्ध के कारण एवं परिणाम? प्रथम विश्व युद्ध कब हुआ था और किसके बीच हुआ था? प्रथम विश्व युद्ध में कितने देश शामिल थे? प्रथम विश्व युद्ध के बाद विश्व को किस संकट का सामना करना पड़ा था? प्रथम विश्व युद्ध का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा?
प्रथम विश्व युद्ध का कारण या प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ
उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में हुई औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) से यूरोप के उन्नत देशों के बीच उपनिवेश स्थापित करने की होड मच गयी। प्रत्येक देश कच्चा माल प्राप्त करने तथा निर्मित माल को बेचने के लिए अधिक से आधिक मंडियां स्थापित करना चाहता था। अतः उपनिवेशवादी प्रतिस्पर्धा (Colonial race) का बढ़ना बिलकुल स्वाभाविक था। इस प्रतिस्पर्धा मे शामिल ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल, रूस, इटली, आदि देश विभिन्न देशों की राजनैतिक सत्ता हथियाते जा रहे थे। उनके बीच आपसी वैमनस्य, टकराव और तनाव की स्थिति इन्हीं कारणों से बनी हुई थी।
दूसरे, 1870 के फ्रांस-प्रशिया युद्ध (France – Prussian war) मे जर्मनी ने फ्रांस को न केवल बुरी तरह से पराजित किया था बल्कि लोहे की खानो से संपन्न आलसेस (Alsace) और लॉरेन (Lorraine) नामक उसके दो प्रांतों पर आधिपत्य भी जमा लिया था। फ्रांस इस अपमान का बदला लेने के लिए भीतर ही भीतर सुलग रहा था तथा किसी भी तरह इन दोनों प्रांतों को पुनः प्राप्त करना चाहता था। साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्दा और प्रतिशोध के अलावा आर्थिक होड़ (Economic Compitition), खेमेबाजी (Blocs), अंध राष्ट्रवादी भावनाओ (Chauvinism) की वृद्धि, सैन्यीकरण (Militarilization), इत्यादि के कारण यूरोप के देश शक्ति खेमों (Power Blocs) मे बंट गये।
जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, यूरोप के देशों के बीच कटुता इस हद तक बढ़ चुकी थी कि कभी भी उनके बीच युद्ध शुरू हो सकता था। युद्ध छेडने का बहाना ऑस्ट्रिया को तब मिल गया जब वहा के राजकुमार आर्कडयूक फ्रैज़ फर्डिनैंड की हत्या एक सर्बियावासी राष्ट्रवादी ने कर दी। 28 जून, 1914 को हत्या हुई और लगभग एक महीने तक परस्पर दोषारोपण के बाद ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। धीरे-धीरे दोनों खेमों के समर्थक देश भी युद्ध मे कूद पड़े। कुल मिलाकर 16 देशों ने प्रथम विश्व युद्ध मे हिस्सा लिया। एक और केंद्रीय शक्ति के देश (ऑस्ट्रिया, हंगरी, जर्मनी, तुर्की, बुल्गारिया) थे और दूसरी ओर मित्र राष्ट्र के देश (रूस, अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन, सर्बिया और जापान)।
प्रथम विश्व युद्ध20 जलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया द्वारा सर्बिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ देने पर रूस ने सर्बिया को पूर्ण समर्थन दिया। जर्मनी ऑस्ट्रिया का पक्षधर था। लडाई एक व्यापक पैमाने पर प्रारम्भ हुई। जर्मनी ने 1 अगस्त को रूस तथा 3 अगस्त को फ्रांस के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। उधर, 4 अगस्त को ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की, जब जर्मन सैनिक बेल्जियम मे प्रवेश कर रहे थे। जर्मनी को आशा थी कि बेल्जियम होकर वह एकाएक फ्रांस पर आक्रमण कर उसे कुछ सप्ताह में ही पराजित कर देगा और उसके बाद रूस को देख लेगा। कुछ समय तक यह योजना सफल होती दिख पड़ी क्योंकि जर्मन सैनिक फ्रांस की राजधानी पेरिस से केवल 20 किलोमीटर दूर ही रह गये थे किन्तु रूस का आक्रमण रोकने के लिए जर्मन सैनिकों को पूर्वी मोर्चे पर जाना पड़ा। इसलिए युद्ध में गतिरोध आ गया।
जर्मन सैनिकों का पश्चिमी युद्ध-क्षेत्र मे आगे बढ़ना रोक दिये जाने के बाद एक नये प्रकार का युद्ध आरम्भ हुआ। युद्धरत सेनाओं ने खाइया खोदी, जिनकी मदद से वे एक दुसरे पर धावा बोलने लगी। इससे पहले सेनाए खुले मैदान में लडती थी। मशीनगनों तथा वायुयानों का प्रयोग किया गया। अंग्रेजों ने पहली बार टैंक का प्रयोग किया। एक-दूसरे के खाद्यान्न, हथियारों तथा रसद को रोकने में समुद्री युद्ध की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। जर्मनी ने ‘यू-बोट्स” (U – Boats) नामक पनडुब्बियों का प्रयोग न केवल युद्ध में बल्कि ब्रिटिश बंदरगाहों की ओर जा रहे अन्य देशों के माल जहाजों को नष्ट करने के लिए भी किया।
संयुक्त राष्ट्र अमरीका युद्ध से अलग रहते हुए यूरोपीय मामलो मे दखल नही देने की नीति पर चल रहा था परन्तु जर्मन पनडुब्बिया अटलांटिक महासागर में तटस्थ अमरीका के पोतों को भी नष्ट कर रही थी। इसलिए 6 अप्रैल, 1917 को जर्मनी के विरुद्ध वह भी युद्ध मे शरीक हो गया। अमरीका त्रिदेशीय सन्धि (Tripartite Treaty) मे शामिल देशों के लिए हथियारों और अन्य आवश्यक
वस्तुओं का मुख्य स्रोत बन गया। दिसम्बर, 1917 मे युद्ध की स्थिति में एक और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। रूस में कम्युनिस्टों के नेतृत्व मे क्रांति हो गयी और वहा जार-शासन के समाप्त होते ही युद्ध से अलग होने की घोषणा कर दी गयी। क्रांति के बाद रूस में सत्ता में आयी बोल्शेविक पार्टी (Bolshevik party) की सरकार ने जर्मनी के साथ युद्ध विराम संबधी समझौता कर लिया।
विश्व युद्ध का अन्त
जब युद्ध जोर-शोर से चल ही रहा था कि कई देशों द्वारा शांति के प्रयास भी किये गये किन्तु सभी प्रयास असफल रहे। जनवरी, 1918 में अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson 1856- 1924) ने एक शांति-कार्यक्रम का प्रस्ताव रखा जिसमें देशों के बीच खुले तौर पर बातचीत
करना, जहाजरानी की स्वतन्त्रता, शस्त्रों में कटौती, बेल्जियम की स्वतन्त्रता, फ्रांस को आलसेस-लॉरेन वापस करना, सभी राज्यों की स्वाधीनता की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना, आदि बातें शामिल थी। युद्ध की समाप्ति पर इनमें से कुछ बातें मान ली गयी।
ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका ने जुलाई, 1918 मे संयुक्त सैनिक अभियान आरम्भ किया। जर्मनी और उसके मित्र देश परास्त होने लगे। सितम्बर मे बुल्गारिया युद्ध से अलग हो गया और अक्तूबर में तुर्की ने आत्मसमर्पण कर दिया। ऑस्ट्रिया हंगरी के सम्राट ने 3 नवम्बर, 1918 को आत्मसमर्पण कर दिया। जर्मनी में क्रांति हो गयी और वहां गणतन्त्र स्थापित हुआ। नयी जर्मन सरकार ने 11 नवम्बर, 1918 को युद्ध विराम सन्धि पर हस्ताक्षर किये और इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो गया।
युद्ध की शांति सन्धियां
जनवरी से जून, 1919 तक विजेता शक्तियों या ‘मित्र राष्ट्रों की बैठकें फ्रांस में पहले वारसाई (Versailles) और फिर पेरिस में हुई। इस सम्मेलन में यूं तो 27 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया परन्तु शांति सन्धियों की शर्ते मुख्य रूप से ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका के प्रतिनिधियों ने ही तय की। 28 जून, 1919 को
इस सन्धि पर ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमत्री लॉयड जॉर्ज (Lioyd George), तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन तथा तत्कालीन फ्रांसीसी प्रधानमंत्री क्लीमेंस्यू (Clemenceau) ने हस्ताक्षर किये। पराजित देशो के प्रतिनिधियों ने बैठक मे भाग नही लिया। विजयी शक्तियों ने रूस को भी सम्मेलन से अलग रखा। एक तरह से विजयी देशो द्वारा पराजित देशों पर सन्धियों की शर्ते लादी गयी। सन्धि मे जर्मनी और उसके सहयोगी देशों को आक्रमण के लिए दोषी ठहराया गया। आक़्सेस तथा लॉरेन फ्रांस को लौटा दिये गये। जर्मनी मे स्थित ‘सार’ नामक कोयले की खानें 15 वर्षो के लिए फ्रांस को दे दी गयी, जिनका दायित्व राष्ट्र संघ (League of Nation) को सौप दिया गया। जर्मनी अपने युद्ध पूर्व के कुछ भाग डेनमार्क, बेल्जियम, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया को देने के लिए मजबूर हो गया। उसकी सैनिक संख्या सीमित कर दी गयी और उससे वायुसेना तथा पनडुब्बियों के रखने के अधिकार छीन लिये गये। उसके उपनिवेश टोगो और कैमेरून ब्रिटेन और फ्रास ने बांट लिये। युद्ध के दौरान हुई क्षति के लिए जर्मनी से 6 अरब, 60 करोड पौंड की राशि बतौर हर्जाना देने के लिए कहा गया। युद्ध में जर्मनी का साथ देने वाले देशों के साथ पृथक-पृथक संन्धिया हुईं। ऑस्ट्रिया हंगरी को विभाजित कर दिया गया। ऑस्ट्रिया को हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया और पौलैंड की स्वाधीनता को मान्यता देने के लिए कहा गया। बाल्कन प्रायद्वीप मे अनेक परिवर्तन किये गये। वहां नये राज्यों की स्थापना की गयी।
फिलिस्तीन और मेसोपोटामिया ब्रिटेन को दिये गये तथा सीरिया फ्रांस को मिला। तुर्की के शेष अधिकाश क्षेत्र यूनान और इटली को दे दिये गये। इस तरह तुर्की की एक छोटा-सा राज्य बना दिया गया। इन शांति सन्धियों का मुख्य अंग था। राष्ट्र संघ की 1920 में स्थापना। इसका मुख्यालय जेनेवा में रखा गया। अमरीका इस संघ का सदस्य नहीं बन सका क्योंकि तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति वुडरों विल्सन की इच्छा के बावजूद अमरीकी संसद ने बारसाई की सन्धि को स्वीकृति नहीं दी।
प्रथम विश्व युद्ध का परिणाम
युद्धों के इतिहास मे अब तक इससे अधिक जन-धन की क्षति और किसी युद्ध मे नही हुई थी। इसमे भाग लेने वाले दोनो पक्षों के साढ़े छह करोड सैनिकों में से एक करोड तीस लाख सैनिक मारे गये। दो करोड बीस लाख सैनिक घायल हुए। घायलो में से सत्तर लाख व्यक्ति बिलकुल पंगु हो गये। इस भीषण संहार के अतिरिक्त आक्रमणों, हत्याकांडों, भुखमरी और महामारी से मरने वाली असैनिक जनता (Civil Population) की सख्या का सही अनुमान लगाना संभव नहीं है।
आर्थिक दृष्टि से भी यह बडा खर्चीला और विनाशकारी था। मित्र राष्ट्रों ने तथा जर्मनी और सहयोगी देशो ने युद्ध के संचालन मे 1 खरब, 86 अरब डालर की धनराशि व्यय की थी। यदि इसमें जल थल मे हुई संपत्ति की हानि की मात्रा जोड दी जाये, तो इसका वास्तविक व्यय 2 खरब 70 अरब डालर था।
शस्त्र तकनीक की दृष्टि से यह युद्ध अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें टैंको, मशीनगनों, वायुयानों तथा विशेष रूप से निर्मित पनडुब्बियों का पहली बार प्रयोग हुआ। प्रथम विश्व युद्ध में जहरीली गैसों का भी प्रयोग हुआ। इस युद्ध के कारण कई सामाजिक परिवर्तन भी हुए। रूस और जर्मनी मे अलग-अलग प्रकार की क्रांतियां हुईं। ब्रिटेन में अनिवार्य सैनिक शिक्षा का आरम्भ हुआ जिसे बाद मे कई देशो ने अपना लिया। महिलाएं पहली बार काम करने के लिए कारखानों तथा कार्यालयों मे गयी क्योंकि पुरुष युद्ध के मोर्चों पर थे। इस कारण बाद मे नारी मुक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई।
हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—


झेलम का युद्ध भारतीय इतिहास का बड़ा ही भीषण युद्ध रहा है। झेलम की यह लडा़ई इतिहास के महान सम्राट
Read more चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध ईसा से 303 वर्ष पूर्व हुआ था। दरासल यह युद्ध सिकंदर की मृत्यु के
Read more शकों का आक्रमण भारत में प्रथम शताब्दी के आरंभ में हुआ था। शकों के भारत पर आक्रमण से भारत में
Read more देश की शक्ति निर्बल और छिन्न भिन्न होने पर ही बाहरी आक्रमण होते है। आपस की फूट और द्वेष से भारत
Read more खैबर दर्रा नामक स्थान उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफ़ग़ानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिन्दुकुश के सफ़ेद कोह
Read more हमनें अपने पिछले लेख चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस का युद्ध मे चंद्रगुप्त मौर्य की अनेक बातों का उल्लेख किया था।
Read more भारत के इतिहास में अनेक भीषण लड़ाईयां लड़ी गई है। ऐसी ही एक भीषण लड़ाई तरावड़ी के मैदान में लड़ी
Read more तराइन का दूसरा युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान बीच उसी तरावड़ी के मैदान में ही हुआ था। जहां तराइन
Read more मोहम्मद गौरी का जन्म सन् 1149 ईसवीं को ग़ोर अफगानिस्तान में हुआ था। मोहम्मद गौरी का पूरा नाम शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी
Read more तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के साथ, चित्तौड़ के राजा समरसिंह की भी मृत्यु हुई थी। समरसिंह के तीन
Read more मेवाड़ का युद्ध सन् 1440 में महाराणा कुम्भा और महमूद खिलजी तथा कुतबशाह की संयुक्त सेना के बीच हुआ था।
Read more पानीपत का प्रथम युद्ध भारत के युद्धों में बहुत प्रसिद्ध माना जाता है। उन दिनों में इब्राहीम लोदी
दिल्ली का शासक
Read more बयाना का युद्ध सन् 1527 ईसवीं को हुआ था, बयाना का युद्ध भारतीय इतिहास के दो महान राजाओं चित्तौड़ सम्राज्य
Read more कन्नौज का युद्ध कब हुआ था? कन्नौज का युद्ध 1540 ईसवीं में हुआ था। कन्नौज का युद्ध किसके बीच हुआ
Read more पानीपत का प्रथम युद्ध इसके बारे में हम अपने पिछले लेख में जान चुके है। अपने इस लेख में हम पानीपत
Read more हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय इतिहास का सबसे प्रसिद्ध युद्ध माना जाता है। यह हल्दीघाटी का संग्राम मेवाड़ के महाराणा और
Read more सिंहगढ़ का युद्ध 4 फरवरी सन् 1670 ईस्वी को हुआ था। यह सिंहगढ़ का संग्राम मुग़ल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य
Read more दिवेर का युद्ध भारतीय इतिहास का एक प्रमुख युद्ध है। दिवेर की लड़ाई मुग़ल साम्राज्य और मेवाड़ सम्राज्य के मध्य में
Read more करनाल का युद्ध सन् 1739 में हुआ था, करनाल की लड़ाई भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। करनाल का
Read more प्लासी का युद्ध 23 जून सन् 1757 ईस्वी को हुआ था। प्लासी की यह लड़ाई अंग्रेजों सेनापति रॉबर्ट क्लाइव और
Read more पानीपत का तृतीय युद्ध मराठा सरदार सदाशिव राव और अहमद शाह अब्दाली के मध्य हुआ था। पानीपत का तृतीय युद्ध
Read more ऊदवानाला का युद्ध सन् 1763 इस्वी में हुआ था, ऊदवानाला का यह युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी यानी अंग्रेजों और नवाब
Read more भारतीय इतिहास में अनेक युद्ध हुए हैं उनमें से कुछ प्रसिद्ध युद्ध हुए हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता
Read more भारतीय इतिहास में मैसूर राज्य का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। मैसूर का इतिहास हैदर अली और टीपू सुल्तान
Read more आंग्ल मराठा युद्ध भारतीय इतिहास में बहुत प्रसिद्ध युद्ध है। ये युद्ध मराठाओं और अंग्रेजों के मध्य लड़े गए है।
Read more भारत में अंग्रेजों को भगाने के लिए विद्रोह की शुरुआत बहुत पहले से हो चुकी थी। धीरे धीरे वह चिंगारी
Read more भारत 1947 में ब्रिटिश उपनिषेशवादी दासता से मुक्त हुआ किन्तु इसके पूर्वी तथा पश्चिमी सीमांत प्रदेशों में मुस्लिम बहुमत वाले क्षेत्रों
Read more मालवा विजय के लिये मराठों को जो सब से पहला युद्ध करना पड़ा वह सारंगपुर का युद्ध था। यह युद्ध
Read more तिरला का युद्ध सन् 1728 में मराठा और मुगलों के बीच हुआ था, तिरला के युद्ध में मराठों की ओर
Read more