प्रकाश तरंगों की खोज— प्रकाश की किरणें सुदूर तारों से विशाल आकाश को पार करती हुई हमारी पृथ्वी तक पहुंचती हैं। हम प्रकाश को बहुत साधारण रूप मे लेते हैं, परंत् वैज्ञानिकों और विचारशील लोगों के लिए यह सबसे अधिक दिलचस्प तथ्यों में से एक है। प्रकाश न होने पर हम कुछ भी नहीं देख सकते। प्रकाश के होने पर ही हमारी आंखें
अपने चारों ओर की रंग-बिरंगी वस्तुएं देख पाती हैं। माइक्रोस्कोप मे प्रकाश की किरणें अनेक लेसों में से मुडती, परावर्तित होती हैं, जिससे जीवाणुओं जैसे सूक्ष्मतम जीव बड़े रूप में दिखाई देने लगते हैं।
जब किसी वस्तु पर प्रकाश पड़ता है, तभी वह हमें दिखाई देती है। उसका प्रतिबिम्ब हमारी आखों में पहुंचता है। मस्तिष्क इसका अर्थ लगाता है और हम कहते हैं कि यह अमुक वस्तु है।
आखिर यह प्रकाश है क्या, जो हमारे चारो ओर की दुनिया को समझने में हमारी सहायता करता है। जिस वस्तु पर प्रकाश नही पड़ेगा, उसे हम देख ही नहीं सकते। अतः कहा जा सकता है कि प्रकाश है तो आंखें हैं, सब कुछ है, अन्य था केवल अंधकार है।
प्रकाश तरंगों की खोज
सैंकड़ों वर्षों तक लोगों का यही ख्याल था कि प्रकाश आंखों से निकलने वाली किरणें हैं। जब ये किरणे आंखों से निकलकर किसी वस्तु पर पड़ती हैं, तो हमें वस्तु दिखाई देती है। कुछ का ख्याल था कि प्रकाश छोटे-छोटे कणों की श्रृंखला है, जो
प्रकाश के स्रोत से निकलती हैं। परंतु बाद मे वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया कि प्रकाश बहुत छोटी-छोटी विद्युत की एक श्रेणी है। ये तरंगें बिल्कुल रेडियो तरंगों की तरह होती हैं। केवल इतना फर्क है कि ये प्रकाश किरणें बहुत छोटी होती हैं।
इसको समझने के लिए सबसे पहले क्लायडियस टोलमी नामक यूनान के वैज्ञानिक ने ईसा की दूसरी शताब्दी में कुछ प्रयोग किए। उन्होंने देखा कि प्रकाश पानी के गिलास में पहुंच कर मुड़ जाता है। जब गिलास में छुरी या चाकू आदि डाला जाता है तो वह मुडा हुआ दिखाई देता है। पर वास्तव में वह सीधा ही होता है। इसका अर्थ उसने यह लगाया कि प्रकाश की किरणें पानी के अंदर जाते ही मुड़ जाती हैं। उन्होने प्रकाश किरणों के विचलन संबंधी कुछ नियम भी निकाले।
उसके बाद सन् बारह में एक अरबी वैज्ञानिक अल हाजेन ने प्रकाश के बारे मे बहुत से तथ्य खोजें। उन्होंने इसकी व्याख्या भी की कि हमारे आंखें देखने का कार्य कैसे करती हैं। सन् 1276 में एक अंग्रेज वैज्ञानिक रोजर बेकन ने एक जगह लिखा था कि दूर की वस्तुओ को देखने के लिए उन्हे एक विशेष प्रकार के कांच से बड़ा करके देखा जा सकता है। परंतु ऐसा कांच तब बनाया नहीं जा सकता था। सन् 1600 में इटालियन वैज्ञानिक गैलिलियो ने दूर की वस्तुओं को देखने की पहली दूरबीन बनाई तथा एक डच वैज्ञानिक एण्टन वान लीवेन हुक ने इसके लगभग सौ वर्ष बाद
पहला माइक्रोस्कोप बनाया। इसके अलावा बहुत से वैज्ञानिक इस खोज में लगे हुए थे कि प्रकाश एक जगह से दूसरी जगह कैसे पहुंचता है।

सन् 1700 में अंग्रेज वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने खोज की कि प्रकाश बहुत छोटे छोटे कणों की श्रेणी से बना है। प्रकाश अपने स्रोत से निकलकर कणों की श्रेणी के रूप में चलता है। एक डच वैज्ञानिक हाइजेन्स ने प्रकाश किरणों के बारे मे
खोज कर अपना विचार व्यक्त किया कि प्रकाश कम्पनों के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन करता है। वर्तमान वैज्ञानिकों ने प्रकाश से संबंधित खोजो से यह सिद्ध कर दिया है कि प्रकाश कभी-कभी कणों की श्रेणी के रूप में और कभी-कभी कम्पनों की तरह गमन करता है। प्रकाश तरंगें विद्युत चुम्बकीय तरंगों जैसी श्रेणी की हैं लेकिन ये बहुत छोटी होती है तथा इनकी फ्रीक्वेंसी (आवृत्ति) बहुत ऊंची होती है। ये तरंगें छोटे छोटे विस्फोटों अथवा गुच्छों के रूप में उत्पन्न होती है। ये गुच्छे वैज्ञानिक भाषा में क्वांटा के नाम से जाने जाते हैं। ये गुच्छे कभी कभी कणों अथवा कार्पसंलों के रूप में व्यवहार-करते हैं।
इस तरह हम देखते हैं कि प्रकाश तरंग के रूप में भी है और कणों के रूप में भी है (प्रकाश रेडियो तरंगों की तरह इलेक्ट्रॉन गति से गति से पैदा होता है लेकिन यह इलेक्ट्रॉन गति स्वयं परमाणु के भीतर होती है)। उदाहरणार्थ तपता लोहा तीव्र प्रकाश उत्सर्जित करता है। जब भी कोई वस्तु गर्म होती है तो उस वस्तु के परमाणु तेज गति से गतिशील हो जाते हैं। ये परमाणु जितनी तेज गति से चलते हैं, उतनी ही तेजी से उनके इलेक्ट्रॉन परमाणु नाभिकों के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इस क्रिया में परमाणु की भीतरी कक्षा के इलेक्ट्रॉन को गति का तेज धक्का मिलता है। तो वह छिटक कर बाहरी कक्षा में पहुंच जाता है। भीतरी कक्षा की खाली जगह को भरने के लिए बाहरी कक्षा का इलेक्ट्रॉन उछल कर पहुंच जाता है। इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों के फुदकने का यह क्रम तेजी से चलता रहता है। छोटी दूरियों को ये इलेक्ट्रॉन तेजी से पार करते हैं और विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न होती हैं। केवल एक तरंग को नहीं देखा जा सकता। बहुत सारी तरंगें जब एक साथ चलती हैं, तो हमारी आंखे प्रकाश के रूप में इन्हे देख पाती है। आपको आश्चर्य होगा कि जिन प्रकाश तरंगों की बदौलत हम देस पाते हैं, वे स्वयं अदृश्य होती हैं।
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