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पेनिसिलिन

पेनिसिलिन का आविष्कार किसने किया और कब हुआ

पेनिसिलिन की खोज ब्रिटेन के सर एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने सन् 1928 में की थी, लेकिन इसका आम उपयोग इसकी खोज के लगभग दस वर्ष बाद ही हो पाया। इसकी खोज से निमोनिया, खांसी गले की सूजन ओर घावों जैसे गंभीर रोगों पर विजय पाने का मार्ग खुल गया। इस पेनिसिलिन औषधि मे रोगों के कीटाणुओं को मारने का विलक्षण गुण है।

पेनिसिलिन एक प्रकार की फफूंद से बनती है। जिसे पेनसीलियम कहते हैं। यह फफूंद ठीक उसी तरह की होती है जो आमतौर पर कई दिनों तक खुले में रखने पर डबल रोटी संतरे, नींबू आदि पर लग जाती है। दूसरी प्रकार की फफूंदों से अनेक प्रकार की औषधियां बनायी जाती हैं जिन्हेएंटीबायोटिक औषधियां कहा जाता है।

पेनिसिलिन का आविष्कार किसने किया और कब हुआ

एक दिन प्रोफेसर फ्लेमिंग भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर उगआयी फफूंद की प्यालियों पर कुछ परीक्षण कर रहे थे। उन्होनें फोडे से प्राप्त पस में विद्यमान जीवाणुओं पर परीक्षण करते हुए एक बडी हीं विचित्र चीज देखी। उन्होने देखा कि पस की जेली पर एक फफूंद उग आयी थी, लेकिन आश्चर्य था कि फफूंद के चारो ओर खाली जगह बची हुइ थी, जबकि फफूंद की प्लेट अच्छी तरह ढकी हुई थी। फ्लेमिंग ने देखा कि फफूंद ने अपने चारों ओर एक विशेष प्रकार का पदार्थ उत्पन्न किया है जिसने जीवाणुओं की वृद्धि मे रुकावट डाली है। अन्य प्रयोगों से उन्हे ज्ञात हुआ कि यह विशेष फफूंद पेनिसिलियम’ फफूंदों के एक बहुत बडे परिवार की एक सदस्या हैं।

पेनिसिलिन
पेनिसिलिन

फ्लेमिंग ने कई पदार्थों की फफूंद उगायी और विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं पर फफूंद के प्रभाव के परीक्षण किए। सबसे पहले फ्लेमिंग ने एक विशेष रोग के रोगाणुओं को मांस के शोरबे की जेली में डाला और उसमे फफूंद के बीजाणु मिलाएं। फफूंद के आस-पास की जगह खाली रही। इसका अर्थ यह था कि यह फफूंद रोग के रोगाणुओं को रोकने में सफल रही। इसी प्रकार उन्होने कई रागों के रेगाणुओं पर फफूंद का प्रभाव ज्ञात किया। उन्होने पाया कि कुछ रोगाणुओं पर इसका प्रभाव पडता है और कुछ पर नही।

इसके बाद उन्होंने यह पता करने के लिए परीक्षण करने शुरू किए कि प्रभाव डालने वाला पदार्थ फफूंद में मौजूद है अथवा फफूंद से उत्पन होता है और किस प्रकार अलग किया जा सकता है ताकि जीवो के शरीर में प्रवेश कराकर उसका प्रभाव देखा जा सके।

फ्लेमिंग ने मांस के शोरबे मे फफूंद उगाकर शोरबे को छानकर अलग कर दिया। छाने गए द्रव मे उन्होंने रोगाणुओं की कल्चर मिलाकर देखा। यह द्रव रोगाणुओं के विरुद्ध उतनी ही तेजी से कार्य कर रहा था जितनी फफूंद के परीक्षण के समय। इस प्रयोग से फ्लेमिंग को ज्ञात हो गया कि फफूंद द्वारा उत्पन्न वह सक्रिय पदार्थ जो रोगाणुओं के विरुद्ध कार्य करता है। द्रव में घुलकर आ जाता है। इस तरह उन्होंने पेनिसिलिन का आविष्कार किया। रोगाणुओं को उत्पन्न होने से रोकने के लिए उन्होंने यह द्रव तैयार कर लिया था। इस द्रव को एंटीबायोटिक या अथवा प्रतिजीवी कहते हैं। इस द्रव का नाम फ्लेमिंग ने पेनिसिलिन रखा।

उसके बाद फ्लेमिंग ने पेनिसिलिन द्रव से अनेक परिक्षण किए। और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस पेनिसिलिन द्रव को औषधि के रूप में इंजेक्शन द्वारा मनुष्य के शरीर में पहुंचाया जा सकता है। फ्लेमिंग ने इसका प्रयोग अनेक चर्म रोगों के इलाज में भी किया जिसके परिणाम बहुत ही उत्साह जनक निकले।

सबसे महत्वपूर्ण कार्य पेनिसिलिन पदार्थ को इस द्रव में से अलग करना था। जिसमें फ्लेमिंग को सफलता न मिली। इसका सबसे बड़ा कारण इस पदार्थ की विलक्षणता थी। यह पदार्थ परिक्षण करते वक्त तुरंत ही दूसरे पदार्थ में बदल जाता था।

पेनिसिलिन को द्रव से अलग करने मेंऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय प्रोफेसर फ्लेरी ने किसी हद तक सफलता पाई। सन् 1938-39 में उन्होंने थोड़ी सी पेनिसिलिन अलग की और उसे इंजेक्शन के रूप में रोगी के शरीर में पहुंचाने के लिए तैयार किया। सन् 1941 में उन्होंने इसका परिक्षण कुछ रोगियों पर किया जिसके बहुत ही अच्छे परिणाम निकले।

उसके बाद अनेक वैज्ञानिकों ने बड़ी मात्रा में पेनिसिलिन उत्पादन करने के लिए मिलकर प्रयत्न किए। अमेरिका की अनेक प्रयोगशालाएं इस कार्य में महिनों तक लगी रही। तब कहीं जाकर बड़ी मात्रा में पेनिसिलिन प्राप्त करने का तरीका मालूम किया जा सका।

पेनिसिलिन डिफ्थीरिया, निमोनिया, रक्त विषाक्तता (Blood poisoning) फोड़े, गले का दर्द, खासी, दमा आदि अनेक रोगों के इलाज के लिए इंजेक्शन और गोलियों के रूप में प्रयोग की जाती है। ऑपरेशन के वक्त भी पेनिसिलिन का इंजेक्शन रोगी को दिया जाता है।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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