पेट्रोल इंजन का आविष्कार किसने किया और कब हुआ

पेट्रोल इंजन

पेट्रोलियम की खोज के बाद भाप इंजन के स्थान पर पेट्रोल और डीजल के इंजनों का इस्तेमाल शुरू हो गया। अपने पिछले लेख में हमनेभाप इंजन का आविष्कार किसने किया और कैसे हुआ इसका उल्लेख किया था अपने इस लेख में हम पेट्रोल इंजन का आविष्कार किसने किया और कैसे हुआ इसका उल्लेख करेंगे।

पेट्रोल इंजन का आविष्कार किसने किया

पेट्रोल इंजन का आविष्कारजर्मनी के एक इंजीनियर ओगस्ट निकोलस ओट्टो ने किया था। पेट्रोल का उबलने का तापमान कम होने के कारण यह शीघ्र ही गैस में बदल जाता है। इसके इसी गुण का लाभ निकोलस ओट्टो ने उठाया। 1872 में उन्होंने गैस चालित इंजन को बनाने का काम संभाला और सन्‌ 1876 में एक चार स्ट्रोको वाले इंजन का निर्माण किया। उनके इंजन के चलने की प्रक्रिया चार स्ट्रोकों मे पूरी होती है– चूषण (Suction), स्ट्रोक, इस क्रिया में वायु के साथ मिश्रित गैस नीचे की तरफ जाते हुए
पिस्टन द्वारा सिलिंडर के अंदर चूस ली जाती है, दूसरा, इस मिश्रण को ऊपर की ओर जाते हुए पिस्टन द्वारा स्पीडन (Compression), तीसरा, मिश्रण का दहन और साथ ही प्रसार, जिससे पिस्टन नीचे की ओर धकेला जाता है और चौथा पुन ऊपर की ओर जाते हुए पिस्टन द्वारा जली हुई गैसों की निकासी। सिलिंडर में ईंधन के प्रवेश ओर गैसों के निष्कासन के लिए वाल्व होते हैं, जो स्वयं इंजन द्वारा यांत्रिक रूप से खुलते ओर बंद होते है। पिस्टन के साथ लगी छड़ एक क्रेंक शाफ्ट को घुमाती है, जो पिस्टन को आगे-पीछे होने वाली गति को घूर्णन गति में परिवर्तित कर देती है। पेट्रोल इंजन भाप इंजन की तुलना में काफी हल्का और छोटा था। पेट्रोल इंजन को आवश्यकतानुसार क्षण भर में चालू किया जा सकता है।

पेट्रोल इंजन
पेट्रोल इंजन

गोटलीब डायमलर नामक एक इंजीनियर ने जो ओट्टो के साथ काम करते थे, पेट्रोल इंजन मे दो सुधार आवश्यक समझे। पहला तो यह कि इंजन को मुख्य नली से प्राप्त गैस की बजाय पेट्रोल वाष्प से चलना चाहिए और दूसरा, इसकी ईंधन जलने की प्रणाली बदली जानी चाहिए। ईंधन जलने का स्थान सिलिंडर के अंदर ही हो। इस तरह इस विधि से कई फायदे थे। पहला, इंजन में स्पार्क प्लग अथवा बैटरी जैसी किसी प्रज्वलन प्रणाली की जरूरत नहीं थी। दूसरे इसमें द्रव इंधन को गैस में परिवर्तित कर उस हवा से सम्पर्क कराने के लिए कार्बुरेटर की भी जरूरत नही थी। तीसरे, इस इंजन में सस्ता भारी तेल इस्तमाल किया जा सकता था।

अच्छे किस्म का पेट्रोल इंजन ईंधन में मौजूद ऊष्मा का अधिक से अधिक 28-30 प्रतिशत कार्य में परिवर्तित कर सकता है, जबकि डीजल इंजन लगभग 35 प्रतिशत को कार्य में बदलने की क्षमता रखता है। परंतु इस लाभ के साथ-साथ डीजल इंजन की कुछ
खामियां भी है। यह पेट्रोल इंजन से लगभग दोगुना भारी होता है। साथ ही इसमें आवाज भी अधिक होती है और भारी तेल की निकास गैस बडी हानिकारक होती है। हां, इसका उपयोग ट्रकों, बसों आदि में बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है, क्योंकि एक तो इसका इंधन सस्ता होता है, दूसरे इसका इंजन काफी मजबूत होता है। अधिक देर तक काम करने अथवा लम्बी दूरी की यात्रा की दृष्टि से यह काफी सस्ता पडता है।

डीजल इंजन को बड़े आकार में भी बनाया जा सकता है, जबकि पेट्रोल इंजन को एक सीमा से अधिक बडा बनाना संभव या व्यावहारिक नही है। यही कारण है कि जहाजों ओर रेलगाड़ियों के लिए डीजल इंजन को ही रूपांतरित कर प्रयाग में लाया जाता है।

डीजल इंजन मे स्पार्क प्लग, या बैटरी आदि किसी तरह के भी विद्युत-चुम्बकीय या ज्वलनशील पदार्थ की आवश्यकता नही पडती। डीजल इंजन के सिलिंडर में हवा को वायुमंडल के 35 गुना अधिक दबाव पर लाया जाता है, जिससे उसमे लगभग 500 सेटींग्रेड तक का तापमान उत्पन्न हो जाता है। इतने ज्यादा दबाव के तापमान में किसी भी प्रकार के द्रव ईंधन की फुहार छोड़ने पर वह तुरंत जल उठता है और धडधडाके की आवाज के साथ पिस्टन आगे की ओर ढकेल दिया जाता है ओर इस प्रकार इंजन को संचालित करने का कार्य शुरू हो जाता है। इस इंजन में अपरिष्कृत, मिट्टी का कच्चा या मोटा तेल ही ईंधन की तरह बहुत अच्छी तरह काम में लाया जा सकता है।

इस इंजन के आविष्कारक डीजल को लोग धनी व्यक्ति मानते थे। परंतु यथार्थ में वे आर्थिक दृष्टि से बहुत तंग थे ओर इसका कारण अपनी क्षमता से अधिक खर्च करने की उनकी आदत थी। आर्थिक स्थिति से तंग आकर सन्‌ 1913 में ब्रिटिश चैनल की यात्रा के दौरान अपने मोटर बोट में उन्होने आत्महत्या कर ली।

रोटरी पीस्टन इंजन

रोटरी-पिस्टन इंजन का आविष्कार बवेरिया के एक इंजीनियर फेलिक्स वान्केल ने 1949-50 में किया था। उसके बाद इस इंजन मे जर्मनी ओर अमेरिका में कई महत्त्वपूर्ण सुधार हुए। इसी प्रकार यूरोप मे डायमलर, बज, पेनहार्ड तथा रॉल्स रॉयस आदि कम्पनियों ने इस उद्योग मे बहुत कार्य किया। इन सभी कार निमाताओं ने अतदहन इंजन मे अनेक सुधार कर इसे आधुनिक रूप दिया।

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