पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई और वीरता की कहानी Naeem Ahmad, October 24, 2022February 22, 2023 पृथ्वीराज चौहान, चौहान वंश के सूर्य जिन्होंने अपनी वीरता व पौरुष के बल पर अजमेर सेदिल्ली तक विजय-पताका को फहराया। कहा जाता है कि चौहान अग्निवंशीय क्षत्रिय है, जिनकी उत्पत्ति राक्षसों को नष्ट करने के लिये वशिष्ठ॒ जी के अग्निकुण्ड से हुई थी।महाराजा पृथ्वीराज चौहान के पिता का नाम सोमेश्वर था। महाराजा सोमेश्वर अपने समय के बड़े प्रतापी राजाओं में से थे। उनकी राजधानी अजमेर थी। उनकी वीरता से प्रसन्न होकर दिल्ली के राजा अनंगपाल ने अपनी कन्या कमलावती का विवाह उनके साथ किया। इन्हीं महारानी कमलावती के गर्भ से वीर केशरी महाराज पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ।Contents1 पृथ्वीराज चौहान के वीरता और साहस की कहानी2 पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई3 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—पृथ्वीराज चौहान के वीरता और साहस की कहानीपृथ्वीराज चौहान को बचपन में कोई पुस्तकीय शिक्षा नहीं दी गई । यह वीरता का युग था। अतः शारीरिक शिक्षा पर विशेष बल दिया गया। उन्हें घुड़सवारी, धनुष विद्या, शस्त्र संचालन और युद्ध विद्या में निपुण किया गया। वे चतुर और वीर थे। फलस्वरूप 13 वर्ष की अल्प अवस्था में ही यद्ध-विद्या के पंडित बन गये। शब्द भेदी वार मारने में तो वे अद्वितीय थे, भाला चलाने में भी उनका कोई सानी न था।कहावत प्रसिद्ध है कि “होनहार विरवान के होत चीकने पात। बाल्यावस्था में ही उनकी वीरता चमक रही थी। उन्होंने पिता के राज्य कार्यो में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने 16-17 वर्ष की अवस्था में ही युद्ध में कई बहादुरों के दांत खट्टे कर दिये थे। सभी राजा लोग उनकी वीरता से प्रभावित थे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व था। पृथ्वीराज चौहान राजगद्दी पर बैठे। गद्दी पर बैठते ही उन्होंने गजनी के बादशाह मोहम्मद गोरी के घमंड को चूर कर किया। गोरी किसी बहाने से भारत का धन लूटना चाहता था तथा इस्लाम का प्रचार करना भी।मुहम्मद गौरी अपनी विशाल सेना के साथ अपने स्वप्न को साकार करने के लिये रवाना हुआ। इधर पृथ्वीराज को खबर मिलते ही अपने वीर सामन्तों को एकत्रित किया तथा युद्ध सम्बन्धी विषयों पर परामर्श किया। इसमें निश्चय किया गया कि गोरी को यहां तक आने का अवसर न दिया जाये वरन् सीमा पर ही रोक लिया जाये। उधर यह खबर कि पृथ्वीराज चौहान अपनी वीर सेना के साथ सीमा पर ही रोक के लिये आ रहा है तो उसने जल्दी जल्दी चलना प्रारम्भ किया। सारूण्डा नामक स्थान पर दोनों सेनाओं का भीषण मुकाबला हुआ। गोरी का सेनापति तातर खां था। इधर पृथ्वीराज चौहान के वीर सेनापति चामुण्डराय थे। यवन सेना को भारी क्षति पहुंची। उनके वीर सेनापति भी युद्ध में मारे गये। स्थिति इतनी विकट और निर्बल हो गई कि सेना के पैर उखड़ गये और वह भाग खड़ी हुई। गोरी ने सैनिकों को जोश दिलाया और युद्ध के लिए रोका-प्रयत्न निष्फल रहा। पृथ्वीराज भयंकर मारकाट मचाते हुये अपने शिकार के पास पहुंच गये। गोरी ने युद्ध किया लेकिन पकड़ लिया गया।पृथ्वीराज चौहानगोरी पृथ्वीराज की राजधानी में पांच दिन तक रहा। इस अवधि में सुल्तान का बहुत मान-सम्मान किया और अपने पास रखा। छठे दिन जब गोरी ने प्रतिज्ञा की कि अब वह कभी आक्रमण करने का इरादा भी न करेगा तो उसे मुक्त कर दिया गया। यह थी पृथ्वीराज चौहान की विशालता और महान पराक्रम का परिचय।मोहम्मद गौरी के मन में पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने की भावना प्रबल थी। वह इसी अवसर की तलाश में था कि कोई बहाना मात्र मिल जाय तो पराजय और अपमान का बदला लिया जा सके। वह हमेशा बेचैन व अप्रसन्न रहता था। पृथ्वीराज ने गौरी को कई बार युद्ध में पराजित किया। परन्तु गौरी अपनी प्रतिज्ञा पर कभी भी दृढ़ न रहा। इधर राजा जयचन्द की पुत्री संयोगिता पृथ्वीराज से बहुत प्रेम करती थी जब कि जयचन्द दुश्मनी। समय पड़ने पर पृथ्वीराज ने अपनी प्रेमिका संयोगिता का स्वयंवर से अपहरण किया, वह बहुत प्रसन्न थी, उसकी हार्दिक अभिलाषा पूर्ण हुई। परन्तु जयचन्द क्रोध से भरा था, वह पृथ्वीराज से बदला लेना चाहता था।जयचन्द कन्नौज का राजा था। उसके पास भी काफी सैन्य संगठन व शक्ति संचित थी। वह जैसे तैसे पृथ्वीराज चौहान से बदला लेना चाहता था। उसका क्रोध चरम सीमा पर था। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान के शत्रु देश के अन्दर और बाहर दोनों ओर ही हो गये। जयचन्द के पास इतनी शक्ति नहीं थी कि वह अकेला पृथ्वीराज का मुकाबला कर सके तथा युद्ध में हरा सके। अतः उसने कुटनीति से कार्य लिया। और पृथ्वीराज के शत्रु गौरी से सांठ-गांठ की। वह जानता था कि उससे मिलकर लड़ने में सफलता मिल सकती है। आवेश में व बदले की भावना से उसने गोरी को भारतवर्ष पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया। और लिखित रूप में वचन दिया कि “मैं आपकी पूरी सहायता करूगां।” जब गोरी को यह पत्र मिला उसकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा। उसका स्वप्न आज साकार हो उठा, पत्र को बार बार पढ़ा। उसे पूरा विश्वास हो गया कि शक्तिशाली जयचन्द की मदद से उसकी सफलता निश्चित है। युद्ध की तैयारियां वह पहले ही कर रहा था। इस पत्र के मिलते ही तैयारियों के कार्य अधिक वेग और उत्साह के साथ होने लगे।मुहम्मद गौरी ने एक विशाल सेना का संगठन किया और भारत को कूच किया। गौरी के मित्र जयचन्द ने स्वागत किया और अपनी सशक्त सेना को भी साथ कर दिया। भीषण युद्ध की तैयारियां थीं। इधर पृथ्वीराज अपनी नव-पत्नि संयोगिता के प्रेम-पाश में पड़े हुए महलों में आनन्द ले रहे थे। परन्तु आंखें खुलते ही यद्ध की भयंकर तैयारी प्रारम्भ की और शीघ्र ही गौरी का मुकाबला करने के लिए चल पड़े। उधर गौरी की सेना भी प्रबल वेग से आ रही थी। दोनों सेनायें तराइन के मैदान में आ डटीं । दोनों सेनाओं में भीषण मुठभेड़ हुई। पृथ्वीराज चौहान की सैनिक तैयारी कम थी। उधर गौरी और जयचन्द ने संयुक्त मोर्चा तैयार किया था। इतना होने पर भी पृथ्वीराज अपनी सेना के साथ भूखे बाघ की भांति दुश्मन की सेना पर टूट पड़े। शत्रु की प्रबल सेना के वेग को कब तक रोका जाता। बार बार हारने पर भी गौरी ने सैनिक तैयारी की, जयचन्द से मित्रता का हाथ बढ़ाया और विशाल सैनिक संगठन तैयार किया था।“घर का भेदी लंका ढहावे” वाली उक्ति सत्य चरितार्थ हुई। जयचन्द ने पृथ्वीराज चौहान का सारा रहस्य खोल दिया। युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुए तथा पकड़ लिये गये। कैदी के रूप में पृथ्वीराज को गजनी ले जाया गया। पृथ्वीराज रासो के रचयिता चंद वरदाई पृथ्वीराज को अपना स्वामी और मित्र समझते थे। उनको जब ये समाचार मालूम हुए तो बहुत दुःख हुआ और विपत्ति की ओर अवस्था में वे स्वयं भी गजनी पहुंचे। वहां अपने स्वामी की स्थिति देखकर अत्यन्त दुःखी हुए परन्तु सच है-वीर मनुष्य आपत्तियों से घबराते नहीं वरन् विवेक और शक्ति से काम लेकर उस पर विजय प्राप्त करते हैं।पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुईपृथ्वीराज चौहान बचपन से ही शब्द भेदी बाण चलाने में चतुर थे। चन्द बरदाई ने अन्तिम समय में इस कला से लाभ उठाने की तरकीब सूझी। उन्होंने अपने वाक-चातुर्य से गजनी के सम्राट गौरी को अपनी ओर आकर्षित कर लिया और दरबार में अच्छा स्थान भी प्राप्त कर लिया। एक दिन उन्होंने गौरी से कहा “जहांपनाह, पृथ्वीराज शब्द भेंदी बाण चलाने में बड़े चतुर है। यदि आज्ञा हो तो उनसे अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए निवेदन करू।” गौरी को भी इस कला को देखने की उत्सुकता पैदा हुई। उन्होंने इसके लिए आज्ञा भी दे दी। कवि चन्द बरदाई मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि गौरी से बदला लेने का सुअवसर आसानी से प्राप्त हो गया।कवि चन्द बरदाई, पृथ्वीराज चौहान के पास आया और सारी बातें समझाई तथा अवसर को नहीं चूकने का आग्रह भी किया पृथ्वीराज इस योजना से सहमत हो गए। यथा समय राजदरबार में सब लोग प्रदर्शन देखने हेतु उपस्थित हुए। पृथ्वीराज चौहान को एक धनुष बाण दे दिया गया। जब सब तैयारियां हो गई तो चन्द बरदाई कवि ने निम्न कविता पढ़ी–एही बाण चौहान ! राम रावण उत्थयो । एही बाण चौहान ! करण सिर अर्जुन कट्ठयो ॥ एही बाण चौहान ! शम्भु त्रिपुरासुर सध्यो । एही बाण चौहान ! अमर लछमन कर बंध्यो ।॥ सो ही बाण आज तो कर चढ़यो चन्द विरद सच्चो सवै । चौहान राज संगर धनी मत चूके मोटे तवै ।। चार बांस चौबीस गज अंगुल भ्रष्ट प्रमाण। एते पर सुलतान है मत चूके चौहान ॥।इतना कहकर चन्द बरदाई कवि ने गौरी से कहा जहांपनाह, पृथ्वीराज आपके बन्दी है, अतः बाण चलाने की आज्ञा दीजिए।” आज्ञा के शब्द सुनते ही ऐसा बाण मारा कि बेचारे गोरी का सिर घड़ से अलग हो गया। दोनों ने (पृथ्वीराज और कविचन्द ) ने उसी समय आत्म हत्या कर ली। और इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो गई।पृथ्वीराज भारतवर्ष के वीर, उत्साही एवं उदार हिन्दू सम्राट थे। जिन्होंने अपनी वीरता से सारे भारत में धाक जमा रखी थी। वे एक कुशल शासक, योग्य सेनापति थे। यदि उनमें विलासिता न होती और हमारे देश में जयचंद जैसे कुल-कलंक न होते तो हिन्दू साम्राज्य का अन्त न होता। विदेशियों के भारत में पैर न जम पाते, बल्कि उनको उल्टे पांव अपने स्थान दौड़ना पड़ता, इतिहास का रूप बदल जाता।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य केछतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जोदतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुरझांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा भारत के महान पुरूष राजस्थान के वीर सपूतराजस्थान के शासक