पुष्कर सरोवर तीर्थ यात्रा – पुष्कर झील का धार्मिक महत्व Naeem Ahmad, October 8, 2018March 29, 2024 भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर जिले मे स्थित पुष्कर एक प्रसिद्ध नगर है। यह नगर यहाँ स्थित प्रसिद्ध पुष्कर सरोवर या पुष्कर झील के लिए जाना जाता है। इसी प्रसिद्ध सरोवर के कारण ही नगर को यह नाम मिला है। पुष्कर झील या सरोवर को हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ माना जाता है। पुष्कर को तीर्थो का गुरु कहा गया है। इसलिए लोग इस तीर्थ को पुष्करराज भी कहते है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों में होती है। जो इस प्रकार है– पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, गंगाजी तथा प्रभास। इसके अलावा इस महान तीर्थ की गणना पंच सरोवरों में भी होती है। जो इस प्रकार है—- मानसरोवर, पुषकर, बिंदु सरोवर, नारायण सरोवर तथा पंपासरोवर।बिंदु सरोवर गुजरात के सिद्धपुर मे मातृश्राद के लिए प्रसिद्ध तीर्थपुलस्त्य ऋषि ने भीष्म पितामह को विभिन्न तीर्थों का वर्णन करते हुए पुष्कर तीर्थ को सबसे अधिक पवित्र बताया है। उन्होंने पुष्करतीर्थ को सर्वप्रथम और सबसे अधिक महत्वपूर्ण बताया है। कहा जाता है कि अन्य तीर्थो का फल तब तक अपूर्ण ही रहता है, जब तख कि पुष्कंर में स्नान न कर लिया जाए। तो प्रिय पाठको आज के अपने इस लेख मे हम राजस्थान के अजमेर में स्थित पुष्कर झील या पुष्करतीर्थ की यात्रा करगें, और उसके धार्मिक महत्व को समझेंगे।पुष्कर तीर्थ का महात्म्यपद्मपुराण मे लिखा है कि — पुषकर में जाना बडा कठिन है। पुष्कर में तपस्या दुष्कर है। पुष्कर का दान भी दुष्कर है और पुषकर मे वास करना तो और भी दुष्कर है। पापों के नाशक, दैदीप्यमान तीन पुष्कर क्षेत्र है, इनमें सरस्वती बहती है। यह आदिकाल से सिद्ध तीर्थ है। इनके तीर्थ होने का कोई (लौकिक) कारण हम नहीं जानते। जिस प्रकार देवताओं में मधुसूदन सर्वश्रेष्ठ है, वैसे ही तीर्थों में पुंंष्कर आदितीर्थ है। सौ वर्षों से लगातार कोई अग्निहोत्र की उपासना करे या कार्तिकी पूर्णिमा की एक रात पुष्कर में वास करे, दोनों का फल समान है।पुष्कर की धार्मिक पृष्ठभूमिपद्मपुराण के अनुसार सृष्टि के आदि में पुष्कंर तीर्थ के स्थान में वज्रनाभ नामक राक्षस रहता था। वह बच्चों को मार दिया करता था। उसी समय ब्रह्मा जी के मन यज्ञ करने की इच्छा हुई। वे भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल से जहां प्रकट हुए थे, उस स्थान पर आए और वहां अपने हाथ के कमल को फेंकर उन्होंने उससे वज्रनाभ राक्षस खो मार दिया। ब्रह्मा जी के हाथ का कमल जहां गिरा था, वहां सरोवर बन गया। उसे पुष्कंर कहते है।ब्रह्म सरोवर कुरूक्षेत्र एशिया का सबसे बडा सरोवरचंद्र नदी के उत्तर, सरस्वती नदी के पश्चिम, नंदन स्थान के पूर्व तथा कनिष्ठ पुष्कर के दक्षिण के मध्यवर्ती क्षेत्र को यज्ञवेदी बनाया। इस यज्ञवेदी में उन्होंने ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुषकर, तथा कनिष्ठ पुष्कंर, ये तीन पुष्कर तीर्थ बनाए। ब्रह्माजी के यज्ञ मे सभी देवता तथा ऋषि पधारे। ऋषियों ने आसपास अपने आश्रम बना लिए। भगवान शंकर भी कपालधारी बनकर पधारे।कैलाश मानसरोवर की यात्रा – मानसरोवर यात्रा की सम्पूर्ण जानकारीयज्ञारंभ में सावित्री देवी ने आने में देर की। यज्ञ मुहूर्त बीता जा रहा था। इससे ब्रह्मा जी ने गायत्री नाम की एक गोपकुमारी से विवाह करके उन्हें यज्ञ में साथ बैठाया। जब सावित्री देवी आई, तब गायत्री को देखकर रूष्ट हो वहां से पर्वत पर चली गई, और वहां उन्होंने दूसरा यॉ किया। कहा जाता है कि यही भगवान वाराह ब्रह्मा जी के नासाछिद्र से प्रकट हुए थे। अतः तीनो पुष्करतीरथो के अतिरिक्त ब्रह्मा जी, वाराह भगवान, कपालेश्वर शिव, पर्वत पर सावित्री देवी और ब्रह्मा जी के प्रधान ऋषि अगस्त्य, ये इस क्षेत्र के मुख्य देवता है।पुष्कर तीर्थ के सुंदर दृश्यपुष्कर के दर्शनीय स्थलघाटपुषकर के किनारों पर गौघाट, ब्रह्मघाट, कपालमोचन घाट, यज्ञ घाट, बदरीघाट, रामघाट, और कोटितीर्थ घाट पक्के बने है। पुष्कर सरोवर से सरस्वती नदी निकलती है, जो साबरमती से मिलने के बाद लूनी नदी कही जाती है।सरोवरपुष्कंर सरोवर तीन है। पहला ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर है। इसके देवता ब्रह्माजी है। दूसरा मध्य (बूढ़ा) पुष्कंर है। इसके देवता विष्णु जी है। तीसरा कनिष्ठ पुष्कंर है। इसके देवता रूद्र है।ब्रह्माजी का मंदिरपुष्कर का मुख्य मंदिर ब्रह्माजी का मंदिर है। यह सरोवर से थोडी ही दूरी पर स्थित है। मंदिर में चतुर्मुख ब्रह्माजी की दाईं ओर सावित्री देवी तथा बाईं ओर गायत्री देवी का मंदिर है। पास में ही एक ओर सनकादि मुनियों की मूर्तियां है। एक छोटे से मंदिर में वही नारदजी की मूर्ति है। एक मंदिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारदजी की मूर्तियां है।श्री बदरीनारायण जी का मंदिरपुष्कंर का दूसरा मंदिर श्री बदरीनारायण जी का मंदिर है। यहां का प्राचीन वाराह मंदिर मुसलमान बादशाही के समय नष्ट कर दिया गया था। अब जो वाराह मंदिर है, वह उसके बाद का बना हुआ है।शुद्धवापी -गया कुंडपुष्कंर के पास शुद्धवापी नाम का गया कुंड है। यहां पर लोग श्राद्ध करते है।सावित्री देवी का मंदिरपुष्करसरोवर से एक ओर एक पर्वत की चोटी पर सावित्री देवी का मंदिर है। इसमें तेजोमयी सावित्री देवी की प्रतिमा है।आत्मेश्वर महादेव का मंदिरयह पुष्कर के मुख्य मंदिरों मे से एक है। यह बस्ती के बाहर है। लोग इसे कपालेश्वर या अटपटेश्वर महादेव भी कहते है। इस मंदिर में जाने के लिए गुफा के समान संकरे रास्ते से होकर जाना पड़ता है। इन मंदिरों के अतिरिक्त श्री रमा वैकुंठ मंदिर भी यहां का एक अच्छा मंदिर है। इसे श्री रंगनाथ जी का मंदिर भी कहा जाता है।गायत्री मंदिरदूसरी ओर दूसरी पहाड़ी की चोटी पर गायत्री मंदिर है। यह गायत्री मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां देवी सती का मणिबंध गिरा था।अगस्त्य कुंडपुष्करतीर्थ से कुछ दूर यज्ञ पर्वत है। यज्ञ पर्वत के.पास अगस्त्य ऋषि का आश्रम है, और अगस्त्य कुंड है। पुंंष्कर मे स्नान करने के बाद अगस्त्य कुंड मे स्नान करने से ही पुष्कर की यात्रा पूर्ण मानी जाती है। यज्ञ पर्वत के ऊपर से निकलते जलस्रोत का उद्गम परम पवित्र माना जाता है। इसका दर्शन ही पापनाशक माना गया है। यहां गोमुख से पानी गिरता है।नागतीर्थयज्ञ पर्वत मे नीचे एक स्थान पर नागतीर्थ है। वहां नागकुंड है। नागपंचमी को नागकुंड में स्नान करके दूध चढ़ाने का महात्म्य है। यहां नागकुंड, चक्रकुंड, सूर्यकुंड, पदमकुंड, तथा गंगाकुंड है।पांच नाम पुष्करपुष्कर मे सरस्वती नदी के स्नान का सर्वाधिक महत्व है। यहां सरस्वती का नाम प्राची सरस्वती है। यहां वह पांच नामो से बहती है। सुप्रभा, कांचना, प्राची, नंदा, विशालिका। पुष्कर का स्नान कार्तिक पूर्णिमा को सर्वाधिक पुण्य माना गया है।राम वैकुंठनाथ मंदिर पुष्करपुष्कर शहर मे सबसे विशाल मंदिर है। वैष्णव संप्रदाय के रामानुजाचार्य सखा के भक्तों का यह प्रधान मंदिर है। इस मंदिर का विमान और गोपुरम जैखम संहिता में दिए हुए वास्तुकला पर आधारित है। पत्थर से बने विमान पर 361 देवी देवताओं की मूर्तियां है।महादेव मंदिर पुष्करयहां संगमरमर से बनी भगवान महादेव की सुंदर मूर्ति है। इस मूर्ति के पांच चेहरे है। और सिर पर बहुत ही सुंदर जटाएँ है। इस मंदिर का निर्माण ग्वालियर के अन्नाजी सिंधिया ने किया था।पुष्कर की परिक्रमापुष्करतीर्थ की चार परिक्रमाएं है। पहली ( अंतर्वेदी) परिक्रमा 6 मील की है। दूसरी (मध्यवेदी) परिक्रमा 10 मील की है। तीसरी (प्रधानवेदी) परिक्रमा 24 मील की है। तथा चौथी (बहिर्वेदी) परिक्रमा 48 मील की है। इन परिक्रमाओं मे ऋषि मुनियों के आश्रम स्थान है। पुष्कर सरोवर तीर्थ यात्रा पर आधारित हमारा यह लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है। यदि आपके आसपास कोई ऐसा धार्मिक, ऐतिहासिक, या पर्यटन स्थल है जिसके बारे मे आप पर्यटकों या तीर्थ यात्रियों को बताना चाहते है। या फिर अपनी किसी तीर्थ यात्रा, टूर, पिकनिक आदि के अनुभव हमारे पाठकों के साथ शेयर करना चाहते है तो आप अपना लेख कम से कम 300 शब्दों मे यहां लिख सकते है Submit a post हम आपके द्वारा लिखे गए लेख को आपकी पहचान के साथ अपने इस प्लेटफार्म पर शामिल करेगें हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:–[post_grid id=”6042″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल राजस्थान पर्यटन