पारसनाथ का किला बढ़ापुर का ऐतिहासिक जैन तीर्थ स्थल माना जाता है Naeem Ahmad, April 16, 2020May 5, 2020 उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में नगीना रेलवे स्टेशन से उत्तर पूर्व की ओर बढ़ापुर नामक एक कस्बा है। वहां से चार मिल पूर्व की कुछ प्राचीन अवशेष दिखाई पड़ते है। इन्हें पारसनाथ का किला कहते है। इस स्थान का नामकरण तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के नाम पर हुआ लगता है। Contents1 पारसनाथ किले का इतिहास1.1 भगवान महावीर की बलुआ श्वेत पाषाण की प्रतिमा1.2 भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा1.2.1 सिरदल – स्तंभ1.2.2 द्वार स्तंभ1.2.3 अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां1.2.4 जैन धार्मिक स्थलों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- पारसनाथ किले का इतिहास पारसनाथ के इस किले के संबंध में अनेक जनश्रुतियां प्रचलित है। एक जनश्रुति के अनुसार पारस नामक किसी राजा ने यहाँ किला बनवाया था। कहते है कि उसने यहाँ कई जैन मंदिरों का भी निर्माण कराया था। हांलाकि इस समय यहां कोई जैन मंदिर नहीं है। अपितु प्राचीन मंदिरों और किले के भग्नावशेष चारों ओर कई वर्ग मील के क्षेत्र में बिखरे पड़े है। इन अवशेषों का अभी तक विधिवत अध्ययन नहीं हुआ है। कुछ उत्खनन अवश्य हुआ है। समय समय पर यहां जैन मूर्तियों या जैन मंदिरों से संबंधित अन्य सामग्री उपलब्ध होती रहती है। उपलब्ध सामग्री के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि प्राचीन काल में यह स्थान जैन धर्म का प्रमुख केंद्र था। यहां कई तीर्थंकरों के पृथक पृथक मंदिर बने हुए थे। पारसनाथ का मंदिर इन सब में प्रमुख था। इसलिए इस स्थान का नाम पारसनाथ पड़ गया। निश्चय ही मध्यकाल में यहां एक महत्वपूर्ण मंदिर था। वह सुसम्पन्न और समृद्ध था। मंदिर के चारों ओर सुदृढ़ कोट बना हुआ था। इसी को पारसनाथ का किला कहा जाता है। सन् 1952 से पूर्व तक इस स्थान पर बड़े भयानक जंगल थे। इसलिए यहां पहुंचना कठीन था। सन् 1952 में पंजाब से आये पंजाबी काश्तकारों ने जंगल साफ करके भूमि को कृषि योग्य बना लिया है। और उस पर कृषि कार्य कर रहे है। प्रारंभ में कृषकों को बहुत सी पुरातन सामग्री मिली थी। उसके बाद भी कभी कभी समय समय पर मिल जाती रही। यहां से जो सामग्री मिली है कुछ का परिचय हम अपने पाठकों के समक्ष नीचें रख रहे है :—- भगवान महावीर की बलुआ श्वेत पाषाण की प्रतिमा प्रतिमा अवगाहना पौने तीन फूट है। यह प्रतिमा एक शिलाफलक पर है। महावीर की उक्त मूर्ति के दोनों ओर नेमिनाथ और चन्द्रप्रभ भगवान की खडगासन प्रतिमा है। इसका अलंकरण दर्शनीय है। अलंकरण में तीनों प्रतिमाओं के प्रभामंडल खिले हुए कमल की शोभा को धारण करते है। भगवान महावीर अशोक वृक्ष के नीचे विराजमान है। वृक्ष के पत्तों का अंकन कलापूर्ण है। प्रतिमा के मस्तक पर छत्रत्रयी सुशोभित है। मस्तक के दोनों ओर पुष्प मालाधारी विद्याधर है। उनके ऊपर गजराज दोनों ओर प्रदर्शित है। तीनों प्रतिमाओं के इधर उधर चार चमरवाहक इंद्र खड़े है।प्रतिमा के सिहासन के बीच में धर्म चक्र है। उसके दोनों ओर सिंह अंकित है। चक के ऊपर कीर्तिमुख अंकित है। सिंहासन में एक ओर धन के देवता कुबेर, भगवान की सेवा मे उपस्थित है और दूसरी ओर गोद में बच्चा लिए हुए अंबिका देवी है। सिंहासन पर ब्रह्म लिपि में लेख भी उत्कीर्ण है जो इस प्रकार पढ़ा गया है:– श्री विरूद्धमनमिदेव । स. 1067 राणलसुत भरथ प्रतिम प्रठति ।।अर्थात :– संवत् 1067 में राणल के पुत्र भरत ने श्री वर्धमान स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की। भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ की एक विशाल पद्यासन प्रतिमा बढापुर गांव के एक मुसलमान झोजे के घर से मिली थी। जिसे वह उक्त किले के सबसे ऊंचे टीले से नक्काशीदार पत्थर समझ उठा लाया था। इसको उलटा रखकर वह नहाने और कपड़े धोने आदि के कामों में लाता था। एक वर्ष के भीतर वह और उसका सारा परिवार नष्ट हो गया। घर फूट गया। लोगों का विश्वास है कि भगवान की अविनय का ही यह परिणाम है। यह खंडित कर दी गई है। इसके हाथ पैर और मुंह खंडित है। सर्प कुंडली के आसन पर भगवान विराजमान है। उनके सिर पर सर्पफण मंडल है। उनके अगल बगल में नाग नागिन अंकित है। चरणपीठ पर दो सिंह बने हुए हैं। जिस सातिशय मूर्ति के कारण इस किले को पारसनाथ का किला कहा जाता था संभंवतः वह मूर्ति यही रही हो। सिरदल – स्तंभ इन मूर्तियों के अतिरिक्त कुछ सिरदल – स्तंभ आदि भी मिले है। एक सिरदल के मध्य में कमल पुष्प और उनके ऊपर बैठे हुए दो सिंहों वाला सिंहासन दिखाई देता है। सिंहासन के ऊपर मध्य में पद्यासन मुद्रा में भगवान ध्यानलीन है। उनके दोनों ओर दो खडगासन तीर्थंकर मूर्तियों का अंकन किया गया है। फिर इन तीनों मूर्तियों के इधर उधर भी इसी प्रकार की तीन तीन मूर्तियां बनी हुई है। इन तीनो भागो के इधर उधर एक एक खडगासन मूर्ति अंकित है। पारसनाथ का किला द्वार स्तंभ कुछ द्वार स्तंभ भी मिले है। एक द्वार स्तंभ में मकरासीन गंगा और दूसरे स्तंभ में कच्छप वाहिनी यमुना का कलात्मक अंकन है। इन देवियों के अगल बगल में उनकी परिचारिकाएँ है। ये सभी स्तनहार, मेखला आदि अलंकरण धारण किये हुए हैं। स्तंभ के ऊपर की ओर पव्रावलीका मनोरम अंकन है। स्तंभों पर गंगा यमुना का अंकन गुप्तकाल से मिलता है।कुछ स्तंभ ऐसे भी प्राप्त हुए हैं, जिन पर दंडधारी द्वारपाल बने है। देहली के भी कुछ भाग मिले है। जिन पर कल्पवृक्ष मंगल कलश लिये हुए दो दो देवता दोनों ओर बने हुए है। एक पाषाण फलक पर संगीत सभा का दृश्य उत्तकीर्ण है। इसमें अलंकरण के अतिरिक्त नृत्य करती हुई एक नर्तकी तथा मृदंग मंजीरवादक पुरूष दिखाई पड़ते है। अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां पारसनाथ के किले से कुछ अलंकृत ईटें भी मिली है। यहां के कुछ अवशेष और मूर्तियां नगीना और बिजनौर के दिगंबर जैन मंदिरों में पहुंच गई है। शेष अवशेष यही एक खेत में पड़े हुए है। इन पुरातत्व अवशेषों और अभिलिखित मूर्तियों से इस निर्णय पर पहुंचा जा सकता है कि 9वी – 10वी या उससे पूर्व की शताब्दियों में यह स्थान जैन धर्म का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां जो व्यापक विध्वंस दिखाई पड़ता है। उसके पिछे किसका हाथ रहा है या क्या कारण रहा है। निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यदि यहां की खुदाई करायी जाये तो शायद संभव हो। और यहां से अनेक प्राचीन कलाकृतियाँ मिल सके तथा पारसनाथ किले के इतिहास पर भी कुछ प्रकाश पड़ सके। यह स्थान तथा इसके आसपास के नगर जैन धर्म के केन्द्र रहे है। इस बात के कुछ प्रमाण प्रकाश में आये है। यह स्थान नगीना के बिल्कुल निकट है। नगीना में जैन मंदिर के पास का मुहल्ला यतियों का मुहल्ला कहलाता है। यति, जैन त्यागी वर्ग का ही एक भेद था। इस नाम से ही इस नगर के इस भाग में जैन यतियों के प्रभाव का पता चलता है।नगीने से 15 किमी की दूरी पर नहटौर नामक एक कस्बा है। सन् 1905 में इस कस्बे के पास तांबे का एक पिटारा निकला था। जिसमें 24 तीर्थंकरों की मूर्तियां थी। सम्भवतः यह मुस्लिम आक्रमणकारियों के भय से जमीन में दबा दी गई होगी। ये मूर्तियां अब नहटौर के जैन मंदिर में है। नहटौर के पास गागंन नाम की एक नदी है। उसमें से 1956-57 में एक पाषाण फलक निकला था। उसके ऊपर पांच तीर्थंकर मूर्तियां है। यह भी जैन मंदिर नहटौर में स्थापित है। नहटौर से तीन मिल की दूरी पर पाडला गरीबपुर नाम का एक गाँव है। उस गांव के बाहर एक टीले पर एक पद्यासन जैन प्रतिमा मिट्टी में दबी पड़ी थी। उसका कुछ भाग निकला हुआ था। ग्रामीण लोग इसे देवता मानकर पूजते थे। 1969-70 में जैनियों ने यहां की खुदाई कराई। खुदाई के फलस्वरूप भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा निकली। अब नहटौर के जैन समाज ने वहां मंदिर बनवा दिया है। बिजनौर हस्तिनापुर जैन तीर्थ से केवल 13 मिल की दूरी पर गंगा नदी के दूसरे तट पर स्थित हैं। हस्तिनापुर के समीप होने और उपयुक्त मूर्तियां निकलने से स्पष्ट है कि बिजनौर जिले में कुछ स्थान विशेषत्या पारसनाथ का टिला व पारसनाथ का किला के आसपास का सारा प्रदेश जैन का प्रमुख केंद्र और प्रभाव क्षेत्र रहा है। जैन धार्मिक स्थलों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- श्रवणबेलगोला कर्नाटक मे स्थित प्रमुख जैन तीर्थ स्थल बैंगलोर से 140 कि.मी. की दूरी पर, हसन से 50 किमी और मैसूर से 83 किलोमीटर दूर, श्रवणबेलगोला दक्षिण भारत पावापुरी जल मंदिर का इतिहास – पावापुरी जैन तीर्थ हिस्ट्री इन हिन्दी राजगीर और बौद्ध गया के पास पावापुरी भारत के बिहार राज्य के नालंदा जिले मे स्थित एक शहर है। यह नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास – Nalanda university history in hindi बिहार राज्य की राजधानी पटना से 88 किमी तथा बिहार के प्रमुख तीर्थ स्थान राजगीर से 13 किमी की दूरी त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव – बड़ा गांव जैन मंदिर खेडका का इतिहास त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव या बड़ा गांव जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान दिल्ली सहारनपुर सड़क शौरीपुर बटेश्वर श्री दिगंबर जैन मंदिर – शौरीपुर का इतिहास शौरीपुर नेमिनाथ जैन मंदिर जैन धर्म का एक पवित्र सिद्ध पीठ तीर्थ है। और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान चन्द्रवाड़ अतिशय क्षेत्र प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर – चन्दवार का प्रसिद्ध युद्ध, इतिहास चन्द्रवाड़ प्राचीन जैन मंदिर फिरोजाबाद से चार मील दूर दक्षिण में यमुना नदी के बांये किनारे पर आगरा जिले में आगरा जैन मंदिर – आगरा के टॉप 3 जैन मंदिर की जानकारी इन हिन्दी आगरा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। मुख्य रूप से यह दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल के लिए जाना जाता है। आगरा धर्म मरसलगंज प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर आतिशय क्षेत्र तीर्थ श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र मरसलगंज (ऋषभनगर) उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में फिरोजाबाद से 22 किलोमीटर दूर है। यहां अब कम्पिल का इतिहास – कंपिल का मंदिर – कम्पिल फेयर इन उत्तर प्रदेश कम्पिला या कम्पिल उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद जिले की कायमगंज तहसील में एक छोटा सा गांव है। यह उत्तर रेलवे की अहिच्छत्र जैन मंदिर – जैन तीर्थ अहिच्छत्र का इतिहास अहिच्छत्र उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित है। आंवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सडक मार्ग द्वारा 18 देवगढ़ का इतिहास – दशावतार मंदिर, जैन मंदिर, किला कि जानकारी हिन्दी में देवगढ़ उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे स्थित है। यह ललितपुर से दक्षिण पश्चिम में 31 किलोमीटर दिल्ली के जैन मंदिर – श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर, नया मंदिर, बड़ा मंदिर दिल्ली दिल्ली भारत की राजधानी है। भारत का राजनीतिक केंद्र होने के साथ साथ समाजिक, आर्थिक व धार्मिक रूप से इसका भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश तीर्थ स्थलजैन तीर्थ स्थलतीर्थ स्थल