पातालेश्वर मंदिर कालपी धाम जालौन उत्तर प्रदेश Naeem Ahmad, August 30, 2022 जालौन जिले के कालपी नगर में यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर कालपी किले के पश्चिमी भाग पर यह पातालेश्वर मन्दिर स्थित है । इस पातालेश्वर नाम के शिवलिंग की अत्याधिक मान्यता है। यह शिवाला किलागिर्द मुहाल में किले के समीप बना हुआ है जिसमें शिवजी की मूर्ति कुछ निचाई में स्थित है जहाँ बहुत ठंडक रहती है। Contents1 पातालेश्वर मंदिर का इतिहास2 पातालेश्वर शिवलिंग वर्णन3 पातालेश्वर मंदिर की वास्तुशिल्प3.0.1 पातालेश्वर मंदिर का महात्म्य3.0.1.1 इस मंदिर का महात्म्य निम्न श्लोक से स्पष्ट है :- —4 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—– पातालेश्वर मंदिर का इतिहास यह अत्यन्त प्राचीन शिवाला है। इस पातालेश्वर मंदिर के नजदीक अग्रेजों का कब्रिस्तान है तथा यह मंदिर बहुत पुराना है। यह मंदिर 5000 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है। द्वापर में यही मूर्ति मणिकेश्वर महादेव के नाम से विख्यात थी। कालपी में जब किले का निर्माण हुआ तब गहराई में होने के कारण यही पातालेश्वर के नाम से पुकारा जाने लगा। किवंदन्ती के अनुसार कौरवों तथा पाण्डवों के गुरू द्रोणाचार्य जी ने पुत्र प्राप्ति हेतु इसी शिवलिंग का पूजन किया था जिससे भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें अश्वत्थामा नामक अमरत्व को प्राप्त पुत्र दिया। इस मंदिर का निर्माण मराठा काल में हुआ था। इसके पकरोटे में श्री मणिकेश्वर जी का मंदिर है तथा पीछे बायीं ओर नाग मंदिर भी हैं जहाँ पर एक शिलालेख भी हैं जो पढ़ने में नहीं आता तथा सामने सीताराम जी की मठिया है। मंदिर में लगे एक पट्ट के अनुसार यह मणिकेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह मूर्ति 5000 वर्ष से अधिक प्राचीन है। इसका पूजन पाँडव गुरू द्रोणाचार्य ने पुत्र प्राप्ति हेतु किया था। इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना है। जनश्रुति के अनुसार यह शिवलिंग स्वंयभू शिवलिंग हैं एवं इसका कोई पता नहीं है कि यह कितना गहरा है। शिवपुराण के सहस्त्रों नामों में मणिकेश्वर नाम भी मिलता है। मंदिर निर्माण शैली से ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर का जीर्णोद्वार मरहठा काल में हुआ होगा। परन्तु यह मंदिर मरहठा काल से भी प्राचीन है। इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यह मंदिर चन्देल कालीन कालपी किले के शेष बचे एक मात्र विध्वसावशेष के बिल्कुल नजदीक है एव किले से इसकी अधिकतम दूरी 200 मीटर होगी। कालपी का किला अत्यन्त विशाल था और उसकी विशालता की परिधि में इस मंदिर का आना स्वभवतः इंगित करता है कि यह मंदिर उस काल में भी रहा होगा। इस पातालेश्वर शिवलिंग के गर्भगृह के बाहर वृक्ष के नीचे भी एक शिवलिंग हैं। पातालेश्वर मंदिर कालपी धाम पातालेश्वर शिवलिंग वर्णन लाल बलुआ पत्थर से निर्मित 25 इंच ऊँचा एवं 12 इंच चौड़ा यह विशाल भव्य शिवलिंग पश्च गुप्तकाल का परिचय देता हैं। चित्रकूट में गुप्त गोदावरी के द्वार पर भी इसी शिवलिंग से मिलता जुलता एक शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग एक लिंग के ऊपर बना है। जिसमें चारों दशाओं की ओर एक एक मुख अंकित हैं। चारों मुखों के ऊपर लिंग के अग्रभाग की भाँति शिश्व की आकृति एवं उसके ऊपर बाहय झिल्ली को एक चौतरफा गोल बेल के रूप में वर्गकृत करके अंकित किया गया है। इस शिवलिंग का प्रत्येक मुख चार वर्णों के प्रत्येक वर्ण का घोतक है। प्रत्येक मुख के ऊपर जटा मुकुट धारण है एवं ललाट के मध्य काम को नए करने वाला तृतीय नेत्र अंकित है चारों मुखों का भाव शान्त है। इस क्षेत्र का यह अत्यन्त पुरातात्विक महत्व का शिवलिंग है। पातालेश्वर मंदिर की वास्तुशिल्प यह पातालेश्वर मंदिर दो कक्षों के समूह से निर्मित है तथा पूर्वा भिमुख है। पूर्वी कक्ष मण्डप की भाँति उपयोग में आता है एवं पश्चिमी कक्ष मंदिर का गर्भगृह चौकोर है।इसमें 5 सीढ़ियों से नीचे उतर कर जाना पड़ता है। इस कक्ष के ऊपर अष्टकोणीय विमान है । जिसके ऊपर केन्द्र में कमलदल के मध्य कलश स्थापित है।गुम्बद एवं अष्टभुजी आधार के सन्धि स्थल पर चारों ओर उठी हुई कमल की पंखुड़ियों अंकित है। इस गर्भगृह के ऊपर अष्टभुजी गुम्बद से अलग चारों कोनों पर एक एक ऊँचे आधार पर स्थित चतुर्भुजी , चतुर्द्धरीय मठिया अंकित हैं। इस गर्भगृह के बाहर पूर्व की ओर अर्चना मण्डप की गोल डाट की सादा छत हैं जिसके केन्द्र में कलश एवं पताका स्तम्भ लगा है। गर्भगृह की ऊपरी बाहय दीवार पर तोड़ों पर आधारित एक छज्जा भी बना हैं जिसके ऊपर चौतरफा मेहराब अंकित हैं। पातालेश्वर मंदिर का महात्म्य इस मंदिर का महात्म्य निम्न श्लोक से स्पष्ट है :- — यत्रकापिमृतः कश्चित्तत्पाश्वान्तिक वाहिनीमू । कालिन्दी मनसाध्यायन बैकुण्ठे लभते स्थितम् ॥ ततः पूर्व दिशि आजन्माणिक्येश्वर इत्यसों । राजते श्री महादेव : सर्वभीष्ट प्रदायकः ॥ इस मन्दिर की महत्ता तथा इसमें स्थापित मणिकेश्वर शिवलिंग का वर्णन हमें इस प्रकार मिलता है – कि दानेः कि तपोभिश्च कि तीर्थवाहुश्रमैः । मणिकयेश्वर सत्ुण्य क्षेत्र यावत सेयते । अस्तु जब तक माणिकेश्वर ( पातालेश्वर ) पवित्र क्षेत्र का सेवन न किया जाय तब तक दान, तप, तथा तीर्थ आदि से जिनमे बहुत परिश्रम होता है , क्या लाभ ? तत्र सचरता पुसां कांर्य्य सिद्धिरतोकिकी । इहामुभ खावाप्तिभवेदत्र॒ न संशयः ॥ अर्थात वहाँ पर भूमण करने वाले पुरुषो की औलाकिक कार्य सिद्धि होती है। और यहाँ तथा परलोक में भी सुख की प्राप्ति होती है। इसमें सन्देह नही। ऐसा प्रतीत होता है कि मन्दिर का जीर्णोद्वार मरहठा काल में हुआ होगा। परन्तु मन्दिर की भौगोलिक स्थित का अध्यन करने से ज्ञात होता है कि यह मन्दिर चन्देल कालीन कालपी किले के शेष बचे एक मात्र विध्वंसावशेष के बिल्कुल निकट है एवं किले से इसकी अधिकतम दूरी दो तीन फर्लांग होगी। कालपी का किला अत्यन्त विशाल था और उसकी विशालता की परिधि में इस मन्दिर का आना स्वाभावतः इंगित करता है कि यह मन्दिर चन्देल काल में भी रहा होगा। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—– चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जो दतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटन