पांवटा साहिब गुरूद्वारा – पांवटा साहिब पर्यटन, दर्शनीय स्थल, और इतिहास
Naeem Ahmad
गुरुद्वारा पांवटा साहिब, हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के पांवटा साहिब में एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा है। पांवटा साहिब पर्यटन स्थल के रूप में भी काफी महत्वपूर्ण स्थान है। पहाडी क्षेत्र में होने के कारण पांवटा साहिब का तापमान भी ठंडा रहता है।
यह गुरुद्वारा सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी की याद में बनाया गया था। दशम ग्रंथ यहाँ गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा लिखा गया था। इसलिए, गुरुद्वारा सिख धर्म की दुनिया के अनुयायियों के बीच एक उच्च ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। गुरुद्वारा में भक्तों द्वारा दान किए गए शुद्ध सोने से बना एक पालकी “पालकी” है।
श्री तालाब अस्थाना और श्री दस्तार अस्थान सिख तीर्थ के अंदर महत्वपूर्ण स्थान हैं। श्री तालाब अस्थाना का उपयोग वेतन के वितरण के लिए किया जाता है और श्री दस्तार अस्थान का उपयोग पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए किया जाता है।
एक पौराणिक मंदिर भी गुरुद्वारा से जुड़ा हुआ है जिसे हाल ही में गुरुद्वारा परिसर के आसपास के क्षेत्र में फिर से बनाया गया है। मंदिर देवी यमुना को समर्पित है। कवि दरबार, गुरुद्वारा के पास एक प्रमुख स्थान कविता प्रतियोगिताओं को आयोजित करने का स्थल है। गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियार और पेन को पांवटा साहिब गुरुद्वारा के पास एक संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है। गुरुद्वारा विभिन्न राज्यों के पर्यटकों द्वारा दौरा किया जाता है। यह स्थल यमुना नदी के तट पर स्थित है।
पांवटा साहिब के सुंदर दृश्य
पांवटा साहिब का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ पांवटा साहिब
पांवटा साहिब गुरूद्वारा हिमाचल प्रदेश राज्य में एक ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण गुरूद्वारा है। यह गुरूद्वारा यमुना नदी के किनारे बना हुआ है। गुरूद्वारे के पीछे यमुना नदी कि बडा घाट है। विशाल प्रवेशद्वार से अंदर जाने पर 50×100 फुट का दरबार साहिब है। जिसके बीच में सोने की मेहराबदार पालकी में गुरू ग्रंथ साहिब विराजमान है। यहां गुरूवाणी का पाठ निरंतर चलता रहता है। गुरूद्वारे की इमारत दो मंजिला तथा संगमरमर के पत्थरों से निर्मित है।
28 मार्च 1685 के दिन नाहन का राजा चक्क नानकी आया, और उसने गुरू गोविंद सिंह जी को राजदरबार की ओर से नाहन आने का न्यौता दिया। गुरू गोविंद सिंह जी सहपरिवार तथा मुखी सिक्खों सहित 14 अप्रैल के दिन नाहन पहुंचे। नाहन में गुरू साहिब ने सिरमौर रियासत में रहना स्वीकार किया। इस मकसद के लिए गुरू साहिब ने यमुना नदी के किनारे 29 अप्रैल 1685 के दिन पोंटा नगर की नींव रखी। इस नगर में सबसे पहले किला और रहने के लिए घर बनाये गए। धीरे धीरे यहां 52 कवि तथा अन्य कलाकार भी गुरू साहिब के दरबार में एकत्रित हो गए। गुरू साहिब यहां साढ़े तीन साल रहे और 28 अक्टूबर 1685 के दिन चक्क नानकी की ओर चल पड़े।
यहां रहते आपको गढ़वाल के रजवाड़े फतह शाह के साथ 18 सितंबर 1688 क दिन भंगाणी गांव में एक लड़ाई भी लड़नी पड़ी। पांवटा साहिब और भंगाणी में गुरू साहिब की याद में गुरूद्वारे बने हुए है।
पोंटा साहिब गुरूद्वारे का जीर्णोद्धार सन् 1823 में बाबा कपूर सिंह द्वारा कराया गया। जिसका सारा खर्च सरदार साहिब सिंह संधनवालिया द्वारा किया गया। यहां पोंटा साहिब, भंगाणी, नाहन, रिवालसर तथा नदौण में गुरू साहिब की यादगार तथा इतिहास का जिक्र जरूर किया गया है। किंतु ये सभी स्थान आनंदपुर साहिब के साथ सम्बोधित होने पर भी इस नगर से बहुत दूर है।
पोंटा साहिब में गुरू का लंगर 24 घंटे चलता है। गुरूद्वारा लगभग 5 एकड़ के क्षेत्रफल में है। गुरू कमेटी की ओर से यहां निशुल्क अतिथिगृह, औषधालय, तथा विद्यालयों का संचालन किया जाता है। यहां होला मोहल्ला और गुरू पर्व बडी धूमधाम से मनाये जाते है।
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