पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना को अपने राज्य की राजधानी बनाया और यहीं पर एक किले का निर्माण किया। पन्ना का प्राचीन नाम “परना” है। पन्ना नगर के पश्चिम में किल-किला नदी दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होती है। इस नदी के बाये तट पर श्री पदमा देवी का एक छोटा सा मठ है। इस मठ के उत्तर की ओर एक पुरानी बस्ती है, उसे पुराने पन्ना के नाम से जाना जाता है। पूर्व की ओर किलकिला नदी का जल प्रपात है, जिसे किलकिला वाटरफॉल के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर निवास करने वाले भगवती पुजारी के पास प्राचीन दस्तावेज हैं जिसमें इस नगर का नाम परना लिखा है।
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पन्ना का इतिहास
कहते है कि यह स्थान सतयुग से प्रसिद्ध था। इसी स्थान से राजा दक्ष ने यज्ञ किया था। यहाँ चह वेदी बनी हुई है जिसमें गिरकर सती से अपने प्राणो की आहुत दी थी। अब यह कुण्ड के रूप में परिणित हो गया है, इसका पानी सदैव गरम रहता है यह स्थल मण्डूप ऋषि की तपस्थली थी। इस स्थान की ओर कहते है पन्ना में गुरू प्राणनाथ ने प्रणामी धर्म का शुभारम्भ किया था प्रणमी धर्म के ग्रन्थ कुलजम ने पन्ना की बडी प्रशंसा की गयी है, तथा सन्दर्भ में यह श्लोक दृष्टिगत है:–
पद्यावति केन शरदे, विंध्य पृष्ठ विराजते।
इंद्राक्षी नाम सादेवी, भविष्यति कलौ युगे।।
इस प्रकार के ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध होते है कि प्राचीन काल में पन्ना चेदि राज में था उसके पश्चात यह चन्देलो के अधिकार में रहा सम्राट अकबर और जहाँगीर के युग तक यह राज्य गौंड के अधिकार में रहा गौंडो के पतन के पश्चात पन्ना मुगल शासन के आधीन हो गया छत्रशाल ने अपने पराक्रम से इस क्षेत्र को विजित किया और इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। महमूद गजनबी ने अनेक मन्दिरों को नष्ट किया था उनका उद्धार छत्रसाल एवं अन्य बुन्देला शासकों ने कराया।

छत्रसाल ने जिस सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण कराया वह मिश्रित वास्तु शिल्प का उत्कृष्ट नमूना है। पहले यह नगर प्राचीर में बेष्ठित था तथा नगर में प्रवेश करने के लिए अनेक द्वार थे। इसके अतिरिक्त नगर के अन्दर अनेक आवासीय महल उपलब्ध होते हैं जिनमें छत्रसाल और उनके परिवार के लोग रहा करते थे। छत्रसाल ने नगर की व्यवस्था इसलिये सुदृढ की ताकि वे मुगलों से अपने राज्य को सुरक्षित रख सके। छत्रसाल की शिवा जी से भेंट सन् 1687 में सतारा में हुई थी। दतिया नरेश शुभकरण से उनकी मलाकात सन् 1670 में हुईं इसी वर्ष उनका युद्ध मुगल सेनापति हिदायी खाँ से हुआ उसके पश्चात छत्रसाल राज्य रक्षा के लिये युद्ध 1728 तक बराबर चलते रहे। उन्होने अनेक युद्धों में मुगल सेनापतियों और उनके संरक्षकों को पराजित किया। कूल मिलाकर छत्रशाल ने 63 युद्ध किये। विक्रमी संवत् 1744 में उनका विधिवत राज्यारोहण हुआ तथा उनका अन्तिम युद्ध मुहम्मद बंगस से हुआ, और उनकी मृत्यु 20 दिसम्बर सन् 1734 दिन शुक्रवार को 4 बजे शाम को हुई। इनकी सन्तानों की संख्या 69 थी किन्तु दो सन्ताने प्रमुख थी। इन्होने अपने बडे पुत्र हृदयशाह को पन्ना का राज्य सौपा और छोटे पुत्र जगतराय को जैतपुर का राज्य सौपा।
पन्ना में निम्नलिखित स्थल दर्शनीय है-
- पन्ना दुर्ग के अवशेष
- छत्रशाल और उनके वंशजो के महल
- जुुुगल किशोर का मन्दिर
- गुरू प्राण नाथ का मन्दिर
- बलदाऊ जी का मन्दिर
- श्री पदमावती देवी का मन्दिर
- राजा दक्ष की यज्ञ वेदी
- जलाशय
पन्ना टाईगर रिजर्व
पन्ना टाइगर रिजर्व मध्य प्रदेश के पन्ना औरछतरपुर जिले में स्थित पन्ना राष्ट्रीय उद्यान औपचारिक रूप से भारत के 22 वें और मध्य प्रदेश में पांचवें बाघ अभयारण्य के रूप में प्रसिद्ध है। 542.67 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करके, पन्ना रिजर्व भारत के मध्य राज्य, मध्य प्रदेश में केन नदी के क्षेत्रों के अलावा खजुराहो से 57 किमी की दूरी पर स्थित है। भारत के पर्यटन मंत्रालय द्वारा पन्ना टाइगर रिजर्व को भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रबंधित और अनुरक्षित राष्ट्रीय उद्यानों के रूप में पाया गया था और इस प्रतिष्ठा ने पार्क को वर्ष 2007 में उत्कृष्टता का पुरस्कार दिलाया।
श्री प्राण नाथ जी मंदिर
श्री प्राण नाथ जी मंदिर पन्ना में श्री प्राणनाथ जी का मंदिर है। महामती प्राण नाथजी मंदिर प्रणामियों का एक महत्वपूर्ण तीर्थ है, और शरद पूर्णिमा की अवधि पर विभिन्न प्रकार के भक्तों को आकर्षित करता है। ऐसा माना जाता है कि महामती प्राणनाथजी ग्यारह साल तक इस स्थान पर रहे थे। जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर के एक गुंबद के अंदर समाधि ली। मंदिर 1692 में बना था और इसके गुंबदों और कमल की संरचनाओं में मुस्लिम और हिंदू स्थापत्य शैली है। मंदिर छह घटकों में विभाजित है, विशेष रूप से श्री गुम्मतजी, श्री बंगाजी, श्री सद्गुरु मंदिर, श्री बैजुराजी मंदिर, श्री चोपड़ा मंदिर और श्री खिजड़ा मंदिर।

श्री जुगल किशोर जी मंदिर
श्री जुगल किशोर जी मंदिर का निर्माण पन्ना के चौथे बुंदेला राजा, राजा हिंदुपत सिंह ने 1758 से 1778 तक अपने शासनकाल के दौरान किया था। किंवदंतियों के अनुसार, इस मंदिर के गर्भ गृह में रखी गई मूर्ति को ओरछा के माध्यम से वृंदावन से लाया गया है। भगवान के आभूषण और पोशाक बुंदेलखंडी शैली को दर्शाते हैं। मंदिर में बुंदेला मंदिरों की सभी स्थापत्य विशेषताएं हैं जिनमें एक नट मंडप, भोग मंडप और एक प्रदक्षिणा पथ शामिल हैं।
रानेह फॉल्स
रानेह जलप्रपात प्रसिद्ध जलप्रपात में से एक है, जिसका नाम इस क्षेत्र के तत्कालीन शासक राजा राणे प्रताप के नाम पर रखा गया है। गंतव्य के पास में स्थित, झरना केन और खुद्दार नदियों के संगम पर उभरा। 30 मीटर गहरी और लगभग 5 किमी लंबी घाटी बनाते हुए, केन घड़ियाल अभयारण्य में गिरते हैं। फॉल्स का परिवेश क्रिस्टलीय ग्रेनाइट पत्थरों से सुशोभित है, जो गुलाबी, लाल और ग्रे से लेकर विभिन्न रंगों में मौजूद है। कुछ बड़े और छोटे झरनों के अलावा, जो असेंबल में बनते हैं, कुछ मौसमी फॉल्स मानसून के मौसम में भी दिखाई देते हैं।
पांडव जलप्रपात और गुफाएं
पांडव जलप्रपात और गुफाएं पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में स्थित हैं और पन्ना शहर से लगभग 12 किमी दूर हैं। फॉल्स राष्ट्रीय राजमार्ग के करीब हैं और स्थानीय झरनों से निकलने वाली धाराओं से बनते हैं। ये विशाल झरने साल भर पानी से भरे रहते हैं और मानसून के दौरान भी यहां जाया जा सकता है। इस 100 फीट ऊंचे जलप्रपात के तल पर एक बड़ा कुंड बना हुआ है। इस बड़े जलकुंड के पास कुछ प्राचीन गुफाएं हैं। ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इन गुफाओं में शरण ली थी। यह क्षेत्र घनी वनस्पतियों से घिरा हुआ है और स्थानीय लोगों के साथ-साथ यात्रियों के लिए भी एक आदर्श पिकनिक स्थल है। ️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️
केन मगरमच्छ अभयारण्य
केन मगरमच्छ अभयारण्य या केन घड़ियाल रिजर्व एक महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण है। जिसे अक्सर पर्यटकों द्वारा देखा जाता है। खजुराहो मंदिरों के दर्शनीय स्थलों की यात्रा पूरी करने के बाद, पर्यटक रानेह फॉल और उसके आसपास के केन घड़ियाल रिजर्व की यात्रा करना पसंद करते हैं। यह लगभग है। खजुराहो से 25 किमी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। अभयारण्य 45.02sq.km के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह पन्ना राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में एक प्रकृति पर्यटन स्थल है। कई खूबसूरत नदियाँ हैं जो मध्य भारत की विंध्य पहाड़ी श्रृंखला से निकलती हैं। सबसे सुंदर में से एक केन नदी या कियान है। नदी उत्तर दिशा में बहती है जब तक कि यह पवित्र नदी गंगा से नहीं मिलती।
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