समुंद्री यातायात की शुरुआत मनुष्य ने ईसा से हजारों साल पहले लकड़ी के लठ्ठों के रूप में की थी। लठ्ठों से मनुष्य ने छोटी कश्ती का आविष्कार किया, धीरे धीरे जलयान का यह सफर विकास करता हुआ बड़े जहाजों तक पहुंच गया। बड़े भी इतने की पूरा का पूरा नगर बस जाएं। जहाजों की इस विशालता ने उद्यौगिक क्षेत्र में क्रांति ला दी, विदेशी व्यापार में वर्तमान समय में जलपोत रीढ़ की हड्डी बना हुआ है, सस्ता और अधिक मात्रा में माल की ढुलाई का जलपोत से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। मानव इतने पर ही रूका उसने जल अंदर भी चलने वाले जवानों का आविष्कार किया। जिसे पनडुब्बी के नाम से जाना जाता है, आज ये पनडुब्बी देश की सीमाओं की रक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान निभाती है। अपने इस लेख में हम इसी पनडुब्बी के आविष्कार का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—
- पनडुब्बी का आविष्कार किसने किया था?
- पनडुब्बी का आविष्कार कैसे हुआ?
- भारत में बनी पहली पनडुब्बी का नाम क्या है?
- दुनिया की पहली परमाणु पनडुब्बी कौनसी थी?
- पनडुब्बी कैसे काम करती है?
- पनडुब्बी किस सिद्धांत पर कार्य करती है?
- पनडुब्बी का उपयोग क्यों किया जाता है?
- पनडुब्बी में किस ईंधन का प्रयोग होता है?
Contents
पनडुब्बी का आविष्कार किसने किया और कैसे हुआ
पनडुब्बी के आविष्कार की कल्पना सबसे पहले सन् 1579 ई में विलियम वार्नी नाम के एक व्यक्ति ने की। उसने ही पनडुब्बी नाम देकर इसका पेटेंट प्राप्त किया था। उसकी पनडुब्बी में चमड़े के जोडों ओर पेचों की इस प्रकार से व्यवस्था थी कि भीतर से ही उसके भाग को छोटा या बडा किया जा सकता था। पानी के नीचे ले जाने के लिए उसमें भीतर से ही पानी वाले भाग में पानी भरने की व्यवस्था थी। पनडुब्बी मे वायु-निकास नली मस्तूल के रूप मे लगी हुई थी।
सन् 1600 में हॉलैंड के कोरनेलिस वान ड्रेबेल नामक युवक ने इग्लैड में आकर सन् 1620 में कुछ पनडुब्बी नौकाओं का निर्माण कर इग्लैंड के राजा को भेंट में दी थी। उसकी पनडुब्बी में ऐसी व्यवस्था थी कि अंदर की दूषित हवा को स्वच्छ कर पुनः सांस लेने योग्य बनाया जा सकता था। परन्तु इस व्यवस्था का ठीक विवरण प्राप्त नही है। ऐसा कहा जाता है कि इग्लैंड के प्रथम राजा जेम्स ने ड्रेबेल की पनडुब्बी में पानी के अंदर यात्रा की थी।

सन् 1773 में अमेरिका के डेविड बुशनेल ने एक ऐसी पनडुब्बी का निर्माण किया था, जो कछुए के आकार की थी। इसे ‘टर्टल’ नाम से जाना जाता है। इसमें केवल एक व्यक्ति के बैठने की ही व्यवस्था थी। इस पनडुब्बी में चमडे की अनेक बोतले लगी थी, जिनका मुंह ऊपर की ओर था। पानी के अंदर ले जाने के लिए बोतलों में पानी भर दिया जाता था और पानी के ऊपर लाने के लिए चमड़े की बोतलों को दबाकर उनका पानी बाहर निकाल दिया जाता था। इसमे लगे दो पतवारों को पनडुब्बी के अंदर ही से चलाने की व्यवस्था थी। डेविड बुशनेल की यह पनडुब्बी जल परिवहन के इतिहास में पहली ऐसी पनडुब्बी थी, जिसे काफी ख्याति प्राप्त हुई।
भाप के इंजन से जहाज चलाने में सफलता प्राप्त करने वाले अमेरिका के रॉबर्ट फुल्टन ने ‘नाटिलस’ नामक पनडुब्बी बनाकर उसे पानी के ऊपर और अंदर समान रूप से कई बार चलाकर सफल प्रयोग किया। फुल्टन के अनुसार वह ऐसी पनडुब्बियां बना सकता है, जो पानी के अंदर ही अंदर तेज गति से चलकर दुश्मन के लडाकू जहाजों को अंदर से ही नष्ट कर सकती है। परन्तु उसकी इस बात पर गंभीरता से सोचा नही गया।
इग्लैंड में जाकर भी उसने अपनी पनडुब्बी से तारपीडो द्वारा एक जहाज को उडाने का सफल प्रदर्शन किया। तब भी उसकी योजना पर ध्यान नही दिया गया। अमेरिका के डेविड ने ही गृह-युद्ध के दौरान अपनी पनडुब्बी से एक लड़ाकू जहाज को जिस पर गोला-बारूद रखा था, एक साधारण तारपीडो से उडाकर युद्ध में पनडुब्बी के महत्त्व का अनुभव कराया। यह 1864 की बात है। परन्तु इस विस्फोट की भीषणता की चपेट में वह पनडुब्बी भी आ गयी ओर नष्ट हो गयी।
पनडुब्बी को पानी के अंदर ओर बाहर तो तैराने में सफलता मिल गयी, परन्तु पानी के अंदर उसकी तेज गति के विकास में अब भी बाधा थी। क्योंकि भाप-इंजन से उसे पानी के अंदर चलाने में कई
कठिनाइया थी। परन्तु पैट्रोल अंतर्दहन इंजन से इस समस्या का फिलहाल हल निकल आया था।
पनडुब्बी को आधुनिक रूप देने में जॉन पी हॉलैंड ओर साइमन लेक नामक दो व्यक्तियों को श्रेय है। इन दोनों ने एक दूसरे से भिन्न प्रकार की पनडुब्बियां बनायी थी। साइमन लेक नेपनडुब्बियों का उपयोग समुंद्र के नीचे टूटे पड़े जहाजो को निकालने, बहमूल्य पदार्थ निकालने की दिशा में कार्य किया।
सन् 1894 में साइमन लेक ने एक छोटी पनडुब्बी का निर्माण किया जिसके नीचे गाडी की तरह के पहिए लगे हुए थे, जिनकी सहायता से वह समुद्र-तल पर चल भी सकती थी। पनडुब्बी की बहु उपयोगिता को देखकर अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और रूस आदि देशों ने धन लगाकर इनके निर्माण की व्यवस्था की।
1894 में जॉन पी हॉलेंड कोअमेरिकी सरकार ने पनडुब्बियां बनाने का कार्य सौंपा। साइमन लेक के नमूने को अस्वीकार कर दिया गया। 1901 में साइमन लेक ने एक बडी पनडुब्बी का निर्माण किया ओर उसे रूसी सरकार को बच दिया। इसके बादरूस ने साइमन से अनेक पनडुब्बिया बनवायी।
परमाणु शक्ति की खोज ने पनडुब्बी निर्माण में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। प्रथम परमाणु शक्ति से चालित पहली पनडुब्बी ‘नॉटिलस’ थी, जो अमेरिका में निर्मित हुई थी। 1955 में जब यह परीक्षण के लिए समुंद्र में उतारी गयी तो इसने मात्र आठ पौंड यूरेनियम ईंधन से कुल साठ हजार मील की यात्रा की। इसने प्रशांत महासागर से पानी मे लगभग 400 फुट गहराई में चलते हुए धुव्रीय हिम क्षेत्र को नीचे से पार कर अटलांटिक महासागर में प्रवेश कर एक चमत्कार कर दिखाया था।
इसी प्रकार की एक अन्य विशाल पनडुब्बी ‘मोबी डिक 50000 टन भारी और 600 फुट लम्बी है। इसमें लगी परमाणु भट्टी लगभग 75000 अश्व शक्ति उत्पन्नकरती है। इस प्रकार जल परिवहन के इतिहास में समुंद्र के अंदर चलने वाली पनडुब्बी ने एक चमत्कार कर अपना विशिष्ट स्थान बना लिया।