पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी Naeem Ahmad, July 19, 2021March 11, 2023 पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के सन्दर्भ में जगनिक द्वारा रचित अल्हाखण्ड में षिद वर्णन उपलब्ध होता है। पथरीगढ़ का किला एक छोटी सी पहाडी पर है और परकोटे से घिरा हुआ है तथा इसमें प्रवेश करने के लिये कई प्रवेश द्वार है, तथा दुर्ग के अंदर अनेक आवासीय महल है और जलाशय है। दुर्ग के अन्दर और बाहर हिन्दू और इस्लामी धर्म से सम्बन्धित अनेक धर्मिक स्थल है। जल आपूर्ति के लिये यहाँ अनेक जलाशय हैं तथा दो प्राकृतिक झीले भी है। इनमें से एक झील के तट पर यहाँ के नरेशो के नृत्य स्मारक बने हुये है। पथरीगढ़ का किला या पाथर कछार का किला हिस्ट्री इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला राजा परमार्दिदेव के जीवनकाल तक चन्देलो के अधिकार में रहा, उसके पश्चात यह दुर्ग तुर्को के अधिकार में आ गया, तुर्कों के बाद यह दुर्ग मुगलो के अधिकार में आया, छत्रसाल के शासनकाल में यह दुर्ग बुन्देलों के आधीन था। किंतु कभी कभी इस किले में बुंदेलों और बघेलों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष होते रहते थे।पाथर कछार कालिंजर से दस मील दूर है। तथा इसे बरौदा पाथर कछार के नाम से जाना जाता है। इसलिए इस किले को कुछ लोगों द्वारा पाथर कछार का किला के नाम से पुकारते है। अंग्रेजों के जमाने में यहां के नरेशों संधि अंग्रेजी से हुई थी। तथा यह रियासत बघेलखंड के पोलेटिकल के आधीन थी। यहाँ के नरेशवंश वंशीय राजपूत थे। छत्रसाल के पुत्र हृदयशाह ने और बाँदा के प्रथम नवाब अलीबहादुर ने इन्हे अपनी सनदे प्रदान की थी। पथरीगढ़ का किला यहाँ के तत्तकालीन राजा मोहन सिंह को विक्रमी संवत् 1864 में अंग्रेजो ने शरण दी थी। इनका स्वर्गवास विक्रमी संवत् 1884 में हुआ इनके कोई सन्तान न थी, इन्होने अपनी सारी सम्पत्ति अपने भतीजे सर्वजीत सिंह को दे दी सर्वजीत सिंह की मृत्यु विक्रमी संवत् 1924 में हुई, इनकी मृत्यु के पश्चात इनके तीसरे पुत्र रामदयाल सिंह ने राज्य पाने का प्रयत्न किया इनके बडे भाई धर्मपाल सिंह जीवित थे इसलिये छोटे भाई को उत्तराधिकारी नही माना गया इनकी मृत्यु के पश्चात राजा छतरपाल सिंह उत्तराधिकारी बने उनका स्वर्गवास विक्रमी संवत् 1931 मे हो गया, उसके पश्चात उनके चाचा रघुबर दयाल राज्य के उत्तराधिकारी बने इन्हे राजा बहादुर की पदमी मिली और नो तोपा की सलामी दी जाने लगी, यह पदमी इन्हे विक्रमी संवत् 1935 में मिली तथा इनका स्वर्गवास विक्रमी संवत् 1942 में हुआ। इनके कोई सन्तान नहीं थी। इसलिये ठाकुर प्रसाद सिंह को विक्रमी संवत् 1943 में उत्तराधिकारी चुना गया। कुछ लोगो का यह भी कथन है कि यह छत्रसाल का ननिहाल था और यही उनका बचपन बीता किन्तु इस बात के ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते। दुर्ग में निम्नलिखित स्थल दर्शनीय है। पथरीगढ़ का किला के अवशेष आवासीय महलो के अवशेष रक्त दन्तिका मन्दिर जगन्नाथ स्वामी का मन्दिर 5. मृत्यु स्मारक 6. गरूण मन्दिर दो प्रकृतिक झीले विविध जलाशय हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल ऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किलेमध्य प्रदेश पर्यटन