पंजाब की पटियाला रियासत सिक्ख रियासतों में सबसे बड़ी है। यह तीन भागों में विभक्त है। जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा दक्षिणी किनारे पर स्थित है, दूसरा शिमला के पास के पर्वतीय प्रदेश में, तीसरा राजधानी से 180 मील की दूरी पर है। इस तीसरे का नाम नारनौल परगना है। पटियाला राज्य का क्षेत्रफल 5492 वर्ग मील था। सन् 1911 की मर्दुमशुमारी के अनुसार पटियाला रियासत की जनसंख्या 1410659 थी। पटियाला रियासत में उर्दू और पंजाबी भाषा बोली जाती थी। पटियाला रियासत की कुल वार्षिक आमदनी 11700000 के करीब थी। पटियाला रियासत की स्थापना 18 शताब्दी हुई थी। पटियाला रियासत के संस्थापक राजा आला सिंह जी थे।
पटियाला रियासत का इतिहास – History of Patiyala state
राजा आला सिंह जी पटियाला रियासत
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इस राजवंश के मूल पुरुष की उत्पत्ति जैसलमेर राजवंश से हुई थी। उन्होंने दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय में जैसलमेर छोड़कर हिसार, सिरसा और भटनेर के आसपास के प्रदेश में पर्दापण किया। कुछ शताब्दियां बीत जाने पर उनके खेवा नामक एक वंशज ने नाईली के जाट जमींदार की पुत्री से विवाह कर लिया। इस जोड़े से सिंधू नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई। सिंधु की संतान इतनी बढ़ी कि जिससे सिंधु जाट नाम की एक जाति खड़ी हो गई। धीरे धीरे यह जाति इतनी समृद्धिशाली हो गई कि सतलुज और जमुना के बीच के प्रदेश की जातियों में वह प्रमुख गिनी जाने लगी। इस जाति में फूल नामक एक व्यक्ति हुआ और फूल के वंश में राजा आला सिंह उत्पन्न हुए। राजा आला सिंह बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। अपनी प्रतिभा ही के बल पर आपने इतने बड़े पटियाला राज्य की स्थापना की थी। कोट और जगराँव के मुसलमान सरदारों, मालेर कोटला के अफगानों और जलंधर दुआब के शाही फौजदार की संयुक्त शक्ति पर उन्होंने एक समय बड़ी दी मार्के की विजय प्राप्त की थी। इस विजय के कारण राजा आला सिंह जी की कीर्ति दूर दूर तक फेल गई थी।
पटियाला रियासतसन् 1749 में राजा आला सिंह ने धोदन भवानीगढ़ का किला
बनवाया। इसके कुछ ही समय बाद इस राज्य की वर्तमान राजधानी पटियाला बसाई गई। राजा आला सिंह जी ने भटिंडा नरेश पर चढ़ाई करके उनके कई गाँव अधिकृत कर लिये। सन् 1757 में आपने भट्टी लोगों पर विजय प्राप्त की। इसी बीच अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब के रास्ते से दिल्ली तक आकर सुप्रसिद्ध पानीपत के युद्ध में मराठों को पराजित किया। इस समय राजा आला सिंह जी ने अब्दाली से मित्रता कर ली। अब्दाली ने खुश होकर आपको उस प्रान्त का एकछत्र राजा स्वीकार किया। इतना ही नहीं, उसने आपको सिरोपाव एवं राजा की पदवी भी प्रदान की। सिक्ख लोग शाह को अपना जानी दुश्मन मानते थे, अतएव उन्होंने शाह के साथ बारनाला स्थान पर युद्ध किया।इस युद्ध में 20000 सिक्ख वीरगति को प्राप्त हुए। पर राजा आला सिंह जी अब्दाली के हाथों अपने मनुष्यों का काटा जाना बुद्धिमानी नहीं समझते थे। वे उन्हें विदेशी आक्रमणों से बचाये रखना चाहते थे। इसका यह परिणाम हुआ कि सन् 1764 में अहमदशाह ने आपको सरहिंद प्रान्त दे दिया। इस घटना के कुछ ही समय बाद राजा आला सिंह जी का सन् 1765 में स्वर्गंवास हो गया। आपका अपनी प्रजा पर बड़ा प्रेम था। यही कारण है कि अभी भी प्रजा में आपका नाम गौरव के साथ स्मरण किया जाता है।
राजा आला सिंह पटियाला रियासतराजा अमरसिंह जी पटियाला रियासत
राजा आला सिंह के बाद उनके पौत्र राजा अमरसिंह पटियाला रियासत की गद्दी पर बिराजे। आपमें एक योग्य शासक और वीर सिपाही के गुण विद्यमान थे। सन् 1767 में जब अहमदशाह अब्दाली अंतिम बार पंजाब में आया तब उसने राजा अमरसिंह जी को राज्य राजवान की पदवी प्रदान की। सन् 1766 में राजा अमरसिंह ने मालेरकोटला के नरेश पायल और इशरू नामक स्थान जीत लिए। इसके बाद आपने अपने जनरल को पिंजौर नामक स्थान पर अधिकार करने के लिए भेजा। सन् 1771 में आपने भटिंडा पर अधिकार कर लिया। और सन् 1774 में आपने अपने रिश्तेदार भाटियो पर चढ़ाई करके बेधरन नामक स्थान पर उसे पराजित किया। आपने उनसे फतेहाबाद और सिरसा परगने छीन लिए तथा आपके दीवान नन्नूमल ने हांसी के अधिकारी को परास्त कर हिसार जिले को पदाक्रांत कर डाला। इस प्रकार राजा अमरसिंह जी ने की प्रदेश जीतकर सतलुज और जमुना नदी के बीच पटियाला स्टेट को महान शक्तिशाली राज्य बना डाला। सन् 1781 में राजा अमरसिंह की मृत्यु हो गई।
महाराजा साहिब सिंह जी पटियाला रियासत
राजा अमरसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराजा साहिब सिंह जी पटियाला रियासत की गद्दी पर बैठे। इस समय उनकी उम्र 6 वर्ष की थी। महाराजा साहिब सिंह जी के गददीनशीन होने पर सम्राट शाहआलम ने आपको “महाराजा” का खिताब बख्शा। दीवान नन्नूमल ने साहिब सिंह जी की नाबालिगी में कुछ दिनों तक बढ़ी चतुराई से राज्य कार्य किया। इनका जनता पर बड़ा प्रभाव था। किन्तु जब इन्होंने राज्य के कुछ अन्दरूनी झगड़ों को दबाने के लिये मराठों की मदद माँगी, तब ये अपने पद से हटा दिये गये और बाल महाराजा की बहिन बीबी साहिब कौर दीवान का काम करने लगी। आप में राजपूती जोश और धैर्य दोनों विद्यमान थे। जिस समय सन् 1794 में मराठों ने पटियाला राज्य पर फिर चढ़ाई की थी, तो आप स्वतः सेना सहित युद्ध क्षेत्र में पहुँची थीं और अपनी वीरता का परिचय दिया था।
महाराजा अमरसिंह पटियालासन् 1804 में लॉर्ड लेक महाराजा जसवन्तराव का पीछा करते हुए पटियाला राज्य से गुजरे, उस समय महाराजा साहिब सिंह जी ने उन्हें अच्छी सहायता पहुँचाई। इस सहायता के प्रतिफल में लॉर्ड लेक ने आपसे इकरार नामा किया जिसमें उन्होंने आपको विश्वास दिलाया कि जब तक आप साम्राज्य सरकार से मित्र भाव रखेंगे तब तक वह आप से किसी भी तरह का कर नहीं लेगी। सन् 1805 में दुलही गाँव के स्वामित्व-संबंधी में झगड़ा पड़ा। यह झगड़ा इतना बढ़ा कि इसके कारण बहुत सा रक्तपात हुआ। नाभा और जिंद के नरेशों ने इस झगड़े में दखल देने के लिये महाराजा रणजीत सिंह का आहान किया। महाराजा रणजीत सिंह के सतलुज नदी पार करने पर उनका सामना पटियाला की फौजों से हुआ। पटियाला रियासत की फौज ने उन्हें इतना भीषण युद्ध किया कि विवश होकर पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह को उनसे सुलह करनी पड़ी। वे पटियाला रियासत छोड़कर मार्ग में दूसरे राजाओं को पराजित करते हुए लाहौर वापिस लौट गए। प्रबल महाराजा रणजीत सिंह के आक्रमण के भय से महाराजा साहिब सिंह जी तथा सतलुज नदी के निकटस्थ दूसरे सिक्ख सरदारों ने मिलकर अंग्रेजों से सहायता चाही। अंग्रेजों ने उन्हें न केवल सहायता देने का अभिवचन ही दिया परंतु महाराजा रणजीत सिंह जी को सतलुज नदी के दक्षिण तट पर बसे हुए सारे मुल्क से अपना कब्जा हटाने के लिए भी बाध्य किया।
महाराजा साहिब सिंह पटियाला
पटियाला रियासत में आपसी कलह का अभी तक पूरी तौर से दमन नहीं हुआ था। इस समय वहां एक शक्तिशाली शासक की बड़ी आवश्यकता थी। अतएव लुधियाना के ब्रिटिश एजेंट के अनुरोध से रानी कौर रिजेंट नियुक्त की गई। रानी साहिबा बड़ी सुयोग्य महिला थी। उन्होंने राज्य कार्य बड़ी योग्यता से संभाला। महाराजा साहिब सिंह चिरकाल तक राज्योपभोग न लें सके, सन् 1813 में महाराजा साहिब सिंह की मृत्यु हो गई।
महाराजा करम सिंह जी
महाराजा साहिब सिंह जी के पश्चात् महाराजा करम सिंह जी राज्यासन पर बैठे। महाराजा करम सिंह पटियाला रियासत के चौथे महाराजा थे। राजा करम सिंह का विवाह कुरूक्षेत्र के सिख सरदार भांगा सिंह की पुत्री से हुआ था। आपने ब्रिटिश सरकार को कई युद्धों में बड़ी सहायता दी। पंजाबीय युद्ध ख़तम होने पर आपकी सहायता के उपलक्ष्य में अंग्रेज सरकार की ओर से आपको शिमला के आस पास सोलह परगने मिले। प्रथम अफगान युद्ध खर्च के लिये सन् 1830 में आपने ब्रिटिश सरकार को 250000 रुपये दिये। सन् 1842 में भी आपने द्वितीय अफगान युद्ध में 500000 रुपये दिये। इसके दूसरे ही वर्ष आपने अपनी 1000 अश्वारोही सेना और दो तोपें भेजकर ब्रिटिश सरकार को केंथाल रियासत में होने वाले आन्दोलन को शान्त करने में सहायता दी थी। प्रथम सिक्ख युद्ध में आपने अपनी 2000 अश्वारोही सेना, 2000 पैदल सेना तथा उनके परिचारक- गण आदि से ब्रिटिश सरकार की सहायता की। युद्ध में अधिकांश रसद् इन्तजाम का ज़िम्मा भी आपने लिया । आप उक्त युद्ध खतम होने के पहिले ही इस लोक से कूच कर गये। आपकी बहुमूल्य और सामयिक सेवाओं के उपलक्ष्य में ब्रिटिश सरकार ने पटियाला राज्य से नज़र वसूल करना बन्द कर दिया।
महाराजा नरेंद्र सिंह जी पटियाला रियासत
महाराजा करम सिंह के पश्चात् आपके पुत्र महाराजा नरेंद्र सिंह जी राज्यासन हुए। आपने ब्रटिश सरकार के साथ दृढ़ मित्रभाव रखा। द्वितीय सिक्ख-युद्ध में आपने ब्रिटिश सरकार को 3000000 रुपया कर्ज दिया था। आपने अपनी सेना भी युद्ध में भेजने का अभिवचन दिया था, किन्तु ब्रिटिश सरकार को उसकी आवश्यकता न हुई। सन् 1857-58 में आपने ब्रिटिश सरकार को जितनी सहायता दी थी, उतनी शायद ही कोई दूसरे नरेश ने उस अवसर पर दी होगी। जिस समय भारत में चारों ओर विद्रोह की ज्वाला प्रज्वलित हो रही थी, जिस समय चारों ओर अराजकता फैली हुई थी, उस समय सिक्ख जाति ने श्रीमान महाराजा नरेंद्र सिंह को अपना प्रमुख नेता स्वीकृत किया था। यदि आप चाहते तो सारी सिक्ख जाति उस समय साम्राज्य सरकार के विरुद्ध आन्दोलन करने को उद्यत हो जाती। आपकी सत्ता, आपकी स्थिति उक्त समय इतनी ऊँची थी कि यदि आप शंख उठाते, तो बलवाइयों में सबसे प्रबल नेता बन जाते ओर ब्रिटिश सरकार को आपका सामना करने में कई कठिनाइयाँ उठानी पड़ती। किन्तु श्रीमान् ने ब्रिटिश सरकार के प्रति अपना मित्रभाव कायम रखा ओर ऐसे भयंकर प्रसंग में भी आपने उनकी अच्छी सहायता की।
महाराजा नरेंद्र सिंह पटियाला रियासतगदर के शुरू से अन्त तक अपनी आठ तोपें, 2156 अश्वारोही
सेना, 2846 पैदल फौज़ तथा 156 अफसर ब्रिटिश सरकार की अधीनता में रहकर आप उन्हें सहायता करते रहे। सन् 1858 में बलवा शान्त हो जाने पर भी आपने अपनी 2 तोपें, 2930 पैदल फ़ौज, और 907 सवार ब्रिटिश सरकार की मदद के लिये रखे थे।
उपरोक्त सहायता के मुआवजे में ब्रिटिश सरकार ने महाराजा नरेंद्र सिंह को नारनौल परगना प्रदान किया। आपने इसके बदले अंग्रेज सरकार को आन्दोलन तथा संकट के समय में धन तथा जन से सहायता करना स्वीकार किया। सन् 1748 तथा गदर के समय दिये हुए कर्ज के बदले ब्रिटिश सरकार ने अपना कऔदें परगना और खामगाँव तालुका आपके अधिकार में दे दिया। महाराजा नरेंद्र सिंह जी को निम्न लिखित पद्वियाँ भी प्राप्त हुईं :– “फरजन्दि-ए-खास, दौलत-ए-इंग्लिशिया, मन्सूर-ए-जमान, अमीर-उल- उमरा श्री।
सन् 1861 में आप के० सी० एस० आई० की उपाधि से
विभूषित किये गये। हिन्दू नरशों में यह उपाधि पहिले पहल आप ही को प्राप्त हुई थी। आप लॉर्ड केनिंग के शासन-काल में कायदे कानून बनाने वाला कोंसिल के भी मेम्बर बनाये गये थे। सन् 1862 में महाराजा नरेंद्र सिंह जी की मृत्यु हो गई।
महाराजा महेन्द्र सिंह जी
महाराजा नरेंद्र सिंह जी की मृत्यु के पश्चात् आपके ज्येष्ठ पुत्र महाराजा महेन्द्र सिंह जी 10 वर्ष की अवस्था में राजगद्दी पर बैठे। आपका 26 वर्ष का उम्र में देहान्त हो गया। आपके शासन-काल में सरहिन्द नामक नहर निकालने का काम शुरू हुआ। आपने इस नहर के बनवाने में 12300000 रुपये प्रदान किय थे। कूका- विद्रोह दमन करने में आपने ब्रिटिश सरकार को अच्छी सहायता पहुँचाई थी। आपने लाहौर में विश्व-विद्यालय स्थापन करने के लिये 70000 रुपये प्रदान किए तथा अपने राज्य में भी महिन्द्र कॉलेज की स्थापना की। आपको जी० सी० एस० आइ० की उपाधि भी प्राप्त हुई तथा आपकी सलामी 15 से बढ़ाकर 17 तोपें कर दी गई। सन् 1873 में बंगाल के अकाल पीड़ित लोगों की सहायता के लिये आपने 1000000 रुपये प्रदान किये। सन् 1875 में तत्कालीन प्रिन्स ऑफ वेल्स (स्वर्गीय सप्तम एडवर्ड)
से आपकी राजपुरा मुकाम पर मुलाकात हुईं। इस भेट के स्मृति- स्वरूप इस ग्राम में ‘अल्बर्ट महेन्द्रगंज’ बसाया गया।
महाराजा राजेन्द्र सिंह जी
महाराजा महेन्द्र सिंह जी अपने चार वर्षीय उत्तराधिकारी पुत्र राजेन्द्र सिंह जी को छोड़कर सन् 1876 मे इस लोक से चल बसे। ब्रिटिश सरकार ने बाल महाराजा को पटियाला रियासत की राजगद्दी पर बैठाकर शासन का भार एक कोंसिल के सुपुर्द कर दिया। कोंसिल सन् 1906 तक राज्य काय चलाती रही। 1907 में महाराजा राजेन्द्र सिंहजी बालिग हो गये, इससे आपको उसी वर्ष समस्त शासनाधिकार प्राप्त हो गये। कोंसिल आफ रिजेन्सी के शासनकाल में सन् 1887 के अन्त में पटियाला राज्य की सेना उत्तर-पश्चिमीय युद्ध में सम्मिलित हुई थीं। इसके दो वर्ष पश्चात् इसी सेना ने तिराह और महमनद के आक्रमण में अच्छी वीरता दिखाई थी। चीन के युद्ध में भी इस सेना ने भाग लिया था।दक्षिणी अफ़्रिका युद्ध में महारजा साहब ने ब्रिटिश अश्वारोही सेना के उपयोग के लिए अपने शिक्षित नूतन अश्व भेज थे। आपके शासन-काल में भटिंडा और राजपुरा के दरम्यान 108 मील लंबी रेलवे लाइन बनाई गई। आपने अमृतसर खालसा कॉलिज को 160000 रुपये, पंजाब विश्वविद्यालय को 50000 रुपए तथा इम्पीरियल इंस्टिटयूट लंदन को 30000 रुपये प्रदान किये। सन 1908 में महाराजा महेन्द्र सिंह के पुत्र महाराजा राजेन्द्र सिंह की मृत्यु हो गई।
महाराजा महेन्द्र सिंह और राजेंद्र सिंह पटियाला रियासतमहाराजा भूपेन्द्र सिंह जी
महाराजा राजेन्द्र सिंह जी के देहान्त के समय महाराजा भूपेन्द्र सिंह जी नाबालिग थे। अतएव आप पटियाला की राज-गद्दी पर बिठाये गये और राजकार्य चलाने के लिये एक कौंसिल स्थापित की गई। महाराजा भूपेन्द्र सिंह जी का जन्म सन् 1891 में हुआ था। लाहौर के एटकिन्सन चीफ कॉलेज में आपने शिक्षा पाई। आपकी नाबालिगी में रिजेंसी कौन्सिल द्वारा राज्य कार्य चलता रहा। सन् 1903 के कारोनेशन दरबार में आप स्वयं अपने संचालन में अपनी सेना को ‘प्रेड रिव्यू दिखाने ले गये थे। इस समय आपकी उम्र केबल 10 वर्ष की थी। उसी वर्ष आपकी भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन के साथ मुलाकात हुई।
सन् 1905 में आपने तत्कालीन भारत सम्राट से लाहौर में भेंट की। उस समय सम्राट भारत में प्रिंस आफ वेल्स की हैसियत से पधारे थे। इस शुभ अवसर पर पटियाला नरेश ने अमृतसर खालसा कॉलेज से विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाने वाले विद्यार्थियों की सहायता के लिए एक लाख रुपए प्रदान किए। सन् 1908 में महाराजा भूपेन्द्र सिंह का जिंद राज्य के सेनापति की पुत्री से विवाह हुआ। सन् 1909 की 30 सितंबर को आपने 18 वर्ष की उम्र में शासन सूत्र धारण किया। इसके दूसरे वर्ष नवंबर मास में लार्ड मिन्टो पटियाला पधारे। उस समय पटियाला के जल कारखाने का उद्घाटन किया गया। आपके शासन-काल में पटियाला रियासत ने बहुत उन्नति पाई। आपने अपने राज्य की शिक्षा और स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान दिया। राज्य में प्राथमिक तथा कालेज संबंधित शिक्षा नि: शुल्क दी जाती थी।
महाराजा भूपेन्द्र सिंह को क्रिकेट के खेल में विशेष अभिरूचि थी। आप सन् 1911 में भारतीय क्रिकेट टीम के कैप्टन बनकर इंग्लैंड पघारे थे। आप इसी वर्ष तत्कालीन भारत सप्राट के राज्यारोहण उत्सव के समय निमन्त्रित किये जान पर उक्त उत्सव में सम्मिलित हुए थे। सन् 1911 के देहली दरबार में भी आपने महत्वपूर्ण भाग लिया। इसी दरबार में आपको श्रीमान सम्राट महोदय ने जी सी एस आई० की उपाधि से विभूषित किया। आपकी महारानी साहिबा ने इसी दरबार में भारतीय स्त्री समाज की ओर से श्रीमती सम्राज्ञी को एक अभिनन्दन-पत्र दिया।
यूरोपीय युद्ध शुरू होने पर आपने अपनी सारी सेना ब्रिटिश सरकार को समर्पण कर दी। सन् 1918 में आपने देहली बार कॉन्फ्रेन्स में मुख्य भाग लिया था। इसी वर्ष आप इम्पीरियल युद्ध कान्फ्रेन्स तथा केबिनेट के भारत की ओर से प्रतिनिधि मनोनीत किए गए। आपने बेलजियम, फ्रान्स, इटली और पेलेस्टाइन आदि स्थानों में पहुँचकर युद्ध-क्षेत्र में भ्रमण किया तथा वहां की सरकार से उच्च सम्मान तथा उपाधियाँ प्राप्त की। आपकी सेवाओं के उपहार में श्रीमान सम्राट महोदय ने आपको ‘सी० ओ०“ बी० ई० की उच्च उपाधि से विभूषित किया है तथा आपको मेजर जनरल की रैंक का भी सम्मान दिया गया। महाराजा करम सिह जी के शासनकाल में ब्रिटिश-सरकार को किसी प्रकार की नजर न देने का जो विशेष अधिकार आपको प्राप्त था, वह आपने युद्ध में दी हुई सहायता के उपलक्ष्य में पुश्तैनी कर दिया गया। आपकी
सलामी भी 17 से बढ़ाकर 19 तोपों की कर दी गई।
महाराजा भूपेन्द्र सिंह पटियालाउपरोक्त युद्ध में पटियाजा नरेश ने कुन 25000 मनुष्यों से ब्रिटिश सरकार को सहायता की थी युद्ध में पराक्रम दिखाने के उपलक्ष्य में आपकी सेना को 160 से अधिक सम्मानप्रद पदक मिले थे। सैनिक सहायता के अतिरिक्त आपके राज्य की ओर से वार-लोन फंड में भी 350000 रुपये एकत्रित हुए थे। आपने इस युद्ध में प्रथक कार्यो में दी हुई सहायता 15000000 रुपयों के लगभग है। गत अफगान युद्ध में भी आपने अपनी सेना सहित ब्रिटिश सरकार की सहायता करने की इच्छा प्रकट की, जो कि सहर्ष स्वीकृत की गई। आपने इस युद्ध में ‘नॉर्थ वेस्टर्न फ्रांटियर फोर्स’ के स्पेशल सर्विहस ऑफिसर का पद स्वीकृत किया था। आप भारतीय नरेन्द्र-मंडल के प्रमुख सदस्यों में से हैं तथा आप उसकी कार्यवाही में विशेष दिलचस्पी रखते थे। अपनी प्रजा को राज्य- कार्य में विशेष अधिकार देने के हेतु से आपने म्यूनिसिपेलिटी तथा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड में प्रतिनिधि निर्वाचन करने की प्रथा प्रचलित की थी। इस राज्य का बहुत सा हिस्सा एक दूसरे से विशेष दूरी पर होने से कृषि व्यवसाय प्रत्येक भाग में विभिन्न प्रकार से होता था यहाँ की अधिकांश जमीन समतल है किन्तु वर्षा की कमी के कारण उपज सब जगह एक सी नहीं होती थी। यहाँ मुख्यतः गेहूँ, ज्वार, कपास, चना, मकई, सोंठ चावल, आलुओर गन्ने की खेती की जाती थी। यहाँ जंगल का क्षेत्रफल भी काफी था,जिनमें इमारती लकड़ी बहुतायत से होती थी। घास के लिये भी काफी जमीन थी। कृषि तथा दुसरे कामों के लिये ठोर भी अच्छी तादाद में थी। यहाँ विभिन्न जिलों में घोड़े भी अच्छे मिलते थे।
पटियाला नगर में लगभग 80000 रुपया लगाकर विक्टोरिया मेमोरियल पुर हाऊस स्थापित किया गया है। विक्टोरिया गर्लस स्कूल, लेडी डफरिन हॉस्पिटल और दाई तथा नर्सों की पाठशाला आदि भी महाराजा भूपेन्द्र सिंह ही ने बनवाये थे। शासन-सम्बन्धी कार्यो के लिये राज्य में चार विभाग मुख्य थे–अर्थ विभाग, फ़ॉरेन विभाग, न्याय विभाग औन सेना विभाग। इन सब विभागों के कार्यो की देख रेख स्वयं महाराजा भूपेन्द्र सिंह अपने कान्फिडेन्शियल सेक्रेटरी के जरिए करते थे। पटियाला राज्य करमगढ़, पिंजोर, अमरगढ़, अनहदगढ़, और महिन्द्रगढ नामक पांच भागों में विभाजित था, जिन्हें निजामत कहते हैं। प्रत्येक निजामत एक नाजिम के अधीन थी।
सन् 1862 के पहले भूमिकर फसल का 1 हिस्सा लिया जाता था । फिर यह नक॒द रुपयों में वसूल किया जाने लगा। सन् 1901 में यहाँ नई पद्धति के अनुसार बन्दोबस्त कायम किया गया था। भूमि-कर के अतिरिक्त इरिगेशन वर्क, रेलवे, स्टाम्प तथा एक्साइज ड्यूटी आदि से भी राज्य को अच्छी आमदनी होती थी। प्रधान न्यायालय को सदर कोट कहते थे, इसे दीवानी और फौजदारी मामलों के कुल अधिकार प्राप्त थे। सिर्फ प्राण-दंड के मामलों में इस कोर्ट को महाराजा भूपेन्द्र सिंह की मंजूरी प्राप्त करना होती थी। पटियाला रियासत में “भादौड़ के सरदार” नामक बहुत से जमींदार थे। इन जमीदारों की वार्षिक आय लगभग 70000 रुपये हैं। खामामन गाँवों के जागीरदारों को भी राज्य से प्रतिवर्ष 90000 रुपये दिये जाते थे।
पटियाला नरेशों को अपना सिक्का जारी करने का अधिकार अहमदशाह दुर्रानी ने सन् 1767 में प्रदान किया था। यहाँ तांबे का सिक्का कभी नहीं जारी हुआ। एक बार महाराज नरेंद्रसिंह ने अठन्नी और चवन्नी चलाई थी। रुपये और अशर्फियाँ सन् 1895 तक राज्य की टकसाल में ढलती रहीं। अन्त तक सिक्कों पर वही पुरानी इबारात खुदी रहती थी कि “अहमदशाह की आज्ञानुसार जारी हुआ।” पटियाले का रुपया राजशाही रुपया कहलाता था। नानकशाही रूपये भी ढाले जाते थे। यह केवल दशहरे या दिवाली पर ही काम आते थे। इस रुपये पर यह शेर छपा रहता है–देग तेगो फतह नसरत बेदंग, याफ्त भज नानक गुरु गोविन्द्सिंह। 23 मार्च सन् 1938 को महाराजा भूपेन्द्र सिंह की मृत्यु हो गई। आपके बाद आपके पुत्र महाराजा यादवेन्द्र सिंह पटियाला रियासत की गद्दी पर विराजे, जो पटियाला रियासत के अंतिम शासक थे।
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