बिहार की राजधानी पटना शहर एक धार्मिक और ऐतिहासिक शहर है। यह शहर सिख और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक तीर्थ स्थल भी है। पटना साहिब को श्री गुरू नानक देव जी, श्री गुरू तेगबहादुर साहिब जी तथा श्री गुरू गोविन्द सिंह जी ने अपने पावन चरणों से पवित्र किया है। धार्मिक दृष्टि से पटना सिटी का महत्व, सिखों के दसवें व अंतिम गुरु, श्री गोविन्द सिंह जी के जन्म स्थान के रूप में माना जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज का जन्म इसी पवित्र भूमि पर हुआ था। गुरु गोविन्द सिंह जी के इसी जन्म स्थान पर वर्तमान में एक विशाल भव्य गुरूद्वारा श्री हरमंदिर साहिब है। जिसे तख्त श्री हरमंदिर साहिब के नाम से जाना जाता है। यह सिख धर्म का दूसरा महान तख्त है। पटना शहर बिहार प्रान्त की राजधानी है, और यह शहर शिक्षा तथा साहित्य का केंद्र भी रहा है। साथ ही यह शहर श्री गुरू गोविन्द सिंह जी की बाल लीलाओं से भरा हुआ है। और यहां अनेक गुरूद्वारे है। अपनी पटना साहिब यात्रा के अंतर्गत हम पटना साहिब का इतिहास, पटना साहिब इन हिन्दी, पटना साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी, पटना साहिब की जानकारी, पटना साहिब गुरूद्वारा रूम बुकिंग, तख्त श्री पटना साहिब इन हिन्दी, पटना साहिब के दर्शनीय स्थल, आदि सवालों के बारें में विस्तार से जानेंगे।
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Patna Sahib history in hindi
पटना साहिब के इतिहास की शुरुआत लगभग 1507 ईसवीं में हुई थी, जब सिखों के प्रथम गुरू नानकदेव जी अपनी पूर्व की पहली यात्रा के समय पटना में अपने शिष्यों के साथ आए थे। और अपने एक भक्त जैतामल मल के पास (वर्तमान में गुरूद्वारा गाय घाट) ठहरे थे। लंबी यात्रा के चलते उनका खाने पिने ककी सामग्री खत्म हो गई थी। उन्होंने अपने एक शिष्य मरदाना को जो भूखा था। एक किमती हीरा देकर बेचने के लिए भेजा, मरदाना एक जौहरी की दुकान में पहुंचा, उस जौहरी का नाम सालिस राय था, और उसके नौकर का नाम अधरका था।
अधरका ने हीरा देखते ही मरदाना की अपने मालिक सालिस राय से मुलाकात कराई। हीरा बेसकीमती होने के कारण सालिस राय ने हीरे को देखने की भेंट 100 रूपए देकर मरदाना को हीरा वापिस कर दिया। गुरु नानक देव जी ने नाराज होकर मरदाना को हीरा सालिस राय को देने के लिए पुनः वापिस भेजा। सालिस राय गुरूजी की इस उदारता को देखकर बहुत प्रभावित हुआ और गुरु नानकदेव जीके दर्शन की इच्छा जाहिर की।
तत्पश्चात अधरका और सालिस राय गुरु नानकदेव जी के दर्शन करके उनके अनन्य भक्त हो गए। और गुरू नानकदेव जी को अपने निवास स्थान पर पधारने के लिए निमंत्रित किया। गुरु नानक देव जी, सालिस राय के निमंत्रण को स्वीकार कर उसके निवास स्थान पर गए, और लगभग चार महीने वहां पर ठहरे, और सुबह शाम संगत को उपदेश देते थे। सालिस राय ने धर्म के नाम पर यह स्थान गुरूजी को दान कर दिया था। गुरू नानकदेव जी ने यहां से जाते समय इस स्थान को पूज्य स्थान (संगत) बनाकर सालिस राय को उसका उत्तराधिकारी बना दिया था।
गुरू नानकदेव जी के बाद सिखों के नौवें गुरू श्री गुरु तेगबहादुर जी अपनी पूर्व की यात्रा पर लगभग 1666 ईसवीं मे पटना साहिब आए। गुरु तेगबहादुर जी के साथ उनकी माता नानकी जी, तथा धर्म पत्नी माता गूजरी जी, तथा माता गूजरी जी के भाई कृपाल चंद जी, और कई दरबारी भी आएं थे। गुरु तेगबहादुर जी कुछ समय बडी संगत गाय घाट ठहरने के बाद, परिवार को यहाँ छोडकर बंगाल और आसाम चले गए। उन्होंने मुंगेर जाकर पटना जी संगत के नाम एक हुक्मनामा जारी किया, और परिवार को एक अच्छी हवेली में रखने का आदेश देते हुए संगत को आशीर्वाद दिया। इसी हुक्मनामा में पटना साहिब को गुरु का घर कहा है।
यही पटना साहिब मेंं 22 दिसंबर 1666 ईसवीं को गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज का जन्म हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी ढ़ाका में थे, जहां कि उनको पटना से गोविन्द राय जी के जन्म का संदेश मिला। (गोविन्द राय, गुरु गोविन्द सिंह जी के बचपन का नाम था)। गुरु तेगबहादुर जी ने बहुत खुशियां मनाई। गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने अपने बचपन के लगभग 7 वर्ष पटना साहिब में बिताएंं, और पटना वासियों को अपनी बाल लीलाओं का सुख दिया। वे अपने नन्हे नन्हें पैरों की अमिट छाप इस भूमि पर छोड़ गए। जहाँ जहां उन्होंने अपने पैरो की अमिट छाप छोडी व बाल लीलाएं की व स्थान वर्तमान मे पूज्यनीय बन गए। और वर्तमान वहां वहां संगत द्वारा भव्य गुरूद्वारे बनाए गए। जिनमें से पटना साहिब में स्थित कुछ प्रमुख गुरूद्वारों का वर्णन हम नीचे करेंगे।
पटना साहिब के फोटोगुरूद्वारा श्री हरमंदिर साहिब पटना (Gurudwara shri Harmandir sahib Patna)
पटना साहिब का यह मुख्य गुरूद्वारा है। इसी स्थान पर गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म हुआ था। गुरूद्वारा हरमंदिर साहिब का निर्माण महाराजा रंजीत सिंह ने करवाया था। यह पांच मंजिली एक भव्य इमारत है। इमारत के नीचे तहखाना है। ग्राउंड फ्लोर जन्म स्थान में गुरु ग्रंथ साहिब, दशम ग्रंथ, गुरु जी के शस्त्र, गुरू गोविन्द सिंह तथा गुरु तेगबहादुर जी के खडाऊं, दसवें पातशाह का 300 वर्ष पुराना चोगा वस्त्र आदि वस्तुएं दर्शनीय है, तथा माता गूजरी का कुआँ है।
पहली मंजिल में साध संगत की ओर से अखंड पाठ रखें जाते है। दूसरी मंजिल पर अजायबघर है। यहां पर तेल चित्र लगे हुए है। तीसरी मंजिल पर अमृतपान तथा विवाह आनंद कारज की व्यवस्था है। गुरूद्वारे की चौथी मंजिल में पुरातन हस्तलिपि और पत्थर के छाप की पुरानी बडी गुरु ग्रंथ साहिब की प्रति को सुरक्षित रखा गया है। जिस पर गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने तीर की नोक से केसर के साथ मूल मंत्र लिखा था। इसके दर्शन संक्रांति में कराएं जाते है।
इसके अतिरिक्त पवित्र जन्म स्थान तख्त हरमंदिर गुरूद्वारा में गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज का युवा अवस्था में आयल पेंट से तैयार किया हुआ एक चित्र है। तथा चार पांव का छोटा पालना (पंगुडा साहिब) है। इस पर गुरूजी बचपन में बैठा करते थे। यह सोने की प्लेटो से मढ़ा हुआ है। गुरूजी की छोटी तलवार जो बचपन में पहना करते थे, गुरु जी की गुलेल की गोली तथा चार तीर जिनसे घडे फोडते थे, लोहे की छोटी चक्री जो गुरूजी अपने केशो मे धारण करते थे। चंदन की लकडी का कंघा जिससे केश साफ किया करते थे, लोहे का खंडा तथा लोहे के दो चक्र जो दस्तार में सजाया करते थे, गुरूजी के लिए हाथी दांत की बनाई खड़ाऊँ, गुरू तेगबहादुर जी की सन्दल की लकडी के खड़ाऊँ का एक जोडा, गुरु तेगबहादुर साहिब, गुरू गोविन्द सिंह जी, तथा माता गूजरी जी के हुक्मरानों की एक पुस्तक, भक्त कबीर जी की खड्डी जिससे कपडें बुना करते थे, आदि भी गुरूद्वारा तख्त श्री हरमंदिर साहिब पटना में मुख्य रूप से दर्शनीय है।
गुरु गोविन्द घाट या गुरूद्वारा कंगन घाट (Guru Govind ghat/Gurudwara kangan ghat)
यह गुरूद्वारा तख्त हरमंदिर पटना साहिब गुरूद्वारे के उत्तर की ओर थोडी सी दूरी पर है। और गंगा के किनारे पर है। यहां पर गुरु गोविन्द सिंह जी गंगा के किनारे पर खेलने आया करते थे। और अपने साथियों के साथ यहां गतका बाज, तीर अंदाजी तथा गुलेल के निशानो का अभ्यास किया करते थे। और कश्ती भी चलाया करते थे। इसके अलावा यहाँ आकर गंगा में तैराकी भी किया करते थे।
एक दिन अपने साथियों को जो कि बालक सैनिक फौज बनाई हुई थी, उनको साथ लेकर यहां गंगा पर आकर स्नान करने लगे। और तैरते तैरते बहुत दूर तक चले गए। उनके दूसरे साथियों ने कहा — गोविंद राय आप बाहर आ जाएं। क्योंकि गंगा बहुत तेज लहर में है। वहां मौजूद बडे आदमियों ने भी कहा लाल जी बाहर आ जाओ, मगर उनकी आवाज सुनकर गोविंद राय जी ने उत्तर दिया, कि मै गंगा माता कि गोद में खेल रहा हूँ, और गंगा माता मुझे लोरियां दे रही है। इसलिए मैं अभी नही आ रहा हूँ।
यह उत्तर सुनकर सब हैरान रह गए, कि छोटे से बालक को कितना ज्ञान है। थोडी देर के बाद गोविंद सिंह जी गंगा से वापस आ रहे थे, तो उन्होंने अपना सोने का एक कंगन गंगा में फेंक दिया। उसके बाद कपडें पहनकर अपने घर आए तो माता गूजरी जी ने गोविंद राय को अपने पास बुलाया और कहा – लाल जी ( गुरू गोविंद सिंह की माता प्यार से उन्हें लाल जी कहकर पुकारती थी) इधर आओ और यह बताओ कि तुम्हारे हाथ में जो सोने का कंगन नहीं है, वह कहा है? । गोविंद राय जी ने उत्तर दिया कि– माता जी खेलते खेलते हाथ से गंगा नदी में गिर गया, हमें ढूंढने पर भी नहीं मिला। आप चलकर वह कंगन नदी से निकलवा दीजिये। बालक की यह बात सुनकर माता गूजरी तैयार हो गई, और अपने भाई कृपाल सिंह और बहुत सी संगत साथ लेकर गोविंद राय जी के साथ कंगन ढूढने के लिए गंगा किनारे आ गई।
और गंगा के किनारे खडे होकर माता गूजरी जी ने अपने लाल गोविंद राय जी से पूछा बेटा जी, वह कंगन कहा गिरा था, हम उसको निकलवा देते है।
तब गोविन्द राय जी ने अपने दूसरे हाथ का कंगन उतार कर वह भी गंगा जी में फेंक दिया, और कहने लगे माता जी- जहाँ यह कंगन गिरा है, वहीं पहला कंगन भी है।
माता जी हैरान होकर कहने लगी- लाल जी मै तो एक कंगन ढुंढवाने के लिए आयी थी, मगर आपने दूसरा भी फेंक दिया।
गोविन्द राय जी ने उत्तर दिया– कि माता जी जहाँ एक कंगन निकलवाना था। वहीं दूसरा भी निकलवा लेना!। घाट पर दो मल्लाह किश्ती लगा कर बैठे थे। माताजी ने उनको कहा कि भाई आप हमारे दोनों कंगन निकाल दीजिए। और दोनों मल्लाह माताजी का हुकुम मानकर गंगा जी में उतरे तो गोविंद राय ने कहा कि भाई हमारे कंगनों को छेडना मत!।
मल्लाहों ने गंगा जी में गोता लगाया और देखा कि नदी में कंगनों के ढेर पडे हुए है, ओर चारों तरफ कंगन ही कंगन दिखाई पड़ते है। उनमें से कुछ कंगन निकालकर माता गूजरी के आगे ढेरी लगा दी, और कहा माता जी इनमें से अपने कंगनों को पहचान लिजिए। तै माता जी ने कहा — कि भाई इन कंगनों नदी में ही फेंक दो! क्योंकि लालजी ने यह कोई कौतुक खेला है। माता जी ने गोविंद सिंह जी से पूछा बेटा तुमने अपने कंगन नदी में किस लिए फेंक दिए थे। इस बात का वर्णन करो!।
गोविंद सिंह जी ने माता को उत्तर दिया– कि ये कंगन मेरी मौत की निशानी थी, क्योंकि मुगलों का जमाना है, हमें पकड़ कर कोई मार देता या गंगा मे फेंक देता और कंगन उतारकर ले जाता तो, न तो आप को कंगन ही मिलते और न लाल जी, दोनों मे से कोई नहीं मिलता इसलिए अपनी मौत को गंगाजी में फेंक दिया। इस बात को सुनकर माता जी हैरान हो गई और यह कौतुक देखकर सब समझ गए कि गोविंद राय जी ने कंगन नदी में फेंक कर माया का त्याग प्रकट किया है। इसी गंगा घाट पर आज एक गुरूद्वारा बना हुआ है। जो पटना साहिब की यात्रा में मुख्य रूप से दर्शनीय है।
गुरूद्वारा बाललीला (Gurudwara bal leela)
पटना साहिब में यह गुरूद्वारा भी तख्त हरमंदिर साहिब गुरूद्वारे के पास ही स्थित है। यहां पर भी गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने बचपन में चमत्कार किए थे। इस गुरूद्वारे को“मैनी संगत”भी कहा जाता है। फतहचन्द मैनी एक स्थानीय राजा था। उनकी कोई संतान नहीं थी। गोविंद राय जी अपने साथियों के साथ खेलते खेलते प्रतिदिन उसके महल में जाते थे। रानी प्रतिदिन भगवान के आगे गोविंद राय जैसा बालक संकल्प करती हुई प्रार्थना करती थी।
एक दिन गोविंद राय जी अंतर्यामी रानी की गोद में जाकर बैठ गए, और मां कहकर पुकारा!। रानी तृप्त हुई और उन्होंने गोविंद राय जी को धर्मपुत्र स्वीकार कर लिया। एक दिन गोविन्दा राय जी को खेलते खेलते भूख लगी थी। तब रानी ने उबले हुए चने तथा पुरी खिलाई। धर्मपुत्र बनने के नाते गुरू गोविंद सिंह जी ने राजा फतहचन्द मैनी परिवार को हमेशा के लिए अमर दान दिया। इस गुरूद्वारे में आज भी चने का प्रसाद मिलता है। गुरूद्वारा बहुत ही सुंदर ढंग से बनाया गया है। यहां दर्शनीय वस्तुओं मे खीमखाप का जूता जो गुरूजी बाल अवस्था मे पहना करते थे, करौंदे का वृक्ष, जिसके बारें मे कहा जाता है कि यहा गुरूजी ने दतवन गाडी थी, उसी से यह वृक्ष हो गया, और आज भी हरा भरा रहता है।
गुरूद्वारा गुरू का बाग (Gurudwara Guru ka baag)
पटना साहिब मे यह गुरूद्वारा तख्त हरमंदिर साहिब गुरूद्वारे से 6-7 किमी पूरब की ओर स्थित है। यहां पर स्थानीय नवाब रहीम बक्श तथा करीम बक्श दो भाइयों का बाग था। जोकि बिल्कुल सूखा पडा था। श्री गुरु तेगबहादुर जी ने आसाम से वापिस लौटते हुए, इस बाग में आकर डेरा डाला था। गुरू जी के डेरा डालते ही सूखा बाग हरा भरा हो गया। जब दोनों भाईयो को इसकी सूचना मिली कि किसी संत महापुरुष के आने पर बाग हरा भरा हो गया है, तो वे दोनों भाई अपने दरबारियों के साथ वहां पहुंचे, और उन्होंने यह बाग गुरूजी के नाम कर दिया।
इसी बाग में गुरू गोविंद सिंह जी पहली बार अपने पिता गुरू तेगबहादुर जी से मिले थे। इस बाग में एक कुआँ है, जिसमें से गुरू तेगबहादुर जी ने एक साधु का कमंडल और आसन निकाल कर उसका भ्रम दूर किया था। और इस पवित्र कुएँ को वरदान दिया था कि श्रृद्धालु स्त्रियों के इस कुएँ के जल में स्नान करने से उनकी कोख हरी होगी। वर्तमान मे यहां पर एक बहुत सुंदर स्वच्छ निर्मल जल का सरोवर बना हुआ है। जिसके चारो ओर पक्की सीढियां बनी है। कुएँ के जल को पम्प द्वारा इस सरोवर मे भरा जाता है। संगत और श्रृद्धालु इस कुएँ में स्नान करते है। महिलाओं के स्नान करने के लिए इस सरोवर में महिला स्नान गृह भी बना हुआ है।
यहां बैसाख शुदी सप्तमी को हर साल गुरु पर्व बडी धुमधाम से मनाया जाता है। यहां हर महीने शुदी सप्तमी का भी स्नान करने का बडा महत्व माना जाता है। क्योंकि इसी दिन बाल गोविंद सिंह जी पहली बार अपने पिता गुरु तेगबहादुर से यहां पर मिले थे। यहां पर निर्मित गुरूद्वारा बहुत ही सुंदर है। तथा बाग में आम, अमरूद, केले के वृक्ष है। यहां एक इमली का पेड़ भी है। जिसके नीचे गुरु तेगबहादुर आकर बैठे थे। गुरूद्वारे के ठीख सामने एक नीम का पेड़ भी है, जिसके बारे मे कहा जाता है कि यहां गुरु जी ने अपनी दातुन को गाड़ दिया था, जो आज वृक्ष के रूप मे है।
गुरूद्वारा गाय घाट (Gurudwara Gaay ghat)
पटना साहिब के दर्शनीय स्थलों में गुरूद्वारा गाय घाट भी महत्वपूर्ण स्थथान रखता है। यह गुरूद्वारा तख्त हरमंदिर साहिब से लगभग 5-6 किमी पश्चिम की ओर स्थित है। तख्त हरमंदिर साहिब से प्रथम स्थान यह गुरूद्वारा गाय घाट बडी संगत है। प्रथम गुरु नानकदेव जी और गुरु तेगबहादुर जी का पहला गुरूद्वारा है। यह गाँव विशम्भरपुर था। जयतामल भगत, गुरू नानकदेव जी का शिष्य था। उसके पास नानकदेव जी आकर रहे थे, उस समय शिष्य भक्त जयतामल की उम्र 350 वर्ष की थी। भक्त जयतामल ने गुरू नानकदेव जी से प्रार्थना की, कि मै इतना वृद्ध हो गया हूँ, कि अपना क्रियाक्रम भी नहीं कर सकता, मुझे मुक्ति देने की कृपा करे।
गुरू नानकदेव जी ने कहा– कि अभी तुम्हारा संसारिक सुख भोगना बाकी है। गुरू तेगबहादुर नौवां जामा आयेगा और उनके दर्शन के बाद तुम्हें मुक्ति होगी। गुरू तेगबहादुर का रूप मेरे समान होगा और इसी स्थान पर दर्शन होगें। गुरूजी ने भक्त के स्नान के लिए गंगा को गऊ रूप में पैदा किया। जिससे इस स्थान का नाम गऊ घाट पड़ गया।
जब नौवां जामा गुरू तेगबहादुर जी तीर्थ यात्रा करते हुए परिवार सहित जयतामल के पास पहुंचे तो उन्होंने द्वार पर खडे होकर आवाज दी। द्वार खोलो गुरू साहब खडे है। तब अंदर से उत्तर मिला कि गुरू साहिब के लिए द्वार क्या खोले वे तो स्वयं आ जायेंगे। उसी समय एक छैटी सी खिडकी खुली थी, उसी रास्ते से छोटा सा रूप धारण कर घोडे पर सवार हुए गुरू साहब अंदर आ गए। उन्होंने एक लकडी का खूंटा गाड कर अपने हाथ से घोडा बांधा।
गुरू नानकदेव जी की गद्दी पर बैठकर और गुरू नानकदेव जी के सदृश्य होकर भक्त जयतामल जी को दर्शन दिए। तत्पशचात मुक्ति दी और शिष्य का मृतक संस्कार किया। इसी मकान की नीव रखकर अपना घर गुरूद्वारा बनाया।
उस समय राजा बिशुन सिंह का बेटा मान सिंह योधपुर आसाम से गुरू साहब के पास सहायता के लिए आए थे। राजा बिशुन सिंह, गुलजार खां सुबेदार के पास विशम्भरपुर में ठहरा था। उस वक्त गुरू साहब के दरबार में बढ़ई लगें हुए थे। गुरू साहब ने उनको इमारती लकडी के दो खम्भों को अपनी शक्ति से छोटा बडा करके दिखाया। लेकिन बढ़ई इस इमारती लकडी को काम में नहीं लाया। क्योंकि इस लकड़ी में शक्ति हो गई थी। गुरु साहब ने उन लकड़ियों को वर दिया कि जो रोगी इस स्थान पर आकर श्री थम्भ साहिब के गले लगेगा उस रोगी का रोग नाश हो जाएगा और मन वांछित फल मिलेगा। वर्तमान मे भी यह प्रत्यक्ष है। और दोनों लकडियाँ मौजूद है। जिन्हें श्री थम्भ साहिब के नाम से जाना जाता है। और कितने ही श्रृद्धालु प्रतिदिन थम्भ साहिब के गले लगकर मन वांछित फल पाते है, तथा रोगों से मुक्त हो जाते है।
ठहरने की व्यवस्था (where to stay)
गुरूद्वारा तख्त हरमंदिर साहिब मे निःशुल्क तीन दिन ठहरने की व्यवस्था है। यहां लगभग 200 कमरे है। पटना साहिब गुरूद्वारा रूम बुकिंग, पटना साहिब आनलाइन रूम बुकिंग के लिए आप takhat patna sahib.in पर जाकर ऑनलाइन रूम बुक कर सकते है। इसके यहां यहां काफी संख्या में होटल और धर्मशालाएं है भी है। पटना साहिब में भोजन के लिए गुरू के लंगर की भी अच्छी सुविधा है।
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