गंगा-तट पर जितने नगर बसे है, उन सबमेमिर्जापुर का पक्का घाट और घण्टाघर बेजोड है।ये दोनो वास्तुशिल्प के अद्भुत नमूने है। मिर्जापुर नगर पालिका के एक सौ पांच वर्ष में उल्लिखित विवरण के अनुसार 1867-68 में यहां का टाउन हाल तथा घण्टाघर निर्मित हुआ था। इसमे गुलाबी, हरे तथा लाल रंग के पत्थरों पर भीतर, बाहर, नीचे से ऊपर तक नक्काशी, पच्चीकारी की गयी है। एक-एक इच पर कला का रूप देखने को मिलता है। तभी से घडी मे आज तक खराबी नहीं हुई। कहते है यह घण्टा घर इतना बढ़िया बनाया गया था कि मुख्य मिस्त्री का हाथ कटवा लिया गया ताकि वह किसी अन्य स्थान पर ऐसी भव्य इमारत न खडी कर दे।
पक्का घाट मिर्जापुर का मेला
पक्का घाट भी ऐसा ही है, यह भी लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है। इसकी पच्चिकारी भी अनोखी है। काशी में भी ऐसा कोई घाट नहीं है। पक्का घाट पर हजारों नर-नारी एक साथ बैठकर आनद ले सकते है, प्रवचन सुन सकते हैं, नदी की धारा का प्रवाह देख सकते है। इसी कारण श्रावण भर यहां मेले का ही दृश्य उपस्थित हुआ रहता है। यहां पर एक प्रसिद्ध मंदिर है। जिसमें पूजा अर्चना की जाती है।गोताखोर यहां गोता लगाने आते है, उनकी प्रतियोगिताए आयोजित होती है। नौकायन का आयोजन किया जाता है। “उग्र” की भाग यही छनती थी और बजडे पर गोष्ठिया होती थी। यदा-कदा यहां से चुनार तक की यात्रा नाव से की जाती थी।

पक्का घाट में स्त्रियों का मेला लगता है। प्रत्येक पर्व पर यहां भारी भीड एकत्र होती है। यहां स्त्री और पुरुष दोनो के लिए अलग अलग घाट बने हुए है। श्रृंगार प्रसाधनो के लिए स्त्रियो का घाट मशहूर है। यहां पतंग भी उडाई जाती है। खिचड़ी के अवसर पर पतंग की प्रतियोगिताएं आयोजित होती है जिसे देखने के लिए नगर के अधिकतर प्रबुद्ध, प्रतिष्ठितजन एकत्र होते है। यहीं पर गंगा दशहरा, बावन द्वादशी, रक्षाबधन, कजरी, भरत मिलाप के अवसर पर भी मेलो-ठेलों का आयोजन किया जाता है।