नील्स बोर का जीवन परिचय – नील्स बोर का परमाणु मॉडल Naeem Ahmad, June 12, 2022March 25, 2024 दरबारी अन्दाज़ का बूढ़ा अपनी सीट से उठा और निहायत चुस्ती और अदब के साथ सिर से हैट उतारते हुए उसने बन्दगी की। पास में खड़ी महिला ने जो एक अमेरीकन वैज्ञानिक की पत्नी थी, बताया था कि मेरा पति कोपेनहेगन के इन्स्टीट्यूट फॉर थिअरेटिकल फीज़िक्स में विद्या ग्रहण कर रहा है। सलामी का यह दृश्य एक स्ट्रीट कार में हुआ, किन्तु उस अभिनन्दन का मात्र न वह महिला थी न बगल में खड़ा उसका पति। यह अभिनन्दन डेनमार्क के वैज्ञानिक-शिरोमणि को किया गया था। कहते हैं, डेनमार्क के लोगों को अपनी इस चीज़ पर बेहद नाज है, मुल्क के जहाज बनाने के उद्योग पर, अपने ही यहां उपजे दूध मक्खन पत्ती पर, और हैन्स क्रिश्चन एंडरसन तथा नील्स बोर पर।नील्स बोर का जीवन परिचयनील्स बोर का जन्म 7 अक्तूबर 1885 को हुआ था। मां का नाम था एलेन एंडलर और बाप क्रिश्चन बोर, कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में शरीर-तंत्र (फीज़ियोंलोजी ) का प्रोफेसर था। बालक का जन्म ननसाल में हुआ था। यह घर आज भी कोपेनहेगन की गेर सरकारी इमारतों में खूबसूरती में बेमिसाल माना जाता है, और इसका अपना नाम भी है— किंग जार्ज का महल। नील्स बोर शुरू से ही एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी था, और उसकी सम्पूर्ण शिक्षा-दीक्षा कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में ही हुई। 22 वर्ष की आयु में डेनिश विज्ञान सोसाइटी ने उसे ‘सर्फेस-टेंशन’ सम्बन्धी उसके मौलिक अध्ययनों पर एक स्वर्ण-पदक भी दिया था। नील्स बोर और उसका भाई हैरल्ड, जो आगे चलकर एक प्रसिद्ध गणितज्ञ बन गया दोनों जहां-जहां भी स्कैण्डेनेविया का तंत्र है। उन सभी देशो मे फुटबाल के अद्वितीय खिलाडी मशहूर हो चुके थे, और दोनो ही आल-डेनिश टीम के सदस्य भी थे।सर हेनरी कॉटन का जीवन परिचय हिन्दी मेंनील्स बोर ने भौतिकी मे पी-एच० डी० हासिल की और उसके बाद इंग्लेंडकी कैवेण्डिश लेबोरेट्रीज में इलेक्ट्रॉन के जनक जे० जे० थॉमसन की छत्रछाया में अनुसंधान करने की पिपासा से निकल पडा। कुछ देर सर अर्नेस्ट रदरफोर्ड के साथ काम करते हुए दोनो वैज्ञानिको में आजीवन मैत्री हो गई, और बोर ने अपने पुत्र का नाम भी अर्नेस्ट ही रखा, जैसा कि रदरफोर्ड का क्रिश्न नाम था, यद्यपि डेनिश मे अर्नेस्ट का पर्यायवाची ‘अर्न्स्ठ’ होता है।1913 में बोर ने अणु की अन्त करण सम्बन्धी अपनी मौलिक कल्पना विज्ञान-जगत के सम्मुख प्रस्तुत कर दी। यह स्थापना आज कही आगे विकसित हो चुकी है।उसके मूल सिद्धान्त मे और उसके परतर रूप मे कितने ही परिवर्तन भी आ चुके है, किन्तु मूल मे यह बोर की वही दृष्टि ही थी जिसकी बदौलत आज भी रसायनशास्त्र से तथा विद्युत विज्ञान में कितने ही गम्भीर तर अन्वेषणों की परम्परा चली और अणु-शक्ति का विकास सम्भव हो सका। अणु—अर्थात किसी भी द्रव्य का छोटे से छोटा भाग, एक कण जिसमे उस द्रव्य की निजी विशिष्टताए ज्यो की त्यो बनी रहती है, नष्ट नही हो जाती। ये अणु, उदाहरणतया, ताबे के भी हो सकते है, निओन के भी, यूरेनियम के भी। सैद्धान्तिक रूप मे तो इन सभी छोटे, और अधिक छोटे टुकडो मे, परमाणुओ मे, तोडा जा सकता है लेकिन उन्हे इस तरह कितना ही छोटा क्यो न कर लिया जाए–अणु की अवस्था तक उनकी वह मौलिक विशिष्टता ताबे-निओन-यूरेनियम के रूप मे वैसा ही अविनश्वर ही बनी रहेगी । उसमे किंचित्मात्र भी परिवर्तन नहीं आएगा तांबा तांबा ही रहेगा, निओन निओन, और यूरेनियम यूरेनियम। किन्तु हां अणु का आगे और विभाजन हुआ नही कि वह कुछ से कुछ और हुआ नही, उसकी प्रकृति बदली नही। अणु दो अंशो का बना होता है,एक अन्त करण जिसे न्यूक्लियस अथवा केन्द्रक कहते है और दूसरा इस नाभि-संस्थान से पृथक् दूर-स्थित इलेक्ट्रोन नाम के कणों का समुच्चय – बाह्य प्रावरण। अणु की बोर द्वारा प्रस्तुत कल्पना में न्यू क्लियस’ केन्द्र अथवा नाभि रूप में स्थिर रहता है, जबकि ये इलेक्ट्रोन उस केन्द्र बिन्दु के गिर्द वृत्ताकार परिधियों मे निरन्तर परिक्रमा काटते रहते है। अणु के संधान की इस कल्पना की तुलना प्राय सौरमण्डल के साथ की भी जाती है, क्योकि सौरचक्र मे भी तो ग्रह-नक्षत्र सूर्य के गिर्द अपनी-अपनी परिधियों में ही घूमा करते हैं।जॉर्ज यूल का जीवन परिचय हिन्दी मेंअणु कितना छोटा होता है, इसकी शायद कल्पना भी असंभव प्रतीत होती है। साधारण परिमाण के 50,00,00,000 अणुओं को मिलाकर कुछ फैला कर– यदि एक साथ रखा जाए तब भी शायद यह पृष्ठ पुरी तरह से ढका न जा सके। फिर भी अणु की यह छोटी-सी दुनिया प्राय ‘शुन्याकाश’ ही अधिक होती है। अणु के न्यूक्लियस का व्यास भी स्वयं अणु के व्यास का लगभग एक लाखवां हिस्सा होता है, जिसके गिर्द इलेक्ट्रॉन इस तेज़ी के साथ चक्कर काट रहे होते है कि अणु का वह अन्तरिक्ष जेसे आपूर्ण भरा-भरा ही दिखाई देता है। और ये इलेक्ट्रॉन परिमाण मे वे न्यूक्लियस की अपेक्षा बहुत ही छोटे होते है, बगैर किसी तरतीब के अन्धाधुन्ध ही उडते-फिरते हो, ऐसी बात नहीं है। उनकी भी विनिदिचत परिधियां होती हैं। किन्तु वृत्ताकार से ये यात्रा पथ इलेक्ट्रॉनो के एक ही स्थान पर स्थिर कभी नही रहते, उनका कक्ष निरन्तर परिवर्तित होता चलता है जिससे कितने ही खोल-से चक्र एक ही इलेक्ट्रॉन के पथ-बन्धन से अविरत बनते-मिटते प्रतीत होते है।अणु का सरलतम रूप है- हाइड्रोजन अथवा उदजन। हाइड्रोजन प्राकृतिक तत्त्वो में सबसे हलका तत्त्व है। इसके न्यूक्लियस मे केवल एक प्रोटॉन होता है। प्रोट्रॉन मे मात्रा में इलेक्ट्रॉन के समान ही आवेश होता है किन्तु प्रोटॉन में यह (चार्ज) ऋण न होकर धन होता है। और साथ ही प्रोटॉन भारी भी इलेक्ट्रॉन की अपेक्षा 2,000 गुणा होता है। साधारणतया, हाइड्रोजन के न्यूक्लियस के गिर्द एक ही इलेक्ट्रॉन परिक्रमा किया करता है। सरलता की दृष्टि से हाइड्रोजन के बाद प्रसिद्ध अ-विस्फोटक हलकी गैस हीलियम का नम्बर आता है। हीलियम के न्यूक्लियस मे दो न्यूट्रॉन होते है और दो ही प्रोटॉन और उसकी परिधि में भी दो ही इलेक्ट्रॉन गतिशील हुआ करते है। और यूरेनियम में वह तत्त्व जिसने एक बार तो सचमुच हमारी इस धरती को डावाडोल करके दिखा दिया था, 92 इलेक्ट्रॉन 7 साफ-सुथरी परिधियों मे चक्कर पर चक्कर काट रहे होते हैं। इस प्रकार, प्रत्येक तत्त्व मे इन प्रोटॉनो तथा न्यूट्रॉनो की अलग-अलग संख्या होती है जिनके गिर्द विभिन्न आकार एवं संख्या की परिधियों में इलेक्ट्रॉन निरन्तर घूम रहे होते है।अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय – अल्बर्ट आइंस्टीन के आविष्कार?सभी जानते हैं कि विद्युत् के डिस्चार्ज से आसपास की कोई भी गैस सहसा चमक उठती है। निओन में से जब विद्युत को गुजारा जाता है, उसमें नारंगी की सी एक लाल-लाल चमक पैदा हो आती है। हर तत्त्व की इसी प्रकार जैसे अपनी ही एक विशिष्ट वर्ण मुद्रा होती है। अपनी ही अगुलि-छाप होती है। और सचमुच किसी भी तत्त्व मे इस प्रवयर उत्त्पति प्रकाश-चाप का वर्ण विश्लेषण करके वैज्ञानिक हमे तत्क्षण बतला सकते है कि उस तत्त्व की आन्तर रचना क्या है, किस प्रकार की है, उस तत्त्व का नाम क्या है।नील्स बोरनील्स बोर ने अपनी अणु-कल्पना के आधार पर तथा कुछ क्वान्टम सिद्धान्त के आधार पर, (अणु की प्रकृति-सम्बन्धी) इस समस्या का समाधान उपस्थित करने की कोशिश की कि क्या सचमुच विभिन्न द्रव्यो द्वारा विसर्जित प्रकाश के वर्ण-रूपो की पूर्व कल्पना हम कुछ कर सकते हैं, इन वर्ण रूपो के आधार पर क्या वस्तु के स्वरूप की कुछ कल्पना, कुछ पूर्वाभास कर सकते हैं? नील्स बोर ने एक नया विचार इस सम्बन्ध में इस प्रकार अभिव्यक्त किया कि ये इलेक्ट्रॉन सामान्यतः तो अपने विनिद्दिचत वृत्तो मे ही चक्कर काटते है किन्तु जब अणु में से बिजली गुजारी जाती है तब फट से कूदकर ये अपनी लीक में से अगली और पहले से कुछ बडी परिधि में पहुच जाते है और वहा से फिर वापस उसी पुरानी परिधि में आ जाते हैं। अर्थात् परिधि-परिवर्तंतन की इस उछल-कूद का ही परिणाम होती है यह अदभुत चमक-दमक जो एक प्रकार से अणु-अणु का एक और लक्षण सा ही बन जाती है। अणु की आन्तर रचना तथा उसके इलक्ट्रॉनो द्वारा यह परिधि-व्यत्क्रिमण इन दो विलक्षणताओ के आधार पर अब बोर को अणु-अणु की वर्ण-भगिमा का पूर्वाभ्यास देने मे भी कुछ मुश्किल पेश नही आई।जॉन डाल्टन का जीवन परिचय और जॉन डाल्टन की खोजजैसा कि प्राय विज्ञान की किसी भी नूतन दृष्टि के साथ हुआ करता है, नील्स बोर की इस आन्वीक्षिकी को शुरू-शुरू में बहुत ही कम लोग ग्रहण कर पाए थे यहा तक कि नोबल पुरस्कार समिति की आखें भी इस विषय मे कही नौ साल बाद 1922 में खुली। लेकिन इस देरी के बावजूद, 37 वर्ष की आयु में बोर की छोटी उम्र का कोई भी भौतिकीविद तब तक नोबल-विजेता न बन सका था। खेर, विज्ञान-जगत् ने नील्स बोर को सम्मानित करने मे बहुत देर लगाई हो सो भी नही। पुरस्कृत होने से पूर्व ही उसे कोपेनहेगन के समीक्षात्मक भौतिकी सस्थान का अध्यक्ष नियुक्त किया जा चुका था। अब क्या था–दुनिया के कोने-कोने से विद्यार्थी डेनमार्क के छोटे-से देश की ओर खिचते आते। यह सब बोर की निजी प्रतिभा का आकर्षण था। अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा कौन कह सकता है नील्स बोर के अभाव में अणु-सम्बन्धी ज्ञान की स्थिति क्या होती ? व्यक्तित्व की दृष्टि से भी सहयोगियो सहकारियो मे ऐसे स्निग्ध मित्र कहा मिला करते है ? बातचीत करते हुए भी उसके साथ यह कभी अनुभव नही होता कि कोई पूर्वाग्रही बलपूर्वक यहा कहता जा रहा है कि सत्य मुझे उपलब्ध हो चुका है, अपितु सदा यही प्रतीति होती है कि कोई सततान्वेषी ही सामने खडा है।1939 की जनवरी में लिजे माइतनर–नात्सी आंतक से भाग खडी एक आस्ट्रियन यहुदी कन्या और उसका भतीजा आतो फ्रीश कोपेनहेगन में बोर के साथ काम कर रहे थे। कुछ जर्मन वैज्ञानिको की नई खोजो के बारे में उन्होने एक लेख पढा और उसे पढकर उन्हे ऐसा लगा कि यूरेनियम के अन्त करण को प्राय दो समान-भागी में विभक्त किया जा सकता है। यदि न्यूक्लियस के इस विभाजन द्वारा यह सम्भव हो जाए तो (और युद्ध-विजय की दृष्टि से इसके इस परिणाम का महत्त्व कितना हो सकता था ) शक्ति के एक अनन्त स्रोत को मानो विसर्जित किया जा सकता था। बोर यह सूचना पाते ही अमेरीका पहुंचा और वहां आइंस्टीन आदि प्रख्यात वैज्ञानिकों से तथा कौलम्बिया विश्वविद्यालय में अनुसन्धान-रत एनरीको फेमि से मिला। कुछ ही दिनों में विश्व भर की परीक्षण शालाओ से माइतनर-फ्रीश के गूढ-अनुमान के समर्थन आने लगे और उसके बाद की कहानी तो परमाणु बम का सर्व-विदित इतिहास है।योहानेस केप्लर का जीवन परिचय – ग्रहों की गति के केप्लर के नियम क्या थे?नील्स बोर डेनमार्क लौट आया और इन्स्टीट्यूट में फिर से अपने अनुसन्धानों में लग गया। किन्तु 1940 के अप्रैल में कुछ ही घण्टों की मार में जर्मनी ने डेनमार्क पर कब्जा कर लिया। लगभग चार साल तक जर्मनी ने डेन लोगो को छुट्टी दे रखी थी कि वे अपना अनुशासन खुद ही करते रहे। उनका विचार था कि सहयोगिता एवं सहानुभूति द्वारा डेनमार्क को वश में कर सकना अधिक सुगम होगा किन्तु सब व्यर्थ। आये दिन हडताले, आये-दिन चोरी-छुपके तबाहिया–हमलावर भी आखिर तंग आ गए और 1944 के सितम्बर मे उन्होंने बादशाह को कैद कर लिया और फौज को निहत्था कर दिया। इसके बाद जब जर्मन सिपाहियो का प्रोग्राम बना कि डेनमार्क के 6,000 यहूदियों को खत्म कर दिया जाए, उसी वक्त उन्हें खबर मिली कि इनमें 5,000 तो पहले ही छोटी-छोटी किश्तियों में स्वीडन फरार हो चुके हैं। डेनमार्क की जनता का यह सचमुच एक प्रशस्य वीरकृत्य था।नील्स बोर भी एक यहुदी मां का बेटा था। नात्सियों के चंगुल में आने से पहले ही पत्नी समेत मछली पकड़ने की एक छोटी-सी किश्ती में सवार होकर स्वीडन पहुंच गया। कहते हैं नात्सियों ने पीछे उसके घर की तलाशी ली। लेकिन उनकी नज़र शायद नोबल पुरस्कार के प्रतीक उस स्वर्ण-पदक पर नहीं पड़ी, तेज़ाब की एक बोतल में वह एक ओर घुला पड़ा था। खुद डेन लोगों का ही यह कर्तव्य रह गया था, अब कि युद्ध की समाप्ति पर आकर वे उसका उद्धार करें और उसे फिर से ढालकर ‘स्मारक’ बना लें। स्वीडन से बोर-दम्पती अमरीका पहुंचे और वहां वे लोस अलामास के एटामिक प्राजेक्ट में अपने पुत्र भोतिकी में ख्यातिप्राप्त आग्रे से आ मिले। लड़ाई जब खत्म हुईं, नील्स बोर कोपेनहिगन और अपनी प्रिय इंस्टीट्यूट में लौट आया। बोर को दो चीज़ों में दिलचस्पी है, विज्ञान में तथा विश्व-शान्ति में, ज्यों ही अणु के विस्फोट की खबरें दुनिया में फैलने लगीं उसने तुरंत अपील की कि इसके प्रयोग पर अविलम्ब अन्तरराष्ट्रीय नियंत्रण हो जाना चाहिए, किन्तु सुनता कौन था ? डेनिश परमाणु शक्ति कमीशन का अध्यक्ष होने के नाते वह 1952 में आयोजित जिनेवा के शांति सम्मेलन में शामिल होने गया और वहां पहुंचते ही उसे उस अधिवेशन का अध्यक्ष चुन लिया गया अक्तूबर 1957 में नील्स बोर को ‘फोर्ड एटम्स फॉर पीस’ पुरस्कार (4,00,000 रुपये) मिला। जीवित वेज्ञानिकों में संभवत: विज्ञान के इतिहास में इतने अधिक पुरस्कार व पारितोषिक किसी और वैज्ञानिक ने नहीं लिए जितने बोर ने।सर हेनरी कॉटन का जीवन परिचय हिन्दी मेंबोर की आमोद-परिहास बुद्धि भी विलक्षण है। भौतिकी मे कण विषयक एक नई स्थापना पर विवेचन के दौरान में उसकी एक उक्ति इस प्रकार प्रसिद्ध है कि “इस विषय में तो हम सब एकमत है ही कि यह सिद्धान्त सचमुच कुछ न कुछ बेतुका है, लेकिन वैमत्य भी हमारा इस बारे में ही है कि क्या इसकी कल्पना वस्तुत इस हद तक बेतुकी है कि उसके सही हो सकने की भी कुछ सभावना है। मेरा अपना विचार यही है कि यह अभी इतनी ज़्यादा बेसिर-पैर की नही हो पाई।” शक्ल-सूरत से नील्स बोर एक बूढा दादा लगता है, भारी-भरकम किन्तु गठीली देह, आंखो पर भवो की वह फैलती हुई कंटीली झाडी-सी, आवाज़ मद्धिम और दबी-दबी किन्तु शब्द कुछ तेजी के साथ निकलते हुए। वैज्ञानिक होने के साथ-साथ वह एक अच्छा-खासा खिलाडी भी था, और माना हुआ खिलाडी। स्काइग, बोटिंग, साइकलिंग और सभी कुछ खूब देर तक निभा सकने का दम। 54 की उम्र मे आस्लो ( नावें ) मे एक ‘स्काई रेस उसने सचमुच जीती भी थी। जब वह 80 साल का हुआ तो नील्स बोर को ख्याल आया कि वह अब विज्ञान की किसी नई खोज के लायक नही रह गया। आजकल उसका शुगल है, कोई आया तो कुछ पढा दिया, वरना विश्व-शान्ति के लिए कुछ न कुछ प्रयत्न करते रहे। हम भी गली मे खडी उस मोटर से उठ खडे हुए उस बूढे की तरह विज्ञान के एक दिग्गज का अभिवादन करते है, जिसकी ‘अणोरणीयस्’ की केली अर्थात् नन्हें अणु के मॉडल की इस परिकल्पना ने हमारी दुनिया को इतना बदल डाला है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें—–[post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी