निरंजनी सम्प्रदाय के संस्थापक, प्रवर्तक, प्रमुख पीठ तथा इतिहास Naeem Ahmad, November 15, 2023 निरंजनी सम्प्रदाय के प्रवर्तक का नाम हरिदास जी था। इनके जीवन वृत्त के सम्बन्ध में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। निरंजनी सम्प्रदाय के अनुयायियों में इनके जीवन सम्बन्धी जो धारणा प्रचलित है उसके अनुसार इनका जन्म राजस्थान के डींडवाणे परगने के कापडोद ग्राम में हुआ था। इनके जन्म संवत् का उल्लेख प्राप्त नहीं है किन्तु इतना निश्चित है कि इनका जीवनकाल सोलहवीं शत्ताब्दी के अन्त भाग से सत्रहवीं शताब्दी के मध्यकाल तक का रहा हैं। साधु देवदास द्वारा इनका मृत्यु संवत् 1700 दिया गया है। Contents1 निरंजनी सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे1.1 निरंजनी पंथ का इतिहास2 हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:— निरंजनी सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे इनका मूल नाम हरिसिंह था। इनका जीवन प्रारंभ में बहुत सामान्य कोटि का था। पहले ये एक साधारण गृहस्थ थे। अकाल के समय परिवार के निर्वाह की कठिनाई उपस्थित होने पर ये जंगल में जाकर यात्रियों को लूटने-खसोटने लगे।परन्तु कहते हैं भगवान ने गोरखनाथ के रूप में आकर इन्हें डकैती करने से रोका और भगवद् भक्ति का उपदेश दिया। उसी समय से इन्होंने लूट-पाट छोड़ दी तथा किसी गुफा में जाकर तपस्या करने लगे तथा बाद में सत्य की खोज में भ्रमण करते रहे। कुछ समय पश्चात् जब ये पुनः डींडवाणे में आये तब तक पूर्ण बैरागी एवं ज्ञानी संत हो गये थे। वहाँ जाने के पश्चात् वे ज्ञान एवं साधना का उपदेश देने लगे और इनकी प्रतिभा एवं व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कई लोग इनके शिष्य बन गये। तब इन्होंने अपना एक नया पंथ प्रचलित किया जो निरंजनी पंथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। निरंजनी सम्प्रदाय निरंजनी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध ग्रन्थ श्री हरि पुरुष जी की वाणी में पंथ प्रवर्तक के रूप में जिन हरिदास जी की जीवनी दी गई है वह उपरोक्त अनुसार ही है परन्तु डॉ० माहेश्वरी तथा अन्य कुछ विद्वानों के मतानुसार पंथ के मूल संस्थापक ये हरिदास (हरीसिंह ) नहीं थे। मूल संस्थापक हरिदास अन्य थे। इन्होंने ( हरीसिंह ) अपने गुरु के नाम से ही निरंजनी पंथ को आगे बढ़ाया। और उसका प्रचार एवं विकास किया। निरंजनी पंथ का इतिहास जिन हरिदास जी का नाम निरंजनी सम्प्रदाय के मूल प्रवर्तक के रूप में लिया जाता है उनका रचना काल श्री जगद्धर शर्मा ने सं० 1597 दिया है। इसके अतिरिक्त संत दादूदयाल के शिष्य संत सुन्दर दास ने हरिदास निरंजनी को संत कबीर दास, गोरखनाथ, दत्तात्रय, भरथरी, कंथड, इत्यादि की कोटि में रखते हुए उनके प्रति बड़ी श्रद्धा और आदर प्रकट किया है। पुरोहित हरिनाराण जी ने भी हरिदास निरंजनी का वृक्ष देते हुए लिखा है कि वे पहले प्रागदास जी के शिप्य हुए, फिर दादूदयाल के, तत्पश्चात कबीर दास तथा गोरखनाथ के शिष्य बने और अन्त में उन्होंने अपना अलग पंथ स्थापित किया। पुरोहित जी के इस कथन से दादू दयाल पंथी सम्मत होते हैं निरंजनी सम्प्रदाय वाले नहीं। उपरोक्त मतों का विचार करते हुए यही युक्ति युक्त लगता है कि हरिदास निरंजनी संत सुन्दरदास से भी पूर्व कोई महापुरुष हुए होंगे जिनका विस्तृत प्रामाणिक जीवन वृत प्राप्त नहीं है । और हरीसिंह ने हरिदास के नाम से ही निरंजनी पंथ का प्रचार करके अपने गुरु के प्रति श्रद्धा प्रकट की होगी। तात्पर्य यह है कि दोनों हरिदास भिन्न भिन्न प्रतीत होते हैं। डॉ० पीताम्बर दत्त बड़बख्थ्वाल के मतानुसार निरंजनी पंथ वस्तु नाथ पंथ का ही विकसित रूप है। जिसमें योग तथा वेदांत का समन्वय हुआ है। इनके अनुसार निरंजनी सम्प्रदाय, नाथ पंथ एवं निर्गुण पंथ का मध्यवर्ती है। किन्तु डॉ० माहेश्वरी ने इस कथन का खंडन किया है। उनके विचार में हरिदास जी की विषय वस्तु शैली और साधना के आधार पर उन्हें संत परंपरा गैर से अलग नहीं किया जा सकता। सही बात तो यह है कि डाक्टर बड़थ्वाल ने अपने उपरोक्त कथन के अंत में आगे स्वयं स्पष्ट कर दिया है कि निरंजनी पंथ तथा निर्गुण पंथ में असमानता बहुत कम है। हरिदास जी की वाणी, श्री हरि पुरुष जी की वाणी, नामक ग्रंथों में संग्रहीत है। यद्यपि कई रचनाओं की पाठ शुद्धि एवं प्रामाणिकता के सम्बन्ध मे संशय होता है तथापि ज्ञान एवं वर्ष्य विषय को देखते हुए रचनाकार की सुन्दर प्रतिभा का पता लगता हैं। पद रचना झूलना, कुंडलिया तथा साखियों में हुई है, शैली में सरलता एवं गंभीरता भी है। विषय की दृष्टि से इसमे योग साधना, ज्ञान, भक्ति, सदाचार धार्मिक सहिष्णुता इत्यादि की चर्चा भी है, भाषा अधिकांशतः राजस्थानी ही है। उदाहरणार्थ हरिदास जी का ईश्वर सम्बन्धी विचार इस पद में स्पष्ट होता है :— लचल अबर सब सुख को सागर, घट घद सबरा मांही रे । जन हरिदास अविनाशी ऐसा कहें तिसा हरि नाहीं रे।। इनकी वाणी में इसके अतिरिक्त वैराग्य तथा बाह्याडवर, निस्सारता का भी वर्णन है। विषय को प्रस्तुत करने की इनकी शैली मौलिक एव आकर्षक है। पुरोहित हरिनारायण जी ने अपनी सुन्दर ग्रन्थावली के जीवन चरित्र वाले अंक में हरिदास जी द्वारा रचित नौ ग्रन्थों की सूची दी है। जो इस प्रकार हैं :— भक्त विरदावली नाम निरुपण भरथरी संवाद व्याहली साखी जोग ग्रन्थ पद टोडरमल जोग ग्रन्थ नाम माला जोधपुर के साधु देवदास जाशी ने इनकी वाणी का संग्रह श्री हरिपुरुष जी की वाणी के नाम से प्रकाशित किया है। जसनाथ जी ने अपनी वाणी में पशुहिंसा का विरोध जीव-ब्रह्म की एकता तथा संसार की क्षणिकता के विषयों की चर्चा की है। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:— तानसेन का जीवन परिचय, गुरु, पिता, पुत्र, दूसरा नाम और शिक्षा संगीत सम्राट तानसेन का नाम सवत्र प्रसिद्ध है। आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व भारतीय संगीत के क्षितिज पर यह Read more कवि भीम का जीवन परिचय और इतिहास आज के अपने इस लेख में हम उस प्रसिद्ध भक्त एंव कवि के जीवन चरित्र के बारे में जानेंगे जिसने गुजराती Read more कवि भालण का जन्म कब हुआ और समय काल मध्यकाल के प्रसिद्ध एवं समर्थ आख्यानकार गुजरात के कवि भालण के जन्म काल के सम्बन्ध में 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