You are currently viewing नानकमत्ता साहिब का इतिहास – नानकमत्ता गुरूद्वारा हिस्ट्री इन हिन्दी
नानकमत्ता साहिब के सुंदर दृश्य

नानकमत्ता साहिब का इतिहास – नानकमत्ता गुरूद्वारा हिस्ट्री इन हिन्दी

नानकमत्ता साहिब सिक्खों का पवित्र तीर्थ स्थान है। यह स्थान उतराखंड राज्य के उधमसिंहनगर जिले (रूद्रपुर) नानकमत्ता नामक नगर में स्थित है। यह पवित्र स्थान सितारगंज — खटीमा मार्ग पर सितारगंज से 13 किमी और खटीमा से 15 किमी की दूरी पर स्थित है। सिक्खों के प्रथम गुरू नानक देव जी ने यहां की यात्रा की थी। इसलिए इस स्थान का महत्व बहुत बडा माना जाता है। अपने इस लेख में हम इसी पवित्र स्थान की यात्रा करेंगे और जानेंगे:– नानकमत्ता साहिब का इतिहास, नानकमत्ता साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी, नानकमत्ता का महत्व, नानकमत्ता साहिब में देखने लायक स्थान, नानकमत्ता गुरूद्वारा हिस्ट्री इन हिन्दी, नानकमत्ता गुरूद्वारे के बारें में बहुत कुछ जानेगें।

नानकमत्ता साहिब का इतिहास – नानकमत्ता साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी

नानकमत्ता का प्राचीन नाम गोरखमत्ता था। जो गुरू नानक देव जी के यहां आगमन के बाद नानकमत्ता हो गया। आज से लगभग 495 वर्ष पूर्व 1524 ईसवीं में सिक्खों के प्रथम गुरू नानकदेव जी करतारपुर से ऊधमसिंह नगर स्थित नानकमत्ता नामक स्थान पर आये थे। पवित्र ग्रंथ गुरवाणी में इस यात्रा का उल्लेख नानक देव जी की तीसरी उदासी अर्थात तीसरी यात्रा के रेप में किया गया है। कहते है कि अवध के राजकुमार नवाब अली खां ने गुरु गोविंद सिंह जी से प्रभावित होकर नानकमत्ता क्षेत्र की जमीन उन्हें उपहार स्वरूप भेंट कर दी थी।

492 वर्ष पहले गुरू नानक देव जी, भाई मरदाना जी और बाला जी के साथ यहां आये थे। उस समय यहां जोगी और नाथों का डेरा था। जो यहां पर साधना किया करते थे। नंग-धड़ंग अवस्था में शरीर पर राख मलकर चरस के नशे में धुत रहने वाले जोगी बहुत ही अहंकारी स्वभाव के थे। इसी स्थान पर गुरु नानक देव जी ने इन अहंकारी साधुओं का अहंकार तोड़ कर उन्हें निर्मल ज्ञान और गुरूवाणी का संदेश दिया था।

गुरु नानक जी ने उनसे कहा कि परिवार की सेवा ही सबसे सच्ची सेवा और ईशकार्य है। अतः घर गृहस्थी और परिवार के बीच रहकर सच्चे मन से ईश्वर की पूजा अर्चना करो। गुरु नानक देव जी ने योग मत की आलोचना कर सत्य योग मार्ग की व्याख्या करते हुए जब यह कहा कि कमंडल या डंडा धारण करने, तन पर भस्म पोतने, कान छिदवाने अथवा सर्पाकार बिगुल बजाने में सच्चा योग निहित नहीं नहीं है। जैसे आंख में सुरमा रहता है ऐसे ही निरन्तर अभ्यास और लगन से योग की युक्ति होती है। न कि गली गली मंडराने से। सच्चा योगी उसे कहना चाहिए जोकि एक दृष्टि से सभी प्राणियों को समान जाने।

गुरु नानक देव जी के इन वचन को सुनकर अनुभवी और विनम्र स्वभाव के योगियों को गुरू की वाणी में प्रकाश की अनुभूति हुई वे उनके आगे नतमस्तक हो गये। लेकिन कुछ उग्र स्वभाव के योगी भड़क उठे। अहंकार के नशे में चूर योगियों को गुरु नानक देव जी की यह बात नागवार गुजरीं। उन्होंने गुरु नानक देव जी पर ही उल्टे आरोप लगाने शुरू कर उनके खिलाफ जादू टोने करने शुरू कर दिये।

गुरु नानक देव जी जिस पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या करते व उपदेश देते थे। योगियों ने अपने जादू के बल पर उस पेड़ को आकाश की ओर उड़ाना शुरू कर दिया। लेकिन गुरु नानक देव जी ने अपनी दिव्य शक्ति के बल पर पेड़ को आकाश की ओर उडने से रोक दिया। गुरु गोरखनाथ के इन शिष्यों का अहंकार तोड़ कर गुरु नानक देव जी ने उन्हें समझाया कि जिस तरह पानी में रहकर भी कमल का फूल अपनी अलग पहचान बना लेता है। और मुर्गाणी जल में रहकर भी सूखी रहती है उसी प्रकार गृहस्थ जीवन में रहकर घर परिवार बसाकर ईश्वर की सच्ची पूजा की जा सकती है।

एक अन्य प्रसंग के अनुसार इस स्थल पर पहुंचकर गुरु नानक देव जी ने काफी समय से सूखे पीपल के पेड़ के नीचे अपना आसन लगाया, जिससे वह पेड़ हरा भरा हो गया। इस चमत्कार को देखकर सिद्ध योगी बहुत हैरान हुए और ईर्ष्या करके गुरु से प्रश्न पूछा कि तुम्हारा गुरु कौन हैं? किस दुख के कारण घर का त्याग किया है। गुरु नानक देव जी ने उत्तर दिया कि मन, वचन और कर्म से सत्य का शिष्य हूँ। और शब्द से जुड़कर बंधनों से मुक्त हूँ।आज भी यह पीपल का पेड़ नानकमत्ता साहिब में मौजूद और हरा भरा है। जिसे पीपल साहिब के नाम से जाना जाता है।

एक दिन रात के समय सभी सिद्ध योगी अपने अपने आसनों पर धूने लगाकर बैठ गये। भाई मरदाना जी गुरू जी से आज्ञा लेकर योगियों से अग्नि मांगने पहुंच गये। लेकिन अहंकारी योगियों ने अग्नि देने से इंकार कर दिया। भाई मरदाना जी ने जब सारी बात गुरु नानक देव जी को बताई, तो गुरू कृपा से धूनि अपने आप जलने लगी। यह चमत्कार देखकर योगी बड़े हैरान हो गये, उन्होंने अपने प्रभाव से आंधी तूफान चलवा.दिया। आंधी तूफान के जोर से पीपल का पेड़ उड़ने लगा, तब गुरु देव जी ने अपना पवित्र पंजा लगाकर पीपल को वहीं रोक दिया। सूर्य उदय होने पर जब योगियों ने गुरु जी का धूना जलता देखा तो वह बड़े हैरान हुए, और अग्नि मांगने चले आए। तब गुरु जी ने उनसे गुरु गोरखनाथ की मुन्दरें और खड़ाऊँ लेकर बदले में अग्नि दी।

इसी तरह एक दिन योगियों ने गुरू नानक देव जी को एक खाली बर्तन देकर इसे दूध से भर देने की प्रार्थना की। गुरु नानक देव जी ने वह बर्तन दूध से भर दिया। यह दृश्य देखकर योगी हैरान हो गए। गुरु जी ने कुंएं को भी दूध से भर दिया।

एक अन्य प्रसंग के अनुसार इस स्थान पर निवास करने वाले सिद्धों के पास बड़ी संख्या में गायें थीं। भाई मरदाना ने दूध की इच्छा व्यक्त की। गुरु जी ने उनसे कहा कि वे कुछ दूध योगियों से ले आये। योगियों ने भाई मरदाना को दूध देने से इनकार कर दिया और उन्हे ताना मारकर कहा अपने गुरु से दूध ले लो। भाई मरदाना ने सारी बात गुरु नानकदेव जी को आकर बताई। गुरु साहिब ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर योगियों की गायों से सारा दूध निकाला और उसे एक कुँए में जमा कर दिया। यह कुआं आज भी नानकमत्ता साहिब में स्थित है, और दूध वाला कुआँ के नाम से कुआँ साहिब के नाम से जाना जाता हैं। कहा जाता है कि इस कुएं का पानी दूध के स्वाद की तरह लगता है। ऐतिहासिक कुएँ के साथ-साथ, गुरुद्वारा है जिसे गुरुद्वारा दुध वाला कुआँ के नाम से जाना जाता है।

यह भी कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इस कुएं के पानी से पवित्र स्नान करता है और फिर गुरु जी (भगवान) से प्रार्थना करता है, उसे परिवार में पर्याप्त दूध और पुत्र मिलता है।

इतिहासकारों के अनुसार सिक्खों के छठे गुरु श्री हरिगोबिन्द साहिब के नानकमत्ता आने पर जो योगी वहां से भाग खड़े हुए थे, वह वहां के राजा बाज बहादुर के पास शिकायत करने पहुंच गये लेकिन जब राजा गुस्से से गुरु जी के पास पहुंचा तो उसका मन डोल गया। क्योंकि यह वही सच्चे पातशाह थे, जिन्होंने ग्वालियर के किले से उस सहित बावन राजाओं को मुक्त कराया था। जिनका गुरूद्वारा नानकमत्ता के बाहरी क्षेत्र में यहां 1-2किमी की दूरी पर स्थित है। जिसे गुरूद्वारा छठी पातशाही साहिब के नाम से जाना जाता है।

एक बार शंभूनाथ सिद्ध अपने साथियों को लेकर गुरु नानकदेव जी के पास आया और बोला कि यहां पानी की बहुत तंगी है। अतः कृपा करके पानी की व्यवस्था करवाइये। तब गुरु नानकदेव जी ने भाई मरदाना जी को आदेश दिया कि आप फाहुड़ी लेकर नदी के किनारे चले जाओ, फाहुड़ी नदी के किनारे लगाकर वापिस फाहुड़ी खिचते चले आना, लेकिन रास्ते में पीछे मुड़ कर नहीं देखना, पानी तुम्हारे पीछे चला आयेगा, लेकिन रास्ते में आते हुए भाई मरदाना जी के मन में शंका पैदा हो गई कि पानी पीछे आ भी रहा है या नहीं? उन्होंने पीछे मुडकर देख लिया। गुरु जी का वचन तोड़ने पर पानी वहीं रूक गया। तब गुरु जी ने सिद्धो से कहा कि हमारा सेवक पानी यहां तक ले आया है। अब आगे आप लोग पानी ले आओ। सिद्धों ने बहुत कोशिश की लेकिन नदी का पानी आगे नहीं ला सके। बाद यहां एक बाऊली बनाई गई जो आज भी यहां नानकमत्ता मुख्य गुरूद्वारे से कुछ दूरी पर स्थित है। और बाऊली साहिब के नाम से जानी जाती है। इसी तरह गुरु नानक देव जी के कई चमत्कार योगियों के सामने आये। आखिरकार वे गुरु नानकदेव जी के आगे नतमस्तक हो गये।

सिक्ख श्रद्धालुओं का मानना है कि गुरु गोविंद सिंह जी भी यहां आये थे। और उन्होंने पीपल के वृक्ष पर केसर के छिटें मा थे। उनका विश्वास है कि दीपावली की रात को पीपल के वृक्ष के पत्तों के रंग केसर युक्त हो जाते है। नानकमत्ता गुरूद्वारे के प्रति हिन्दू, सिक्ख, ईसाई आदि सभी धर्मों के अनुयायियों की अपार श्रद्धा है। दीपावली के अवसर पर यहां विशाल मेला भी लगता है, जिसमे लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है।

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

This Post Has 2 Comments

  1. waseem

    nice information about nanakmatta sahib

Leave a Reply